कोरबा : मेडिकल कॉलेज अस्पताल से आदिवासियों और जरूरतमंद मरीजों को निजी अस्पताल में जबरन रेफर कराने वाले रैकेट पर अब अंकुश लगेगा. इसके लिए कलेक्टर ने समिति गठित की है. साथ ही अस्पताल के मुख्य प्रवेश द्वार पर 24 घंटे सुरक्षाकर्मी भी तैनात रहेंगे. यह सब सतरेंगा निवासी पहाड़ी कोरवा महिला सुनी बाई की मौत के बाद हो रहा है. बता दें कि कोरवा समुदाय की महिला की मौत की खबर को ईटीवी भारत ने प्रमुखता से चलाया था. खबर प्रकाशित होने के बाद पूरा सिस्टम एक्टिव हो गया है.
कोरवा समुदाय के लिए मेडिकल कॉलेज में विशेष हेल्प डेस्क
कोरवा महिला सुनी बाई की मौत ने सिस्टम को जगा दिया है. अब रेफरल रैकेट की निगरानी के साथ ही मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक विशेष हेल्प डेस्क भी स्थापित किया गया है. इस डेस्क पर पहाड़ी कोरवाओं को विशेष सुविधाएं दी जाएंगी. मेडिकल कॉलेज अस्पताल के सुपरिटेंडेंट गोपाल सिंह कंवर का कहना है कि हमने एक हेल्प डेस्क बनाया है. जैसे ही पहाड़ी मरीज की एंट्री होगी और पता लगेगा कि वह पहाड़ी कोरवा है तो उसकी पूरी मदद की जाएगी और मुफ्त इलाज किया जाएगा. इसकी मॉनीटरिंग भी प्रॉपर वे में की जाएगी. डेस्क के कर्मचारियों को उपयुक्त चिकित्सक के पास ले जाने की जवाबदेही दी गई है. साथ ही उन्हें किसी तरह की परेशानी न होने पाए, इसका ख्याल रखने के भी निर्देश दिये गए हैं.
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मितानिन की भी होगी तैनाती
आमतौर पर मेडिकल कॉलेज अस्पताल आने वालों मरीजों के लिए प्रवेश द्वार पर ही हैं कैश काउंटर हैं. यहां किसी भी चिकित्सक से दिखाने के लिए 5 रुपये की पर्ची कटवानी होती है. इसके बाद शासकीय दरों पर पैथोलॉजी लैब या अन्य टेस्ट के लिए डॉक्टरों की पर्ची के आधार पर टेस्ट होता है. लेकिन अब कैश काउंटर के बगल में एक कोरवा डेस्क भी रहेगा. जैसे ही कैश काउंटर में पहाड़ी कोरवा नाम के व्यक्ति की पर्ची कटेगी, इसे उस डेस्क को हस्तांतरित कर दिया जाएगा. कोरवा डेस्क के कर्मचारियों के साथ-साथ मितानिन भी कोरवा मरीजों की देखरेख में तत्पर रहेंगी.
अस्पताल में रेफरल मामले रोकने के लिए होगी कड़ी निगरानी
पहाड़ी कोरवा महिला की मौत के बाद ईटीवी भारत में रेफरल रैकेट के मुद्दे को प्रमुखता से प्रसारित किया था. इसके बाद प्रशासन ने लगातार इस पर कार्रवाई की है. कलेक्टर रानू साहू ने बैठक कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल से अनावश्यक रेफरल रोकने के लिए कड़ी निगरानी की बात कही है. इसके लिए निगरानी टीम का गठन भी किया गया है. प्रवेश और निकासी द्वार पर सुरक्षाकर्मियों को भी तैनात करने के निर्देश दिए गए हैं.
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ईटीवी भारत की खबर पर अस्पताल हुआ था सील, सभी प्राइवेट क्लीनिक की जांच के जारी हुए थे आदेश
कोरबा में विशेष पिछड़ी जनजाति पहाड़ी कोरवा समुदाय की महिलाओं की मौत के पीछे का मुख्य कारण कोरबा में रेफरल रैकेट का एक्टिव होना है. अभी हाल ही में गीता देवी मेमोरियल प्राइवेट अस्पताल में कोरवा समुदाय की महिला की मौत हो गई थी. मामले ने काफी तूल पकड़ा था. ईटीवी भारत ने इस खबर को प्रमुखता से चलाया था. इसी का नतीजा रहा कि पूर्व गृह मंत्री व विधायक ननकीराम अस्पताल में धरना देने पहुंचे थे.
चौतरफा दबाव के बाद देर शाम कलेक्टर ने आदेश जारी कर अस्पताल को सील किया था. तीन वॉर्ड ब्वॉय को बर्खास्त किया गया. मेडिकल कॉलेज अस्पताल के चिकित्सकों को नोटिस जारी करने के साथ ही जिले के सभी निजी अस्पतालों के जांच के आदेश भी दिये गए थे. अभी से करीब सालभर पहले जिला अस्पताल में पदस्थ डॉ प्रभात पाणिग्रही ने निजी अस्पताल में 6 साल के बच्चे को भेजकर ऑपरेशन किया था. यह मामला भी तब सामने आया, जब बच्चे की मौत हो गई थी.
जनजातीय बहुल जिलों में 3 साल में 3112 महिलाओं की मौत
जनजातीय मंत्रालय ने जानकारी दी है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिलों में बलरामपुर, बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, जशपुर, कांकेर, कोंडागांव, कोरबा, कोरिया, नारायणपुर, सुकमा, सूरजपुर और सरगुजा शामिल हैं. यहां पिछले 3 वर्षों में किसी न किसी बीमारी की वजह से 3 हजार 112 जनजातीय महिलाओं की मौत हुई है. जबकि 955 गर्भवती महिलाओं ने दम तोड़ दिया है. यह आंकड़े डराने वाले हैं.
अकेले दंतेवाड़ा में 17 सौ से अधिक मौत
छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल जिलों में जनजाति महिलाओं की मौत के मामले में दंतेवाड़ा की स्थिति सबसे खराब है. अकेले दंतेवाड़ा जिले में 1753 महिलाओं ने बीते 3 साल में दम तोड़ दिया है. जबकि सूरजपुर, कोंडागांव और कांकेर जैसे जिलों में भी स्थिति ठीक नहीं है.
अकेले कोरबा में 3 साल में 103 महिलाओं की मौत
बीते 3 साल में कोरबा जिले में 103 आदिवासी समुदाय से आने वाली महिलाओं की मौत हुई है. सेप्सिस और गर्भपात के दौरान महिलाओं की मौत हुई है. ज्यादातर मौतें तब हुई हैं, जब उनका इलाज निजी अस्पतालों में रेफर कर किया गया था.