कोरबा: महंगाई भत्ता (dearness allowance) के साथ ही अपनी 14 सूत्रीय मांगों को लेकर सरकारी कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन (Government Employees Officers Federation) ने शुक्रवार को हल्ला बोल आंदोलन किया. जिले के तानसेन चौक (Tansen Chowk) में 1000 से अधिक कर्मचारी जुटे. जबकि फेडरेशन से जुड़े अधिकारी कर्मचारियों की संख्या जिले में ही 15 हजार है. आंदोलन में अब सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारी भी यह बात कहने लगे हैं कि छत्तीसगढ़ में कुर्सी और सत्ता की लड़ाई (battle for chair) चल रही है, इसलिए सरकार कर्मचारियों के हितों को भूल चुकी है.
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3 साल से नहीं मिला डीए
आंदोलन के दौरान जिले में फेडरेशन के जिलाध्यक्ष जेपी उपाध्याय मौजूद थे. जिन्होंने कहा कि चार चरणों का आंदोलन पूरा कर हम पांचवें चरण में पहुंच चुके हैं. लेकिन सरकार हमें सुनने को तैयार नहीं है. कांग्रेस ने जनघोषणा पत्र (public manifesto) में भी हमारी सभी सुविधाओं को शामिल किया था. लेकिन 3 साल बाद भी सरकार की घोषणाएं अधूरी हैं. सरकार में कुर्सी की लड़ाई चल रही है. इसलिए वह सरकारी कर्मचारियों के हितों को पूरी तरह से भूल चुके हैं.
फेडरेशन के संयोजक के आर डहरिया (KR Dahria) ने बताया कि, सभी कर्मचारियों को फिर चाहे वह अधिकारी हो या कर्मचारी शासन में 3 साल से डीए नहीं दिया है. जोकि अन्य प्रदेशों की तरह हमें मिलना चाहिए. 28% लंबित महंगाई भत्ता के साथ-साथ सभी 14 सूत्री मांगों पर विचार किया जाना चाहिए. यदि ऐसा नहीं हुआ तो हम और भी बड़ा आंदोलन करेंगे.
कर्मचारियों में बढ़ती जा रही है नाराजगी
फेडरेशन के गठन छत्तीसगढ़ शिक्षक संघ (Chhattisgarh Teachers Association), छत्तीसगढ़ प्रदेश स्वास्थ्य कर्मचारी संघ (chhattisgarh state health workers union), लिपिक कर्मचारी, स्वास्थ्य कर्मचारी संघ निगम कर्मचारी अधिकारी संघ को मिलाकर लगभग दर्जन भर से अधिक सरकारी संघों को मिलाकर किया गया है. सभी ने एकजुट होकर सरकार के खिलाफ़ आंदोलन किया है. कर्मचारियों के आंदोलन के कारण शुक्रवार को जिले के सभी विभागों में काम काज लगभग पूरी तरह से ठप रहा. कर्मचारियों में सरकार की वादाखिलाफी को लेकर नाराजगी बढ़ती जा रही है.
कर्मचारियों की नाराजगी आ रही बाहर
छत्तीसगढ़ कांग्रेस (Chhattisgarh Congress) में वर्तमान में जो कुछ चल रहा है वह सबके सामने है. सरकारी कर्मचारी अधिकारी भी सरकार के विषय में खुलकर बात करने लगे हैं. यह प्रदेश सरकार के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. सरकारी कर्मचारी भी अब कुर्सी की लड़ाई की बातें करने लगे हैं.