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जंगल में लगी आग कैसे बुझती है, जानिए

वन अधिकारियों को सैटलाइट इमेजिंग और हाईटेक तकनीक से आग लगने की सूचना मिलती है. आइये जानते हैं जंगल में लगी आग कैसे बुझती है...

forest fire case in korba
कोरबा में जंगल में आग का मामला
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Published : Apr 11, 2022, 7:31 PM IST

Updated : Apr 11, 2022, 10:09 PM IST

कोरबा: छत्तीसगढ़ में जंगल धधक रहे हैं. वन विभाग के कर्मचारी आग के सीजन के ठीक पहले हड़ताल पर चले गए हैं. छत्तीसगढ़ के जंगलों में आग इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है. दरअसल वनरक्षक वन विभाग की सबसे निचली कड़ी होते हैं. वे आग का सीजन शुरू होने के पहले ही लाइन कटिंग का काम करते हैं. फिलहाल जंगल में आगजनी की सूचनाएं लगातार मिल रही है लेकिन डीएफओ का कहना है कि खुशकिस्मती से आग बुझ चुकी है. मैदानी कर्मचारी कह रहे हैं कि जंगल धधक रहा है. जिस वन प्रबंधन समिति के माध्यम से आग पर काबू पाने के दावे किए जा रहे हैं. वह अधिकारी की मौजूदगी में काम नहीं करते. ऐसे में उनसे अधिकारियों के गैरमौजूदगी में काम लेना टेढ़ी खीर है. इस बीच बड़ा सवाल यह है कि आग कैसे बुझेगी और वो कौन सा सिस्टम है, जो आग बुझाने में सबसे कारगर होता है?

कोरबा में लगी आग कैसे बुझती है, जानिए

आग से जंगल को बचाने के इंतजामात : वनरक्षक आग का सीजन शुरू होने के पहले ही लाइन कटिंग का काम करते हैं. इसमें खेत के किसी मोड़ की 2 से 3 मीटर की चौड़ाई में लाइन कटिंग की जाती है. लाइन कटिंग वाले स्थान को पूरी तरह से साफ रखा जाता है, जिससे आग एक स्थान से दूसरे स्थान पर ना फैले. इसके लिए वनरक्षक जंगल को छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर देते हैं. प्रत्येक वनरक्षक को एक कंपार्टमेंट के रूप में वन की जिम्मेदारी दी जाती है. प्रत्येक कंपार्टमेंट का दायरा 100 हेक्टेयर से लेकर 1000 हेक्टेयर तक भी हो सकता है. पहाड़ और दुर्गम इलाकों में यह दायरा और भी बढ़ जाता है. जब आग पहाड़ों से नीचे की ओर उतरती है. तब सूखे पत्तों के जरिए पूरे जंगल में फैल जाती है. लाइन कटिंग यदि ठीक समय पर कर दिया जाए तो आग को एक से दूसरे स्थान पर फैलने से पहले रोका जाता है. वर्तमान में हड़ताल के कारण यह काम अधूरा ही रह गया है.

यह भी पढ़ें: कोरबा के जंगलों में 37 जगहों पर लगी थी आग, लेकिन डीएफओ ने जगहों की संख्या बतायी शून्य

महुआ संग्राहक द्वारा लगाई गई आग विनाशकारी: गर्मी का मौसम तेंदूपत्ता के साथ ही महुआ संग्रहण का भी होता है. महुआ तोड़ने के लिए ग्रामीण पेड़ पर नहीं चढ़ते, बल्कि पेड़ से झड़ते महुए को एकत्र करते हैं और फिर इसकी समर्थन मूल्य पर खरीदारी होती है. महुआ बीनने के लिए ग्रामीण पेड़ के नीचे के जंगल को आग लगा देते हैं. जिससे कि वह स्थान पूरी तरह से साफ हो जाए और उन्हें महुआ देने में परेशानी ना हो, लेकिन उनके द्वारा लगाई गई यह आग जंगलों के लिए विनाशकारी साबित हो जाती है. यह आग कई बार तो फैलते हुए पूरे जंगल को ही अपने चपेट में ले लेता है. अधिकारी और मैदानी कर्मचारी लोगों से ऐसा नहीं करने की अपील तो करते हैं लेकिन समझाईश का असर ग्रामीणों पर कम ही होता है. अधिकारियों की माने तो गर्मी के मौसम में खुद-ब-खुद लगने वाले आग की संख्या बेहद कम होती है. अधिकतर आग का कारण मानव खुद होते हैं.

वन अधिकारियों को सैटलाइट इमेजिंग और हाईटेक तकनीक से मिलती है सूचना: आग से जंगलों को बचाने के लिए सरकार बेहद हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल करती है. इसकी जानकारी वन अधिकारियों को रियल टाइम में मिलती है. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के जरिए यह सूचना देशभर के वन अधिकारियों को एक साथ एसएमएस के जरिए जीपीएस लोकेशन सहित प्रेषित की जाती है.
जंगल में आग को कैप्चर करने के लिए अंतरिक्ष में सेटेलाइट तैनात रहते हैं. जो कि हर 4 से 8 घंटे के अंतराल में धरती से गुजरते हैं. जंगल में आग लगने की स्थिति में जब तापमान बढ़ता है, तो यह सेटेलाइट में दर्ज हो जाता है. जीपीएस तकनीक से लैस लोकेशन की बारीक जानकारी वन अधिकारियों को प्रेषित की जाती है. जिसके बाद वन अधिकारी यह लोकेशन मैदानी कर्मचारियों को देते हैं और तत्काल आग पर काबू पाना संभव होता है.

फॉरेस्ट गार्ड का अपना सिस्टम और भी मजबूत : कई बार सेटेलाइट सूचना मिलने में 4 से 8 घंटे की देरी हो जाती है. ऐसे में फॉरेस्ट गार्ड का अपना सूचना तंत्र काम आता है. फायर वाचर व ग्रामीणों के जरिए जैसे ही फॉरेस्ट गार्ड को आग की सूचना मिलती है. वह तत्काल मौके पर पहुंचते हैं और टहनियों से पीट-पीटकर आग को बुझा देते हैं. आग ज्यादा हुई तो शासन की ओर से मिले फायर ब्लोअर का उपयोग करके आग पर काबू पाते हैं. जिसमें कई बार तो जब सेटेलाइट सूचना फॉरेस्ट गार्ड तक पहुंचती है, तब तक वह आग पर काबू पा चुके होते हैं. लेकिन फिलहाल फॉरेस्ट गार्ड हड़ताल पर हैं. वनों की जिम्मेदारी सीधे तौर पर अधिकारियों पर आ गई है. जो कि प्रबंधन समितियों पर निर्भर हो गए है.

अधिकारी और कर्मचारी आए आमने-सामने: वन विभाग के मैदानी कर्मचारियों के साथ ही अब रेंजर स्तर के अधिकारी भी हड़ताल पर चले गए हैं. कोरबा वन मंडल की डीएफओ प्रियंका पांडे की मानें तो ज्यादातर आग मेन मेड होती है. लोग खुद से जो आग जंगल में लगाते हैं, वह विनाशकारी साबित होता है. लेकिन वर्तमान में कोरबा जिले में 37 फायर प्वाइंट मिले थे, जिन पर पूरी तरह से काबू पा लिया गया है. हड़ताल पर बैठे रेंजर जयनाथ सिंह गोंड़ इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते. वह कहते हैं कि हमें तो लगातार आग की सूचनाएं मिल रही है और आग बेकाबू भी हो चुकी है. वन्य प्राणी गांव और शहरों की तरफ कूच कर रहे हैं. जंगल की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा हुआ है.

कोरबा: छत्तीसगढ़ में जंगल धधक रहे हैं. वन विभाग के कर्मचारी आग के सीजन के ठीक पहले हड़ताल पर चले गए हैं. छत्तीसगढ़ के जंगलों में आग इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है. दरअसल वनरक्षक वन विभाग की सबसे निचली कड़ी होते हैं. वे आग का सीजन शुरू होने के पहले ही लाइन कटिंग का काम करते हैं. फिलहाल जंगल में आगजनी की सूचनाएं लगातार मिल रही है लेकिन डीएफओ का कहना है कि खुशकिस्मती से आग बुझ चुकी है. मैदानी कर्मचारी कह रहे हैं कि जंगल धधक रहा है. जिस वन प्रबंधन समिति के माध्यम से आग पर काबू पाने के दावे किए जा रहे हैं. वह अधिकारी की मौजूदगी में काम नहीं करते. ऐसे में उनसे अधिकारियों के गैरमौजूदगी में काम लेना टेढ़ी खीर है. इस बीच बड़ा सवाल यह है कि आग कैसे बुझेगी और वो कौन सा सिस्टम है, जो आग बुझाने में सबसे कारगर होता है?

कोरबा में लगी आग कैसे बुझती है, जानिए

आग से जंगल को बचाने के इंतजामात : वनरक्षक आग का सीजन शुरू होने के पहले ही लाइन कटिंग का काम करते हैं. इसमें खेत के किसी मोड़ की 2 से 3 मीटर की चौड़ाई में लाइन कटिंग की जाती है. लाइन कटिंग वाले स्थान को पूरी तरह से साफ रखा जाता है, जिससे आग एक स्थान से दूसरे स्थान पर ना फैले. इसके लिए वनरक्षक जंगल को छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर देते हैं. प्रत्येक वनरक्षक को एक कंपार्टमेंट के रूप में वन की जिम्मेदारी दी जाती है. प्रत्येक कंपार्टमेंट का दायरा 100 हेक्टेयर से लेकर 1000 हेक्टेयर तक भी हो सकता है. पहाड़ और दुर्गम इलाकों में यह दायरा और भी बढ़ जाता है. जब आग पहाड़ों से नीचे की ओर उतरती है. तब सूखे पत्तों के जरिए पूरे जंगल में फैल जाती है. लाइन कटिंग यदि ठीक समय पर कर दिया जाए तो आग को एक से दूसरे स्थान पर फैलने से पहले रोका जाता है. वर्तमान में हड़ताल के कारण यह काम अधूरा ही रह गया है.

यह भी पढ़ें: कोरबा के जंगलों में 37 जगहों पर लगी थी आग, लेकिन डीएफओ ने जगहों की संख्या बतायी शून्य

महुआ संग्राहक द्वारा लगाई गई आग विनाशकारी: गर्मी का मौसम तेंदूपत्ता के साथ ही महुआ संग्रहण का भी होता है. महुआ तोड़ने के लिए ग्रामीण पेड़ पर नहीं चढ़ते, बल्कि पेड़ से झड़ते महुए को एकत्र करते हैं और फिर इसकी समर्थन मूल्य पर खरीदारी होती है. महुआ बीनने के लिए ग्रामीण पेड़ के नीचे के जंगल को आग लगा देते हैं. जिससे कि वह स्थान पूरी तरह से साफ हो जाए और उन्हें महुआ देने में परेशानी ना हो, लेकिन उनके द्वारा लगाई गई यह आग जंगलों के लिए विनाशकारी साबित हो जाती है. यह आग कई बार तो फैलते हुए पूरे जंगल को ही अपने चपेट में ले लेता है. अधिकारी और मैदानी कर्मचारी लोगों से ऐसा नहीं करने की अपील तो करते हैं लेकिन समझाईश का असर ग्रामीणों पर कम ही होता है. अधिकारियों की माने तो गर्मी के मौसम में खुद-ब-खुद लगने वाले आग की संख्या बेहद कम होती है. अधिकतर आग का कारण मानव खुद होते हैं.

वन अधिकारियों को सैटलाइट इमेजिंग और हाईटेक तकनीक से मिलती है सूचना: आग से जंगलों को बचाने के लिए सरकार बेहद हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल करती है. इसकी जानकारी वन अधिकारियों को रियल टाइम में मिलती है. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के जरिए यह सूचना देशभर के वन अधिकारियों को एक साथ एसएमएस के जरिए जीपीएस लोकेशन सहित प्रेषित की जाती है.
जंगल में आग को कैप्चर करने के लिए अंतरिक्ष में सेटेलाइट तैनात रहते हैं. जो कि हर 4 से 8 घंटे के अंतराल में धरती से गुजरते हैं. जंगल में आग लगने की स्थिति में जब तापमान बढ़ता है, तो यह सेटेलाइट में दर्ज हो जाता है. जीपीएस तकनीक से लैस लोकेशन की बारीक जानकारी वन अधिकारियों को प्रेषित की जाती है. जिसके बाद वन अधिकारी यह लोकेशन मैदानी कर्मचारियों को देते हैं और तत्काल आग पर काबू पाना संभव होता है.

फॉरेस्ट गार्ड का अपना सिस्टम और भी मजबूत : कई बार सेटेलाइट सूचना मिलने में 4 से 8 घंटे की देरी हो जाती है. ऐसे में फॉरेस्ट गार्ड का अपना सूचना तंत्र काम आता है. फायर वाचर व ग्रामीणों के जरिए जैसे ही फॉरेस्ट गार्ड को आग की सूचना मिलती है. वह तत्काल मौके पर पहुंचते हैं और टहनियों से पीट-पीटकर आग को बुझा देते हैं. आग ज्यादा हुई तो शासन की ओर से मिले फायर ब्लोअर का उपयोग करके आग पर काबू पाते हैं. जिसमें कई बार तो जब सेटेलाइट सूचना फॉरेस्ट गार्ड तक पहुंचती है, तब तक वह आग पर काबू पा चुके होते हैं. लेकिन फिलहाल फॉरेस्ट गार्ड हड़ताल पर हैं. वनों की जिम्मेदारी सीधे तौर पर अधिकारियों पर आ गई है. जो कि प्रबंधन समितियों पर निर्भर हो गए है.

अधिकारी और कर्मचारी आए आमने-सामने: वन विभाग के मैदानी कर्मचारियों के साथ ही अब रेंजर स्तर के अधिकारी भी हड़ताल पर चले गए हैं. कोरबा वन मंडल की डीएफओ प्रियंका पांडे की मानें तो ज्यादातर आग मेन मेड होती है. लोग खुद से जो आग जंगल में लगाते हैं, वह विनाशकारी साबित होता है. लेकिन वर्तमान में कोरबा जिले में 37 फायर प्वाइंट मिले थे, जिन पर पूरी तरह से काबू पा लिया गया है. हड़ताल पर बैठे रेंजर जयनाथ सिंह गोंड़ इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते. वह कहते हैं कि हमें तो लगातार आग की सूचनाएं मिल रही है और आग बेकाबू भी हो चुकी है. वन्य प्राणी गांव और शहरों की तरफ कूच कर रहे हैं. जंगल की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा हुआ है.

Last Updated : Apr 11, 2022, 10:09 PM IST

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