कोरबा: नए शिक्षण सत्र की शुरुआत (new academic session) होने के साथ पालक संघ ने निजी स्कूलों में हो रही परेशानी को लेकर एक बार फिर जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा है. इसमें कहा गया है कि प्रवेश शुल्क (admission fees) के नाम पर पालकों को परेशान किया जा रहा है. प्रशासन के स्पष्ट निर्देश के बावजूद फीस वसूलने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. इस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जानी चाहिए.
लॉकडाउन के कारण कई तरह की परेशानियां जन सामान्य को हुई. सभी तरह की आर्थिक गतिविधियों को बंद किए जाने से इनके सहारे कामकाज करने वाले लोगों के जीवन स्तर पर सीधा असर पड़ा. ज्यादातर मामलों में या तो रोजगार खत्म हो गए या फिर रोजगार के बदले मिलने वाली मजदूरी कम हो गई. पिछले साल महामारी के प्रभाव को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार (Chhattisgarh Government) ने निजी स्कूलों (private schools) की ओर से ली जाने वाली फीस को लेकर व्यवस्था दी थी. इसके जरिए छात्रों के पालकों को राहत देने की कोशिश की गई थी.
स्कूल और पालकों के बीच बढ़ा टकराव
निजी स्कूलों के प्रबंधन और छात्रों के पालकों के बीच टकराव की स्थिति निर्मित होने लगी है. मामला प्रवेश शुल्क और बढ़ी हुई दर पर शिक्षण शुल्क को लेकर बना हुआ है. कोरबा में जिले में पालक संघ ने इस विषय को लेकर एक बार फिर जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा है. इसमें फीस के लिए दबाव डालने पर आपत्ति दर्ज कराई गई. संघ के अध्यक्ष नूतन ठाकुर ने प्रशासन से मांग की है कि जब तक कोरबा जिले में फीस का निर्धारण नहीं होता है तब तक वसूली पर रोक लगाई जानी चाहिए. पालक संघ की एक प्रतिनिधि ने प्रवेश शुल्क को लेकर की जा रही गड़बड़ी के संबंध में प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया. उन्होंने बताया कि लायंस शिक्षण समिति दो विद्यालय चला रही है इनके सभी आयोजन एक ही स्थान पर होते हैं. लेकिन विद्यार्थियों को एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय में शिफ्ट करने की बात आती है तो नियम बदल दिए जाते हैं. इसी बहाने मनमानी फीस वसूली की जाती है. बताया गया कि इस स्कूलों में 7 हजार रुपये प्रवेश शुल्क के नाम पर मांगे जा रहे हैं. छूट से संबंधित कोई निर्देश प्राप्त नहीं होने का हवाला दिया जा रहा है.
बनाई गई निर्धारण समिति
जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में निजी स्कूलों के द्वारा ली जाने वाली फीस के लिए निर्धारण समिति गठित कर दी गई है. लेकिन कोरबा जिले में अब तक ये काम नहीं हो सका है. इस समिति में प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा स्कूल प्रबंधन के प्रतिनिधि और बालको को शामिल किया जाना है. इनके बीच सहमति होने पर शिक्षा शुल्क का निर्धारण होना है और हर हाल में इसके हिसाब से ही विद्यार्थियों के अभिभावकों से शुल्क प्राप्त किया जाना है.