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SPECIAL: कोरोना काल में ये भी आपदा, गड्ढों का पानी पीने को मजबूर हैं यहां के ग्रामीण

कोरबा के ग्राम पंचायत चिर्रा में लोग कई सालों के बाद भी साफ पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं. ग्रामीण यहां बारिश के दौरान गड्ढों में भरे पानी को पीने के लिए मजबूर हैं. कई बार जिम्मेदारों को इसकी जानकारी दी गई, लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.

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कोरबा में पानी की परेशानी
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Published : Jul 4, 2020, 9:07 AM IST

कोरबा: एक तरफ पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से बचने के लिए साफ-सफाई का पूरा ख्याल रख रही है. स्वास्थ्य विभाग सैनिटाइजेशन के लिए हर रोज गाइडलाइन जारी करता है, वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के गांव के लोग सैनिटाइजर क्या, साफ पानी के लिए भी तरस रहे हैं. जिले की चिर्रा ग्राम पंचायत में ग्रामीणों के पास पीने के साफ पानी के लिए कोई साधन नहीं है. गांववाले कई किलोमीटर चलकर जाते हैं, तब पीने का पानी नसीब होता है. बारिश के दिन में हालत और बदतर हो जाते हैं. लोग गड्ढे में भरा पानी के लिए मजबूर हो जाते हैं.

ग्राम पंचायत चिर्रा कोरबा जिला मुख्यालय से महज 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस पंचायत के गठन से पहले ही यहां के लोग पानी की परेशानी से जूझ रहे हैं. जो नलकूप खोदे गए थे, उसमें से लाल पानी निकलता है. भू-जलस्तर भी काफी गिर चुका है. ग्रामीणों के मुताबिक यहां साफ पानी का कोई स्रोत नहीं है. वे बरसों से इसी तरह इधर-उधर से पानी लाकर अपना जीवन काट रहे हैं.

गड्ढों का पानी पीने को मजबूर लोग

कई सालों से कर रहे पानी की मांग

कोरोना काल में खुद को सुरक्षित रखने और साफ खाना-पानी लेने की हिदायत दी जा रही है, वहीं चिर्रा के ग्रामीणों के प्रति शासन-प्रशासन लापरवाह है. लगातार कई सालों से मांग करने के बावजूद इन्हें आज तक साफ पानी पीने का सुख नहीं मिल सका.

गंदा पानी पीने के लिए मजबूर ग्रामीण

ग्रामीणों ने बताया कि भूमिगत जल के दो स्रोत उनके गांव में मौजूद हैं. सुबह और शाम गांव की महिलाएं इन दो जल स्रोतों पर इकट्ठा होती हैं. अपने परिवार के जरूरत के लिए ये यहीं से पानी घर ले जाती हैं. उनका कहना है कि ये पानी पीने के लिए साफ नहीं है. इसे सिर्फ निस्तारी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन जब कोई सहारा नहीं मिलता, तब वे इसी से अपनी प्यास बुझाते हैं.

पढ़ें- कोरबा: एमपी नगर में जलभराव के बाद निगम ने हटाया अवरोध

जिम्मेदारों ने नहीं ली सुध

ग्रामीण बताते हैं कि उन्हें पानी लाने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. वे पथरीले रास्तों से होकर पानी लेने जाते हैं. कई बार लोग गंदे पानी की वजह से बीमार भी पड़ चुके हैं, फिर भी इस ओर आज तक किसी ने ध्यान नहीं दिया. कई बार जनप्रतिनिधियों को भी इस परेशानी से रू-ब-रू कराया गया है, लेकिन कोई यहां झांकने भी नहीं पहुंचा. वहीं ग्रामीणों को अब भी उम्मीद है कि शासन-प्रशासन इस तरफ जल्द ध्यान देगा और उन्हें साफ पानी पीने मिलेगा.

पढ़ें- SPECIAL: कोरोना वॉरियर्स सफाईकर्मियों का नगरपालिका पर आरोप, बिना सुरक्षा कवच करना पड़ रहा काम

आश्चर्य की बात है कि नेता-मंत्री चुनाव के समय वनांचलों के लोगों से बड़े-बड़े विकास के वादे करते हैं, ग्रामीण अंचलों से वोट लेते हैं, इसके बावजूद कई इलाके ऐसे हैं, जो आज भी विकास का मुंह ताक रहे हैं. जहां के लोग सिर्फ मजबूरी के साए में अपनी जिंदगी काट रहे हैं.

कोरबा: एक तरफ पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से बचने के लिए साफ-सफाई का पूरा ख्याल रख रही है. स्वास्थ्य विभाग सैनिटाइजेशन के लिए हर रोज गाइडलाइन जारी करता है, वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के गांव के लोग सैनिटाइजर क्या, साफ पानी के लिए भी तरस रहे हैं. जिले की चिर्रा ग्राम पंचायत में ग्रामीणों के पास पीने के साफ पानी के लिए कोई साधन नहीं है. गांववाले कई किलोमीटर चलकर जाते हैं, तब पीने का पानी नसीब होता है. बारिश के दिन में हालत और बदतर हो जाते हैं. लोग गड्ढे में भरा पानी के लिए मजबूर हो जाते हैं.

ग्राम पंचायत चिर्रा कोरबा जिला मुख्यालय से महज 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस पंचायत के गठन से पहले ही यहां के लोग पानी की परेशानी से जूझ रहे हैं. जो नलकूप खोदे गए थे, उसमें से लाल पानी निकलता है. भू-जलस्तर भी काफी गिर चुका है. ग्रामीणों के मुताबिक यहां साफ पानी का कोई स्रोत नहीं है. वे बरसों से इसी तरह इधर-उधर से पानी लाकर अपना जीवन काट रहे हैं.

गड्ढों का पानी पीने को मजबूर लोग

कई सालों से कर रहे पानी की मांग

कोरोना काल में खुद को सुरक्षित रखने और साफ खाना-पानी लेने की हिदायत दी जा रही है, वहीं चिर्रा के ग्रामीणों के प्रति शासन-प्रशासन लापरवाह है. लगातार कई सालों से मांग करने के बावजूद इन्हें आज तक साफ पानी पीने का सुख नहीं मिल सका.

गंदा पानी पीने के लिए मजबूर ग्रामीण

ग्रामीणों ने बताया कि भूमिगत जल के दो स्रोत उनके गांव में मौजूद हैं. सुबह और शाम गांव की महिलाएं इन दो जल स्रोतों पर इकट्ठा होती हैं. अपने परिवार के जरूरत के लिए ये यहीं से पानी घर ले जाती हैं. उनका कहना है कि ये पानी पीने के लिए साफ नहीं है. इसे सिर्फ निस्तारी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन जब कोई सहारा नहीं मिलता, तब वे इसी से अपनी प्यास बुझाते हैं.

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जिम्मेदारों ने नहीं ली सुध

ग्रामीण बताते हैं कि उन्हें पानी लाने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. वे पथरीले रास्तों से होकर पानी लेने जाते हैं. कई बार लोग गंदे पानी की वजह से बीमार भी पड़ चुके हैं, फिर भी इस ओर आज तक किसी ने ध्यान नहीं दिया. कई बार जनप्रतिनिधियों को भी इस परेशानी से रू-ब-रू कराया गया है, लेकिन कोई यहां झांकने भी नहीं पहुंचा. वहीं ग्रामीणों को अब भी उम्मीद है कि शासन-प्रशासन इस तरफ जल्द ध्यान देगा और उन्हें साफ पानी पीने मिलेगा.

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आश्चर्य की बात है कि नेता-मंत्री चुनाव के समय वनांचलों के लोगों से बड़े-बड़े विकास के वादे करते हैं, ग्रामीण अंचलों से वोट लेते हैं, इसके बावजूद कई इलाके ऐसे हैं, जो आज भी विकास का मुंह ताक रहे हैं. जहां के लोग सिर्फ मजबूरी के साए में अपनी जिंदगी काट रहे हैं.

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