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SPECIAL: न बिजली, न स्वास्थ्य, न शिक्षा, फिर भी 'आदर्श' है ये गांव

इस आर्दश गांव में बिजली के नाम पर 30 से 35 लाख रुपए खर्च किए गए हैं, लेकिन पिछले एक साल से गांव में अंधेरा पसरा हुआ है. इस गांव के उद्घाटन के बाद महज 15 दिन के लिए गांव बिजली से रोशन हुआ था. गांव में किसी प्रकार की स्वास्थ्य सुविधा भी नहीं है.

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Published : May 19, 2019, 3:00 PM IST

न बिजली, न स्वास्थ्य, न शिक्षा, फिर भी 'आदर्श' है ये गांव

कोरबाः प्रदेश में एक ओर जहां चुनावी शोर का बाजार गर्म है, वहीं दूसरी ओर पहाड़ी कोरवा आदिवासियों की आवाज दबकर रह गई है. कहने को तो ये राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र हैं. इसके बावजूद ये आदिवासी समाज और इनका आदर्श ग्राम उपेक्षा की मार झेल रहा है.

न बिजली, न स्वास्थ्य, न शिक्षा, फिर भी 'आदर्श' है ये गांव

जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर कोरवा आदिवासियों के उत्थान के लिए छातासराई गांव को आदर्श गांव बनाकर शासन और प्रशासन ने काफी वाहवाही लूटी है, लेकिन जब ETV भारत की टीम इस गांव में पहुंची, तो हकीकत कुछ और ही थी.

पीएम आवास योजना के लिए खर्च किए 28 लाख
इस गांव के 20 परिवारों का जीवन स्तर सुधारने के लिए प्रशासन ने लगभग डेढ़ करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि खर्च की है. पीएम आवास योजना के लिए ही केवल 28 लाख रुपए खर्च किए गए, लेकिन ये भी भ्रष्टाचार की बलि चढ़ गया.

दरअसल, पीएम आवास के लिए इन आदिवासियों के खाते में जो रकम डाले गए थे. उससे इन्हें घर का निर्माण खुद कराना था, लेकिन कुछ भ्रष्ट अफसरों ने आदिवासियों से योजना के पैसे उनके खाते से निकलवा लिए और ठेकेदारों से आवास निर्माण करवा दिए.

आदिवासियों के साथ हुआ धोखा
यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती, आवास बनने के बाद भी ग्रामीण अपनी झोपड़ी में ही रहने को मजबूर हैं. दरअसल, आदिवासियों को जो घर निर्माण कराकर दिया गया है, उसकी हालत काफी दयनीय है. ग्रामीणों ने बताया कि एक बारिश में ही घर की छत हफ्तेभर टपकती रहती है. शौचालय भी घर से 50 मीटर की दूरी पर बनाया गया है, जिसके कारण आदिवासियों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है.

गांव में पसरा है अंधेरा
यहां तक की इस आर्दश गांव में बिजली के नाम पर 30 से 35 लाख रुपए खर्च किए गए हैं, लेकिन पिछले एक साल से गांव में अंधेरा पसरा हुआ है. इस गांव के उद्घाटन के बाद महज 15 दिन के लिए गांव बिजली से रोशन हुआ था. गांव में किसी प्रकार की स्वास्थ्य सुविधा भी नहीं है.

नहीं है कोई रोजगार
गांव में मनरेगा के तहत 8 लाख 52 हजार की राशि स्वीकृत की गई थी, लेकिन आदिवासियों को रोजगार का कोई साधन उपलब्ध नहीं कराया गया. ग्रामीण आज भी महुआ और तेंदूपत्ता बेचकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. RES विभाग ने लाखों खर्चकर यहां नाली और सड़क का निर्माण कराया, लेकिन इसकी भी हालत बद्तर हो चुकी है.

भीषण गर्मी में परेशान ग्रामीण
गांव में 6 हैंडपंप लगाए गए हैं, इनमें से 5 बंद पड़े हैं. इस भीषण गर्मी में भी आदिवासियों को केवल 1 हैंडपंप से काम चलाना पड़ रहा है. हैरानी वाली बात यह है कि इस गांव को आदर्श बनाने के लिए ग्रामीणों से ही मजदूरी कराई गई, लेकिन मजदूरी के पैसे का भुगतान अब तक नहीं हुआ है.
राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले इन पहाड़ी कोरवा आदिवासियों के आर्दश गांव का हाल उनके साथ हुए धोखे और विडंबना की कहानी बयां करती है.

कोरबाः प्रदेश में एक ओर जहां चुनावी शोर का बाजार गर्म है, वहीं दूसरी ओर पहाड़ी कोरवा आदिवासियों की आवाज दबकर रह गई है. कहने को तो ये राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र हैं. इसके बावजूद ये आदिवासी समाज और इनका आदर्श ग्राम उपेक्षा की मार झेल रहा है.

न बिजली, न स्वास्थ्य, न शिक्षा, फिर भी 'आदर्श' है ये गांव

जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर कोरवा आदिवासियों के उत्थान के लिए छातासराई गांव को आदर्श गांव बनाकर शासन और प्रशासन ने काफी वाहवाही लूटी है, लेकिन जब ETV भारत की टीम इस गांव में पहुंची, तो हकीकत कुछ और ही थी.

पीएम आवास योजना के लिए खर्च किए 28 लाख
इस गांव के 20 परिवारों का जीवन स्तर सुधारने के लिए प्रशासन ने लगभग डेढ़ करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि खर्च की है. पीएम आवास योजना के लिए ही केवल 28 लाख रुपए खर्च किए गए, लेकिन ये भी भ्रष्टाचार की बलि चढ़ गया.

दरअसल, पीएम आवास के लिए इन आदिवासियों के खाते में जो रकम डाले गए थे. उससे इन्हें घर का निर्माण खुद कराना था, लेकिन कुछ भ्रष्ट अफसरों ने आदिवासियों से योजना के पैसे उनके खाते से निकलवा लिए और ठेकेदारों से आवास निर्माण करवा दिए.

आदिवासियों के साथ हुआ धोखा
यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती, आवास बनने के बाद भी ग्रामीण अपनी झोपड़ी में ही रहने को मजबूर हैं. दरअसल, आदिवासियों को जो घर निर्माण कराकर दिया गया है, उसकी हालत काफी दयनीय है. ग्रामीणों ने बताया कि एक बारिश में ही घर की छत हफ्तेभर टपकती रहती है. शौचालय भी घर से 50 मीटर की दूरी पर बनाया गया है, जिसके कारण आदिवासियों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है.

गांव में पसरा है अंधेरा
यहां तक की इस आर्दश गांव में बिजली के नाम पर 30 से 35 लाख रुपए खर्च किए गए हैं, लेकिन पिछले एक साल से गांव में अंधेरा पसरा हुआ है. इस गांव के उद्घाटन के बाद महज 15 दिन के लिए गांव बिजली से रोशन हुआ था. गांव में किसी प्रकार की स्वास्थ्य सुविधा भी नहीं है.

नहीं है कोई रोजगार
गांव में मनरेगा के तहत 8 लाख 52 हजार की राशि स्वीकृत की गई थी, लेकिन आदिवासियों को रोजगार का कोई साधन उपलब्ध नहीं कराया गया. ग्रामीण आज भी महुआ और तेंदूपत्ता बेचकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. RES विभाग ने लाखों खर्चकर यहां नाली और सड़क का निर्माण कराया, लेकिन इसकी भी हालत बद्तर हो चुकी है.

भीषण गर्मी में परेशान ग्रामीण
गांव में 6 हैंडपंप लगाए गए हैं, इनमें से 5 बंद पड़े हैं. इस भीषण गर्मी में भी आदिवासियों को केवल 1 हैंडपंप से काम चलाना पड़ रहा है. हैरानी वाली बात यह है कि इस गांव को आदर्श बनाने के लिए ग्रामीणों से ही मजदूरी कराई गई, लेकिन मजदूरी के पैसे का भुगतान अब तक नहीं हुआ है.
राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले इन पहाड़ी कोरवा आदिवासियों के आर्दश गांव का हाल उनके साथ हुए धोखे और विडंबना की कहानी बयां करती है.

Intro:राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले कोरवा आदिवासी पिछले कई दशकों से उपेक्षा की मार झेल रहे हैं। कोरवा आदिवासियों के उत्थान के लिए जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर ग्राम छातासराई को आदर्श ग्राम बनाने की पहल की गई। गांव को आदर्श ग्राम बनाकर शासन और प्रशासन ने वाहवाही तो लूट ली लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करती है।


Body:इस गांव के 20 परिवारों का जीवन स्तर सुधारने के लिए प्रशासन ने लगभग डेढ़ करोड़ की भारी-भरकम राशि खर्च की। शुरुआत करते हैं पीएम आवास योजना से जिसके लिए 28 लाख रुपए खर्च किए गए। एक तरफ प्रधानमंत्री हितग्राहियों को अनुदान की राशि सीधे उनके खाते में भेजते हैं तो दूसरी ओर भ्रष्ट तंत्र उसमें भी अपने रास्ते तलाश लेता है। दरअसल, पीएम आवास के लिए पहाड़ी कोरवा आदिवासियों के खाते में जो रकम डाले गए थे। उससे इन आदिवासियों को खुद घर का निर्माण कराना था। लेकिन कुछ भ्रष्ट अफसरों ने आदिवासियों से कहकर उनके पैसे खाते से निकलवा लिया और शहर से ठेकेदार बुलाकर घर निर्माण का काम उसे दे दिया। कहानी यहीं खत्म नहीं होती है, वित्तीय वर्ष 2016-17 और 2017-18 में आवास का कार्य पूर्ण कर लिया गया। ठेकेदार ने घर तो बना दिया लेकिन आदिवासी दुबारा अपनी झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं। दरअसल, एक बार की बारिश में हफ्ते भर तक छत टपकती है। ऐसी स्थिति में अपनी पुरानी झोपड़ी में यह आदिवासी रहने को मजबूर हो जाते हैं। घर तो बना दिया लेकिन ना पंखा है ना ट्यूबलाइट, शौचालय तो है लेकिन घर से 50 मीटर दूरी पर, ऐसे में यह आदिवासी ना घर के रहे ना घाट के और अफसर और ठेकेदार इनके सारे पैसे डकार गए।
भ्रष्टाचार की कहानी आगे और भी है विद्युतीकरण की बात करें तो इसमें 30 से 35 लाख खर्च किए गए लेकिन हकीकत तो यह है कि पिछले 1 साल से गांव में अंधेरा पसरा हुआ है। आदर्श ग्राम के उद्घाटन के बाद महज 15 दिन बिजली से गांव रौशन हुआ था।
इसके अलावा मनरेगा के तहत 8 लाख 52 हजार की राशि स्वीकृत की गई थी लेकिन आदर्श गांव में रोजगार के साधन ही उपलब्ध नहीं कराए गए। ग्रामीण महुआ और तेंदूपत्ता के जरिए अपना जीवन यापन कर रहे हैं। RES विभाग द्वारा नाली सड़क और मेन गेट का काम कराया गया जिसमें 39 लाख 60 हजार का खर्च आया और आप देख सकते हैं कि रोड की स्थिति क्या है और नाली का कोई पता ही नहीं है। इसमें कृषि विभाग द्वारा 1 लाख के खर्च से नलकूप लगाया गया लेकिन वह भी कुछ ही दिनों में एक बारिश से जमीन में धंस गया। इसके अलावा गांव में 6 हैंडपंप है लेकिन काम केवल 1 करता है इसी हैंडपंप से गांव के करीब 100 लोग स्नान करते हैं और अपनी प्यास बुझाते हैं।
एक हैरान करने वाली बात यह भी है कि इस गांव को आदर्श बनाने के लिए गांव के लोगों से ही मजदूरी कराई गई। मजदूरी तो कराई लेकिन पैसे का भुगतान अब तक नहीं हुआ है और जिस दर पर मजदूरी कराई गई वह भी शासन स्तर से कम है। शासन स्तर पर ₹170 मजदूरी दर है लेकिन इन ग्रामीणों को ₹120 के दर पर काम कराया गया।
विरसा भाई, 7 दिन की मजदूरी बकाया
मांझी भाई, 13 दिन की मजदूरी बकाया
लगनू राम, 5 दिन की मजदूरी बकाया
हीराबाई, 6 दिन की मजदूरी बकाया
झड़ी राम, 15 दिन की मजदूरी बकाया
भूरी बाई, 8 दिन की मजदूरी बकाया
खेल सिंह, 4 दिन की मजदूरी बकाया
लमनी बाई, 4 दिन की मजदूरी बकाया
धीर साय, 10 दिन की मजदूरी बकाया
तीज राम, 10 दिन की मजदूरी बकाया
बिहानी बाई, 13 दिन की मजदूरी बकाया
मंगल, 5 दिन की मजदूरी बकाया
छातासराई जाने के लिए मुख्य मार्ग से 7 किलोमीटर अंदर जाना पड़ता है। लेकिन इस मार्ग में कुछ चुनिंदा स्थानों पर ही सीसी रोड का निर्माण किया गया। इस आदर्श ग्राम में प्राथमिक शाला और आंगनबाड़ी तो है लेकिन स्वास्थ्य की कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है। ग्रामीण बताते हैं कि बीमार होने पर 10 किलोमीटर दूर अजगरबहार जाना पड़ता है। लेकिन यह 10 किलोमीटर तय करने के लिए भी ग्रामीणों के पसीने छूट जाते हैं। इस रास्ते में न ना एंबुलेंस आती है और ना पुलिस की गाड़ी आती है। मरीज को गोदी में उठाकर 10 किलोमीटर दूर पैदल चलकर इलाज के लिए लेकर जाते हैं।
ये आदर्श ग्राम की योजना राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा आदिवासियों के साथ हुए धोखे और विडंबना की कहानी बयां करती है।


Conclusion:
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