कोरबा: शिल्पकला का कोई एक ठिकाना नहीं होता, कलाकार जहां से चाहे, वहीं से रचनात्मकता की शुरुआत कर सकता है. ऐसा ही बेजोड़ उदाहरण पेश किया है कोरबा के जिला पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक हरि सिंह क्षत्री ने. उन्होंने लकड़ी की पेंसिल की नोक, स्लेट की चॉक और स्लेट की पेंसिल पर गणपति की महीन आकृति उकेरी है. उन्हें यह सुंदर कलाकृतियां बनाने में महज कुछ घंटों का वक्त लगा.
पुरातत्व, फाइन आर्ट और शिल्पकला का वर्षों से अभ्यास कर अपना हुनर बढ़ाने में लगे जिला पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक हरिसिंह क्षत्री ने अपनी अनोखी कला का परिचय देते हुए गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान गणपति की छोटी-छोटी प्रतिमाएं गढ़ी हैं. विघ्नहर्ता की ये महीन आकृतियां उन्होंने पेंसिल की नोक पर उकेरी है. उन्होंने अलग-अलग पेंसिल पर शिल्पकला का सुंदर नमूना प्रस्तुत किया है. क्षत्री ने पेंसिल की नोक के अलावा ब्लैकबोर्ड पर लिखने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली चॉक पर भी बप्पा को उकेरा है.
5 से 10 एमएम की मूर्ति
क्षत्री ने कहा कि पेंसिल पर गणपति की 4-5 या दस एमएम की आकृति बनाना काफी धीरज का काम है. यही मशक्कत चॉक पर भी करनी पड़ी. जो बेहद मुश्किल है. उन्होंने बताया कि इस कला को सीखने के लिए वे लंबे समय से अभ्यास करते आ रहे हैं और कई बार असफल भी हुए हैं.
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कलाकारों को प्रोत्साहन की जरूरत
हरि सिंह क्षत्री ने कहा कि राज्य में उनकी ही तरह हजारों कलाकारों अपने अस्तित्व के लिए कई साल से संघर्ष कर रहे हैं, पर उन्हें वो प्लेटफॉर्म नहीं मिल पा रहा है, जो एक कलाकार को मिलना चाहिए. शासन को उनकी याद तभी आती है, जब उन्हें राज्योत्सव या दूसरे आयोजनों में कला के प्रदर्शन की जरूरत पड़ती है. कलाकार आज आयोजनों में सजावट के माध्यम मात्र बनकर रह गए हैं, जिन्हें प्रोत्साहन की जरूरत है
खूबसूरती देखने के लिए चाहिए मैग्नीफाइंग ग्लास
चॉक पर बनी मंगलमूर्ति की मूर्तियां तो खुली आंखों से देख सकते हैं, लेकिन पेंसिल पर उकेरी गई आकृति की खूबसूरती का आनंद लेना हो, तो आपको मैग्नीफाइंग ग्लास की जरूरत होगी. तभी इन छोटी मूर्तियों पर की गई बारीकी और कलाकारी को स्पष्ट रूप से देखा जा सकेगा. क्षत्री ने डबल एमए के साथ एलएलबी की उच्च शिक्षा प्राप्त की है. उन्होंने प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़ से चित्रकला में विशारद की डिग्री भी हासिल की है. मूर्तिकला और शिल्प विज्ञान का इस्तेमाल कर उन्होंने अब तक नारियल, पत्थर, घोंघा, सीप, बांस, सूपा, लकड़ी, सुपारी, पेड़-पौधों की जड़, सफेद आक की टहनी के बाद अब चॉक, लकड़ी की पेंसिल पर भी देवी-देवताओं की आकृति उकेरी है.