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कोरबा: ना कोई रोका ना छेका, सड़कों पर जमाया मवेशियों ने डेरा, बढ़ रहे हादसे - मवेशियों से बढ़े हादसे

कोरबा में भूपेश बघेल सरकार की रोका-छेका अभियान पूरी तरह से विफल नजर आ रही है. यहां आए दिन मवेशियां सड़कों पर दिखाई देती है. इनके कारण हादसों का भी डर बना रहता है.

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सड़कों पर जमाया मवेशियों ने डेरा
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Published : Aug 22, 2020, 4:33 AM IST

Updated : Aug 22, 2020, 7:06 AM IST

कोरबा: जिले में कहीं भी रोका-छेका अभियान का असर नहीं दिख रहा है. हालात यह हैं कि मुख्य मार्गों पर मवेशियों की लंबी कतार लगी रहती है. कहीं मवेशी दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं, तो कहीं मार्ग अवरोध पैदा कर रहे हैं. शासन के साथ ही जिला प्रशासन ने भी जिले में जोर-शोर से रोका-छेका अभियान की शुरुआत तो की थी. लेकिन अभियान शुरू करने के बाद इसे बीच मझधार में छोड़ दिया गया है. इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

सड़कों पर जमाया मवेशियों ने डेरा

पढ़ें: रायपुर: दुष्कर्म के आरोप के बाद पद से हटाए गए मेडिकल एजुकेशन डायरेक्टर डॉ आदिले

गांव से लेकर शहरों तक गौठान बन चुके हैं. जिले में 300 से अधिक गौठान हैं. रोका-छेका अभियान भी शासन ने शुरू की है. लेकिन इनका असर धरातल पर नहीं दिखता. रोका-छेका अभियान शुरू होने के पहले और वर्तमान परिस्थितियों में कोई भी अंतर नहीं है. मवेशी सड़कों पर उसी तरह विचरण करते हुए दिखते हैंय जैसा कि रोका छेका अभियान के पहले दिख जाते थे.

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ना रोका ना कोई छेका

बता दें राज्य सरकार ने फसलों की सुरक्षा और किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि की पुरानी परंपरा रोका-छेका अभियान की शुरुआत विगत 19 जून को की थी. इसका मकसद था कि फसलों को मवेशियों से बचाया जा सके, साथ ही सरकार शहर की सड़कों पर घूम रहे मवेशियों से होने वाले हादसों को भी कम करना चाहती थी. सड़कों से पकड़े गए मवेशियों को कांजी हाउस और गौठान में रखने के भी निर्देश दिए गए थे. दुधारू मवेशियों के जरिए किसानों की आय बढ़ाने की भी योजना थी. जिसपर सरकार ने काम शुरू भी किया था.

पढ़ें: जड़ी-बूटियों से बने 'आयुर्वेदिक गणपति', कोरोना काल में दे रहे काढ़ा पीने का संदेश

शहर में निगम तो गांव में पंचायत है जिम्मेदार
शहर में रोका-छेका अभियान को कड़ाई से लागू कराना निगम की जिम्मेदारी है. लेकिन नगर निगम की सड़कों पर खुलेआम घूम रहे मवेशियों और मालिकों पर निगम आमला कोई सख्ती नहीं बरत रहा. शहरी क्षेत्र में मवेशी खुलेआम घूम रहे हैं. सप्ताह में एक से दो मवेशियों को पकड़कर कांजी हाउस पहुंचाकर योजना में रस्म अदायगी की जा रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत सीमा में निर्मित गौठान में पकड़े गए मवेशियों को रखा जाना चाहिए. योजना यह थी कि पंच, सरपंच, जनप्रतिनिधि और चरवाहे मिलकर गांव में रोका-छेका की व्यवस्था बनाएंगे. लेकिन गांव में भी अब यह योजना सुस्त पड़ चुकी है.

बैलों के संख्या है अधिक
रोका-छेका अभियान में एक तथ्य भी है कि सड़कों पर विचरण करने वाले ज्यादातर मवेशियों में बैल की संख्या अधिक है. जिन्हें पकड़ने और काबू करने के लिए नगर निगम या पंचायतों के पास योग्य कर्मचारी ही नहीं है. महीने या सप्ताह में किसी एक दिन चंद मवेशियों को पकड़कर गौठान या कांजी हाउस पहुंचाकर सिर्फ औपचारिकता निभा दी जाती है. जबकि इस अभियान की सफलता के लिए यह बेहद जरूरी है कि हर रोज मवेशियों को पकड़कर गौठान और कांजी हाउस में पहुंचाया जाए.

कोरबा: जिले में कहीं भी रोका-छेका अभियान का असर नहीं दिख रहा है. हालात यह हैं कि मुख्य मार्गों पर मवेशियों की लंबी कतार लगी रहती है. कहीं मवेशी दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं, तो कहीं मार्ग अवरोध पैदा कर रहे हैं. शासन के साथ ही जिला प्रशासन ने भी जिले में जोर-शोर से रोका-छेका अभियान की शुरुआत तो की थी. लेकिन अभियान शुरू करने के बाद इसे बीच मझधार में छोड़ दिया गया है. इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

सड़कों पर जमाया मवेशियों ने डेरा

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गांव से लेकर शहरों तक गौठान बन चुके हैं. जिले में 300 से अधिक गौठान हैं. रोका-छेका अभियान भी शासन ने शुरू की है. लेकिन इनका असर धरातल पर नहीं दिखता. रोका-छेका अभियान शुरू होने के पहले और वर्तमान परिस्थितियों में कोई भी अंतर नहीं है. मवेशी सड़कों पर उसी तरह विचरण करते हुए दिखते हैंय जैसा कि रोका छेका अभियान के पहले दिख जाते थे.

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ना रोका ना कोई छेका

बता दें राज्य सरकार ने फसलों की सुरक्षा और किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि की पुरानी परंपरा रोका-छेका अभियान की शुरुआत विगत 19 जून को की थी. इसका मकसद था कि फसलों को मवेशियों से बचाया जा सके, साथ ही सरकार शहर की सड़कों पर घूम रहे मवेशियों से होने वाले हादसों को भी कम करना चाहती थी. सड़कों से पकड़े गए मवेशियों को कांजी हाउस और गौठान में रखने के भी निर्देश दिए गए थे. दुधारू मवेशियों के जरिए किसानों की आय बढ़ाने की भी योजना थी. जिसपर सरकार ने काम शुरू भी किया था.

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शहर में निगम तो गांव में पंचायत है जिम्मेदार
शहर में रोका-छेका अभियान को कड़ाई से लागू कराना निगम की जिम्मेदारी है. लेकिन नगर निगम की सड़कों पर खुलेआम घूम रहे मवेशियों और मालिकों पर निगम आमला कोई सख्ती नहीं बरत रहा. शहरी क्षेत्र में मवेशी खुलेआम घूम रहे हैं. सप्ताह में एक से दो मवेशियों को पकड़कर कांजी हाउस पहुंचाकर योजना में रस्म अदायगी की जा रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत सीमा में निर्मित गौठान में पकड़े गए मवेशियों को रखा जाना चाहिए. योजना यह थी कि पंच, सरपंच, जनप्रतिनिधि और चरवाहे मिलकर गांव में रोका-छेका की व्यवस्था बनाएंगे. लेकिन गांव में भी अब यह योजना सुस्त पड़ चुकी है.

बैलों के संख्या है अधिक
रोका-छेका अभियान में एक तथ्य भी है कि सड़कों पर विचरण करने वाले ज्यादातर मवेशियों में बैल की संख्या अधिक है. जिन्हें पकड़ने और काबू करने के लिए नगर निगम या पंचायतों के पास योग्य कर्मचारी ही नहीं है. महीने या सप्ताह में किसी एक दिन चंद मवेशियों को पकड़कर गौठान या कांजी हाउस पहुंचाकर सिर्फ औपचारिकता निभा दी जाती है. जबकि इस अभियान की सफलता के लिए यह बेहद जरूरी है कि हर रोज मवेशियों को पकड़कर गौठान और कांजी हाउस में पहुंचाया जाए.

Last Updated : Aug 22, 2020, 7:06 AM IST
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