कोरबा: नॉन पावर सेक्टर के लगभग 200 उद्योगों को एसईसीएल द्वारा कोयला दिया जाता है. प्रत्येक कंपनी से एसईसीएल का सालाना अनुबंध होता है. जिसके आधार पर ही उन्हें कोयला दिया जाता है. नॉन पावर सेक्टर के उद्योग छत्तीसगढ़ के साथ ही पड़ोसी राज्यों के भी हैं. इन सभी को लगभग 20 से 30 मिलियन टन कोयले की आवश्यकता सालाना पड़ती है. एसईसीएल ने पावर सेक्टर को प्राथमिकता देने की बात कही है. देश में कोयला क्राइसिस की बातें शुरू होने के बाद से नॉन पावर सेक्टर की मुश्किलें बढ़ी हैं. जिनका आरोप है कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में कोयला नहीं मिल रहा है.
एसईसीएल का वित्तीय वर्ष का टारगेट 172 मिलियन टन
एसईसीएल पिछले 3 वर्षों से लगातार 150 मिलियन टन से ज्यादा कोयला उत्पादन कर रहा है. मौजूदा वित्तीय वर्ष में एसईसीएल ने 172 मिलियन टन कोयला उत्पादन का टारगेट रखा है. हालांकि इसे हासिल कर पाना आसान नहीं है. पावर सेक्टर में लगे पावर प्लांटों को ना सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को भी एसईसीएल द्वारा कोयला दिया जाता है. अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कोयले के बढ़ते दाम के बाद कोयला क्राइसिस की परिस्थितियां बनीं. जिससे नॉन पावर सेक्टर के कोटे में कुछ कटौती जरूर हुई है. हालांकि एसईसीएल ने हमेशा ही कोयला देने की ही बात कही है.
सीएमडी लगातार कर रहे दौरा
टारगेट से पिछड़ने के बाद नवनियुक्त एसईसीएल सीएमडी प्रेमसागर मिश्रा लगातार खदानों का दौरा कर रहे हैं. कोरबा के बाद एक दिन पहले ही सीएमडी ने रायगढ़ क्षेत्र का दौरा किया था. एसईसीएल का पूरा फोकस कोयला उत्पादन बढ़ाने पर है. उत्पादन बढ़ता है तभी नॉन पावर सेक्टर को पर्याप्त कोयला मिल सकेगा. हालांकि नॉन पावर सेक्टर को कुल उत्पादन में से केवल 20 मिलियन टन कोयले की ही आवश्यकता है. जिसे पूरा कर पाना एसईसीएल के लिए कोई बड़ी बात नहीं है. बावजूद इसके लगातार इस तरह की परिस्थितियां बन रही है.