कोरबा: गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संस्थापक हीरा सिंह मरकाम के निधन के बाद उनका शव अंतिम दर्शन के लिए उनके पैतृक गांव तिवरता लाया गया. जहां उनके अंतिम दर्शन के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. बुधवार को बिलासपुर के निजी अस्पताल में हीरा सिंह मरकाम ने अंतिम सांस ली थी. हीरा सिंह मरकाम न सिर्फ राजनैतिक बल्कि एक सामाजिक चेतना जागृत करने के लिए आदिवासियों में काफी लोकप्रिय रहे हैं.
हीरा सिंह मरकाम के अंत्येष्टि के लिए उनके पार्थिव शरीर को एक वाहन में उनके पैतृक गांव लाया गया. इस दौरान रास्ते में कई जगहों पर लोग ने उनका अंतिम दर्शन किया. आसपास के गांव के साथ ही पड़ोसी जिले और राज्य से भी लोग हीरा सिंह मरकाम के अंतिम दर्शन के लिए उनके पैतृक गांव पहुंचे.
नौकरी के दौरान पूरी की पढ़ाई
हीरा सिंह मरकाम शिक्षक के रूप में नियुक्त होने के बाद भी पढ़ाई जारी रखे थे और 1964 में प्राइवेट छात्र के रूप में हायर सेकंडरी स्कूल की परीक्षा पास की. हीरा सिंह मरकाम शिक्षक होने के साथ अपनी पढ़ाई जारी रखे थे. हीरा सिंह मरकाम एमए और फिर नौकरी के दौरान ही गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर से 1984 में एलएलबी की भी पढ़ाई की, जिसमें उन्हें गोल्ड मेडल भी मिला था.
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1986 में पहली बार पहुंचे विधानसभा
हीरा सिंह मरकाम कॉलेज के दिनों में ही सक्रिय राजनीति में दिखने लगे थे. शुरुआत के दिनों में ही उनकी पहचान एक जुझारू शिक्षक नेता के रूप में बन चुकी थी. इसके बाद हीरा सिंह मरकाम 2 अप्रैल 1980 को सरकारी सेवा से इस्तीफा देकर पाली–तानाखार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव में कूद पड़े. इस चुनाव में वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दूसरे स्थान पर रहे. 1985-86 में फिर से विधानसभा का चुनाव लड़े और विधायक चुने गए.
1990 में बीजेपी से बगावत
1985-86 में भाजपा के टिकट पर जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचे. हालांकि 1990 में लोकसभा चुनाव में उन्होंने पार्टी का विरोध किया था. वे स्थानीय के बदले बाहरी को टिकट देने से नाराज थे. इसके बाद उन्होंने बागी प्रत्याशी के रूप में वर्ष 1990-91 में जांजगीर-चांपा से लोकसभा का चुनाव लड़ा, जिसमें वे हार गए.
नब्बे के दशक में बनाई अपनी पार्टी
नब्बे के दशक में हीरा सिंह मरकाम ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी बनाई. जिसे 13 जनवरी 1991 को आधिकारिक रूप से पहचान मिली. 1995 में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के टिकट पर हीरा सिंह मरकाम ने छत्तीसगढ़ की तानाखार विधानसभा से मध्यावधि चुनाव लड़ा और जीतकर दूसरी बार विधानसभा पहुंचे. हीरा सिंह मरकाम छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में वरिष्ठ राजनेता के रूप में जाने जाते हैं.