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'10 का मुर्गा..' नारे के विरोध में उतरा कोरबा के युवाओं का गुट, जानें पूरा मामला

सोशल मीडिया पर चर्चित होने के बाद '10 का मुर्गा खाओगे....' नारे का कोरबा में ही विरोध शुरू हो गया है. यहां युवाओं के एक समूह ने इस नारे का विरोध किया है. विरोध करने वाले युवाओं को कांग्रेस कार्यकर्ता बताया जा रहा है.

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'10 का मुर्गा..' नारे के विरोध
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Published : Aug 8, 2021, 11:31 AM IST

Updated : Aug 8, 2021, 3:41 PM IST

कोरबा: बदहाल सड़कों के विरोध के लिए दिए गए नारे '10 का मुर्गा खाओगे....' पर अब विवाद शुरू हो गया है. जिले के कुछ युवा शुक्रवार को इसके विरोध में उतर आए. जिसके बाद यह विरोध-प्रदर्शन धीरे-धीरे राजनीतिक रूप में तबदील हो रहा है.

'10 का मुर्गा..' नारे के विरोध

आम आदमी पार्टी के कार्यकताओं और स्थानीय युवाओं ने लोगों को अपने मताधिकार का ईमानदारी से प्रयोग करने के लिए इस नारे का इस्तेमाल किया था. संगठन से जुड़े युवा अपनी टीम के साथ अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर यह नारा दे रहे हैं. जिसके बाद शुक्रवार को भी 'आप' कार्यकर्ताओं ने जिले के बांकीमोंगरा के खस्ताहाल सड़कों को लेकर आंदोलन किया, लेकिन उनके आंदोलन के दौरान कुछ युवाओं ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया. उनका कहना था कि बांकीमोंगरा में सड़कों के लिए सर्वदलीय आंदोलन हुआ था. जिसके बाद एसईसीएल ने सड़क मरम्मत के लिए टेंडर जारी कर दिया है. इसलिए अब यह आंदोलन बेबुनियाद है.

सड़कों की स्थिति को लेकर आंदोलन कर रहे युवाओं का विरोध करते हुए दूसरे पक्ष ने कहा कि छत्तीसगढ़ में 15 साल बीजेपी की सरकार रही और वर्तमान सरकार को भी ढाई साल पूरे हो चुके हैं, इस दौरान यहां की सड़कों के लिए कई आंदोलन हुए और तब यह संगठन कहां था. वहीं, विरोध करने वाले शहर के यह युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता बताए जा रहे हैं.

कोरबा में कहां से आया '10 का मुर्गा...' नारा, क्या है इसके पीछे की कहानी और चुनावों से कनेक्शन

शहर में सड़कों के विरोध के लिए जन संगठन के संयोजक विशाल केलकर ने बताया कि करीब 6-7 वर्षों से कोरबा जिला एक टापू बन चुका है. यहां से किसी भी दिशा में जाने के लिए सड़क नहीं है. हमने सड़क बनाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ. उन्होंने कहा, 'इस स्थिति के लिए हम खुद भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि जिस तरीके से हम जनप्रतिनिधियों को चुनते हैं, उसी वजह से आज यह तकलीफ हो रही है. हम एक जन जागरूकता अभियान फैला रहे है कि आप अपनी वोट किसी लालच में न दे.'

विशाल केलकर ने कहा कि हमारे पास विरोध के लिए 2 नारे हैं. पहला '10 का मुर्गा खाओगे, ऐसी ही सड़कें पाओगे' और '500 रुपए दबाओगे, ऐसी ही सड़कें पाओगे'. उन्होंने कहा कि जनता को एक मुर्गे के लिए और 500-1000 के लिए अपना मत नहीं बेचना चाहिए. इससे सभी को पूरे 5 साल तक पछताना पड़ता है.

दरअसल, जिन सड़कों की खराब दुर्दशा के लिए ये प्रदर्शन हो रहा था, उनकी हालत वाकई खराब है. सड़कों की मरम्मत के लिए जिला खनिज न्यास मद से 10 करोड़ रुपए मंजूर हुए और काम भी हुआ, लेकिन पहली बारिश में ही सड़कें उखड़ गईं. जिले में सबसे ज्यादा पश्चिम क्षेत्र की सड़कें खराब हैं. दर्री बराज रोड बेहद खराब है. रूमगड़ा चौक से बालको तक पहुंचाने वाली सड़क में गड्ढे ही गड्ढे हैं. कटघोरा, पाली, कुसमुंडा, बांकीमोंगरा क्षेत्र की सड़कें भी जर्जर हैं.

कोरबा: बदहाल सड़कों के विरोध के लिए दिए गए नारे '10 का मुर्गा खाओगे....' पर अब विवाद शुरू हो गया है. जिले के कुछ युवा शुक्रवार को इसके विरोध में उतर आए. जिसके बाद यह विरोध-प्रदर्शन धीरे-धीरे राजनीतिक रूप में तबदील हो रहा है.

'10 का मुर्गा..' नारे के विरोध

आम आदमी पार्टी के कार्यकताओं और स्थानीय युवाओं ने लोगों को अपने मताधिकार का ईमानदारी से प्रयोग करने के लिए इस नारे का इस्तेमाल किया था. संगठन से जुड़े युवा अपनी टीम के साथ अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर यह नारा दे रहे हैं. जिसके बाद शुक्रवार को भी 'आप' कार्यकर्ताओं ने जिले के बांकीमोंगरा के खस्ताहाल सड़कों को लेकर आंदोलन किया, लेकिन उनके आंदोलन के दौरान कुछ युवाओं ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया. उनका कहना था कि बांकीमोंगरा में सड़कों के लिए सर्वदलीय आंदोलन हुआ था. जिसके बाद एसईसीएल ने सड़क मरम्मत के लिए टेंडर जारी कर दिया है. इसलिए अब यह आंदोलन बेबुनियाद है.

सड़कों की स्थिति को लेकर आंदोलन कर रहे युवाओं का विरोध करते हुए दूसरे पक्ष ने कहा कि छत्तीसगढ़ में 15 साल बीजेपी की सरकार रही और वर्तमान सरकार को भी ढाई साल पूरे हो चुके हैं, इस दौरान यहां की सड़कों के लिए कई आंदोलन हुए और तब यह संगठन कहां था. वहीं, विरोध करने वाले शहर के यह युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता बताए जा रहे हैं.

कोरबा में कहां से आया '10 का मुर्गा...' नारा, क्या है इसके पीछे की कहानी और चुनावों से कनेक्शन

शहर में सड़कों के विरोध के लिए जन संगठन के संयोजक विशाल केलकर ने बताया कि करीब 6-7 वर्षों से कोरबा जिला एक टापू बन चुका है. यहां से किसी भी दिशा में जाने के लिए सड़क नहीं है. हमने सड़क बनाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ. उन्होंने कहा, 'इस स्थिति के लिए हम खुद भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि जिस तरीके से हम जनप्रतिनिधियों को चुनते हैं, उसी वजह से आज यह तकलीफ हो रही है. हम एक जन जागरूकता अभियान फैला रहे है कि आप अपनी वोट किसी लालच में न दे.'

विशाल केलकर ने कहा कि हमारे पास विरोध के लिए 2 नारे हैं. पहला '10 का मुर्गा खाओगे, ऐसी ही सड़कें पाओगे' और '500 रुपए दबाओगे, ऐसी ही सड़कें पाओगे'. उन्होंने कहा कि जनता को एक मुर्गे के लिए और 500-1000 के लिए अपना मत नहीं बेचना चाहिए. इससे सभी को पूरे 5 साल तक पछताना पड़ता है.

दरअसल, जिन सड़कों की खराब दुर्दशा के लिए ये प्रदर्शन हो रहा था, उनकी हालत वाकई खराब है. सड़कों की मरम्मत के लिए जिला खनिज न्यास मद से 10 करोड़ रुपए मंजूर हुए और काम भी हुआ, लेकिन पहली बारिश में ही सड़कें उखड़ गईं. जिले में सबसे ज्यादा पश्चिम क्षेत्र की सड़कें खराब हैं. दर्री बराज रोड बेहद खराब है. रूमगड़ा चौक से बालको तक पहुंचाने वाली सड़क में गड्ढे ही गड्ढे हैं. कटघोरा, पाली, कुसमुंडा, बांकीमोंगरा क्षेत्र की सड़कें भी जर्जर हैं.

Last Updated : Aug 8, 2021, 3:41 PM IST
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