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SPECIAL: कनकेश्वर शिव धाम में कभी लगता था भक्तों का तांता, कोरोना काल ने लगा दी पाबंदी - कनकेश्वर धाम शिवलिंग

कोरबा के कनकी गांव में बसे कनकेश्वर धाम में सन्नाटा पसरा हुआ है. एक वक्त था जब सावन में यहां मेला लगता था, भक्तों की भीड़ लगी रहती थी. शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते थे, लेकिन कोरोना काल ने महादेव के दर्शन से भक्तों को दूर कर दिया है.

korba kankeshwar dham
कनकेश्वर शिव धाम
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Published : Jul 16, 2020, 10:44 AM IST

कोरबा: कोरोना संकट का काला साया देवालयों पर भी मंडरा रहा है. इतिहास में पहली बार है जब कोरबा के कनकेश्वर धाम में सन्नाटा पसरा हुआ है. कनकी गांव में हर साल सावन में मेला लगता था, लेकिन इस साल न जयकारों की गूंज है और न घंटियों की आवाज. कोरोना वायरस ने सब बदल दिया. इसके साथ ही पूजन विधि भी बदल गई है. एक जमाना था जब यहां हजारों श्रद्धालुओं की लंबी लाइन लगी होती थी. महादेव का जलाभिषेक करने लोग दूसरे जिलों से भी यहां पहुंचते थे, लेकिन अब भगवान शिव के दर्शन पर भी पाबंदी लगा दी गई है.

कनकेश्वर धाम जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर स्थित है. वहीं राजधानी रायपुर से 197 किलोमीटर दूर बसा हुआ है शिव का ये दरबार. हरदेव नदी के तट पर बसा गांव कनकी जिलेवासियों और आसपास के क्षेत्र के लिए बाबा धाम से कम नहीं है. कोरबा में हसदेव नदी के तट पर स्थित मां सर्वमंगला के मंदिर से श्रद्धालु रात को कमंडल में जल भरते हैं और यहां से 20 किलोमीटर का सफर पैदल तय कर कनकेश्वर धाम जाते हैं और शिवलिंग पर जल अर्पण करते हैं. यह सिलसिला कई दशकों से चला आ रहा है, लेकिन इस साल आस्था और श्रद्धा से भरे इन रीति-रिवाजों पर अंकुश लग गया है.

सूना-सूना कनकेश्वर धाम

ऐसी है धार्मिक मान्यता

कनकेश्वर धाम के पुजारी और बुजुर्ग बताते हैं कि कनकी धाम के विषय में ऐसी मान्यता है कि यहां एक गाय रोज जाकर शिवलिंग पर दूध चढ़ाती थी. गाय को ऐसा करता देख एक ग्वाले ने देख लिया, जिसके बाद गुस्से में आकर उसने जहां दूध गिर रहा था वहां डंडे से प्रहार कर दिया. जिस जगह ग्वाले ने डंडे से मारा वहां से टूटने की आवाज आई. बाद में उसी जगह पर एक शिवलिंग मिला. इस शिवलिंग के पास कनकी चावल के दाने बिखरे हुए थे. कनकी एक प्रकार का चावल है, जो छोटे टुकड़ों में होता है. बाद में इस गांव का नाम ही कनकी पड़ गया. माना जाता है कि इस किस्से के बाद से यहां हर साल सावन और महाशिवरात्रि में शिव भक्तों का तांता लगने लगा. कनकी के मंदिर में कुछ दुर्लभ मूर्तियां भी संजोकर रखी गई हैं. इनमें से कुछ खुदाई के दौरान मिली थीं.

लोगों की आजीविका हुई प्रभावित

कनकी गांव के लोगों को हर साल सावन के महीने का बेसब्री से इंतजार रहता है. सावन के महीने में यहां लगने वाले मेले से ही उनकी आजीविका चलती है. मेले में पूजा-पाठ के सामानों के छोटे दुकान लगाकार वह अपना जीवन चलाते हैं, जहां नारियल, बेलपत्र, फूल, अगरबत्ती जैसी पूजन सामाग्री रखते हैं. इससे मिली आमदनी से वह अपना और अपने परिवार का पेट पालते थे, लेकिन इस साल कोरोना संकट ने उनकी आजीविका के साधन भी छीन लिए.

पढ़ें- सावन स्पेशल: प्रकृति की गोद में बसा है भोला पठार, पूरी होती है हर मनोकामना

शासन-प्रशासन के नियमों का पालन

कनकी धाम के मुख्य पुजारी पुरुषोत्तम कहते हैं कि सावन में हर साल यहां सुंदर नजारा देखने को मिलता था. मंदिर में रौनक होती थी. दिनभर में करीब 2 हजार लोग शिवलिंग पर जल चढ़ाते थे. इस साल राज्य सरकार और जिला प्रशासन के आदेश के मुताबिक नियमों का पालन करते हुए मंदिर के पट बंद रखे गए हैं. गिने-चुने लोग ही अब दर्शन के लिए आते हैं, जो बाहर से ही मत्था टेक कर चले जाते हैं.

कोरबा: कोरोना संकट का काला साया देवालयों पर भी मंडरा रहा है. इतिहास में पहली बार है जब कोरबा के कनकेश्वर धाम में सन्नाटा पसरा हुआ है. कनकी गांव में हर साल सावन में मेला लगता था, लेकिन इस साल न जयकारों की गूंज है और न घंटियों की आवाज. कोरोना वायरस ने सब बदल दिया. इसके साथ ही पूजन विधि भी बदल गई है. एक जमाना था जब यहां हजारों श्रद्धालुओं की लंबी लाइन लगी होती थी. महादेव का जलाभिषेक करने लोग दूसरे जिलों से भी यहां पहुंचते थे, लेकिन अब भगवान शिव के दर्शन पर भी पाबंदी लगा दी गई है.

कनकेश्वर धाम जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर स्थित है. वहीं राजधानी रायपुर से 197 किलोमीटर दूर बसा हुआ है शिव का ये दरबार. हरदेव नदी के तट पर बसा गांव कनकी जिलेवासियों और आसपास के क्षेत्र के लिए बाबा धाम से कम नहीं है. कोरबा में हसदेव नदी के तट पर स्थित मां सर्वमंगला के मंदिर से श्रद्धालु रात को कमंडल में जल भरते हैं और यहां से 20 किलोमीटर का सफर पैदल तय कर कनकेश्वर धाम जाते हैं और शिवलिंग पर जल अर्पण करते हैं. यह सिलसिला कई दशकों से चला आ रहा है, लेकिन इस साल आस्था और श्रद्धा से भरे इन रीति-रिवाजों पर अंकुश लग गया है.

सूना-सूना कनकेश्वर धाम

ऐसी है धार्मिक मान्यता

कनकेश्वर धाम के पुजारी और बुजुर्ग बताते हैं कि कनकी धाम के विषय में ऐसी मान्यता है कि यहां एक गाय रोज जाकर शिवलिंग पर दूध चढ़ाती थी. गाय को ऐसा करता देख एक ग्वाले ने देख लिया, जिसके बाद गुस्से में आकर उसने जहां दूध गिर रहा था वहां डंडे से प्रहार कर दिया. जिस जगह ग्वाले ने डंडे से मारा वहां से टूटने की आवाज आई. बाद में उसी जगह पर एक शिवलिंग मिला. इस शिवलिंग के पास कनकी चावल के दाने बिखरे हुए थे. कनकी एक प्रकार का चावल है, जो छोटे टुकड़ों में होता है. बाद में इस गांव का नाम ही कनकी पड़ गया. माना जाता है कि इस किस्से के बाद से यहां हर साल सावन और महाशिवरात्रि में शिव भक्तों का तांता लगने लगा. कनकी के मंदिर में कुछ दुर्लभ मूर्तियां भी संजोकर रखी गई हैं. इनमें से कुछ खुदाई के दौरान मिली थीं.

लोगों की आजीविका हुई प्रभावित

कनकी गांव के लोगों को हर साल सावन के महीने का बेसब्री से इंतजार रहता है. सावन के महीने में यहां लगने वाले मेले से ही उनकी आजीविका चलती है. मेले में पूजा-पाठ के सामानों के छोटे दुकान लगाकार वह अपना जीवन चलाते हैं, जहां नारियल, बेलपत्र, फूल, अगरबत्ती जैसी पूजन सामाग्री रखते हैं. इससे मिली आमदनी से वह अपना और अपने परिवार का पेट पालते थे, लेकिन इस साल कोरोना संकट ने उनकी आजीविका के साधन भी छीन लिए.

पढ़ें- सावन स्पेशल: प्रकृति की गोद में बसा है भोला पठार, पूरी होती है हर मनोकामना

शासन-प्रशासन के नियमों का पालन

कनकी धाम के मुख्य पुजारी पुरुषोत्तम कहते हैं कि सावन में हर साल यहां सुंदर नजारा देखने को मिलता था. मंदिर में रौनक होती थी. दिनभर में करीब 2 हजार लोग शिवलिंग पर जल चढ़ाते थे. इस साल राज्य सरकार और जिला प्रशासन के आदेश के मुताबिक नियमों का पालन करते हुए मंदिर के पट बंद रखे गए हैं. गिने-चुने लोग ही अब दर्शन के लिए आते हैं, जो बाहर से ही मत्था टेक कर चले जाते हैं.

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