कोरबा: कोरबा जिला मुख्यालय को छोड़कर जिले के ग्रामीण और उपनगरीय क्षेत्रों के सरकारी स्वास्थ्य केंद्र रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं. यहां सिर्फ सर्दी-बुखार जैसे मामूली बीमारियों के इलाज की सुविधा ही लोगों को मिल रही है. स्थानीय निवासियों की मानें तो "इलाज जरा सा भी जटिल होने पर जिला मुख्यालय के अस्पतालों को रेफर कर दिया जाता है. हालात यह है कि पुलिस थानों से जाने वाले मेडिकल मुलाहिजा प्रकरणों के साथ ही प्रसव के लिए सामान्य ऑपरेशन थियेटर तक मौजूद नहीं हैं."
जनता को नहीं मिल रहा ये लाभ: कोरबा शहरी क्षेत्र में आने वाले शहर के पश्चिम में गोपालपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मौजूद है. जिसे शहरी स्वास्थ्य केंद्र के तौर पर संचालित किया जाता है. यहां कहने को तो दो डॉक्टर पदस्थ हैं. लेकिन सुविधाएं उस स्तर की नहीं है. यहां पदस्थ मेडिकल ऑफिसर डॉ. मनीष साहू कहते हैं, "केंद्र में 2 चिकित्सक हैं. एक अन्य मेडिकल ऑफिसर भी हैं. रोजाना लगभग 60 से 70 मरीज ओपीडी में अपना इलाज कराने आते हैं. लेकिन हमारे पास ऑपरेशन थिएटर नहीं है. इसलिए डिलीवरी के मामले में भी ज्यादा जटिल केस हम नहीं ले पाते हैं. रात में काम करने वाले स्टाफ की भी कमी है. सामान्य स्वास्थ्यगत बीमारियों से लेकर हम टीकाकरण और शुगर, बीपी की नि:शुल्क जांच की सुविधा यहां मुहैया करा रहे हैं. हालांकि आने वाले समय में सुविधाओं को और भी बढ़ाया जाएगा."
एनटीपीसी ने यहां बनाया है 6 बिस्तर का अस्पताल: शहरी स्वास्थ्य केंद्र गोपालपुर में एनटीपीसी ने 6 बिस्तर का एक अस्पताल बना कर दिया है. जिसका निर्माण लगभग 35 लाख रुपए में किया गया था. लेकिन इस भवन की भी उपयोगिता पूरी तरह से साबित नहीं हो पा रही है. यहां मरीजों को भर्ती किया जाता है. समय-समय पर हेल्थ कैंप और अन्य आयोजनों के लिए इस भवन का उपयोग भी किया जा रहा है. लेकिन एक अस्पताल स्तर की उच्चस्तरीय सेवाएं यहां नहीं मिल पा रही है. जिससे इस भवन की उपयोगिता भी साबित नहीं हो पाती है.
एक दिन में ही पलट गया था आदेश: पुलिस थानों से किसी प्रकरण के लिए मेडिकल लीगल केस को सरकारी चिकित्सक ही सत्यापित करते हैं. जिला मुख्यालय और कटघोरा की दूरी गोपालपुर से 15 से 20 किलोमीटर है. जिसे देखते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गोपालपुर में ही पोस्टमार्टम और मेडिको लीगल केस करने का आदेश कलेक्टर ने 2 माह पहले किया था. लेकिन गोपालपुर में मर्च्युरी और चीरघर की सुविधा ही मौजूद नहीं है. जिसके कारण यहां डॉक्टर के होते हुए भी पोस्टमार्टम नहीं किया जाता. मेडिकल ऑफिसर मनीष साहू का कहना है, "चीरघर के अभाव में हम पोस्टमार्टम नहीं कर सकते. हालांकि चिकित्सक पोस्टमार्टम करने के लिए सक्षम होते हैं. लेकिन संसाधन न होने के कारण 1 दिन में ही सीएमएचओ ने दूसरा आदेश जारी किया है. अब मेडिको लीगल केस और इस तरह के अन्य मामले जिला अस्पताल या कटघोरा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में किए जा रहे हैं.''
निर्भरता जिला अस्पताल पर, ओपीडी में भी 550 से ज्यादा मरीज: ग्रामीण और उपनगरीय स्वास्थ्य केंद्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के उपलब्ध न होने का भार जिला मुख्यालय पर पड़ता है. जिला अस्पताल सह मेडिकल कॉलेज अस्पताल से मिले आंकड़ों के अनुसार यहां प्रतिदिन ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या अब 550 हो गई है. ग्रामीण और उपनगरीय क्षेत्रों के लोग भी अपने स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों को छोड़कर सीधे मुख्यालय के अस्पताल पहुंचते हैं. जिसके कारण ही ओपीडी की संख्या बढ़ गई है. मेडिकल कॉलेज अस्पताल का भार भी बढ़ गया है.
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रेफर करने पर गई बेटी की जान : कटघोरा क्षेत्र से मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोरबा पहुंची पुष्पलता राजपूत की बेटी की मौत हो गई. बेटी की मौत जहर खाने की वजह से हुई थी. यह मामला आत्महत्या का है. पुष्पलता कहती हैं, "बेटी को कटघोरा के स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया था, जहां उसका इलाज जारी था. ग्लूकोज भी चढ़ाया गया. इंजेक्शन भी लगाया गया. चिकित्सकों के कहने पर मेरे दामाद ने बाहर से भी दवा खरीदा था. लेकिन इसके बावजूद भी बेटी की सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ. अंत में चिकित्सकों ने कह दिया कि मरीज को यहां से ले जाओ. जिसके बाद हम मेरी बेटी को लेकर मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचे. लेकिन यहां पर उसकी जान नहीं बच पाई."
जिले में स्वास्थ्य केंद्र व अस्पताल:
मेडिकल कॉलेज | 1 |
पीएचसी | 37 |
यूपीएचसी | 4 |
सीएचसी | 6 |
सब हेल्थ सेंटर | 255 |
आयुष होम्योपैथी अस्पताल | 56 |
कुल शासकीय अस्पताल | 433 |
कुल निजी अस्पताल | 94 |