कोरबा: महान स्वप्नदृष्टा पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान, जय किसान का नारा दिया था, लेकिन असल जीवन में ऐसे कम लोग मिलेंगे, जिन्होंने इस नारे को साकार कर दिखाया. बांकीमोंगरा के रामकुमार केंवट जय जवान जय किसान का नारा साकार कर रहे हैं.
30 एकड़ में खेती कर रहे हैं रामकुमार केंवट
उन्नत खेती की मिसाल (Improved farming in Bankimongra of Korba) पेश करने वाले बांकीमोंगरा गजरा बस्ती निवासी रामकुमार केंवट को बचपन से ही फौज में जाने की इच्छा थी. 12वीं तक पढ़ाई के बाद साल 2005 में थल सेना के राष्ट्रीय रायफल बटालियन में चयनित हुए. महाराष्ट्र के नासिक में सैनिक कैंप में प्रशिक्षण के बाद उनकी पहली पोस्टिंग अंबाला में हुई. इसके बाद कारगिल, श्रीनगर, कुपवाड़ा जैसे संवेदनशील जगहों में तैनाती रही. इस बीच उनके पिता का देहांत हो गया और जिम्मेदारी रामकुमार पर आ गई. उनके पिता साउथ ईस्टर्न कोल फिल्ड लिमिटेड (एसइसीएल) में कर्मचारी थे. परिवार का दायित्व निभाने रामकुमार ने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेकर गांव लौटना उचित समझा. अनुकंपा नियुक्ति के बाद वर्तमान में वे बगदेवा खदान में वरिष्ठ सुरक्षाकर्मी के पद पर कार्यरत हैं.
30 एकड़ जमीन पर कर रहे सब्जी की खेती (Ramkumar Kewat gave employment through Improved farming)
सेना में भर्ती से पहले भी वे घर की खेती में अपना हाथ बंटाते रहे. इस वजह से उन्हें खेती की भी अच्छी जानकारी थी. उन्होंने ढेलवाडीह स्थित खुद की छह एकड़ जमीन में सब्जी की खेती शुरू की. कार्य को व्यावसायिक रूप देने के लिए 24 एकड़ अतिरिक्त जमीन लीज में लेकर खेती को विस्तार दिया. रामकुमार अभी लगभग 30 एकड़ जमीन पर लगभग सभी तरह की सब्जियों की पैदावार ले रहे हैं. सेना में रहकर उन्हें जो अनुशासन मिला, उसे उन्होंने खेती में तब्दील कर दिया. एसईसीएल की 8 घंटे की नौकरी के बाद भी वह उन्नत किसान हैं. टाइम मैनेजमेंट का यह अनुशासन उन्होंने सेना में रहते हुए सीखा. अब इसका लाभ वह अपने असल जीवन में ले रहे हैं.
गर्मी में उन्होंने 2000 क्विंटल तरबूज और खरबूज की फसल तैयार की थी. इस बीच लॉकडाउन लगने और बाजार बंद होने से उन्हें काफी नुकसान भी हुआ. विषम परिस्थितियों में उन्होंने ना केवल खेती को जारी रखा, बल्कि आस-पास के 45 बेरोजगारों को अपने खेतों में रोजगार (employment through improved farming in korba )भी दिया. तरबूज की खेती से हुए लाभ को उन्होंने काम में लगे समूह में ही बांट दिया. हालांकि पहले प्रयास में राम कुमार को फेल भी होना पड़ा. लॉकडाउन के कारण फसलों को नुकसान हुआ. तैयार फसल बिकी ही नहीं, लेकिन रामकुमार ने हार नहीं मानी. वह लगातार आगे बढ़ते रहे. फिर से उनकी खड़ी फसल तैयार है. वह दोगुनी मेहनत से अपनी फसलों को सींच रहे हैं.
Gauthan Pathshala in Surguja: सरगुजा की गौठान पाठशाला में महिलाएं करती हैं इस विषय की पढ़ाई
ड्रिप विधि से खेती को बनाया आधार (Drip farming in korba)
रामकुमार ड्रिप सिंचाई विधि से खेती करते हैं. इस विधि में फसल को जितने पानी की आवश्यकता होती है, उतनी मात्रा में दिया जाता है. इससे पानी की बर्बादी नहीं होती. खेत में कीचड़ भी नहीं होता. इससे फसल में रोगों की संभावना कम रहती है. रोग होने पर भी उपचार करना आसान होता है और लागत भी कम आती है. इस तरह की उन्नत विधियों से जुड़कर बेहतर पैदावार से किसानों की आर्थिक दशा सुधर सकती है. रामकुमार को इस विधि से खेती करता देख आसपास के किसान भी प्रेरित हो रहे हैं. रामकुमार सभी को सलाह भी देते हैं. उद्यानिकी विभाग की कई योजनाओं का लाभ भी रामकुमार ने उठाया है.
कई मायनों में खास है रामकुमार का यह प्रयास
रामकुमार पहले फौजी थे अब किसान. रामकुमार यह भी कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी विदेश दौरे में थे, तब उन्होंने पहली बार ड्रिप इरिगेशन पद्धति की बात प्रधानमंत्री मोदी के मुंह से ही सुनी थी. वह इतने प्रेरित हुए कि उन्होंने ठान लिया कि अब इसी पद्धति से खेती करनी है. राम कुमार कहते हैं कि मेरे पास खेतों की कमी थी. लेकिन गांव में ऐसे कई किसान हैं, जिनके पास खेत तो है लेकिन वह उन्नत विधि से खेती नहीं करते. उनकी जमीनों को लीज पर लिया और यह सोचा कि आसपास के युवाओं को भी अब वह कृषि से जोड़ेंगे. कृषि को एक नया आयाम देंगे. कृषि के क्षेत्र में वह व्यवसाय की तरह काम करेंगे और युवाओं को उनके घर के पास ही काम देंगे. राम कुमार कहते हैं कि जितनी भी कमाई होती है, उसका एक हिस्सा युवाओं को देते हैं ताकि उनकी आजीविका का भी प्रबंध हो सके.