कोरबा: 26 जून को हर साल अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस मनाया जाता है. इसे सबसे पहली बार 1987 में मनाया गया था. इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को नशे और इससे होने वाले कुप्रभावों के प्रति जागरूक करना है. इस दिन दुनियाभर के सभी देशों में नशीली दवाओं और ड्रग्स के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जाता है. भारत में भी इसके खिलाफ सख्त कानून बने हैं. हालांकि, इस पर पूरी तरह से नकेल कसने की जरूरत है. इसी क्रम में नशे की गिरफ्त में कैद युवा पीढ़ी को सही रास्ता दिखाने के लिए डॉ. आरके थवाइत ने रिटायरमेंट के बाद भी नौकरी करने का फैसला किया. डॉ. आरके थवाइत इंजेक्शन के माध्यम से ड्रग्स लेने वाले युवाओं को दवा देने और उनकी मॉनिटरिंग का काम कर रहे हैं, जिसके लिए वर्ष 2013 में कोई भी तैयार नहीं था. इस काम को वह पिछ्ले 7 वर्षों से करते आ रहे हैं.
डॉक्टर आरके थवाइत ओएसटी सेंटर प्रभारी हैं
दरअसल, ओएसटी सेंटर में काम करने के लिए कोई भी डॉक्टर इसलिए भी तैयार नहीं होता, क्योंकि यहां काम करने वाले डॉक्टर को निजी या सरकारी चिकित्सकों की तुलना में काफी कम तनख्वाह मिलती थी. रिटायरमेंट के बाद डॉ. थवाइत ने तब यह निर्णय लिया कि वह समाजसेवा के लिए नशे की गिरफ्त में आने वाले युवाओं को सही रास्ता दिखाएंगे, तब से लेकर अब तक डॉक्टर थवाइत जिला अस्पताल के ओएसटी सेंटर के प्रभारी हैं.
ड्रग एडिक्ट्स की लगातार बढ़ रही संख्या
पिछले 7 वर्षों में इंजेक्शन के जरिए ड्रग्स लेने वाले 650 युवा ओएसटी सेंटर में रजिस्टर्ड हैं. ये सभी ऐसे युवा हैं, जिन्हें एनजीओ के माध्यम से यहां लाया गया है. हालांकि इनमें से सभी दवा नहीं लेते, जो चिंता का विषय है. 310 नियमित अंतराल पर दवा लेते हैं, जबकि 70 युवा ऐसे हैं जो रोज ओएसटी सेंटर नशामुक्ति के लिए दवा लेने पहुंचते हैं. चिंता यह भी है कि जिले में ड्रग्स लेने वाले युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. ओएसटी सेंटर में ऐसे युवाओं के डाटा ही उपलब्ध हैं, जिन तक एनजीओ पहुंच पाई. ऐसे युवाओं का आंकड़ा अभी मौजूद नहीं है, जो एनजीओ से दूर हैं.
फल-फूल रहा है एम्पुल का कारोबार
ड्रग्स की ज्यादातर आपत्तिजनक दवा मॉर्फिन से तैयार होती है, जिसका कारोबार जिले में बंद नहीं हो पा रहा है. ड्रग्स के आदी रहे एक युवा ने बताया कि एक एम्पुल की कीमत ढाई सौ से 300 रुपये है, जिसके लिए पूरी चेन काम करती है. ओएसटी सेंटर में नशे के आदी युवाओं को सही राह पर लाने के लिए दवा और उनकी काउंसिलिंग की जाती है, लेकिन इस तरह के अवैध कारोबार जिले में बदस्तूर जारी है.
बढ़ता है क्राइम रेट
ड्रग्स लेने वाले युवा इसके नहीं मिलने पर किसी भी हद तक जा सकते हैं. ड्रग्स के आदी हो चुके युवाओं को हर कीमत पर ड्रग्स की जरूरत पड़ती है. जब इसे खरीदने के लिए पैसे नहीं होते तब वह चोरी करते हैं. वे और भी कई तरह की आपराधिक घटनाओं को अंजाम देते हैं, जिससे जिले में क्राइम रेट भी बढ़ता है.
नशे के अलावा नहीं था कोई काम
ड्रग्स लेने वाले एक युवा ने कहा कि मैं 2008 से हर तरह का नशा करने लगा था. इंजेक्शन से भी नशा लेना शुरू कर दिया, नहीं लेने पर कई तरह की दिक्कतें होती थीं. उसने बताया कि वो तड़पने लगता था, मदहोश हो जाता था. 2015 में सिटी सेंटर की जानकारी मिली. इसके बाद उसने यहां आना शुरू किया. अब वो ड्रग्स के नशे से पूरी तरह से आजाद है. उसने बताया कि अब वो ऑटो मैकेनिक का काम करने लगा है, जिससे घरवाले भी काफी खुश हैं.
नशा करने वाले युवाओं को बचाने की पहल
इसी तरह एक अन्य युवा ने बताया कि अब वह नशामुक्ति अभियान के लिए काम करने वाले एनजीओ में बतौर पियर एजुकेटर काम कर रहा है. वह नशा करने वाले युवाओं को बताता है कि पहले वो भी नशा करता था, लेकिन अब सही रास्ते पर है. इसलिए आप भी ऐसा मत करिए और सही रास्ते पर आइए.
बच्चे-बड़े सभी को नशे से छुटकारा दिलाना
बहरहाल, इस अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस का मकसद छोटे से लेकर बड़ों को नशे से छुटकारा दिलाना है. साथ ही नशा तस्करी पर भी लगाम लगाना है, ताकि बच्चों का भविष्य अंधकारमय होने से बच सके. साथ ही सामाजिक सशक्तिकरण और समाज को नशामुक्त करने के लिए और भी सख्त कदम उठाने की जरूरत है.