कोरबा: छत्तीसगढ़ की ऊर्जाधानी गर्मी के मौसम में धुआं-धुआं हो उठी है. यहां की गलियों में राखड़ डैम से उड़ने वाली राख बीमारी बनकर उड़ रही है. लॉकडाउन भी कोरबा की किस्मत से प्रदूषण नहीं मिटा पाया है. जरा सी तेज हवा पूरे शहर में राख की चादर बिछा देती है. शहर के बालको पावर प्लांट के इर्द-गिर्द घनी आबादी है, जो परसाभाठा स्थित बालको के राखड़ डैम से उड़ने वाली राख से तंग आ चुकी है. ETV भारत ने इसकी पड़ताल की लोगों का दर्द जाना.
शहर के पूर्वी इलाके में बालको के 1200 मेगावाट और 470 मेगावाट के दो बड़े पावर प्लांट स्थापित हैं. प्लांट से कुछ ही दूरी पर परसाभाठा में बिजली उत्पादन किया जाता है. जहां से निकलने वाले राख को बालको राखड़ डैम में डंप किया जाता है.
राख डैम में नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियां
पर्यावरण नियमों के अनुसार राखड़ डैम में न तो पर्याप्त पानी का छिड़काव किया जा रहा है, न ही राख के ऊपर मिट्टी की परत बिछाई जा रही है. नियमों का उल्लंघन और मापदंडों की अवहेलना कर लगातार राखड़ डैम का विस्तार किया जा रहा है, जिसका साइड इफेक्ट आम लोग झेल रहे हैं. हाल ये हो जाता है कि कई बार धुएं की वजह से राहगीरों को अपने वाहनों के हेडलाइट ऑन करके सड़क पर सफर करना पड़ता है.
एक दिन में लगभग 6000 टन राख निकलता है बालको
1200 और 540 मेगावाट पावर प्लांट को चलाने के लिए एक दिन में लगभग 20 हजार टन कोयले की आवश्यकता होती है. आसान शब्दों में ये कहें कि कोयला आधारित विद्युत प्लांट में कोयले को जलाकर ही विद्युत उत्पादन किया जाता है. विद्युत उत्पादन की इस प्रक्रिया के दौरान कुल उपयोग में लिए गए कोयले का 30 प्रतिशत भाग यानी कि तकरीबन 6 हजार टन राख निकलता है. अब इस राख को फेंकने के लिए राखड़ डैम का निर्माण किया जाता है, जिसके लिए सैकड़ों एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर पावर प्लांट अपना राखड़ डैम बनाते हैं.
कागजों तक सीमित है यूटिलाइजेशन योजना
कोयला आधारित विद्युत उत्पादन पावर प्लांट से उत्सर्जित राख के 100 प्रतिशत यूटिलाइजेशन की योजना पर भी काम चल रहा है, लेकिन यह योजना फिलहाल कागजों तक ही सीमित है. पावर प्लांट कभी भी राख का 100 प्रतिशत यूटिलाइजेशन नहीं कर पाते. अगर राख को लेकर कोई नियमानुसार व्यवस्था नहीं की गई तो आने वाले वक्त में हालात बेकाबू हो चुके हैं.
राख फेंकने के लिए स्थान ही नहीं
बालको को मिलाकर जिले में 11-12, छोटे-बड़े पावर प्लांट स्थापित हैं, राख को सीमेंट फैक्ट्री के साथ ही फ्लाई ऐश ब्रिक्स बनाने के लिए मुफ्त में दिया जाता है. इसकी मात्रा इतनी ज्यादा है कि मुफ्त में देने के बाद भी बड़ी मात्रा में राख बची रह जाती है. अब इसे फेंकने के लिए जगह ही खाली नहीं बची है. यही कारण है कि पावर प्लांट राखड़ डैम का नियमानुसार विस्तार कर रहे हैं या फिर इसे यहां-वहां फेंक रहे हैं, जिससे शहर की फिजा लगातार प्रदूषित हो रही है.
लोग हो रहे बीमार
राखड़ डैम में नियमों की अवहेलना को लेकर परसाभाठा के स्थानीय निवासियों का कहना है कि गर्मी शुरू होते ही समस्या और भी विकराल रूप ले लेती है. हल्की सी हवा आते ही पूरी बस्ती राख से पट जाती है. लोगों के शरीर में जलन, खुजली जैसी परेशानियों के साथ सांस लेने में तकलीफ जैसी कई बीमारियां हो रही हैं. बालकों को कई शिकायतें सौंपी गई. प्रशासन से शिकायत की गई. धरना, प्रदर्शन और आंदोलन हुए लेकिन हालात नहीं बदले.