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Woman's Day: गोबर के दिये और हर्बल गुलाल ने महिलाओं की जिंदगी में लाई रोशनी के साथ खुशियों के रंग

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर ईटीवी भारत पर आपको रूबरू करा है ऐसी महिलाओं से जिसने समाज के दकियानूसी परंपराओं और बेड़ियों को तोड़ अलग पहचान बनाई है. इस कड़ी में कोरबा जिले के कटघोरा की महिलाओं की कहानी...जिसने न सिर्फ घर में रहने वाली बंधन तोड़ा बल्कि मौका मिलते ही दिखा दिया कि वो घर से बाहर भी हुत कुछ कर सकती हैं, और इतना कर सकती हैं कि उनसे भरोसे कई परिवार की रोजी रोटी चल सकता है...देखिये महिलाओं की संघर्ष की कहानी...अपराजिता...

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हर्बल गुलाल
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Published : Mar 7, 2021, 10:54 PM IST

कोरबा/कटघोरा: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर ईटीवी भारत देश की ऐसी महिलाओं की कहानी से आपको रूबरू करा रहा है, जिसने समाज के दकियानूसी परंपराओं और बेड़ियों को तोड़ अलग पहचान बनाई है. इसी कड़ी में ये कहानी है छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले की महिलाओं की. जिसमें आजीविका चलाने की कोशिशों ने उन्हें स्वावलंबी बना दी है.

स्वयं सहायता समूहों में संगठित होने के बाद महिलाएं 'पंचसूत्र' के जरिए आत्मनिर्भर बनने की राह पकड़ रही हैं. कटघोरा विकासखण्ड के धवईपुर में जननी महिला क्लस्टर संगठन की महिलाएं आज अपने काम से स्वावलंबन की राह पकड़ आत्मनिर्भर हो रही हैं. यहां 60 महिलाएं इस संगठन से जुड़कर त्योहारों में स्वनिर्मित स्वदेशी सामानों को बनाकर अच्छी आय प्राप्त कर रही हैं. ये महिलाएं होली, दिवाली, राक्षबंधन के साथ पारंपरिक त्योहारों में उपयोग होने वाले सामान बनाती हैं.

हर्बल रंग से मनेगा इकोफ्रेंडली होली

हर साल की तरह इस बार भी होली के त्योहार को रंगीन बनाने की तैयारी शुरू हो गई है. होली के खुशनुमा रंग कई बार केमिकल और मिलावट की वजह से लोगों की जिंदगी को बदरंग कर देती है, लेकिन इन महिलाओं की पहल ने होली को सुखद और सुरक्षित बना दिया है. इनके बनाये रंग लोगों की जिंदगी में रंग घोल रही है. वो भी बिना किसी तरह की नुकसान के. ये महिलाएं समूहों में हर्बल गुलाल तैयार कर रही हैं. इससे महिलाओं के स्वावलंबन की राह खुलने के साथ इकोफ्रेंडली होली से लोग रंगों के साइड इफेक्ट से बच रहे हैं.

6 समूह की 60 महिलाएं कर रही हैं काम

होली में इस बार चुकंदर और भाजी के रंगों से बना हर्बल गुलाल बाजार में उपलब्ध रहेगा. कटघोरा विकासखण्ड के धवईपुर और ढेलवाडीह, अमरपुर में गोठान संचालित करने वाली 6 समूह की 60 महिलाएं इसे तैयार कर रही हैं. सब्जियों, फूलों की पंखुड़ियों, गुलाब जल, चंदन, खस के इत्र आदि से तैयार हो रही हर्बल गुलाल की खास बात यह है कि इसमें किसी तरह का रसायनिक सामाग्री का उपयोग नहीं किया गया है.

'महिलाओं में सहनशक्ति के साथ ही बेहतर प्लानिंग की क्षमता'

पांच क्विंटल हर्बल गुलाल बनाने का लक्ष्य

गुलाल को पालक की भाजी से हरा रंग, लाल भाजी से गुलाबी रंग, चुकंदर से लाल रंग, हल्दी से पीला रंग दिया जा रहा है. गुलाब, गेंदा, टेसू जैसे फूलों की पंखुड़ियों से भी यह महिलाएं प्रीमियम क्वॉलिटी का हर्बल गुलाल बना रही हैं. महिलाओं ने आने वाली होली तक अलग-अलग रंग के लगभग पांच क्विंटल हर्बल गुलाल बनाने का लक्ष्य तय किया है. अब तक दो क्विंटल गुलाल तैयार कर चुकी हैं. प्रशासन की मदद से इस गुलाल की बिक्री के लिए समूहों को कटघोरा और कोरबा सहित स्थानीय बाजार उपलब्ध कराने की तैयारी है. धवईपुर जननी महिला क्लस्टर संगठन की अध्यक्ष देवेश्वरी जायसवाल बताती हैं कि उन्हें और उनकी जैसी लगभग 60 महिलाओं को दो चरणों में आजीविका मिशन के तहत हर्बल गुलाल बनाने का प्रशिक्षण मिला है. इसमें किसी भी तरह के रासायनिक पदार्थों का उपयोग नहीं किया गया है. हर्बल गुलाल से चेहरे में निखार के लिए हल्दी, चंदन, गुलाब जल आदि मिलाया जा रहा है. रासायनिक पदार्थों का उपयोग नहीं होने से यह गुलाल त्वचा, आंख, बाल आदि के लिए हानिकारक नहीं होगा.

प्रति किलो 60 रुपये का खर्च

धवईपुर जननी महिला क्लस्टर संगठन से जुड़ी महिला समूह की पीआरपी फूल बाई मरकाम ने बताया कि एक किलो हर्बल गुलाल बनाने में 60 रुपये खर्च आता है. स्थानीय बाजार में 100 रुपये प्रति किलो की दर से इसे बेचने का प्लान है. आम बाजार में हर्बल के नाम से बिकने वाले गुलाल के मुकाबले यह अधिक विश्वसनीय और कम कीमत का है. देवेश्वरी जायसवाल को उम्मीद है कि पांच क्विंटल हर्बल गुलाल से समूह को होली के सीजन में 50 से 60 हजार रुपये का फायदा हो सकता है. समूहों ने आजीविका मिशन के अधिकारियों के साथ मिलकर स्थानीय थोक एवं फुटकर व्यापारियों के साथ स्वयं भी दुकानें लगाकर इस गुलाल की बिक्री की योजना तैयार कर ली है. इसके पहले समूह द्वारा कोरोना काल में मास्क बना कर अच्छी आय अर्जित की गई थी. यहां की महिलाएं रक्षाबंधन में राखियां और दीपावली में गोबर के दिये बनाने का भी काम करती हैं.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ETV भारत की विशेष पेशकश 'अपराजिता'

ऐसे तैयार होता है हर्बल गुलाल

गुलाल तैयार करने के बारे में अध्यक्ष देवेश्वरी जायसवाल बताती हैं, हरा रंग के लिए पालक या धनिया, पीला के लिए हल्दी, गुलाबी के लाल भाजी, लाल के चुकंदर को महीन पीसकर उसका रंग निकाला जाता है. रंग के साथ, तुलसी, चंदन, गुलाब आदि के अर्क को अरारोट में डाल कर उसे सूखाया जाता है. सूखने के बाद उसे पीसकर महीन कर दिया जाता हैं. पिसाई के बाद तैयार रंग बाजार में बिक्री के लिए पैक करते हैं.

गोबर से सजावट के सामान

गोठान में गोबर और मिट्टी से कई तरह की सामाग्राी जैसे लक्ष्मी पांव, प्रतिमा, दीया, गमला जैसे सजावट के सामान तैयार किए जा रहे हैं. हर्बल गुलाल मिलाकर इन आकृतियों को और भी आकर्षक बनाया जा सकता है. जननी स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष देवेश्वरी का कहना है कि गुलाल की उपयोगिता को विविधता देने के लिए महिलाओं को जानकारी दी जा रही है. जिससे वे इसका अधिक से अधिक लाभ ले सकें. महिलाएं गुलाल के अलावा आचार, पापड़, अगरबत्ती जैसे घरेलू सामान भी तैयार कर रही हैं.

कोरबा/कटघोरा: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर ईटीवी भारत देश की ऐसी महिलाओं की कहानी से आपको रूबरू करा रहा है, जिसने समाज के दकियानूसी परंपराओं और बेड़ियों को तोड़ अलग पहचान बनाई है. इसी कड़ी में ये कहानी है छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले की महिलाओं की. जिसमें आजीविका चलाने की कोशिशों ने उन्हें स्वावलंबी बना दी है.

स्वयं सहायता समूहों में संगठित होने के बाद महिलाएं 'पंचसूत्र' के जरिए आत्मनिर्भर बनने की राह पकड़ रही हैं. कटघोरा विकासखण्ड के धवईपुर में जननी महिला क्लस्टर संगठन की महिलाएं आज अपने काम से स्वावलंबन की राह पकड़ आत्मनिर्भर हो रही हैं. यहां 60 महिलाएं इस संगठन से जुड़कर त्योहारों में स्वनिर्मित स्वदेशी सामानों को बनाकर अच्छी आय प्राप्त कर रही हैं. ये महिलाएं होली, दिवाली, राक्षबंधन के साथ पारंपरिक त्योहारों में उपयोग होने वाले सामान बनाती हैं.

हर्बल रंग से मनेगा इकोफ्रेंडली होली

हर साल की तरह इस बार भी होली के त्योहार को रंगीन बनाने की तैयारी शुरू हो गई है. होली के खुशनुमा रंग कई बार केमिकल और मिलावट की वजह से लोगों की जिंदगी को बदरंग कर देती है, लेकिन इन महिलाओं की पहल ने होली को सुखद और सुरक्षित बना दिया है. इनके बनाये रंग लोगों की जिंदगी में रंग घोल रही है. वो भी बिना किसी तरह की नुकसान के. ये महिलाएं समूहों में हर्बल गुलाल तैयार कर रही हैं. इससे महिलाओं के स्वावलंबन की राह खुलने के साथ इकोफ्रेंडली होली से लोग रंगों के साइड इफेक्ट से बच रहे हैं.

6 समूह की 60 महिलाएं कर रही हैं काम

होली में इस बार चुकंदर और भाजी के रंगों से बना हर्बल गुलाल बाजार में उपलब्ध रहेगा. कटघोरा विकासखण्ड के धवईपुर और ढेलवाडीह, अमरपुर में गोठान संचालित करने वाली 6 समूह की 60 महिलाएं इसे तैयार कर रही हैं. सब्जियों, फूलों की पंखुड़ियों, गुलाब जल, चंदन, खस के इत्र आदि से तैयार हो रही हर्बल गुलाल की खास बात यह है कि इसमें किसी तरह का रसायनिक सामाग्री का उपयोग नहीं किया गया है.

'महिलाओं में सहनशक्ति के साथ ही बेहतर प्लानिंग की क्षमता'

पांच क्विंटल हर्बल गुलाल बनाने का लक्ष्य

गुलाल को पालक की भाजी से हरा रंग, लाल भाजी से गुलाबी रंग, चुकंदर से लाल रंग, हल्दी से पीला रंग दिया जा रहा है. गुलाब, गेंदा, टेसू जैसे फूलों की पंखुड़ियों से भी यह महिलाएं प्रीमियम क्वॉलिटी का हर्बल गुलाल बना रही हैं. महिलाओं ने आने वाली होली तक अलग-अलग रंग के लगभग पांच क्विंटल हर्बल गुलाल बनाने का लक्ष्य तय किया है. अब तक दो क्विंटल गुलाल तैयार कर चुकी हैं. प्रशासन की मदद से इस गुलाल की बिक्री के लिए समूहों को कटघोरा और कोरबा सहित स्थानीय बाजार उपलब्ध कराने की तैयारी है. धवईपुर जननी महिला क्लस्टर संगठन की अध्यक्ष देवेश्वरी जायसवाल बताती हैं कि उन्हें और उनकी जैसी लगभग 60 महिलाओं को दो चरणों में आजीविका मिशन के तहत हर्बल गुलाल बनाने का प्रशिक्षण मिला है. इसमें किसी भी तरह के रासायनिक पदार्थों का उपयोग नहीं किया गया है. हर्बल गुलाल से चेहरे में निखार के लिए हल्दी, चंदन, गुलाब जल आदि मिलाया जा रहा है. रासायनिक पदार्थों का उपयोग नहीं होने से यह गुलाल त्वचा, आंख, बाल आदि के लिए हानिकारक नहीं होगा.

प्रति किलो 60 रुपये का खर्च

धवईपुर जननी महिला क्लस्टर संगठन से जुड़ी महिला समूह की पीआरपी फूल बाई मरकाम ने बताया कि एक किलो हर्बल गुलाल बनाने में 60 रुपये खर्च आता है. स्थानीय बाजार में 100 रुपये प्रति किलो की दर से इसे बेचने का प्लान है. आम बाजार में हर्बल के नाम से बिकने वाले गुलाल के मुकाबले यह अधिक विश्वसनीय और कम कीमत का है. देवेश्वरी जायसवाल को उम्मीद है कि पांच क्विंटल हर्बल गुलाल से समूह को होली के सीजन में 50 से 60 हजार रुपये का फायदा हो सकता है. समूहों ने आजीविका मिशन के अधिकारियों के साथ मिलकर स्थानीय थोक एवं फुटकर व्यापारियों के साथ स्वयं भी दुकानें लगाकर इस गुलाल की बिक्री की योजना तैयार कर ली है. इसके पहले समूह द्वारा कोरोना काल में मास्क बना कर अच्छी आय अर्जित की गई थी. यहां की महिलाएं रक्षाबंधन में राखियां और दीपावली में गोबर के दिये बनाने का भी काम करती हैं.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ETV भारत की विशेष पेशकश 'अपराजिता'

ऐसे तैयार होता है हर्बल गुलाल

गुलाल तैयार करने के बारे में अध्यक्ष देवेश्वरी जायसवाल बताती हैं, हरा रंग के लिए पालक या धनिया, पीला के लिए हल्दी, गुलाबी के लाल भाजी, लाल के चुकंदर को महीन पीसकर उसका रंग निकाला जाता है. रंग के साथ, तुलसी, चंदन, गुलाब आदि के अर्क को अरारोट में डाल कर उसे सूखाया जाता है. सूखने के बाद उसे पीसकर महीन कर दिया जाता हैं. पिसाई के बाद तैयार रंग बाजार में बिक्री के लिए पैक करते हैं.

गोबर से सजावट के सामान

गोठान में गोबर और मिट्टी से कई तरह की सामाग्राी जैसे लक्ष्मी पांव, प्रतिमा, दीया, गमला जैसे सजावट के सामान तैयार किए जा रहे हैं. हर्बल गुलाल मिलाकर इन आकृतियों को और भी आकर्षक बनाया जा सकता है. जननी स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष देवेश्वरी का कहना है कि गुलाल की उपयोगिता को विविधता देने के लिए महिलाओं को जानकारी दी जा रही है. जिससे वे इसका अधिक से अधिक लाभ ले सकें. महिलाएं गुलाल के अलावा आचार, पापड़, अगरबत्ती जैसे घरेलू सामान भी तैयार कर रही हैं.

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