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पुणे से झारखंड के लिए निकले मजदूर भटक कर पहुंचे कोरबा, ETV भारत ने दिलाई मदद

लॉकडाउन में फंसे मजदूर लगातार पैदल अपने घर की ओर निकल रहे हैं. पुणे से झारखंड के लिए निकले मजदूर रास्ता भटक गए थे. ETV भारत की टीम ने पुलिस सूचना देकर उनकी मदद की है.

workers wandered and reached Korba
मजदूर भटक कर पहुंचे कोरबा
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Published : May 18, 2020, 12:36 AM IST

कोरबा: प्रवासी मजदूरों की पीड़ा हर बीतने वाले दिन के साथ बढ़ रही है. हर कदम उनके लिए एक नई परेशानी लेकर आ रहा है. लॉकडाउन में फंसे मजदूर लगातार पैदल अपने घर की ओर निकल रहे हैं. रास्ते में उनके साथ ठगी जैसे मामले भी सामने आ रहे हैं. पुणे से झारखंड़ अपने गांव जाने के लिए निकले 25 लोग प्रशासन की लापरवाही से रास्ता भटक कर पहले तो आपस में बिछड़ गए. फिर 10 लोग कोरबा पहुंच गए.

मजदूर भटके रास्ता

प्रशासन उन्हें एक जिला बार्डर से दूसरे जिलों के बार्डर पर छोड़ तो रहा है लेकिन मजदूरों को यह पता नहीं है कि उन्हें कहां छोड़ा गया है, वह कौन सा इलाका है? और यहां से अब वह आगे किस दिशा में सफर करें.

120 किलोमीटर का पैदल सफर
मजदूर हेलिक्स बार्ला ने ईटीवी भारत को बताया कि 'वे सभी पिछले 12 मई को पुणे से निकले थे. वहां उन्हें पुलिस ने सरकारी वाहन में नहीं बैठने दिया. इसके बाद हेलिक्स कहते हैं कि, हम जब निकले तब 25 लोग थे. एक बस वाले ने हमसे घर पहुंचाने का वादा किया और हम सभी ने उसे 75 हजार रुपए भी दिए, लेकिन उसने हमें रास्ते में ही छोड़ दिया. धीरे-धीरे सभी साथी भी बिछड़ गए. अब हम केवल 10 लोग ही बचे हैं.

मजदूरों का कहना है कि हम झारखंड जाना चाहते हैं. जहां के सिमकेंदा और कोरकोमा में हमारा गांव है. रास्ता भटक जाने के कारण हम यहां तक पहुंचे हैं. किसी ने हमें बताया है कि इस सड़क से पत्थलगांव के रास्ते हम झारखंड तक जाती है. हमारे पास ना तो खाने का कुछ है और न ही पैसे बचे हैं. रास्ते में पैदल चलते वक्त कुछ भले लोग मिल जाते हैं. जो हमें भोजन करा देते हैं.
पढे़ं: 'नौटंकी तो एक ही आदमी करता है और वो है छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री'
राहगीर ने की मदद
रास्ते से गुजर रहे संतोष नाम के व्यक्ति ने मजदूरों को कुछ पैसे दिए. जिसने कहा कि मैं इधर से गुजर रहा था और मजदूरों की पीड़ा मुझसे देखी नहीं गई. सरकार अमानवीय व्यवहार कर रही हैं. फिर चाहे वह छत्तीसगढ़ हो या महाराष्ट्र, मजदूरों को घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उन्हें लेनी चाहिए. मैंने जो मदद की है वह बेहद छोटी है. इन मजदूरों की पीड़ा बहुत बड़ी है.
ETV भारत ने दिलाई मदद

यह लगातार दूसरा दिन है जब प्रवासी मजदूरों की ईटीवी भारत में छोटी सी मदद की. कोरकोमा के रास्ते से पैदल चलते मजदूरों को सबसे पहले ईटीवी भारत की टीम ने देखा, इसके बाद पुलिस को कॉल किया गया और इसके कुछ देर बाद ही रामपुर पुलिस चौकी का पेट्रोलिंग वाहन मौके पर पहुंचा और मजदूरों को वहां से लेकर उनके मंजिल तक पहुंचाने की बात कही.
सिस्टम की नाकामी
बता दें कि आए दिन मजदूर इसी तरह किसी ना किसी वाहन से भटक रहे हैं. एक वाहन से उन्हें अगले जिले के बॉर्डर तक तो पहुंचा दिया जाता है. लेकिन इसके आगे उनका क्या होगा. उन्हें कहां छोड़ा गया. इस विषय में किसी को जानकारी तक नहीं मिल पाती है. जिम्मेदार इन मामलों में घोर लापरवाही बरत रहे हैं. जिसका खामियाजा असाहाय प्रवासी मजदूर उठा रहे हैं.

कोरबा: प्रवासी मजदूरों की पीड़ा हर बीतने वाले दिन के साथ बढ़ रही है. हर कदम उनके लिए एक नई परेशानी लेकर आ रहा है. लॉकडाउन में फंसे मजदूर लगातार पैदल अपने घर की ओर निकल रहे हैं. रास्ते में उनके साथ ठगी जैसे मामले भी सामने आ रहे हैं. पुणे से झारखंड़ अपने गांव जाने के लिए निकले 25 लोग प्रशासन की लापरवाही से रास्ता भटक कर पहले तो आपस में बिछड़ गए. फिर 10 लोग कोरबा पहुंच गए.

मजदूर भटके रास्ता

प्रशासन उन्हें एक जिला बार्डर से दूसरे जिलों के बार्डर पर छोड़ तो रहा है लेकिन मजदूरों को यह पता नहीं है कि उन्हें कहां छोड़ा गया है, वह कौन सा इलाका है? और यहां से अब वह आगे किस दिशा में सफर करें.

120 किलोमीटर का पैदल सफर
मजदूर हेलिक्स बार्ला ने ईटीवी भारत को बताया कि 'वे सभी पिछले 12 मई को पुणे से निकले थे. वहां उन्हें पुलिस ने सरकारी वाहन में नहीं बैठने दिया. इसके बाद हेलिक्स कहते हैं कि, हम जब निकले तब 25 लोग थे. एक बस वाले ने हमसे घर पहुंचाने का वादा किया और हम सभी ने उसे 75 हजार रुपए भी दिए, लेकिन उसने हमें रास्ते में ही छोड़ दिया. धीरे-धीरे सभी साथी भी बिछड़ गए. अब हम केवल 10 लोग ही बचे हैं.

मजदूरों का कहना है कि हम झारखंड जाना चाहते हैं. जहां के सिमकेंदा और कोरकोमा में हमारा गांव है. रास्ता भटक जाने के कारण हम यहां तक पहुंचे हैं. किसी ने हमें बताया है कि इस सड़क से पत्थलगांव के रास्ते हम झारखंड तक जाती है. हमारे पास ना तो खाने का कुछ है और न ही पैसे बचे हैं. रास्ते में पैदल चलते वक्त कुछ भले लोग मिल जाते हैं. जो हमें भोजन करा देते हैं.
पढे़ं: 'नौटंकी तो एक ही आदमी करता है और वो है छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री'
राहगीर ने की मदद
रास्ते से गुजर रहे संतोष नाम के व्यक्ति ने मजदूरों को कुछ पैसे दिए. जिसने कहा कि मैं इधर से गुजर रहा था और मजदूरों की पीड़ा मुझसे देखी नहीं गई. सरकार अमानवीय व्यवहार कर रही हैं. फिर चाहे वह छत्तीसगढ़ हो या महाराष्ट्र, मजदूरों को घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उन्हें लेनी चाहिए. मैंने जो मदद की है वह बेहद छोटी है. इन मजदूरों की पीड़ा बहुत बड़ी है.
ETV भारत ने दिलाई मदद

यह लगातार दूसरा दिन है जब प्रवासी मजदूरों की ईटीवी भारत में छोटी सी मदद की. कोरकोमा के रास्ते से पैदल चलते मजदूरों को सबसे पहले ईटीवी भारत की टीम ने देखा, इसके बाद पुलिस को कॉल किया गया और इसके कुछ देर बाद ही रामपुर पुलिस चौकी का पेट्रोलिंग वाहन मौके पर पहुंचा और मजदूरों को वहां से लेकर उनके मंजिल तक पहुंचाने की बात कही.
सिस्टम की नाकामी
बता दें कि आए दिन मजदूर इसी तरह किसी ना किसी वाहन से भटक रहे हैं. एक वाहन से उन्हें अगले जिले के बॉर्डर तक तो पहुंचा दिया जाता है. लेकिन इसके आगे उनका क्या होगा. उन्हें कहां छोड़ा गया. इस विषय में किसी को जानकारी तक नहीं मिल पाती है. जिम्मेदार इन मामलों में घोर लापरवाही बरत रहे हैं. जिसका खामियाजा असाहाय प्रवासी मजदूर उठा रहे हैं.

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