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शादी से पहले सिकल सेल कुंडली मिलाना जरूरी, 20 लाख का होगा फायदा, जानिए कैसे - सिकलिंग

आपको जानकर हैरानी होगी कि छत्तीसगढ़ में 30 लाख लोग सिकलिंग बीमारी के वाहक या रोगी हैं. सिकलिंग एक आनुवांशिक बीमारी है. ऐसे में जरूरी है कि सिकलिंग बीमारी को आगे बढ़ने से रोका जाया. यह तभी संभव होगा जब शादी से पहले लड़के और लड़की की सिकलिंग कुंडली मिलाई जाएगी. यानी दोनों का सिकलिंग टेस्ट किया जाए ताकि यह पता चल सके कि वे सिकल सेल बीमारी के रोगी या वाहक तो नहीं हैं.

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शादी से पहले सिकल सेल कुंडली
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Published : Dec 9, 2022, 2:23 PM IST

कोरबा: भारतीय परंपरा के अनुसार आमतौर पर शादियां, ग्रह, नक्षत्र और पैदा होने की तिथि के अनुसार कुंडली मिलान के बाद की जाती है. हालांकि आजकल कुछ जागरूक लोग लड़के और लड़की की मेडिकल रिपोर्ट भी देख रहे हैं. ये सुनने में भले ही अटपटा लगे लेकिन भविष्य में होने वाली खतरनाक बीमारियों से बचने के लिए ये एक अच्छी पहल है. ऐसी ही एक खतरनाक बीमारी है सिकलिंग. जिससे खुद को बचाने और होने वाली संतान को इससे दूर रखने के लिए शादी के पहले वर और वधू की सिकलिंग कुंडली मिलाना यानी सिकल सेल टेस्ट कराना बहुत जरूरी है.

शादी से पहले लड़के लड़की का सिकल सेल टेस्ट जरूरी

सिकल सेल के लक्षण: सबसे पहले जान लेते हैं कि सिकलिंग बीमारी क्या है. सिकल सेल थैलेसीमिया या सिकलिंग एक बेहद खतरनाक बीमारी है. जिसमें व्यक्ति के शरीर में खून कम हो जाता है. लगातार उसे खून चढ़ाना पड़ता है, यह एक लाइलाज बीमारी है. इलाज काफी खर्चीला है और इसका इलाज भी अब तक सफल नहीं हुआ है. इस बीमारी के मरीज में चिड़चिड़ापन आ जाता है. सांस लेने में तकलीफ होती है. सिकल सेल से पीड़ित मरीज में कमजोरी होती है. वह बहुत जल्दी थक जाता है.

छात्रों व शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए शिक्षा मंत्रालय की सराहनीय पहल

सिकलिंग कुंडली मिलाना जरूरी: सिकलिंग से बचने के लिए शादी के पहले वर और वधु की सिकलिंग कुंडली मिलाने की बात जानकार कहते हैं. सिकलिंग से ग्रसित लोग दो तरह के होते हैं. एक वाहक तो दूसरे रोगी होते हैं. रोगी की पहचान तो हो जाती है, उन्हें कई तरह की परेशानी झेलनी पड़ती है. लेकिन वाहक के विषय में सबसे दुखद पहलू यह है कि उसे यह पता ही नहीं चलता कि वह सिकलिंग का वाहक है और सामान्य जीवन जीता रहता है. लेकिन जब वह किसी अन्य के संपर्क में आता है तब उन दोनों से उत्पन्न संतान को सिकलिंग होने की संभावना रहती है. इस दिशा में जागरूकता और इसकी जांच ही एकमात्र कारगर उपाय है. जिससे समाज को सिकलिंग जैसी घातक बीमारी से बचाया जा सकता है.

इन्हें नहीं करना चाहिए विवाह : जानकार और चिकित्सक डॉक्टर प्रदीप देवांगन कहते हैं "सिकलिंग एक आनुवांशिक बीमारी है. यदि 10 पीढ़ी पहले भी किसी के परिवार में सिकलिंग रोगी रहे हों, तो वह आनुवांशिक तौर पर हस्तांतरित होता है, लेकिन सिकलिंग से ग्रसित सभी लोग रोगी नहीं होते. कुछ वाहक भी होते हैं. यदि परिवार में शादी हो रही है तो सिकलिंग कुंडली को मिलाना बेहद जरूरी है. वाहक और रोगी को आपस में शादी नहीं करनी चाहिए. यदि ऐसे जोड़े की शादी हुई तो इनसे उत्पन्न संतान को सिकलिंग जरूर होगा."

प्रदीप आगे बताते हैं "समाज में सबसे दुखद पहलू यह है कि वाहक को पता ही नहीं होता कि वह सिकलिंग से ग्रसित है. वाहक हो सिकलिंग से कोई परेशानी नहीं होती, लेकिन उससे उत्पन्न संतान को सिकलिंग जरूर होगा. इस दिशा में सभी समाज को जागरूक होना चाहिए और शादी से पहले हर हाल में सिकलिंग कुंडली का मिलान किया जाना चाहिए".

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सिकलिंग कुंडली मिलाने पर 20 लाख का फायदा: डॉ प्रदीप देवांगन हर रविवार को सिकलिंग के लिए एक कैंप का भी आयोजन करते हैं. देवांगन कहते हैं कि "सिकलिंग का पता चलते ही इसकी जांच के बाद व्यक्ति को 20 लाख रुपए का फायदा होता है. यह पैसे कैश में नहीं मिलेंगे लेकिन इसकी जांच और जागरूकता से उन्हें यह पता चल जाएगा कि वह सिकलिंग के वाहक हैं. इससे वह भविष की शादी में एहतियात बरतेंगे. शादी के बाद जो संतान होगी, वह सिकलिंग मुक्त होगी. जिससे वह आने वाली परेशानियों से बच जाएंगे. सिकलिंग एक बेहद खतरनाक और असाध्य बीमारी है. एक बार हो गई तो ठीक नहीं किया जा सकता है. सिकलिंग के इलाज के लिए फिलहाल जो तरीका है, उसमें कीमोथेरेपी के माध्यम से पहले तो पूरी शरीर के खून को जलाया जाता है, फिर नये स्टेम सेल डालकर बोनमारो का ट्रांसप्लांट होता है. लेकिन यह भी पूरी तरह से सफल नहीं हुआ है. इलाज में लाखों खर्च हो जाते हैं. इसलिए जांच और जागरूकता ही सबसे कारगर उपाय है."

प्रदेश में 30 लाख लोग किसी ना किसी रूप में हैं प्रभावित : सिकलिंग के विषय में रिसर्च किया गया है. जिसके अनुसार सामान्य जीवन जीने वाले सभी लोगों में से लगभग 10 प्रतिशत लोग सिकलिंग के वाहक या रोगी होते हैं. छत्तीसगढ़ की जनसंख्या 3 करोड़ है और इसमें से 10 प्रतिशत मतलब 30 लाख लोग वाहक या रोगी हैं. इन वाहकों को ढूंढना बेहद जरूरी है. अगर इन वाहकों की शादी दूसरे वाहक से हो गई तो सिकलिंग का ग्राफ लगातार बढ़ता चला जाएगा. हाल ही में डॉक्टर प्रदीप देवांगन और उनकी टीम ने जिले के वनांचल क्षेत्र देवपहरी में कैंप लगाया था, जहां उन्होंने 122 लोगों की सिकलिंग जांच करवाया था. इसमें से लगभग 20 प्रतिशत लोग वाहक मिले थे. अच्छी बात यह रही कि यह सब अपना जीवन अच्छे से जी रहे हैं. सभी की उम्र 40 और 50 के बीच थी. जिनके परिवार में और कोई भी वाहक या रोगी नहीं थे.

कोरबा: भारतीय परंपरा के अनुसार आमतौर पर शादियां, ग्रह, नक्षत्र और पैदा होने की तिथि के अनुसार कुंडली मिलान के बाद की जाती है. हालांकि आजकल कुछ जागरूक लोग लड़के और लड़की की मेडिकल रिपोर्ट भी देख रहे हैं. ये सुनने में भले ही अटपटा लगे लेकिन भविष्य में होने वाली खतरनाक बीमारियों से बचने के लिए ये एक अच्छी पहल है. ऐसी ही एक खतरनाक बीमारी है सिकलिंग. जिससे खुद को बचाने और होने वाली संतान को इससे दूर रखने के लिए शादी के पहले वर और वधू की सिकलिंग कुंडली मिलाना यानी सिकल सेल टेस्ट कराना बहुत जरूरी है.

शादी से पहले लड़के लड़की का सिकल सेल टेस्ट जरूरी

सिकल सेल के लक्षण: सबसे पहले जान लेते हैं कि सिकलिंग बीमारी क्या है. सिकल सेल थैलेसीमिया या सिकलिंग एक बेहद खतरनाक बीमारी है. जिसमें व्यक्ति के शरीर में खून कम हो जाता है. लगातार उसे खून चढ़ाना पड़ता है, यह एक लाइलाज बीमारी है. इलाज काफी खर्चीला है और इसका इलाज भी अब तक सफल नहीं हुआ है. इस बीमारी के मरीज में चिड़चिड़ापन आ जाता है. सांस लेने में तकलीफ होती है. सिकल सेल से पीड़ित मरीज में कमजोरी होती है. वह बहुत जल्दी थक जाता है.

छात्रों व शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए शिक्षा मंत्रालय की सराहनीय पहल

सिकलिंग कुंडली मिलाना जरूरी: सिकलिंग से बचने के लिए शादी के पहले वर और वधु की सिकलिंग कुंडली मिलाने की बात जानकार कहते हैं. सिकलिंग से ग्रसित लोग दो तरह के होते हैं. एक वाहक तो दूसरे रोगी होते हैं. रोगी की पहचान तो हो जाती है, उन्हें कई तरह की परेशानी झेलनी पड़ती है. लेकिन वाहक के विषय में सबसे दुखद पहलू यह है कि उसे यह पता ही नहीं चलता कि वह सिकलिंग का वाहक है और सामान्य जीवन जीता रहता है. लेकिन जब वह किसी अन्य के संपर्क में आता है तब उन दोनों से उत्पन्न संतान को सिकलिंग होने की संभावना रहती है. इस दिशा में जागरूकता और इसकी जांच ही एकमात्र कारगर उपाय है. जिससे समाज को सिकलिंग जैसी घातक बीमारी से बचाया जा सकता है.

इन्हें नहीं करना चाहिए विवाह : जानकार और चिकित्सक डॉक्टर प्रदीप देवांगन कहते हैं "सिकलिंग एक आनुवांशिक बीमारी है. यदि 10 पीढ़ी पहले भी किसी के परिवार में सिकलिंग रोगी रहे हों, तो वह आनुवांशिक तौर पर हस्तांतरित होता है, लेकिन सिकलिंग से ग्रसित सभी लोग रोगी नहीं होते. कुछ वाहक भी होते हैं. यदि परिवार में शादी हो रही है तो सिकलिंग कुंडली को मिलाना बेहद जरूरी है. वाहक और रोगी को आपस में शादी नहीं करनी चाहिए. यदि ऐसे जोड़े की शादी हुई तो इनसे उत्पन्न संतान को सिकलिंग जरूर होगा."

प्रदीप आगे बताते हैं "समाज में सबसे दुखद पहलू यह है कि वाहक को पता ही नहीं होता कि वह सिकलिंग से ग्रसित है. वाहक हो सिकलिंग से कोई परेशानी नहीं होती, लेकिन उससे उत्पन्न संतान को सिकलिंग जरूर होगा. इस दिशा में सभी समाज को जागरूक होना चाहिए और शादी से पहले हर हाल में सिकलिंग कुंडली का मिलान किया जाना चाहिए".

सस्ती पोर्टेबल हैंड डिवाइस : मुंह के कैंसर की शुरूआती जांच के लिए

सिकलिंग कुंडली मिलाने पर 20 लाख का फायदा: डॉ प्रदीप देवांगन हर रविवार को सिकलिंग के लिए एक कैंप का भी आयोजन करते हैं. देवांगन कहते हैं कि "सिकलिंग का पता चलते ही इसकी जांच के बाद व्यक्ति को 20 लाख रुपए का फायदा होता है. यह पैसे कैश में नहीं मिलेंगे लेकिन इसकी जांच और जागरूकता से उन्हें यह पता चल जाएगा कि वह सिकलिंग के वाहक हैं. इससे वह भविष की शादी में एहतियात बरतेंगे. शादी के बाद जो संतान होगी, वह सिकलिंग मुक्त होगी. जिससे वह आने वाली परेशानियों से बच जाएंगे. सिकलिंग एक बेहद खतरनाक और असाध्य बीमारी है. एक बार हो गई तो ठीक नहीं किया जा सकता है. सिकलिंग के इलाज के लिए फिलहाल जो तरीका है, उसमें कीमोथेरेपी के माध्यम से पहले तो पूरी शरीर के खून को जलाया जाता है, फिर नये स्टेम सेल डालकर बोनमारो का ट्रांसप्लांट होता है. लेकिन यह भी पूरी तरह से सफल नहीं हुआ है. इलाज में लाखों खर्च हो जाते हैं. इसलिए जांच और जागरूकता ही सबसे कारगर उपाय है."

प्रदेश में 30 लाख लोग किसी ना किसी रूप में हैं प्रभावित : सिकलिंग के विषय में रिसर्च किया गया है. जिसके अनुसार सामान्य जीवन जीने वाले सभी लोगों में से लगभग 10 प्रतिशत लोग सिकलिंग के वाहक या रोगी होते हैं. छत्तीसगढ़ की जनसंख्या 3 करोड़ है और इसमें से 10 प्रतिशत मतलब 30 लाख लोग वाहक या रोगी हैं. इन वाहकों को ढूंढना बेहद जरूरी है. अगर इन वाहकों की शादी दूसरे वाहक से हो गई तो सिकलिंग का ग्राफ लगातार बढ़ता चला जाएगा. हाल ही में डॉक्टर प्रदीप देवांगन और उनकी टीम ने जिले के वनांचल क्षेत्र देवपहरी में कैंप लगाया था, जहां उन्होंने 122 लोगों की सिकलिंग जांच करवाया था. इसमें से लगभग 20 प्रतिशत लोग वाहक मिले थे. अच्छी बात यह रही कि यह सब अपना जीवन अच्छे से जी रहे हैं. सभी की उम्र 40 और 50 के बीच थी. जिनके परिवार में और कोई भी वाहक या रोगी नहीं थे.

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