ETV Bharat / state

हाथियों को जब जंगल में मिलेगा उचित रहवास तो नहीं आएंगे रिहायशी इलाकों के करीब - विश्व हाथी दिवस

12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस मनाया जाता है. इस दिवस पर हाथी पर विस्तार से जानकारी दी गई है. हाथियों को जब जंगल में उचित रहवास मिले तो रिहायशी इलाकों के करीब नहीं पहुंचेगे. उससे किसी को नुकसान नहीं पहुंचेगा. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

विश्व हाथी दिवस
विश्व हाथी दिवस
author img

By

Published : Aug 12, 2022, 11:40 AM IST

Updated : Aug 12, 2022, 11:48 AM IST

कोरबा: छत्तीसगढ़ में हाथियों के निवास के लिए कोरबा और पड़ोसी जिले के क्षेत्रों को मिलाकर लेमरू एलिफेंट रिजर्व ( Lemru Elephant Reserve) अब अस्तित्व में आ रहा है. हाथी मानव द्वंद कुछ हद तक कम जरूर हुआ है, लेकिन यह बंद नहीं है. सर्वाधिक प्रभावित सरगुजा और बिलासपुर सर्किल है. यहां कोरबा, कटघोरा, धरमजयगढ़ और सरगुजा के सभी वनमंडल हाथियों के मौजूदगी वाले इलाके हैं. अक्सर यहां हाथी मानवद्वंद होता है, जिसमें लोगों को जान भी गंवानी पड़ती है. फसल, मकान को भी हाथी नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन जानकारों की मानें तो जिस तरह हाथियों के स्वरूप को प्रस्तुत किया जाता है. यह वास्तव में वैसा है नहीं. हाथी पुरातन काल से ही सुख और समृद्धि का प्रतीक रहे हैं. लोगों पर यह हमला तभी करते हैं. जब उन्हें खतरा महसूस होता है. इसके अलावा जंगल में उपयुक्त रहवास का मौजूद नहीं होना भी हाथियों के रिहायशी इलाकों में प्रवेश करने का एक बड़ा कारण है.

world elephant day
चंदा हाथियों का दल

यह भी पढ़ें: नोबेल पुरस्कार जीतने वाले भारतीय वैज्ञानिक

छत्तीसगढ़ में लगभग 300 हाथी: छत्तीसगढ़ में हाथियों की कुल संख्या लगभग 300 है. हाथी अब अपना दायरा लगातार बना रहे हैं. वह अन्य इलाकों को एक्सप्लोर कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ में हाथियों के मौजूदगी का केंद्र बिंदु बिलासपुर और सरगुजा सर्किल है. खास तौर पर सरगुजा के सभी क्षेत्र के साथ कटघोरा, कोरबा और धरमजयगढ़ वनमंडल प्रमुख हाथी प्रभावित क्षेत्र हैं. हालांकि बीते कुछ समय में बालोद और रायपुर वाले बेल्ट में भी हाथियों की मौजूदगी देखी गई है. छत्तीसगढ़ में कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां हाथियों की मौजूदगी स्थाई हो चुकी है. यहां के जंगल हाथियों को पसंद आ रहे हैं. लेकिन इसमें विरोधाभास यह है कि अभी तक ज्यादातर जंगल ऐसे हैं, जहां प्रचुर मात्रा में हाथियों के लिए उपयुक्त वातावरण नहीं है.

world elephant day
धूल उड़ाता हाथी



जंगल में मिलेगा चारा और पानी तो नहीं आएंगे रिहायशी इलाकों में: हाथियों के मामले में एक्सपर्ट प्रभात दुबे का कहना है कि "छत्तीसगढ़ के जंगल में हाथियों की मौजूदगी जरूर है. लेकिन अब भी यहां हाथियों के लिए उपयुक्त रहवास विकसित नहीं हो पाया है. हाथियों को जब चारा और पानी नहीं मिलता तभी वह रिहायशी इलाकों के करीब जाते हैं. मादा हाथी का वजन 3 से साढ़े 3 टन, जबकि नर हाथी का वजन 5 टन के करीब होता है. इनकी डाइट भी लगभग प्रतिदिन 200 से 300 किलो के आसपास होती है. छत्तीसगढ़ के अधिकांश जंगलों में इतनी मात्रा में चारा उपलब्ध नहीं है कि हाथियों की इस डाइट को पूरा किया जा सके. हाथी अपनी डाइट पूरी कर पाते तभी वह रिहायशी इलाकों के करीब जाते हैं. इस दौरान जब उनका सामना लोगों से होता है. तभी जनहानी जैसी घटनाएं होती हैं.

world elephant day
हाथियों का प्यार

जंगल में हाथियों को मनमाफिक मिले वातावरण: लेमरू एलिफेंट रिजर्व को हरी झंडी जरूर मिली है. लेकिन बहुत से काम होने शेष हैं. हाथी ऐसे जंगल में रहना पसंद करता है, जहां सभी तरह के पेड़ पौधे मौजूद हों. मिक्स फॉरेस्ट हाथी को पसंद है. उनके लिए कई किस्म के घास उगाना होगा. हाथियों का 50 फीसदी चारा तो अलग अलग किस्म की घास होती है. दूसरी तरफ हाथियों के पाचन शक्ति काफी कम होती है. हाथी जितना खाते हैं, उसमें से 30% ही उनके शरीर में लगता है. जबकि 70% लीद के जरिए शरीर से बाहर निकाल देते हैं. इसलिए हाथियों के रहवास को विकसित करना होगा. तभी हाथी मानव द्वंद पूरी तरह से बंद होगा. जंगल में हाथियों को उनके मनमाफिक वातावरण मिले. प्रचुर मात्रा में चारा पानी मिले तो वह जंगल के बाहर आएंगे ही नहीं. हाथी जब भी जंगल से बाहर आते हैं. तब यह समय शाम के 5 बजे से लेकर अधिकतम सुबह के 5 बजे तक का होता है. इतने ही समय लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है. लेकिन इस दिशा में भी पर्याप्त जागरूकता नहीं है.

world elephant day
जंगल में हाथी




लोगों को भी समझना होगा तभी द्वंद होगा कम : कोरबा वन मंडल की डीएफओ प्रियंका पांडे का कहना है कि "हाथी मानव द्वंद कम करना है तो सिर्फ हाथियों पर नकेल कसने से यह संभव नहीं होगा. कई मामलों में स्थानीय ग्रामीण और लोगों को भी यह समझना होगा कि हाथियों के साथ कैसा बर्ताव किया जाए. हाथियों को परेशान करने से बचना होगा. लोग जंगल में चले जाते हैं. अक्सर वो जंगल में विचरण करते हैं और हाथियों से उनका सामना हो जाता है. लगातार हम इस दिशा में जागरूकता फैलाते हैं. कौन से समय जंगल में जाना है, कौन से समय नहीं जाना है. लगातार हम ट्रेनिंग प्रोग्राम भी करते हैं. लेमरू एलिफेंट रिजर्व के अस्तित्व में आने के बाद कई तरह से काम किया जा रहा है. नरवा प्रोजेक्ट के तहत हाथियों को जंगल में पर्याप्त पानी मिले. इसके तहत नरवा बनाए गए हैं. फलदार पौधे रोपे जा रहे हैं. काफी हद तक हाथी मानव द्वंद कम हुआ है, लेकिन यह सभी की जिम्मेदारी है. यह समुदाय की जिम्मेदारी है. यह मामला सिर्फ विभाग तक सीमित नहीं है.

world elephant day
आपस में खेलते हाथी

वर्तमान में इस तरह के काम हुए: लेमरू हाथी रिजर्व के लिए अधिसूचना जारी होने के बाद कैंपा मद से राज्य सरकार ने 94 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी थी. मुख्य तौर पर दो भागों में काम किया जाना था. पहला हाथियों के लिए उचित रहवास विकसित करना. दूसरा हाथी-मानव द्वंद को कम करना. हाथियों के लिए रहवास विकसित करने के लिए कई तरह के कार्य किए गए हैं, जिसमें फलदार वृक्षों का रोपण, चारागाह विकास, नरवा विकास पर काम किया गया है. इसके साथ ही वन विभाग द्वारा बड़े वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर भी खड़े किए जा रहे हैं, जिससे कि हाथियों के अलावा अन्य जानवरों को भी प्रचुर मात्रा में पानी उपलब्ध हो सके. पानी के लिए जानवरों को भटकना न पड़े.

world elephant day
हाथी और उसके बच्चे का प्यार



कुछ हद तक कम हुए हाथी मानव द्वंद: कैंपा मद से ही लेमरू हाथी रिजर्व में दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण भाग है, हाथी मानव-द्वंद को कम करना. इसके लिए जरूरत के अनुसार वन मंडलों में सोलर फेंसिंग भी की गई है. जिससे हाथियों को हल्का करंट का झटका लगता है और वह जंगल में वापस लौट जाते हैं. कुछ विशेष वाहनों का आवंटन शासन की ओर से किया गया है. साथ ही सहायता केंद्र स्थापित किए जाने की भी योजना है. कोरबा वन मंडल में ऐसे 5 अति संवेदनशील स्थानों को चिन्हित किया गया है. जहां सहायता केंद्र स्थापित किए जाएंगे. इसमें से फिलहाल सिर्फ एक स्थान गिरारी में सहायता केंद्र स्थापित किया गया है. इसके अलावा हाथियों के विषय में ग्रामीणों का प्रशिक्षण सबसे महत्वपूर्ण है जो कि नियमित अंतराल पर किया जाना प्रस्तावित है.

world elephant day
झूंड में हाथियों का दल



1995 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र और 350 हाथियों का रहवास: लेमरू हाथी रिजर्व में कोरबा वन मंडल के साथ ही 5 वन मंडल के क्षेत्र शामिल हैं. जिसका कुल क्षेत्रफल 1995 स्क्वायर किलोमीटर तय किया गया है. राज्य शासन से अधिसूचना जारी होने के बाद राशि भी स्वीकृत की गई है, जिसके बाद लगातार काम जारी है. हाथी रिजर्व की परिधि में लगभग 200 गांव जानकारों की मानें तो बीते दो दशक में पूरे छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या बढ़कर 300 हो चुकी है. हालांकि कुछ क्षेत्रों के प्रभावित होने के बाद भी इन्हें शामिल न करने की बात उठती रही है. कोरबा, सरगुजा की सीमा से लगे हसदेव अरण्य क्षेत्र जंगल को कोल ब्लॉक के कारण जानबूझकर हाथी रिजर्व से बाहर रखने की बात एक्टिविस्ट उठाते रहे हैं.

world elephant day
जंगल में मिले हाथी को उचित रहवास

जंगलों की कमी नहीं बस रहवास विकसित करने की जरूरत: कुछ समय पहले है 37 वासियों के एक ने छत्तीसगढ़ में खूब उत्पात मचाया था. सरगुजा से होकर कोरबा और फिर धरमजयगढ़ वनमंडल में उन्होंने काफी नुकसान पहुंचाया. इसके बाद हाथियों का यह दल 300 किलोमीटर का फासला तय कर बांधवगढ़ के जंगलों में चला गया, लेकिन अच्छी बात यह है कि बांधवगढ़ जाने के बाद हाथियों का यह दल एकदम शांत हो गया.

जानकार कहते हैं कि बांधवगढ़ के जंगल में हाथियों के लिए पर्याप्त फूड चेन है. वहां मिक्स फॉरेस्ट की अच्छी श्रृंखला है. जंगल हाथियों को पसंद आए और हाथी जंगल से बाहर निकलने की जरूरत महसूस नहीं करते. छत्तीसगढ़ में भी तमोर पिंगला, लेमरू एलिफेंट हो या गुरु घासीदास नेशनल पार्क जंगल की कमी नहीं है. जंगल काफी बड़े और समृद्ध हैं. लेकिन हाथियों का फूड चेन यहां पूरी तरह से डिस्टर्ब है जो खाना हाथियों को चाहिए वह जंगलों में नहीं मिल पाता. जिसके कारण वह रिहायशी इलाकों के करीब आ जाते हैं. इन जंगलों में हाथियों के फूड चैन को ठीक कर दिया जाए तो हाथी रिहायशी इलाकों में कभी नहीं जाएंगे. जंगल में ही रहेंगे और हाथी मानव द्वंद को पूरी तरह से रोका जा सकता है.

कोरबा: छत्तीसगढ़ में हाथियों के निवास के लिए कोरबा और पड़ोसी जिले के क्षेत्रों को मिलाकर लेमरू एलिफेंट रिजर्व ( Lemru Elephant Reserve) अब अस्तित्व में आ रहा है. हाथी मानव द्वंद कुछ हद तक कम जरूर हुआ है, लेकिन यह बंद नहीं है. सर्वाधिक प्रभावित सरगुजा और बिलासपुर सर्किल है. यहां कोरबा, कटघोरा, धरमजयगढ़ और सरगुजा के सभी वनमंडल हाथियों के मौजूदगी वाले इलाके हैं. अक्सर यहां हाथी मानवद्वंद होता है, जिसमें लोगों को जान भी गंवानी पड़ती है. फसल, मकान को भी हाथी नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन जानकारों की मानें तो जिस तरह हाथियों के स्वरूप को प्रस्तुत किया जाता है. यह वास्तव में वैसा है नहीं. हाथी पुरातन काल से ही सुख और समृद्धि का प्रतीक रहे हैं. लोगों पर यह हमला तभी करते हैं. जब उन्हें खतरा महसूस होता है. इसके अलावा जंगल में उपयुक्त रहवास का मौजूद नहीं होना भी हाथियों के रिहायशी इलाकों में प्रवेश करने का एक बड़ा कारण है.

world elephant day
चंदा हाथियों का दल

यह भी पढ़ें: नोबेल पुरस्कार जीतने वाले भारतीय वैज्ञानिक

छत्तीसगढ़ में लगभग 300 हाथी: छत्तीसगढ़ में हाथियों की कुल संख्या लगभग 300 है. हाथी अब अपना दायरा लगातार बना रहे हैं. वह अन्य इलाकों को एक्सप्लोर कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ में हाथियों के मौजूदगी का केंद्र बिंदु बिलासपुर और सरगुजा सर्किल है. खास तौर पर सरगुजा के सभी क्षेत्र के साथ कटघोरा, कोरबा और धरमजयगढ़ वनमंडल प्रमुख हाथी प्रभावित क्षेत्र हैं. हालांकि बीते कुछ समय में बालोद और रायपुर वाले बेल्ट में भी हाथियों की मौजूदगी देखी गई है. छत्तीसगढ़ में कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां हाथियों की मौजूदगी स्थाई हो चुकी है. यहां के जंगल हाथियों को पसंद आ रहे हैं. लेकिन इसमें विरोधाभास यह है कि अभी तक ज्यादातर जंगल ऐसे हैं, जहां प्रचुर मात्रा में हाथियों के लिए उपयुक्त वातावरण नहीं है.

world elephant day
धूल उड़ाता हाथी



जंगल में मिलेगा चारा और पानी तो नहीं आएंगे रिहायशी इलाकों में: हाथियों के मामले में एक्सपर्ट प्रभात दुबे का कहना है कि "छत्तीसगढ़ के जंगल में हाथियों की मौजूदगी जरूर है. लेकिन अब भी यहां हाथियों के लिए उपयुक्त रहवास विकसित नहीं हो पाया है. हाथियों को जब चारा और पानी नहीं मिलता तभी वह रिहायशी इलाकों के करीब जाते हैं. मादा हाथी का वजन 3 से साढ़े 3 टन, जबकि नर हाथी का वजन 5 टन के करीब होता है. इनकी डाइट भी लगभग प्रतिदिन 200 से 300 किलो के आसपास होती है. छत्तीसगढ़ के अधिकांश जंगलों में इतनी मात्रा में चारा उपलब्ध नहीं है कि हाथियों की इस डाइट को पूरा किया जा सके. हाथी अपनी डाइट पूरी कर पाते तभी वह रिहायशी इलाकों के करीब जाते हैं. इस दौरान जब उनका सामना लोगों से होता है. तभी जनहानी जैसी घटनाएं होती हैं.

world elephant day
हाथियों का प्यार

जंगल में हाथियों को मनमाफिक मिले वातावरण: लेमरू एलिफेंट रिजर्व को हरी झंडी जरूर मिली है. लेकिन बहुत से काम होने शेष हैं. हाथी ऐसे जंगल में रहना पसंद करता है, जहां सभी तरह के पेड़ पौधे मौजूद हों. मिक्स फॉरेस्ट हाथी को पसंद है. उनके लिए कई किस्म के घास उगाना होगा. हाथियों का 50 फीसदी चारा तो अलग अलग किस्म की घास होती है. दूसरी तरफ हाथियों के पाचन शक्ति काफी कम होती है. हाथी जितना खाते हैं, उसमें से 30% ही उनके शरीर में लगता है. जबकि 70% लीद के जरिए शरीर से बाहर निकाल देते हैं. इसलिए हाथियों के रहवास को विकसित करना होगा. तभी हाथी मानव द्वंद पूरी तरह से बंद होगा. जंगल में हाथियों को उनके मनमाफिक वातावरण मिले. प्रचुर मात्रा में चारा पानी मिले तो वह जंगल के बाहर आएंगे ही नहीं. हाथी जब भी जंगल से बाहर आते हैं. तब यह समय शाम के 5 बजे से लेकर अधिकतम सुबह के 5 बजे तक का होता है. इतने ही समय लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है. लेकिन इस दिशा में भी पर्याप्त जागरूकता नहीं है.

world elephant day
जंगल में हाथी




लोगों को भी समझना होगा तभी द्वंद होगा कम : कोरबा वन मंडल की डीएफओ प्रियंका पांडे का कहना है कि "हाथी मानव द्वंद कम करना है तो सिर्फ हाथियों पर नकेल कसने से यह संभव नहीं होगा. कई मामलों में स्थानीय ग्रामीण और लोगों को भी यह समझना होगा कि हाथियों के साथ कैसा बर्ताव किया जाए. हाथियों को परेशान करने से बचना होगा. लोग जंगल में चले जाते हैं. अक्सर वो जंगल में विचरण करते हैं और हाथियों से उनका सामना हो जाता है. लगातार हम इस दिशा में जागरूकता फैलाते हैं. कौन से समय जंगल में जाना है, कौन से समय नहीं जाना है. लगातार हम ट्रेनिंग प्रोग्राम भी करते हैं. लेमरू एलिफेंट रिजर्व के अस्तित्व में आने के बाद कई तरह से काम किया जा रहा है. नरवा प्रोजेक्ट के तहत हाथियों को जंगल में पर्याप्त पानी मिले. इसके तहत नरवा बनाए गए हैं. फलदार पौधे रोपे जा रहे हैं. काफी हद तक हाथी मानव द्वंद कम हुआ है, लेकिन यह सभी की जिम्मेदारी है. यह समुदाय की जिम्मेदारी है. यह मामला सिर्फ विभाग तक सीमित नहीं है.

world elephant day
आपस में खेलते हाथी

वर्तमान में इस तरह के काम हुए: लेमरू हाथी रिजर्व के लिए अधिसूचना जारी होने के बाद कैंपा मद से राज्य सरकार ने 94 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी थी. मुख्य तौर पर दो भागों में काम किया जाना था. पहला हाथियों के लिए उचित रहवास विकसित करना. दूसरा हाथी-मानव द्वंद को कम करना. हाथियों के लिए रहवास विकसित करने के लिए कई तरह के कार्य किए गए हैं, जिसमें फलदार वृक्षों का रोपण, चारागाह विकास, नरवा विकास पर काम किया गया है. इसके साथ ही वन विभाग द्वारा बड़े वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर भी खड़े किए जा रहे हैं, जिससे कि हाथियों के अलावा अन्य जानवरों को भी प्रचुर मात्रा में पानी उपलब्ध हो सके. पानी के लिए जानवरों को भटकना न पड़े.

world elephant day
हाथी और उसके बच्चे का प्यार



कुछ हद तक कम हुए हाथी मानव द्वंद: कैंपा मद से ही लेमरू हाथी रिजर्व में दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण भाग है, हाथी मानव-द्वंद को कम करना. इसके लिए जरूरत के अनुसार वन मंडलों में सोलर फेंसिंग भी की गई है. जिससे हाथियों को हल्का करंट का झटका लगता है और वह जंगल में वापस लौट जाते हैं. कुछ विशेष वाहनों का आवंटन शासन की ओर से किया गया है. साथ ही सहायता केंद्र स्थापित किए जाने की भी योजना है. कोरबा वन मंडल में ऐसे 5 अति संवेदनशील स्थानों को चिन्हित किया गया है. जहां सहायता केंद्र स्थापित किए जाएंगे. इसमें से फिलहाल सिर्फ एक स्थान गिरारी में सहायता केंद्र स्थापित किया गया है. इसके अलावा हाथियों के विषय में ग्रामीणों का प्रशिक्षण सबसे महत्वपूर्ण है जो कि नियमित अंतराल पर किया जाना प्रस्तावित है.

world elephant day
झूंड में हाथियों का दल



1995 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र और 350 हाथियों का रहवास: लेमरू हाथी रिजर्व में कोरबा वन मंडल के साथ ही 5 वन मंडल के क्षेत्र शामिल हैं. जिसका कुल क्षेत्रफल 1995 स्क्वायर किलोमीटर तय किया गया है. राज्य शासन से अधिसूचना जारी होने के बाद राशि भी स्वीकृत की गई है, जिसके बाद लगातार काम जारी है. हाथी रिजर्व की परिधि में लगभग 200 गांव जानकारों की मानें तो बीते दो दशक में पूरे छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या बढ़कर 300 हो चुकी है. हालांकि कुछ क्षेत्रों के प्रभावित होने के बाद भी इन्हें शामिल न करने की बात उठती रही है. कोरबा, सरगुजा की सीमा से लगे हसदेव अरण्य क्षेत्र जंगल को कोल ब्लॉक के कारण जानबूझकर हाथी रिजर्व से बाहर रखने की बात एक्टिविस्ट उठाते रहे हैं.

world elephant day
जंगल में मिले हाथी को उचित रहवास

जंगलों की कमी नहीं बस रहवास विकसित करने की जरूरत: कुछ समय पहले है 37 वासियों के एक ने छत्तीसगढ़ में खूब उत्पात मचाया था. सरगुजा से होकर कोरबा और फिर धरमजयगढ़ वनमंडल में उन्होंने काफी नुकसान पहुंचाया. इसके बाद हाथियों का यह दल 300 किलोमीटर का फासला तय कर बांधवगढ़ के जंगलों में चला गया, लेकिन अच्छी बात यह है कि बांधवगढ़ जाने के बाद हाथियों का यह दल एकदम शांत हो गया.

जानकार कहते हैं कि बांधवगढ़ के जंगल में हाथियों के लिए पर्याप्त फूड चेन है. वहां मिक्स फॉरेस्ट की अच्छी श्रृंखला है. जंगल हाथियों को पसंद आए और हाथी जंगल से बाहर निकलने की जरूरत महसूस नहीं करते. छत्तीसगढ़ में भी तमोर पिंगला, लेमरू एलिफेंट हो या गुरु घासीदास नेशनल पार्क जंगल की कमी नहीं है. जंगल काफी बड़े और समृद्ध हैं. लेकिन हाथियों का फूड चेन यहां पूरी तरह से डिस्टर्ब है जो खाना हाथियों को चाहिए वह जंगलों में नहीं मिल पाता. जिसके कारण वह रिहायशी इलाकों के करीब आ जाते हैं. इन जंगलों में हाथियों के फूड चैन को ठीक कर दिया जाए तो हाथी रिहायशी इलाकों में कभी नहीं जाएंगे. जंगल में ही रहेंगे और हाथी मानव द्वंद को पूरी तरह से रोका जा सकता है.

Last Updated : Aug 12, 2022, 11:48 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.