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SPECIAL: किताबों की टेंशन को जाइए भूल, यहां स्टडी होती है VERY COOL

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Published : Jul 10, 2019, 12:42 AM IST

Updated : Jul 10, 2019, 12:06 PM IST

बच्चे पढ़ाई को खेल-कूद के साथ साथ नाचते-गाते सीखते हैं.

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कोरबा: 'आओ स्कूल चलें' में आज हम आपको वहां लेकर चलेंगे, जहां पढ़ाई चॉक, डस्टर और ब्लैकबोर्ड पर नहीं बल्कि खेल-कूद, नाचते-गाते होती है. ऐसा सरकारी स्कूल जो सरकारी स्कूल की हमारे दिमाग में परिभाषा से एकदम अलग है. गढ़कटरा गांव का ये स्कूल नजीर है.

किताबों की टेंशन को जाइए भूल, यहां स्टडी होती है VERY COOL

जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर ग्राम पंचायत अजगरबहार के अंतर्गत ग्राम गढ़कटरा की यह प्राथमिक शाला शहर के किसी प्ले स्कूल से कम नहीं है. यहां वो तमाम सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिसकी अपेक्षा शहर के स्कूलों से की जाती है. घोर वनांचल क्षेत्र और पहाड़ियों से बीच में बसे इस गांव के इस प्राथमिक शाला की पहचान आदर्श शालाओं में होती है.

स्कूल से जुड़ी खास बातें-

  • स्कूल के बोर्ड पर 'क्लीन स्कूल, ग्रीन स्कूल' जिस प्रमुखता से लिखा गया है, वो एक सकारात्मक सोच की पहचान है. जितनी सुंदर वादियों के बीच यह स्कूल बसा है उतनी ही अच्छी यहां की पढ़ाई है.
  • यहां की पढ़ाई चॉक, ब्लैकबोर्ड और डस्टर से बिल्कुल हटकर है. यहां के बच्चों के पढ़ने और उन्हें पढ़ाने का तरीका बेहद खास है. ये बच्चे हंसते, खेलते, झूमते, गाते, नाचते और कूदते हुए पढ़ाई का आनंद लेते हैं. शिक्षक यहां खेल-खेल में बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं.
  • चाहे अक्षर याद करना हो, चाहे कविता याद करना हो या गणित जैसा कठिन विषय भी यहां टीचर्स खेल-खेल में बच्चों को सिखा देते हैं.
  • शिक्षक अजय कोशले बताते हैं कि इस तरह की पढ़ाई से बच्चे बोर नहीं होते और मजे के साथ पढ़ाई करते हैं. अलग तरीके और प्रैक्टिकली पढ़ाने से बच्चों को पढ़ाई गई बातें लंबे समय तक याद रह जाती हैं.

शिक्षक के पिता भी यहीं शिक्षक थे-

  • यहां पर मौजूद शिक्षक श्रीकांत सिंह ने अलग से मैथ्स पढ़ाने की मशीन तैयार की है. इसी मशीन से वे बच्चों को मैथ्स सिखाते हैं. शिक्षक श्रीकांत ने इसी स्कूल से पढ़ाई की है. उनके पिताजी पहले यहीं शिक्षक थे.
  • पिताजी के देहांत के बाद श्रीकांत को इसी स्कूल में अनुकंपा नियुक्ति मिली. श्रीकांत पिछले 12 सालों से यहीं पर पदस्थ हैं और अब इसे अपने दूसरे घर से कम नहीं मानते हैं. यही कारण है कि अपने जेब से करीब 80 हजार रुपए खर्च कर स्कूल में बदलाव लाया है.
  • वर्तमान में स्कूल में रिपेयरिंग का भी काम चल रहा है जिसके बाद यहां स्मार्ट क्लास और प्रोजेक्टर से पढ़ाई दोबारा शुरू हो जाएगी. कुछ ही दिनों हर्बल गार्डन भी तैयार कर लिया जाएगा.
  • किसी बड़े स्कूल की ही तरह यहां के बच्चों में साफ सफाई को लेकर काफी जागरूकता है. बच्चे बिना साबुन से हाथ धोए खाना नहीं खाते. खाने में बच्चों को पौष्टिक भोजन मिले इसका भी खास ख्याल रखा जाता है.
  • जब खेलने की बात आती है तो किसी भी शहरी प्ले स्कूल की तरह यहां सभी खेल और उसके सामान मौजूद है. बच्चे साथ में खेलते हैं. मजे की बात यह भी है कि हर माह पैरेंट्स टीचर मीटिंग रखी जाती है, जिसमें मीटिंग के अंत में अभिभावकों को भी खेल खेलने को कहा जाता है.

कहते हैं गुरु बिन ज्ञान नहीं और इस स्कूल के गुरुजी तो बिन डंडे, खेल-खेल में अपने शिष्यों को ज्ञानी बना रहे हैं. सलाम है अंधेरे में उम्मीद की तरह चमकते इन शिक्षकों को. खूब सारी शुभकामनाएं शिक्षा के आसमान में टिमटिमाते इन छोटे-छोटे सितारों को.

कोरबा: 'आओ स्कूल चलें' में आज हम आपको वहां लेकर चलेंगे, जहां पढ़ाई चॉक, डस्टर और ब्लैकबोर्ड पर नहीं बल्कि खेल-कूद, नाचते-गाते होती है. ऐसा सरकारी स्कूल जो सरकारी स्कूल की हमारे दिमाग में परिभाषा से एकदम अलग है. गढ़कटरा गांव का ये स्कूल नजीर है.

किताबों की टेंशन को जाइए भूल, यहां स्टडी होती है VERY COOL

जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर ग्राम पंचायत अजगरबहार के अंतर्गत ग्राम गढ़कटरा की यह प्राथमिक शाला शहर के किसी प्ले स्कूल से कम नहीं है. यहां वो तमाम सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिसकी अपेक्षा शहर के स्कूलों से की जाती है. घोर वनांचल क्षेत्र और पहाड़ियों से बीच में बसे इस गांव के इस प्राथमिक शाला की पहचान आदर्श शालाओं में होती है.

स्कूल से जुड़ी खास बातें-

  • स्कूल के बोर्ड पर 'क्लीन स्कूल, ग्रीन स्कूल' जिस प्रमुखता से लिखा गया है, वो एक सकारात्मक सोच की पहचान है. जितनी सुंदर वादियों के बीच यह स्कूल बसा है उतनी ही अच्छी यहां की पढ़ाई है.
  • यहां की पढ़ाई चॉक, ब्लैकबोर्ड और डस्टर से बिल्कुल हटकर है. यहां के बच्चों के पढ़ने और उन्हें पढ़ाने का तरीका बेहद खास है. ये बच्चे हंसते, खेलते, झूमते, गाते, नाचते और कूदते हुए पढ़ाई का आनंद लेते हैं. शिक्षक यहां खेल-खेल में बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं.
  • चाहे अक्षर याद करना हो, चाहे कविता याद करना हो या गणित जैसा कठिन विषय भी यहां टीचर्स खेल-खेल में बच्चों को सिखा देते हैं.
  • शिक्षक अजय कोशले बताते हैं कि इस तरह की पढ़ाई से बच्चे बोर नहीं होते और मजे के साथ पढ़ाई करते हैं. अलग तरीके और प्रैक्टिकली पढ़ाने से बच्चों को पढ़ाई गई बातें लंबे समय तक याद रह जाती हैं.

शिक्षक के पिता भी यहीं शिक्षक थे-

  • यहां पर मौजूद शिक्षक श्रीकांत सिंह ने अलग से मैथ्स पढ़ाने की मशीन तैयार की है. इसी मशीन से वे बच्चों को मैथ्स सिखाते हैं. शिक्षक श्रीकांत ने इसी स्कूल से पढ़ाई की है. उनके पिताजी पहले यहीं शिक्षक थे.
  • पिताजी के देहांत के बाद श्रीकांत को इसी स्कूल में अनुकंपा नियुक्ति मिली. श्रीकांत पिछले 12 सालों से यहीं पर पदस्थ हैं और अब इसे अपने दूसरे घर से कम नहीं मानते हैं. यही कारण है कि अपने जेब से करीब 80 हजार रुपए खर्च कर स्कूल में बदलाव लाया है.
  • वर्तमान में स्कूल में रिपेयरिंग का भी काम चल रहा है जिसके बाद यहां स्मार्ट क्लास और प्रोजेक्टर से पढ़ाई दोबारा शुरू हो जाएगी. कुछ ही दिनों हर्बल गार्डन भी तैयार कर लिया जाएगा.
  • किसी बड़े स्कूल की ही तरह यहां के बच्चों में साफ सफाई को लेकर काफी जागरूकता है. बच्चे बिना साबुन से हाथ धोए खाना नहीं खाते. खाने में बच्चों को पौष्टिक भोजन मिले इसका भी खास ख्याल रखा जाता है.
  • जब खेलने की बात आती है तो किसी भी शहरी प्ले स्कूल की तरह यहां सभी खेल और उसके सामान मौजूद है. बच्चे साथ में खेलते हैं. मजे की बात यह भी है कि हर माह पैरेंट्स टीचर मीटिंग रखी जाती है, जिसमें मीटिंग के अंत में अभिभावकों को भी खेल खेलने को कहा जाता है.

कहते हैं गुरु बिन ज्ञान नहीं और इस स्कूल के गुरुजी तो बिन डंडे, खेल-खेल में अपने शिष्यों को ज्ञानी बना रहे हैं. सलाम है अंधेरे में उम्मीद की तरह चमकते इन शिक्षकों को. खूब सारी शुभकामनाएं शिक्षा के आसमान में टिमटिमाते इन छोटे-छोटे सितारों को.

Intro:सरकारी स्कूलों में कोई नहीं पढ़ना चाहता है। सरकारी स्कूल का नाम सुनते ही बच्चों और अभिभावकों के मन स्तरहीन पढ़ाई, सुविधाओं का आभाव, अस्वच्छ वातावरण और जर्जर भवन का ख्याल आने लगता है। जिले के ग्राम गढ़कटरा का यह प्रथमिक शाला लोगों की इस सोच को करारा जवाब देती है।


Body:जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर ग्राम पंचायत अजगरबहार के अंतर्गत ग्राम गढ़कटरा का यह प्राथमिक शाला शहर के किसी प्ले स्कूल से कम नहीं है। वो तमाम सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं जिसकी अपेक्षा शहर के स्कूलों से की जाती है। घोर वनांचल क्षेत्र और पहाड़ियों से बीच में बसे इस गांव के प्राथमिक शाला की पहचान आदर्श शालाओं में होती है। स्कूल के बोर्ड पर क्लीन स्कूल ग्रीन स्कूल जिस प्रमुखता से लिखा गया है वो एक सकारात्मक सोच की पहचान है। जितनी सुंदर वादियों के बीच यह स्कूल बसा है उतनी ही अच्छी यहाँ की पढ़ाई है। यहाँ की पढ़ाई चॉक, ब्लैकबोर्ड और डस्टर से बिल्कुल हटकर है। जी हाँ, यहाँ के बच्चों के पढ़ने और उन्हें पढ़ाने का तरीका बेहद खास है। ये बच्चे हंसते, खेलते, झूमते, गाते, नाचते और कूदते हुए पढ़ाई का आनंद लेते हैं। शिक्षक यहाँ आपको एक हाथ में चॉक और एक हाथ में किताब लिए शायद ही दिखाई देंगे।
चाहे अक्षर याद करना हो, चाहे कविता याद करना हो या चाहे बोर करने वाला विषय गणित समझना हो, ये सब पढ़ाई अनोखे ढंग से होती है। इन दृश्यों में आप देख सकते हैं कि किस तरह बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। शिक्षक अजय कोशले बताते हैं कि इस तरह की पढ़ाई से बच्चे बोर नहीं होते और पढ़ने में आनंद महसूस करते हैं। हम इनके अंदर स्कूल के प्रति दुर्भाव आने नहीं देते हैं। इस तरह पढ़ाने से बच्चों को पढ़ाई गई बातें लम्बे समय तक याद रह जाती हैं।
यहां पर मौजूद शिक्षक श्रीकांत सिंह ने अलग से मैथ्स पढ़ाने की मशीन तैयार की है। इसी मशीन से वे बच्चों को मैथ्स सिखाते हैं। शिक्षक श्रीकांत ने इसी स्कूल से पढ़ाई की है। उनके पिताजी पहले यहीं शिक्षक थे। पिताजी के देहांत के बाद श्रीकांत को इसी स्कूल में अनुकम्पा नियुक्ति मिली। श्रीकांत पिछले 12 सालों से यहीं पर पदस्थ हैं और अब इसे अपने दूसरे घर से कम नहीं मानते हैं। यही कारण है कि अपने जेब से करीब 80 हज़ार रुपए खर्च कर स्कूल में बदलाव लाया है। वर्तमान में स्कूल में रिपेयरिंग का भी काम चल रहा है जिसके बाद यहाँ स्मार्ट क्लास और प्रोजेक्टर से पढ़ाई दुबारा शुरू हो जाएगी। कुछ ही दिनों हर्बल गार्डन भी तैयार कर लिया जाएगा।
किसी बड़े स्कूल की ही तरह यहां के बच्चों में साफ सफाई को लेकर काफी जागरूकता है। बच्चे बिना साबुन से हाथ धोए खाना नहीं खाते। खाने में बच्चों को पौष्टिक भोजन मिले इसका भी खास ख्याल रखा जाता है।
जब खेलने की बात आती है तो किसी भी शहरी प्ले स्कूल की तरह यहां सभी खेल और उसके सामान मौजूद हैं। लड़के और लड़कियां साथ में हर खेल खेलते हैं। मज़े की बात यह भी है कि हर माह पैरेंट टीचर मीटिंग रखी जाती है जिसमें मीटिंग के अंत में अभिभावकों को भी खेल खेलाया जाता है।


Conclusion:इस स्कूल का माहौल और पढ़ाई देखकर अच्छे से अच्छे शहरी स्कूल फेल साबित होंगे।

बाइट- अजय कोशले, शिक्षक
बाइट- श्रीकांत सिंह, शिक्षक
Last Updated : Jul 10, 2019, 12:06 PM IST
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