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कोरोना वैक्सीन में कोई दिक्कत नहीं, यह पूरी तरह से सुरक्षित: डॉ संदीप दवे

छत्तीसगढ़ के जानेमाने लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉक्टर संदीप दवे ने अपने कोरबा प्रवास के दौरान ETV भारत से खास बातचीत की है. उन्होंने इस दौरान कोरोना काल के दौरान हुई परेशानियों के साथ ही कोरोना वैक्सीनेशन और बर्ड फ्लू को लेकर भी अपने विचार साझा किए हैं.

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लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ संदीप दवे
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Published : Jan 11, 2021, 7:24 AM IST

Updated : Jan 11, 2021, 9:46 AM IST

कोरबा: छत्तीसगढ़ के जाने-माने लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉक्टर संदीप दवे कोरबा प्रवास पर थे. इस दौरान उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. डॉ संदीप दवे 50 हजार से अधिक सर्जरी कर चुके हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में प्रदेशभर में उनका बड़ा नाम है. ETV भारत से उन्होंने कोरोना के सेकेंड स्ट्रेन, वैक्सीनेशन और चिकित्सकों के पेशे के व्यवसायीकरण जैसे मुद्दों पर खुलकर चर्चा की है.

ETV भारत से खास बातचीत

सवाल : कोरोना का सेकेंड स्ट्रेन कितना खतरनाक है?
जवाब : यह सिद्ध हो चुका है कि कोरोना का सेकेंड स्ट्रेन उतना घातक नहीं है, इसलिए इससे बहुत ज्यादा डरने की आवश्यकता भी नहीं है. जो गाइडलाइन हम पहले फॉलो कर रहे थे, उनके साथ ही इससे बचा जा सकता है. मास्क पहनना, हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें, तो हम इस सेकेंड स्ट्रेन से बच सकते हैं.

पढ़ें: रायपुर: स्कूलों की बजाय अब स्वास्थ्य केंद्रों में होगा टीकाकरण

सवाल : कोरोना वैक्सीन कितनी सुरक्षित है? इसे लेकर किस तरह की चर्चा है?
जवाब : कोरोना वैक्सीन के साथ कहीं कोई दिक्कत नहीं है. यह पूरी तरह से सुरक्षित है. हमें गर्व होना चाहिए कि रिकॉर्ड टाइम में इसे हमारे देश के भीतर ही बनाया गया. इसका निर्माण हमारे देश में ही हुआ है. वैक्सीन से किसी भी व्यक्ति को डरना नहीं चाहिए. इसकी सप्लाई खुद सरकार कर रही है. किसी भी प्राइवेट सेक्टर में इसे उपलब्ध नहीं कराया जा रहा. बेफिक्र होकर वैक्सीन लगवाएं और इस विषय पर किसी भी तरह की कोई नकारात्मक खबर या भ्रम ना फैलाया जाए.

ETV भारत से खास बातचीत

सवाल : पोस्ट कोविड मरीजों में किस तरह के लक्षण हैं?
जवाब : पोस्ट कोविड ट्रीटमेंट की भी जरूरत महसूस की जा रही है और यह ठीक भी है. जो मरीज कोरोना से बाहर निकल रहे हैं, उनके फेफड़ों में फाइब्रोसिस के लक्षण दिख रहे हैं. मतलब उनके फेफड़े सिकुड़ रहे हैं. उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही है, लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहा है, वह इससे उबरकर पूरी तरह से स्वस्थ भी हो रहे हैं. अभी पाया जा रहा है कि पोस्ट कोविड मरीजों में हार्ट, पैन्क्रियाज और गॉल ब्लडर की बीमारी हो रही है. सभी मरीजों से यह भी निवेदन है कि इस तरह के किसी भी बीमारी को टालने से बचें.

पढ़ें: PM मोदी 11 जनवरी को CM और स्वास्थ्य मंत्रियों की लेंगे मीटिंग

सवाल : कोराना को किसी भी सरकारी स्कीम के तहत कवर नहीं किया गया है, ऐसे में गरीब आदमी तो परेशान नहीं हो रहा?

जवाब : ऐसा नहीं है कि गरीब आदमी परेशान है. कोरोना काल में सभी ने बढ़-चढ़कर अपनी जिम्मेदारी निभाई है. फिर चाहे वह सरकार हो या निजी अस्पताल. मैं 20 से ज्यादा लोगों के नाम बता सकता हूं, जिनके पास पैसे नहीं थे, लेकिन हमने इलाज नहीं रोका. कोरोना काल में किसी का भी इलाज रोका नहीं गया. यह बड़ी बात है कि एक-दूसरे के ऊपर यदि हम उंगली उठाएंगे, तो सही व्यवस्था बन नहीं पाएगी.

सवाल : क्या अब लोगों में हर्ड इम्यूनिटी डिवेलप हो चुकी है, या इसमें कितना समय लगेगा?
जवाब : कम्युनिटी में हर्ड इम्यूनिटी डेवलप हो चुकी है, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी. कई बार इसमें सालों लग जाते हैं, इसलिए हमें अब कोरोना वायरस के साथ रहना सीखना होगा. पहले भी यदि कोई भी हमारे घर आता था, तो उसका हाथ हम धुलवाते थे. फिर से वही चीजें हमें दोहरानी होंगी. मास्क लगाना होगा. लोगों से थोड़ी दूरी बनाकर रखनी होगी.

सवाल : नॉन कोरोना मरीजों के मन में अभी भी डर है, वह अस्पताल आने से कतरा रहे हैं. क्या करना चाहिए उन्हें?
जवाब : नॉन कोरोना मरीजों को अपने मन से डर निकालना होगा. यदि उन्हें कोई ऐसी बीमारी है जिसका इलाज ऑपरेशन है, तो उन्हें हर हाल में सर्जरी करानी चाहिए. हमने तो यही पाया है कि जिन लोगों ने अपने इलाज को टाला है, उन्हें ज्यादा नुकसान हुआ है. कोरोना काल में भी यदि आप एक औसत निकालकर देखें, तो कोरोना पेशेंट से ज्यादा नॉन कोरोना मरीजों की डेथ हुई है. उन्हें सावधानी बरतनी चाहिए और अपना इलाज कराना चाहिए.

पढ़ें: छत्तीसगढ़: 75 फीसदी महिलाओं के 'दम' पर लगेगा कोरोना का टीका

सवाल : आपदा की इस स्थिति में राज्य या केंद्र सरकारों का क्या स्टैंड रहा, आपकी राय क्या है?
जवाब : सरकारों का स्टैंड बेहद सकारात्मक रहा है. कम से कम अपने राज्य की तो बात बता ही सकता हूं. कोरोना काल में रोज ही अधिकारियों से बात होती थी. जब तक किसी अस्पताल ने ब्लंडर ना कर दिया हो, तब तक अधिकारी हमें लगातार प्रोत्साहित करते रहे. वह हमें कहते रहे कि कुछ भी हो जाए, आप अपना काम करते रहिए. जैसे कर रहे हैं वैसे अपना काम करिए.

सवाल : बर्ड फ्लू के भी दस्तक देने की बातें हो रही हैं, किस तरह से देखते हैं इसे?
जवाब : बर्ड फ्लू पहले भी आता रहा है. अब तक जो रिसर्च सामने आए हैं, उसमें यह पाया गया है कि बर्ड फ्लू केवल पक्षियों तक ही सीमित रहा है. यह इंसानों तक कभी भी नहीं पहुंच सका है.

सवाल : अक्सर यह भी देखने को मिलता है कि कोरोना पेशेंट का सोशल बायकॉट हो रहा है, इसे कैसे रोका जाए?
जवाब : शुरुआत में यह परिस्थितियां ज्यादा बन रही थीं. जैसे-जैसे केस बढ़ने लगे, कोई सोशल बायकॉट जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर रहा है. अब लोग ऐसा करने से बच रहे हैं. लेकिन यह जरूर है कि जो कोरोना मरीज हैं, उन्हें आइसोलेशन में रहना चाहिए. पुराने जमाने में भी ऐसा होता था. पहले तो महिलाओं की जब माहवारी होती थी, तो उन्हें अलग कमरे में भेज दिया जाता था, ठीक वैसे ही करना होगा.

सवाल : कोरोना काल में अस्पतालों पर भी व्यावसायिक होने और ज्यादा पैसे वसूलने का आरोप लगा?
जवाब : इस मुद्दे पर मैं बहुत ज्यादा कुछ कमेंट नहीं करना चाहूंगा, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि हमने कोई व्यवसायीकरण नहीं किया. किसी से ज्यादा पैसे नहीं वसूले. कोरोना में खासतौर पर अस्पतालों के लिए बहुत बुरा गुजरा समय है. आय के सारे स्रोत बंद हो गए थे. 6 महीने तक आय का कोई भी साधन नहीं था. इसके बावजूद हमने अपने कर्मचारियों को नहीं निकाला. उन्हें सैलेरी देने के लिए पैसे नहीं होते थे, लेकिन किसी भी अस्पताल ने अपने कर्मचारियों को बाहर नहीं किया. हां इतना जरूर है कि हमने सेवा की और उस सेवा का जब कर लगाया, तो लोगों को इसका बुरा लगा.

पढ़ें: EXCLUSIVE: वैक्सीन सबको मिलेगी, पहली प्राथमिकता में कोरोना वॉरियर्स: डॉ.नितिन एम नागरकर

सवाल : डॉक्टर हों या स्वास्थ्यकर्मी कोरोना काल में वह भी संक्रमित हुए, बुरी स्थिति रही, फिर भी सब काम करते रहे मोटिवेशन कहां से मिलती थी?
जवाब : कोरोना काल में ऐसा कई बार हुआ, जब हम लगातार मरीजों से मिलते रहे. अभी भी मैं 2 दिन पहले कोरोना वार्ड में गया था. लेकिन सबसे ज्यादा दुख इस बात का है कि एक छोटे से वायरस ने हमें हरा दिया. हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं कि हमारे पास यह मशीन है, हम इतने एडवांस हो चुके हैं, लेकिन सच यह है कि एक छोटे से वायरस ने हमें पंगु बना दिया. तो इससे एक बात तो निश्चित है कि चिकित्सा में अभी और भी बहुत कुछ करना बाकी है.

कोरबा: छत्तीसगढ़ के जाने-माने लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉक्टर संदीप दवे कोरबा प्रवास पर थे. इस दौरान उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. डॉ संदीप दवे 50 हजार से अधिक सर्जरी कर चुके हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में प्रदेशभर में उनका बड़ा नाम है. ETV भारत से उन्होंने कोरोना के सेकेंड स्ट्रेन, वैक्सीनेशन और चिकित्सकों के पेशे के व्यवसायीकरण जैसे मुद्दों पर खुलकर चर्चा की है.

ETV भारत से खास बातचीत

सवाल : कोरोना का सेकेंड स्ट्रेन कितना खतरनाक है?
जवाब : यह सिद्ध हो चुका है कि कोरोना का सेकेंड स्ट्रेन उतना घातक नहीं है, इसलिए इससे बहुत ज्यादा डरने की आवश्यकता भी नहीं है. जो गाइडलाइन हम पहले फॉलो कर रहे थे, उनके साथ ही इससे बचा जा सकता है. मास्क पहनना, हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें, तो हम इस सेकेंड स्ट्रेन से बच सकते हैं.

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सवाल : कोरोना वैक्सीन कितनी सुरक्षित है? इसे लेकर किस तरह की चर्चा है?
जवाब : कोरोना वैक्सीन के साथ कहीं कोई दिक्कत नहीं है. यह पूरी तरह से सुरक्षित है. हमें गर्व होना चाहिए कि रिकॉर्ड टाइम में इसे हमारे देश के भीतर ही बनाया गया. इसका निर्माण हमारे देश में ही हुआ है. वैक्सीन से किसी भी व्यक्ति को डरना नहीं चाहिए. इसकी सप्लाई खुद सरकार कर रही है. किसी भी प्राइवेट सेक्टर में इसे उपलब्ध नहीं कराया जा रहा. बेफिक्र होकर वैक्सीन लगवाएं और इस विषय पर किसी भी तरह की कोई नकारात्मक खबर या भ्रम ना फैलाया जाए.

ETV भारत से खास बातचीत

सवाल : पोस्ट कोविड मरीजों में किस तरह के लक्षण हैं?
जवाब : पोस्ट कोविड ट्रीटमेंट की भी जरूरत महसूस की जा रही है और यह ठीक भी है. जो मरीज कोरोना से बाहर निकल रहे हैं, उनके फेफड़ों में फाइब्रोसिस के लक्षण दिख रहे हैं. मतलब उनके फेफड़े सिकुड़ रहे हैं. उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही है, लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहा है, वह इससे उबरकर पूरी तरह से स्वस्थ भी हो रहे हैं. अभी पाया जा रहा है कि पोस्ट कोविड मरीजों में हार्ट, पैन्क्रियाज और गॉल ब्लडर की बीमारी हो रही है. सभी मरीजों से यह भी निवेदन है कि इस तरह के किसी भी बीमारी को टालने से बचें.

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सवाल : कोराना को किसी भी सरकारी स्कीम के तहत कवर नहीं किया गया है, ऐसे में गरीब आदमी तो परेशान नहीं हो रहा?

जवाब : ऐसा नहीं है कि गरीब आदमी परेशान है. कोरोना काल में सभी ने बढ़-चढ़कर अपनी जिम्मेदारी निभाई है. फिर चाहे वह सरकार हो या निजी अस्पताल. मैं 20 से ज्यादा लोगों के नाम बता सकता हूं, जिनके पास पैसे नहीं थे, लेकिन हमने इलाज नहीं रोका. कोरोना काल में किसी का भी इलाज रोका नहीं गया. यह बड़ी बात है कि एक-दूसरे के ऊपर यदि हम उंगली उठाएंगे, तो सही व्यवस्था बन नहीं पाएगी.

सवाल : क्या अब लोगों में हर्ड इम्यूनिटी डिवेलप हो चुकी है, या इसमें कितना समय लगेगा?
जवाब : कम्युनिटी में हर्ड इम्यूनिटी डेवलप हो चुकी है, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी. कई बार इसमें सालों लग जाते हैं, इसलिए हमें अब कोरोना वायरस के साथ रहना सीखना होगा. पहले भी यदि कोई भी हमारे घर आता था, तो उसका हाथ हम धुलवाते थे. फिर से वही चीजें हमें दोहरानी होंगी. मास्क लगाना होगा. लोगों से थोड़ी दूरी बनाकर रखनी होगी.

सवाल : नॉन कोरोना मरीजों के मन में अभी भी डर है, वह अस्पताल आने से कतरा रहे हैं. क्या करना चाहिए उन्हें?
जवाब : नॉन कोरोना मरीजों को अपने मन से डर निकालना होगा. यदि उन्हें कोई ऐसी बीमारी है जिसका इलाज ऑपरेशन है, तो उन्हें हर हाल में सर्जरी करानी चाहिए. हमने तो यही पाया है कि जिन लोगों ने अपने इलाज को टाला है, उन्हें ज्यादा नुकसान हुआ है. कोरोना काल में भी यदि आप एक औसत निकालकर देखें, तो कोरोना पेशेंट से ज्यादा नॉन कोरोना मरीजों की डेथ हुई है. उन्हें सावधानी बरतनी चाहिए और अपना इलाज कराना चाहिए.

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सवाल : आपदा की इस स्थिति में राज्य या केंद्र सरकारों का क्या स्टैंड रहा, आपकी राय क्या है?
जवाब : सरकारों का स्टैंड बेहद सकारात्मक रहा है. कम से कम अपने राज्य की तो बात बता ही सकता हूं. कोरोना काल में रोज ही अधिकारियों से बात होती थी. जब तक किसी अस्पताल ने ब्लंडर ना कर दिया हो, तब तक अधिकारी हमें लगातार प्रोत्साहित करते रहे. वह हमें कहते रहे कि कुछ भी हो जाए, आप अपना काम करते रहिए. जैसे कर रहे हैं वैसे अपना काम करिए.

सवाल : बर्ड फ्लू के भी दस्तक देने की बातें हो रही हैं, किस तरह से देखते हैं इसे?
जवाब : बर्ड फ्लू पहले भी आता रहा है. अब तक जो रिसर्च सामने आए हैं, उसमें यह पाया गया है कि बर्ड फ्लू केवल पक्षियों तक ही सीमित रहा है. यह इंसानों तक कभी भी नहीं पहुंच सका है.

सवाल : अक्सर यह भी देखने को मिलता है कि कोरोना पेशेंट का सोशल बायकॉट हो रहा है, इसे कैसे रोका जाए?
जवाब : शुरुआत में यह परिस्थितियां ज्यादा बन रही थीं. जैसे-जैसे केस बढ़ने लगे, कोई सोशल बायकॉट जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर रहा है. अब लोग ऐसा करने से बच रहे हैं. लेकिन यह जरूर है कि जो कोरोना मरीज हैं, उन्हें आइसोलेशन में रहना चाहिए. पुराने जमाने में भी ऐसा होता था. पहले तो महिलाओं की जब माहवारी होती थी, तो उन्हें अलग कमरे में भेज दिया जाता था, ठीक वैसे ही करना होगा.

सवाल : कोरोना काल में अस्पतालों पर भी व्यावसायिक होने और ज्यादा पैसे वसूलने का आरोप लगा?
जवाब : इस मुद्दे पर मैं बहुत ज्यादा कुछ कमेंट नहीं करना चाहूंगा, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि हमने कोई व्यवसायीकरण नहीं किया. किसी से ज्यादा पैसे नहीं वसूले. कोरोना में खासतौर पर अस्पतालों के लिए बहुत बुरा गुजरा समय है. आय के सारे स्रोत बंद हो गए थे. 6 महीने तक आय का कोई भी साधन नहीं था. इसके बावजूद हमने अपने कर्मचारियों को नहीं निकाला. उन्हें सैलेरी देने के लिए पैसे नहीं होते थे, लेकिन किसी भी अस्पताल ने अपने कर्मचारियों को बाहर नहीं किया. हां इतना जरूर है कि हमने सेवा की और उस सेवा का जब कर लगाया, तो लोगों को इसका बुरा लगा.

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सवाल : डॉक्टर हों या स्वास्थ्यकर्मी कोरोना काल में वह भी संक्रमित हुए, बुरी स्थिति रही, फिर भी सब काम करते रहे मोटिवेशन कहां से मिलती थी?
जवाब : कोरोना काल में ऐसा कई बार हुआ, जब हम लगातार मरीजों से मिलते रहे. अभी भी मैं 2 दिन पहले कोरोना वार्ड में गया था. लेकिन सबसे ज्यादा दुख इस बात का है कि एक छोटे से वायरस ने हमें हरा दिया. हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं कि हमारे पास यह मशीन है, हम इतने एडवांस हो चुके हैं, लेकिन सच यह है कि एक छोटे से वायरस ने हमें पंगु बना दिया. तो इससे एक बात तो निश्चित है कि चिकित्सा में अभी और भी बहुत कुछ करना बाकी है.

Last Updated : Jan 11, 2021, 9:46 AM IST
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