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अनुमति के दो साल बाद भी कोरबा मेडिकल कॉलेज को मान्यता नहीं, जानिए क्या है वजह ?

कोरबा में मेडिकल कॉलेज अस्पताल (Korba Medical College Hospital) का सपना 2 साल बाद भी अधूरा है. दो साल बाद भी कोरबा मेडिकल कॉलेज के संचालन की अनुमति नहीं मिली है

Korba Medical College Hospital
कोरबा मेडिकल कॉलेज अस्पताल
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Published : Mar 4, 2022, 4:45 PM IST

Updated : Mar 4, 2022, 4:54 PM IST

कोरबा: केंद्र सरकार की अनुमति के बावजूद 2 साल बाद भी कोरबा में मेडिकल कॉलेज का सपना अधूरा (Korba Medical College Hospital) है. प्रशासनिक उदासीनता, प्रशासनिक खींचतान या राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव...कारण चाहे जो भी हो लेकिन 2 साल बाद भी कोरबा मेडिकल कॉलेज के संचालन की अनुमति नहीं मिली है. जिला अस्पताल को मेडिकल कॉलेज अस्पताल में परिवर्तित जरूर किया गया है. लेकिन यहां ना तो मेडिकल कॉलेज के मापदंडों के अनुरूप स्टाफ और चिकित्सकों की नियुक्ति हुई है. न ही व्यवस्थाएं अपग्रेड हुई है. हालांकि कुछ बदलाव जरूर हुए हैं, जो सकारात्मक रहे. लेकिन एमबीबीएस पढ़ाई की शुरूआत नहीं हुई है. ये शुरूआत आखिर कब होगी ये किसी को नहीं पता.

कोरबा मेडिकल कॉलेज को मान्यता नहीं

यह भी पढ़ें: कोरबा जिला अस्पताल में मौत पर परिजनों का हंगामा: रेफरल रैकेट का संदेह, डीन ने कहा होगी जांच

विशेष योजना के तहत मिली अनुमति

भारत सरकार ने केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) के तहत ऐसे जिलों में मेडिकल कॉलेज स्थापित किए जाने की अनुमति दी थी, जहां सरकारी या निजी मेडिकल कॉलेज नहीं हैं. इस मामले में वंचित, पिछड़े और आकांक्षी जिलों को प्राथमिकता दी गई है. कोरबा भी आकांक्षी जिलों में शामिल है. इस योजना के तहत 3 चरणों में देश भर में 157 नए मेडिकल कॉलेज स्वीकृत किए गए हैं. इसमें 39 कॉलेज आकांक्षी जिलों में स्थापित किए जा रहे हैं. इसके तहत कोरबा में मेडिकल कॉलेज को वर्ष 2020 में अनुमति दी गई थी. इस विशेष योजना के तहत यह तय किया गया कि जिला अस्पताल या रेफरल अस्पताल में मेडिकल कॉलेज अस्पताल का संचालन होगा. राज्य सरकार के साथ सामंजस्य बिठाकर काम किया जाना था. खर्च का बंटवारा केंद्र और राज्य के बीच 60:40 फीसदी का रखा गया है.लेकिन कम से कम कोरबा जिले में यह मंशा अब भी अधूरी है. जिले में एमबीबीएस पाठ्यक्रम की पढ़ाई शुरू करने के लिए अब तक मेडिकल कॉलेज को मान्यता ही नहीं मिल सकी है.

आपसी खींचतान जारी

कोरबा में अस्पताल दशकों से रेफरल सेंटर की तरह ही काम करता रहा है. विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्ति भी यहां नहीं हो सकी.इस बीच रेफरल रैकेट धड़ल्ले से फलता फूलता रहा. नए और पुराने स्टाफ के बीच टकराव इतना बढ़ गया कि, कोरोना काल मे कोरोना अस्पताल की जिम्मेदारी संभालने वाले एमडी मेडिसिन डॉ प्रिंस जैन ने इस्तीफा दे दिया. तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ अरुण तिवारी ने तो डीन को प्रभार देने से इनकार कर दिया था. जबकि नियमानुसार सिविल सर्जन, मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डीन के अधीन रहकर कार्य करते हैं. वर्तमान में भी जीवनदीप समिति के वित्तीय अधिकार डीन के अधीन नहीं हैं. यह टकराव लगातार बढ़ता, जिससे कहीं ना कहीं मेडिकल कॉलेज खोलने की तैयारी में भी व्यवधान उत्पन्न हुआ. पुराने चिकित्सक नई व्यवस्था में ढलना नहीं चाहते थे.कई सरकारी चिकित्सकों के निजी अस्पताल भी संचालित हैं. इसके कारण भी वह नहीं चाहते कि सरकारी अस्पताल में व्यवस्थाएं दुरुस्त हो और निजी अस्पतालों को इसका लाभ ना मिले.

मेडिकल कॉलेज खोलने के विरोध में एक लॉबी कार्यरत

मेडिकल कॉलेज के विरोध में एक लॉबी भी है. सक्रिय डीन हों या जानकार, सभी दबी जुबान यह बात स्वीकार करते हैं कि जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने के विरोध में एक लॉबी कार्यरत है. जो यह चाहती है कि, जिले में मेडिकल कॉलेज की स्थापना ना होने पाए और मेडिकल कॉलेज अस्पताल की व्यवस्था पुराने ढर्रे पर ही संचालित होती रहे. यदि मेडिकल कॉलेज, भारत सरकार के मापदंडों के अनुरूप जिले में पूरी तरह से स्थापित हो गया तो जिले में संचालित निजी अस्पतालों की कमाई बंद हो जाएगी. रेफरल रैकेट भी समाप्त हो जाएगा और गरीबों को लाभ मिलेगा. लेकिन एक लॉबी है जो अपने मुनाफे के लिए मेडिकल कॉलेज के विरोध में लगातार कार्यरत है. जिसके कारण बार-बार मान्यता को लेकर राज्य से लेकर केंद्र तक पेंच फंसा हुआ है.

इस बार है पूरी तैयारी

मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट गोपाल सिंह कंवर का कहना है कि मेडिकल कॉलेज की तैयारी को लेकर हमने व्यवस्थाओं को दुरुस्त किया है. पिछली बार आवेदन निरस्त होने के बाद हमने पुनः आवेदन कर दिया है. संभावना है कि मार्च में एनएमसी की टीम का दौरा हो सकता है. कोशिश करेंगे कि इस बार हमारा आवेदन निरस्त ना हो. 2022-23 में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू होगी या नहीं यह भी एनएमसी के दौरे और उनके रुख पर ही निर्भर होगा. निरीक्षण कर खामियों को दूर करने के निर्देश भी दिये. कोरबा सांसद ज्योत्सना महंत ने कहा कि, हम सभी चाहते हैं कि कोरबा में जल्द से जल्द मेडिकल कॉलेज की स्थापना हो. मैंने बैठक लेकर तैयारियों को दुरुस्त रखने के निर्देश दिए हैं. उम्मीद है कि इस बार तैयारियां पहले से बेहतर होंगी पुराने डीन का भी तबादला किया गया है. नए डीन से भी मैंने चर्चा की है.मेडिकल कॉलेज शुरू हो जाता तो एमबीबीएस में पढ़ाई का यह दूसरा सत्र होता, ऐसा नहीं हुआ इसका दुख है.लेकिन अब सीएम भूपेश बघेल खुद इसकी निगरानी कर रहे हैं. हम सब प्रयासरत हैं, उम्मीद है जल्द ही कोरबा में मेडिकल कॉलेज का संचालन शुरू हो जाएगा.

यह भी पढ़ें: Korwa Woman death Case Korba: रेफरल रैकेट पर कार्रवाई के मामले में अस्थायी कर्मचारी बर्खास्त !

कब क्या-क्या हुआ

  • फरवरी-मार्च 2020 में केंद्र सरकार ने कोरबा में मेडिकल कॉलेज खोलने की अनुमति दी. कोरबा के साथ ही कांकेर और महासमुंद के लिए भी मेडिकल कॉलेज को स्वीकृति मिली.
  • कोरबा में खनिज न्यास मद के 350 करोड़ रुपए का बजट और 300 बिस्तर की उपलब्धता, जो प्रदेश ही नहीं देश में नया मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए शुरुआती सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था के तौर पर चिन्हांकित किया गया, जिसके कारण माना जा रहा था कि सबसे पहले एमबीबीएस की पढ़ाई सत्र 2021-22 में कोरबा में ही शुरू होगी.
  • आईटी कोरबा इंजीनियरिंग कॉलेज की 25 एकड़ जमीन और भवन को मेडिकल कॉलेज को हस्तांतरण करने की सहमति बनी. लेकिन तकनीकी व प्रशासनिक उदासीनता के कारण अनुमति के 6 महीने बाद भी जमीन और भवन मेडिकल कॉलेज को हस्तांतरित नहीं की गई.
  • मेडिकल कॉलेज कोरबा के लिए प्रभारी डीन के तौर पर डॉ वाय डी बाड़गईया की नियुक्ति हुई. जिसके बाद रुकी हुई प्रक्रिया के आगे बढ़ने की उम्मीद जगी.
  • मेडिकल कॉलेज कोरबा की मान्यता सम्बंधी आवेदन नवंबर 2020 के अंत में पहली बार निरस्त किया गया. इसकी वजह मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया(एमसीआई) को भंग करके उसके स्थान पर नेशनल मेडिकल कमिशन(एनएमसी) के गठन को बताया गया, जिसके कारण राज्य के चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा दिल्ली भेजे गए आवेदन को निरस्त किया गया था.
  • डीन की नियुक्ति के बाद ही मेडिकल कॉलेज स्टाफ और जिला अस्पताल, जिसे मेडिकल कॉलेज अस्पताल में परिवर्तित किया गया. यहां के चिकित्सकों में टकराव शुरू हुआ. सिविल सर्जन ने प्रभार देने से ही मना कर दिया, एंबुलेंस में डीजल डलवाने तक के लाले पड़ गए. यह टकराव वर्तमान में भी बना हुआ है. पुराने सरकारी चिकित्सक नहीं चाहते कि नई व्यवस्था लागू हो.
  • इस खींचतान के बीच कॉलेज को मान्यता ही नहीं मिली. साल 2021-22 में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू नहीं हो पाई.100 सीटों पर पढ़ाई शुरू करने की अनुमति मिली थी, लेकिन कॉलेज को केंद्र सरकार से मान्यता ही नहीं मिली.
  • इस बीच 2 मार्च 2021 को सीएम भूपेश बघेल, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव व विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत ने वर्चुअल माध्यम से मेडिकल कॉलेज कोरबा के नए भवन का भूमि पूजन किया. तब यह तय हुआ था कि आईटी कोरबा इंजीनियरिंग कॉलेज, झगरहा के पीछे मेडिकल कॉलेज का नया भवन 25 एकड़ जमीन पर बनेगा. जिसकी लागत 325 करोड रुपए होगी.केंद्र व राज्य का अंश 60:40 फीसदी का होगा. भवन निर्माण के लिए 2 साल की समय सीमा भी तय की गई.
  • आईटी कोरबा भवन का डीएमई स्तर से निरीक्षण और प्राथमिक तैयारियों की तारीफ के बाद अप्रैल-मई 2021 में आईटी कोरबा इंजीनियरिंग कॉलेज ने मेडिकल कॉलेज प्रबंधन से भवन के बदले प्रतिमाह 10 लाख रुपये किराए कि मांग की और भवन हैंडोवर ही नहीं किया. इसके विरुद्ध डीन ने विभागीय पत्राचार किया. विभागों के आपसी खींचतान के कारण आईटी कोरबा की भवन और जमीन दोनों ही मेडिकल कॉलेज को नहीं मिल सकी.
  • जून 2021 में मेडिकल कॉलेज कोरबा की मान्यता का आवेदन दूसरी बार निरस्त हो गया जबकि निर्धारित मापदंडों के तहत कोरबा में न्यूनतम 220 के स्थान पर 357 बेड की उपलब्धता मौजूद रही. डीन ने यह भी कहा कि सारी तैयारियों से एनएमसी की टीम संतुष्ट होकर गई थी. इसके बाद भी आवेदन निरस्त करना समझ के परे है.
  • अब मेडिकल कॉलेज कोरबा के लिए नए जमीन की तलाश की जाने लगी. जुलाई 2021 में रूमगरा शहर के बीचोबीच स्थित एयर स्ट्रिप सहित 200 मेगावाट पावर प्लांट की खाली पड़ी भूमि पर भी राजस्व मंत्री व कलेक्टर ने संयुक्त निरीक्षण किया.जबकि काफी पहले ही भूमि पूजन आईटी कोरबा इंजिनियरिंग कॉलेज में कर दिया गया था.पेंच ऐसा फंसा कि जमीन अब तक फाइनल नहीं हो पाई है. यह अब भी तय नहीं है कि मेडिकल कॉलेज के नए भवन का निर्माण कहां होगा?
  • मेडिकल कॉलेज कोरबा में प्राध्यापक और सीनियर चिकित्सकों के के 51 पदों पर शासन ने पदस्थापना की.जिसमें से 50 फीसदी ने जॉइनिंग नहीं दी. ट्राइबल इलाका होने के कारण सीनियर रेसीडेंट व जूनियर रेसीडेंट बनाए गए 18 डॉक्टरों में से 8 ने कोरबा में जॉइन नहीं किया. जिसके कारण 13 नए डॉक्टरों के पोस्टिंग करने पड़ी. इसके अलावा मेडिकल और नॉन मेडिकल स्टाफ के सैकड़ों पदों पर नियुक्ति अभी भी अटकी हुई है.
  • एनएफसी की टीम ने अक्टूबर 2021 में पुनः कोरबा के मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण किया. इसके पहले मेडिकल कॉलेज कोरबा की ओर से मान्यता के लिए आवेदन किया गया था. निरीक्षण में पाई गई खामियों को दूर करने को कहा गया इस निरीक्षण के बाद एक बार फिर से अक्टूबर 2021 में मेडिकल कॉलेज का आवेदन कई खामियां बताकर निरस्त कर दिया गया, जिसके बाद शैक्षणिक सत्र 2022-23 में एमबीबीएस के दाखिले पर संकट बरकरार है.
  • इसी वर्ष की 12 फरवरी को एक पहाड़ी कोरवा महिला सुनी बाई की निजी अस्पताल में मौत हो गई. जिसे रेफरल रैकेट द्वारा मेडिकल कॉलेज अस्पताल से निजी अस्पताल गीता देवी मेमोरियल में ले जाया गया था. कलेक्टर ने डीन को नोटिस जारी किया.इस घटना ने जिले के साथ-साथ राज्य भर में बवाल मचा दिया. इस बात की भी पुष्टि हुई कि सरकारी चिकित्सा रेफरल रैकेट में सम्मिलित हैं.कई सरकारी चिकित्सक निजी अस्पताल का संचालन भी कर रहे हैं.
  • प्रशासनिक खींचतान के बीच मेडिकल कॉलेज कोरबा के डीन का सिम्स बिलासपुर तबादला कर दिया गया. जगदलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन कि कोरबा में नई पदस्थापना की गई.
  • साल 2022-23 में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू होने पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. मेडिकल कॉलेज की मान्यता के लिए फिर से आवेदन किया गया है.एनएमसी की टीम मार्च में ही फिर से अस्पताल का दौरा कर सकते हैं.

कोरबा: केंद्र सरकार की अनुमति के बावजूद 2 साल बाद भी कोरबा में मेडिकल कॉलेज का सपना अधूरा (Korba Medical College Hospital) है. प्रशासनिक उदासीनता, प्रशासनिक खींचतान या राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव...कारण चाहे जो भी हो लेकिन 2 साल बाद भी कोरबा मेडिकल कॉलेज के संचालन की अनुमति नहीं मिली है. जिला अस्पताल को मेडिकल कॉलेज अस्पताल में परिवर्तित जरूर किया गया है. लेकिन यहां ना तो मेडिकल कॉलेज के मापदंडों के अनुरूप स्टाफ और चिकित्सकों की नियुक्ति हुई है. न ही व्यवस्थाएं अपग्रेड हुई है. हालांकि कुछ बदलाव जरूर हुए हैं, जो सकारात्मक रहे. लेकिन एमबीबीएस पढ़ाई की शुरूआत नहीं हुई है. ये शुरूआत आखिर कब होगी ये किसी को नहीं पता.

कोरबा मेडिकल कॉलेज को मान्यता नहीं

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विशेष योजना के तहत मिली अनुमति

भारत सरकार ने केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) के तहत ऐसे जिलों में मेडिकल कॉलेज स्थापित किए जाने की अनुमति दी थी, जहां सरकारी या निजी मेडिकल कॉलेज नहीं हैं. इस मामले में वंचित, पिछड़े और आकांक्षी जिलों को प्राथमिकता दी गई है. कोरबा भी आकांक्षी जिलों में शामिल है. इस योजना के तहत 3 चरणों में देश भर में 157 नए मेडिकल कॉलेज स्वीकृत किए गए हैं. इसमें 39 कॉलेज आकांक्षी जिलों में स्थापित किए जा रहे हैं. इसके तहत कोरबा में मेडिकल कॉलेज को वर्ष 2020 में अनुमति दी गई थी. इस विशेष योजना के तहत यह तय किया गया कि जिला अस्पताल या रेफरल अस्पताल में मेडिकल कॉलेज अस्पताल का संचालन होगा. राज्य सरकार के साथ सामंजस्य बिठाकर काम किया जाना था. खर्च का बंटवारा केंद्र और राज्य के बीच 60:40 फीसदी का रखा गया है.लेकिन कम से कम कोरबा जिले में यह मंशा अब भी अधूरी है. जिले में एमबीबीएस पाठ्यक्रम की पढ़ाई शुरू करने के लिए अब तक मेडिकल कॉलेज को मान्यता ही नहीं मिल सकी है.

आपसी खींचतान जारी

कोरबा में अस्पताल दशकों से रेफरल सेंटर की तरह ही काम करता रहा है. विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्ति भी यहां नहीं हो सकी.इस बीच रेफरल रैकेट धड़ल्ले से फलता फूलता रहा. नए और पुराने स्टाफ के बीच टकराव इतना बढ़ गया कि, कोरोना काल मे कोरोना अस्पताल की जिम्मेदारी संभालने वाले एमडी मेडिसिन डॉ प्रिंस जैन ने इस्तीफा दे दिया. तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ अरुण तिवारी ने तो डीन को प्रभार देने से इनकार कर दिया था. जबकि नियमानुसार सिविल सर्जन, मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डीन के अधीन रहकर कार्य करते हैं. वर्तमान में भी जीवनदीप समिति के वित्तीय अधिकार डीन के अधीन नहीं हैं. यह टकराव लगातार बढ़ता, जिससे कहीं ना कहीं मेडिकल कॉलेज खोलने की तैयारी में भी व्यवधान उत्पन्न हुआ. पुराने चिकित्सक नई व्यवस्था में ढलना नहीं चाहते थे.कई सरकारी चिकित्सकों के निजी अस्पताल भी संचालित हैं. इसके कारण भी वह नहीं चाहते कि सरकारी अस्पताल में व्यवस्थाएं दुरुस्त हो और निजी अस्पतालों को इसका लाभ ना मिले.

मेडिकल कॉलेज खोलने के विरोध में एक लॉबी कार्यरत

मेडिकल कॉलेज के विरोध में एक लॉबी भी है. सक्रिय डीन हों या जानकार, सभी दबी जुबान यह बात स्वीकार करते हैं कि जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने के विरोध में एक लॉबी कार्यरत है. जो यह चाहती है कि, जिले में मेडिकल कॉलेज की स्थापना ना होने पाए और मेडिकल कॉलेज अस्पताल की व्यवस्था पुराने ढर्रे पर ही संचालित होती रहे. यदि मेडिकल कॉलेज, भारत सरकार के मापदंडों के अनुरूप जिले में पूरी तरह से स्थापित हो गया तो जिले में संचालित निजी अस्पतालों की कमाई बंद हो जाएगी. रेफरल रैकेट भी समाप्त हो जाएगा और गरीबों को लाभ मिलेगा. लेकिन एक लॉबी है जो अपने मुनाफे के लिए मेडिकल कॉलेज के विरोध में लगातार कार्यरत है. जिसके कारण बार-बार मान्यता को लेकर राज्य से लेकर केंद्र तक पेंच फंसा हुआ है.

इस बार है पूरी तैयारी

मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट गोपाल सिंह कंवर का कहना है कि मेडिकल कॉलेज की तैयारी को लेकर हमने व्यवस्थाओं को दुरुस्त किया है. पिछली बार आवेदन निरस्त होने के बाद हमने पुनः आवेदन कर दिया है. संभावना है कि मार्च में एनएमसी की टीम का दौरा हो सकता है. कोशिश करेंगे कि इस बार हमारा आवेदन निरस्त ना हो. 2022-23 में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू होगी या नहीं यह भी एनएमसी के दौरे और उनके रुख पर ही निर्भर होगा. निरीक्षण कर खामियों को दूर करने के निर्देश भी दिये. कोरबा सांसद ज्योत्सना महंत ने कहा कि, हम सभी चाहते हैं कि कोरबा में जल्द से जल्द मेडिकल कॉलेज की स्थापना हो. मैंने बैठक लेकर तैयारियों को दुरुस्त रखने के निर्देश दिए हैं. उम्मीद है कि इस बार तैयारियां पहले से बेहतर होंगी पुराने डीन का भी तबादला किया गया है. नए डीन से भी मैंने चर्चा की है.मेडिकल कॉलेज शुरू हो जाता तो एमबीबीएस में पढ़ाई का यह दूसरा सत्र होता, ऐसा नहीं हुआ इसका दुख है.लेकिन अब सीएम भूपेश बघेल खुद इसकी निगरानी कर रहे हैं. हम सब प्रयासरत हैं, उम्मीद है जल्द ही कोरबा में मेडिकल कॉलेज का संचालन शुरू हो जाएगा.

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कब क्या-क्या हुआ

  • फरवरी-मार्च 2020 में केंद्र सरकार ने कोरबा में मेडिकल कॉलेज खोलने की अनुमति दी. कोरबा के साथ ही कांकेर और महासमुंद के लिए भी मेडिकल कॉलेज को स्वीकृति मिली.
  • कोरबा में खनिज न्यास मद के 350 करोड़ रुपए का बजट और 300 बिस्तर की उपलब्धता, जो प्रदेश ही नहीं देश में नया मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए शुरुआती सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था के तौर पर चिन्हांकित किया गया, जिसके कारण माना जा रहा था कि सबसे पहले एमबीबीएस की पढ़ाई सत्र 2021-22 में कोरबा में ही शुरू होगी.
  • आईटी कोरबा इंजीनियरिंग कॉलेज की 25 एकड़ जमीन और भवन को मेडिकल कॉलेज को हस्तांतरण करने की सहमति बनी. लेकिन तकनीकी व प्रशासनिक उदासीनता के कारण अनुमति के 6 महीने बाद भी जमीन और भवन मेडिकल कॉलेज को हस्तांतरित नहीं की गई.
  • मेडिकल कॉलेज कोरबा के लिए प्रभारी डीन के तौर पर डॉ वाय डी बाड़गईया की नियुक्ति हुई. जिसके बाद रुकी हुई प्रक्रिया के आगे बढ़ने की उम्मीद जगी.
  • मेडिकल कॉलेज कोरबा की मान्यता सम्बंधी आवेदन नवंबर 2020 के अंत में पहली बार निरस्त किया गया. इसकी वजह मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया(एमसीआई) को भंग करके उसके स्थान पर नेशनल मेडिकल कमिशन(एनएमसी) के गठन को बताया गया, जिसके कारण राज्य के चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा दिल्ली भेजे गए आवेदन को निरस्त किया गया था.
  • डीन की नियुक्ति के बाद ही मेडिकल कॉलेज स्टाफ और जिला अस्पताल, जिसे मेडिकल कॉलेज अस्पताल में परिवर्तित किया गया. यहां के चिकित्सकों में टकराव शुरू हुआ. सिविल सर्जन ने प्रभार देने से ही मना कर दिया, एंबुलेंस में डीजल डलवाने तक के लाले पड़ गए. यह टकराव वर्तमान में भी बना हुआ है. पुराने सरकारी चिकित्सक नहीं चाहते कि नई व्यवस्था लागू हो.
  • इस खींचतान के बीच कॉलेज को मान्यता ही नहीं मिली. साल 2021-22 में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू नहीं हो पाई.100 सीटों पर पढ़ाई शुरू करने की अनुमति मिली थी, लेकिन कॉलेज को केंद्र सरकार से मान्यता ही नहीं मिली.
  • इस बीच 2 मार्च 2021 को सीएम भूपेश बघेल, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव व विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत ने वर्चुअल माध्यम से मेडिकल कॉलेज कोरबा के नए भवन का भूमि पूजन किया. तब यह तय हुआ था कि आईटी कोरबा इंजीनियरिंग कॉलेज, झगरहा के पीछे मेडिकल कॉलेज का नया भवन 25 एकड़ जमीन पर बनेगा. जिसकी लागत 325 करोड रुपए होगी.केंद्र व राज्य का अंश 60:40 फीसदी का होगा. भवन निर्माण के लिए 2 साल की समय सीमा भी तय की गई.
  • आईटी कोरबा भवन का डीएमई स्तर से निरीक्षण और प्राथमिक तैयारियों की तारीफ के बाद अप्रैल-मई 2021 में आईटी कोरबा इंजीनियरिंग कॉलेज ने मेडिकल कॉलेज प्रबंधन से भवन के बदले प्रतिमाह 10 लाख रुपये किराए कि मांग की और भवन हैंडोवर ही नहीं किया. इसके विरुद्ध डीन ने विभागीय पत्राचार किया. विभागों के आपसी खींचतान के कारण आईटी कोरबा की भवन और जमीन दोनों ही मेडिकल कॉलेज को नहीं मिल सकी.
  • जून 2021 में मेडिकल कॉलेज कोरबा की मान्यता का आवेदन दूसरी बार निरस्त हो गया जबकि निर्धारित मापदंडों के तहत कोरबा में न्यूनतम 220 के स्थान पर 357 बेड की उपलब्धता मौजूद रही. डीन ने यह भी कहा कि सारी तैयारियों से एनएमसी की टीम संतुष्ट होकर गई थी. इसके बाद भी आवेदन निरस्त करना समझ के परे है.
  • अब मेडिकल कॉलेज कोरबा के लिए नए जमीन की तलाश की जाने लगी. जुलाई 2021 में रूमगरा शहर के बीचोबीच स्थित एयर स्ट्रिप सहित 200 मेगावाट पावर प्लांट की खाली पड़ी भूमि पर भी राजस्व मंत्री व कलेक्टर ने संयुक्त निरीक्षण किया.जबकि काफी पहले ही भूमि पूजन आईटी कोरबा इंजिनियरिंग कॉलेज में कर दिया गया था.पेंच ऐसा फंसा कि जमीन अब तक फाइनल नहीं हो पाई है. यह अब भी तय नहीं है कि मेडिकल कॉलेज के नए भवन का निर्माण कहां होगा?
  • मेडिकल कॉलेज कोरबा में प्राध्यापक और सीनियर चिकित्सकों के के 51 पदों पर शासन ने पदस्थापना की.जिसमें से 50 फीसदी ने जॉइनिंग नहीं दी. ट्राइबल इलाका होने के कारण सीनियर रेसीडेंट व जूनियर रेसीडेंट बनाए गए 18 डॉक्टरों में से 8 ने कोरबा में जॉइन नहीं किया. जिसके कारण 13 नए डॉक्टरों के पोस्टिंग करने पड़ी. इसके अलावा मेडिकल और नॉन मेडिकल स्टाफ के सैकड़ों पदों पर नियुक्ति अभी भी अटकी हुई है.
  • एनएफसी की टीम ने अक्टूबर 2021 में पुनः कोरबा के मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण किया. इसके पहले मेडिकल कॉलेज कोरबा की ओर से मान्यता के लिए आवेदन किया गया था. निरीक्षण में पाई गई खामियों को दूर करने को कहा गया इस निरीक्षण के बाद एक बार फिर से अक्टूबर 2021 में मेडिकल कॉलेज का आवेदन कई खामियां बताकर निरस्त कर दिया गया, जिसके बाद शैक्षणिक सत्र 2022-23 में एमबीबीएस के दाखिले पर संकट बरकरार है.
  • इसी वर्ष की 12 फरवरी को एक पहाड़ी कोरवा महिला सुनी बाई की निजी अस्पताल में मौत हो गई. जिसे रेफरल रैकेट द्वारा मेडिकल कॉलेज अस्पताल से निजी अस्पताल गीता देवी मेमोरियल में ले जाया गया था. कलेक्टर ने डीन को नोटिस जारी किया.इस घटना ने जिले के साथ-साथ राज्य भर में बवाल मचा दिया. इस बात की भी पुष्टि हुई कि सरकारी चिकित्सा रेफरल रैकेट में सम्मिलित हैं.कई सरकारी चिकित्सक निजी अस्पताल का संचालन भी कर रहे हैं.
  • प्रशासनिक खींचतान के बीच मेडिकल कॉलेज कोरबा के डीन का सिम्स बिलासपुर तबादला कर दिया गया. जगदलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन कि कोरबा में नई पदस्थापना की गई.
  • साल 2022-23 में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू होने पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. मेडिकल कॉलेज की मान्यता के लिए फिर से आवेदन किया गया है.एनएमसी की टीम मार्च में ही फिर से अस्पताल का दौरा कर सकते हैं.
Last Updated : Mar 4, 2022, 4:54 PM IST
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