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चाची 'मां': मजदूरी की, खाली पेट रही और इन बच्चों पर ममता लुटाती रही ये 'यशोदा'

कोरबा के कमरन गांव की मनकुन बाई ने ममता का ऐसा फर्ज निभाया है जो हर किसी के वश की बात नहीं होती है. उन्होंने अपने 1 भतीजे और 3 भतीजियों को मां से भी बढ़कर प्यार दिया है. इस मातृ दिवस पर हम आपको इस मां की संघर्ष भरी कहानी बता रहे हैं.

special story on mother's day
कोरबा की एक चाची 'मां' की कहानी
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Published : May 10, 2020, 12:20 AM IST

Updated : May 10, 2020, 7:21 PM IST

कोरबा: उसकी हथेली ही मखमल है, उसका आंचल ही बिछौना है...उसका दिल ही हमारी दुनिया है...सबकुछ होना ही उसका होना है...मनकुन बाई का आंचल 4 अनाथ बच्चों के लिए सुख का बिछौना बन गया. भूखी रहीं लेकिन बच्चों का पेट भरा. मजदूरी की लेकिन किताबें हाथ में दी. शादी के बाद पति खोया, परिवार खोया लेकिन जेठ-जेठानी के 4 बच्चों पर अपनी सारी ममता लुटा दी. इस 'यशोदा' ने अपनी जिंदगी के सारे सुख इन बच्चों में ढूंढ लिए हैं और सारी खुशियां इन्हीं पर न्योछावर कर दी हैं.

कोरबा की एक चाची 'मां' की कहानी

कोरबा जिले के गांव कमरन की मनकुन बाई ने अपनी कोख से किसी को भी जन्म नहीं दिया, उन्हें कीर्तन, प्रिया चाची भले बुलाते हों लेकिन ये भी कहते हैं कि मनकुन बाई ने उन्हें कभी माता-पिता की कमी नहीं महसूस होने दी. इस मां ने ममता का ऐसा फर्ज निभाया है जो हर किसी के बस की बात नहीं होती है.

जिले से लगभग 45 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत गेरांव के गांव कमरन में मनकुन बाई 4 बच्चों के साथ रहती हैं. इन चार में से एक का विवाह हाल ही में हुआ है. अब इस घर में मनकुन के अलावा 2 लड़कियां और एक लड़का है, जो पढ़ाई कर रहे हैं.

लगभग 25 साल पहले मनकुम गेरांव गांव में दुल्हन बनकर आई थी. मनकुन ने शादी के कुछ वर्ष बाद ही पति खो दिया. उसके कुछ महीने बाद ही जेठ और जेठानी की भी मृत्यु हो गई. पति के बड़े भाई की मृत्यु तालाब में डूबने से हुई थी, जबकि जेठानी ने बीमारी से दम तोड़ दिया. मनकुन की अपनी कोई संतान नहीं थी लेकिन गोद में 4 बच्चे थे.

मनकुन अपने मायके न लौटीं और जेठ-जेठानी के चारों बच्चों को पालने का फैसला लिया. उन्होंने मजदूरी करनी शुरू की. मनरेगा का काम किया. कई ऐसे भी दिन रहे, जब वे या तो भूखी रहीं या फिर आधे पेट खाकर बच्चों को पाला. उन्होंने सभी को पढ़ाया और कुछ दिन पहले ही बड़ी बेटी के हाथ पीले किए हैं. दोनों बच्चियां पढ़ रही हैं. बेटा भी 11वीं पास कर चुका है. ये करना उनके लिए जितना मुश्किल था, वो उतनी ही मेहनत से डटी रहीं.

मुश्किलों को झेलती मनकुन की यादों को जब हमने छेड़ा तो वे भावुक हो गईं. रुंधे गले से बताया कि तब सरकारी राशन कम मिलता था. मजदूरी पाना भी बहुत कठिन था. जीवन में आधे पेट रही लेकिन सुकून पूरा रहा. उन्हें अभी दोनों बेटियों और बेटे की शादी की चिंता है. वे इस बात से खुश हैं कि जिस बेटी के हाथों में मेंहदी रच चुकी है, उसके जीवन में खुशियों के रंग चढ़े हुए हैं.

वो इन चार बच्चों को अपनी जिम्मेदारी नहीं बल्कि खुशियां मानती हैं. यही वजह है कि बच्चों को चाची में ही माता-पिता नजर आते हैं. उनकी भतीजी कीर्तन 12वीं पास कर चुकी हैं और लॉकडाउन खुलने के बाद कॉलेज जाने के इंतजार में है. कहती है कि चाची ने हमें बड़े संघर्ष से पाला है. मैं कुछ बनूंगी और उनका कर्ज उतारूंगी.

जबकि घर की सबसे छोटी बेटी प्रिया कंवर कहती है कि हमने मां नहीं लेकिन मां के रूप में चाची देखी है. चाची से हमें वह सब कुछ मिला जो कि बच्चों को अपने माता-पिता से मिलता है.

मनकुन बाई ने साबित किया कि एक औरत ममता की मूरत होती है. मजरूह सुल्तानपुरी ने सही लिखा है कि उस को नहीं देखा हमने कभी...पर इसकी ज़रूरत क्या होगी...ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग...भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी.

कोरबा: उसकी हथेली ही मखमल है, उसका आंचल ही बिछौना है...उसका दिल ही हमारी दुनिया है...सबकुछ होना ही उसका होना है...मनकुन बाई का आंचल 4 अनाथ बच्चों के लिए सुख का बिछौना बन गया. भूखी रहीं लेकिन बच्चों का पेट भरा. मजदूरी की लेकिन किताबें हाथ में दी. शादी के बाद पति खोया, परिवार खोया लेकिन जेठ-जेठानी के 4 बच्चों पर अपनी सारी ममता लुटा दी. इस 'यशोदा' ने अपनी जिंदगी के सारे सुख इन बच्चों में ढूंढ लिए हैं और सारी खुशियां इन्हीं पर न्योछावर कर दी हैं.

कोरबा की एक चाची 'मां' की कहानी

कोरबा जिले के गांव कमरन की मनकुन बाई ने अपनी कोख से किसी को भी जन्म नहीं दिया, उन्हें कीर्तन, प्रिया चाची भले बुलाते हों लेकिन ये भी कहते हैं कि मनकुन बाई ने उन्हें कभी माता-पिता की कमी नहीं महसूस होने दी. इस मां ने ममता का ऐसा फर्ज निभाया है जो हर किसी के बस की बात नहीं होती है.

जिले से लगभग 45 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत गेरांव के गांव कमरन में मनकुन बाई 4 बच्चों के साथ रहती हैं. इन चार में से एक का विवाह हाल ही में हुआ है. अब इस घर में मनकुन के अलावा 2 लड़कियां और एक लड़का है, जो पढ़ाई कर रहे हैं.

लगभग 25 साल पहले मनकुम गेरांव गांव में दुल्हन बनकर आई थी. मनकुन ने शादी के कुछ वर्ष बाद ही पति खो दिया. उसके कुछ महीने बाद ही जेठ और जेठानी की भी मृत्यु हो गई. पति के बड़े भाई की मृत्यु तालाब में डूबने से हुई थी, जबकि जेठानी ने बीमारी से दम तोड़ दिया. मनकुन की अपनी कोई संतान नहीं थी लेकिन गोद में 4 बच्चे थे.

मनकुन अपने मायके न लौटीं और जेठ-जेठानी के चारों बच्चों को पालने का फैसला लिया. उन्होंने मजदूरी करनी शुरू की. मनरेगा का काम किया. कई ऐसे भी दिन रहे, जब वे या तो भूखी रहीं या फिर आधे पेट खाकर बच्चों को पाला. उन्होंने सभी को पढ़ाया और कुछ दिन पहले ही बड़ी बेटी के हाथ पीले किए हैं. दोनों बच्चियां पढ़ रही हैं. बेटा भी 11वीं पास कर चुका है. ये करना उनके लिए जितना मुश्किल था, वो उतनी ही मेहनत से डटी रहीं.

मुश्किलों को झेलती मनकुन की यादों को जब हमने छेड़ा तो वे भावुक हो गईं. रुंधे गले से बताया कि तब सरकारी राशन कम मिलता था. मजदूरी पाना भी बहुत कठिन था. जीवन में आधे पेट रही लेकिन सुकून पूरा रहा. उन्हें अभी दोनों बेटियों और बेटे की शादी की चिंता है. वे इस बात से खुश हैं कि जिस बेटी के हाथों में मेंहदी रच चुकी है, उसके जीवन में खुशियों के रंग चढ़े हुए हैं.

वो इन चार बच्चों को अपनी जिम्मेदारी नहीं बल्कि खुशियां मानती हैं. यही वजह है कि बच्चों को चाची में ही माता-पिता नजर आते हैं. उनकी भतीजी कीर्तन 12वीं पास कर चुकी हैं और लॉकडाउन खुलने के बाद कॉलेज जाने के इंतजार में है. कहती है कि चाची ने हमें बड़े संघर्ष से पाला है. मैं कुछ बनूंगी और उनका कर्ज उतारूंगी.

जबकि घर की सबसे छोटी बेटी प्रिया कंवर कहती है कि हमने मां नहीं लेकिन मां के रूप में चाची देखी है. चाची से हमें वह सब कुछ मिला जो कि बच्चों को अपने माता-पिता से मिलता है.

मनकुन बाई ने साबित किया कि एक औरत ममता की मूरत होती है. मजरूह सुल्तानपुरी ने सही लिखा है कि उस को नहीं देखा हमने कभी...पर इसकी ज़रूरत क्या होगी...ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग...भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी.

Last Updated : May 10, 2020, 7:21 PM IST
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