कोरबा: 22 जनवरी को रामलला अयोध्या में विराजने वाले हैं. देश और दुनिया में अभी से रामजी के लिए मंगल गीत गाए जा रहे हैं. बहुत कम लोग जानते होंगे कि कोरबा के करीब एक इलाका है जिसका नाम सीतामढ़ी है जहां रामजी के चरण पड़े थे. सदियों से मान्यता चली आ रही है कि वनवास के वक्त प्रभु राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ यहां पर रुके थे. मान्यताओं के मुताबिक आज भी कई ऐसे निशान हैं जो बताते हैं कि रामजी यहां आए थे.
दीवारों पर लिखी है रामजी की कहानी: सीतामढ़ी की प्रसिद्ध गुफा रुपी मंदिर में आज भी पदचिन्हों के साथ कुछ पंक्तियां पत्थर की दीवारों पर लिखी हैं जो सातंवी से आठवीं शताब्दी के बीच की बताई जाती हैं. दीवारों पर शैलचित्र भी बना है. मंदिर के भीतर आज भी ऋषि विश्वामित्र के साथ राम लखन की प्रतिमा विराजमान है. सीतामढ़ी की इस प्राचीन गुफा चर्चा में तो नहीं रहा लेकिन गुफा के बार में जैसे जैसे लोगों को जानकारी हो रही है, लोग बड़ी संख्या में रामजी जी आगमन के निशान देखने पहुंच रहे हैं.
तीन मूर्तियां बेहद प्राचीन, दुर्लभ और महत्वपूर्ण हैं. इनमें ऋषि विश्वामित्र और राम-लखन दिख रहे हैं. मूर्तियां इस बात का प्रमाण है कि तत्कालीन राक्षस ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ को पूर्ण नहीं होने देते थे. इस यज्ञ की रक्षा के लिए प्रभु श्री राम और लक्ष्मण यहां पहुंचे थे. रामजी का ननिहाल छत्तीसगढ़ में था इस वजह से रामजी पूरे जंगल से वाकिफ थे. ऋषि मुनियों का आश्रम भी यहीं था जहां श्री राम आते जाते रहते थे. इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि ऋषि विश्वामित्र उन्हें अपने यज्ञ की रक्षा के लिए यहां लाये थे. यहां का शिलालेख भी काफी महत्वपूर्ण है. जिसे काफी सहेजने की जरूरत है. यह सातवी आठवीं शताब्दी के हैं और इसमें कौनतड़िका नामक गांव के दान दिए जाने का उल्लेख मिलता है. यह गांव इतिहास में एक तरह से गुमनाम है. लेकिन इस शिलालेख में उस गांव के अस्तित्व में होने का भी प्रमाण है. - हरि सिंह क्षत्री, जिला पुरातत्व विभाग के मार्गदर्शक
लापरवाही से सीता कुंड बना नाला: मंदिर के पुजारी का कहना है कि कभी सीता कुंड से पानी रिसकर नीचे पहुंचता था अब नगर निगम ने यहां एक नाला बना दिया है. शहर भर का गंदा पानी अब मंदिर के नीचे से निकलता है. नाले की गंदगी से मंदिर और गुफा दोनों को काफी नुकसान हो रहा है. मंदिर के पुजारी और भक्त दोनों मानते हैं कि अगर मंदिर का कायाकल्प हो गया तो ये भी राजजी की आस्था का एक बड़ा केंद्र बन जाएगा.
पिता की मृत्यु के बाद अब मैं ही मंदिर की सेवा करता हूं. जिस स्थान पर मंदिर मौजूद है. उसके ठीक नीचे नगर पालिका निगम का एक बड़ा नाला बहता है. शहर के सारी गंदगी यहां से भाकर निकलती है. इसी स्थान पर पहले एक सीता कुंड हुआ करता था. जहां से 24 घंटे पानी रिसता था. हम वहां नहाते भी थे और उस पानी को पीने के लिए भी इस्तेमाल करते थे. वह बेहद स्वच्छ पानी था. लेकिन उस कुंड के ऊपर ही नगर निगम ने नाले का निर्माण कर दिया. यह निर्माण काफी पहले हो चुका है, जिससे वह कुंड पूरी तरह से अब समाप्त हो गया है. मंदिर का काफी ऐतिहासिक महत्व है. हम अपने पिता और दादा से सुनते आए हैं कि यहां वनवास के दौरान प्रभु श्री राम आए थे. उनके पद चिन्ह हैं. प्राचीन शिलालेख के साथ ही कुछ प्राचीन मूर्तियां हैं. क्षेत्र में इस मंदिर के प्रति लोगों में गहरी आस्था है. - दुकालू श्रीवास, मंदिर के पुजारी
कई कहानियां और मान्यतायें हैं प्रचलित: प्राचीन मंदिर के विषय में लोगों के बीच कई कहानियां प्रचलित हैं. एक कहानी के अनुसार यहां माता सीता के पद चिन्ह हैं. लेकिन पुरातत्व के जानकार इसे नकारते हैं और इसे प्राचीन मूर्तियों का टूटा हुआ हिस्सा बताते हैं. एक अन्य कहानी के अनुसार यहां माता सीता को माता अनुसूया ने नारीधर्म का ज्ञान दिया था. यहां मिले प्राचीन शैलचित्र कभी काफी महत्वपूर्ण हैं नागपुर की एक संस्था ने भी इस इन शैलचित्रों के अध्ययन करने आया था. 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. कोरबा के लोगों को उम्मीद है उस जल्द ही इस मंदिर को भी सहेजने और संवारने की कोशिश शुरु होगी. भूपेश बघेल की सरकार में जरूर राम गमन वन पथ को लेकर बड़ा आयोजन किया लेकिन इस प्राचीन मंदिर की ओर उनका ध्यान नहीं गया.