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SPECIAL: एक वादे की वजह से 25 साल में फकीर हो गए यहां के अमीर किसान - 156 farmers

25 साल पहले दक्षिण कोरिया से देवू कंपनी इनके गांव आती है. यहां 1000 मेगावाट पावर प्लांट लगाने का वादा करती है और उसमें नौकरी देने का आश्वासन भी देती है. वादे के अनुसार मुआवजा राशि और पावर प्लांट में नौकरी मिलनी थी. लेकिन उनका ये सपना धरा का धरा रह गया. करोड़ों के मालिक यह किसान दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर हैं.

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Published : Jun 8, 2019, 9:18 PM IST

कोरबा : ये किसान मायूस हैं, परेशान हैं और बेबस हैं...रिसदी गांव के इन किसानों ने 25 साल पहले पावर प्लांट बनाने की उम्मीद पर अपनी जमीन दक्षिण कोरिया की देवू कंपनी को दे दी थी. वादे के अनुसार मुआवजा राशि और पावर प्लांट में नौकरी मिलनी थी. लेकिन उनका ये सपना धरा का धरा रह गया.

25 साल में फकीर हो गए यहां के अमीर किसान

किसानों की जमीन अधिग्रहित कर ली गई और मुआवजे की राशि भी दे दी गई. लेकिन इन 25 सालों में न पावर प्लांट खड़ा हुआ न नौकरी मिली. अब 25 साल बाद ग्रामीणों के पास न तो मुआवजे की राशि बची है और न उनकी जमीन उनके हक में है. आलम यह है कि करोड़ों के मालिक यह किसान दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर हैं.

ये है पूरी कहानी-

  • इनके सामने इनकी जमीन है लेकिन उस पर बस इनका नहीं है. 25 साल पहले दक्षिण कोरिया से देवू कंपनी इनके गांव आती है. यहां 1000 मेगावाट पावर प्लांट लगाने का वादा करती है और उसमें नौकरी देने का आश्वासन भी देती है.
  • इसके लिए रिसदी के 156 किसानों की 250 एकड़ जमीन अधिग्रहित की जाती है. इसके साथ 250 एकड़ की शासकीय जमीन भी कंपनी को दी जाती है.
  • पावर प्लांट बनने की बात तो दूर, यहां पर कंपनी का साइनबोर्ड तक नहीं लगा. इन 25 सालों में यह खेती की जमीन भी अब बेजान और सूखी हो गई है.
  • यहां के किसान बताते हैं कि 25 साल पहले मिली मुआवजे की राशि भी अब नहीं बची है. इस जमीन पर खेती न होने से 25 सालों में जमीन बेजान हो गई है.
  • इस जमीन पर खेती नहीं कर सकते और अधिग्रहण होने के वजह से इसे बेच भी नहीं सकते.

ग्रामीणों ने यह भी बताया कि अब इनका गांव नगर निगम का एक वार्ड बन चुका है. यहां मूलभूत सुविधाएं तो मिली लेकिन शहर में तरह विकास नहीं हुआ.

ग्रामीणों का कहना है कि बस्तर के लोहंडीगुड़ा की तर्ज पर इनकी भी जमीन वापस की जाए. अगर कोई और उद्योग यहां लगाना चाहते हैं, तो नई भू-अर्जन नीति के अनुसार फिर से जमीन अधिग्रहण कर उसका लाभ हमे दें.

कोरबा : ये किसान मायूस हैं, परेशान हैं और बेबस हैं...रिसदी गांव के इन किसानों ने 25 साल पहले पावर प्लांट बनाने की उम्मीद पर अपनी जमीन दक्षिण कोरिया की देवू कंपनी को दे दी थी. वादे के अनुसार मुआवजा राशि और पावर प्लांट में नौकरी मिलनी थी. लेकिन उनका ये सपना धरा का धरा रह गया.

25 साल में फकीर हो गए यहां के अमीर किसान

किसानों की जमीन अधिग्रहित कर ली गई और मुआवजे की राशि भी दे दी गई. लेकिन इन 25 सालों में न पावर प्लांट खड़ा हुआ न नौकरी मिली. अब 25 साल बाद ग्रामीणों के पास न तो मुआवजे की राशि बची है और न उनकी जमीन उनके हक में है. आलम यह है कि करोड़ों के मालिक यह किसान दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर हैं.

ये है पूरी कहानी-

  • इनके सामने इनकी जमीन है लेकिन उस पर बस इनका नहीं है. 25 साल पहले दक्षिण कोरिया से देवू कंपनी इनके गांव आती है. यहां 1000 मेगावाट पावर प्लांट लगाने का वादा करती है और उसमें नौकरी देने का आश्वासन भी देती है.
  • इसके लिए रिसदी के 156 किसानों की 250 एकड़ जमीन अधिग्रहित की जाती है. इसके साथ 250 एकड़ की शासकीय जमीन भी कंपनी को दी जाती है.
  • पावर प्लांट बनने की बात तो दूर, यहां पर कंपनी का साइनबोर्ड तक नहीं लगा. इन 25 सालों में यह खेती की जमीन भी अब बेजान और सूखी हो गई है.
  • यहां के किसान बताते हैं कि 25 साल पहले मिली मुआवजे की राशि भी अब नहीं बची है. इस जमीन पर खेती न होने से 25 सालों में जमीन बेजान हो गई है.
  • इस जमीन पर खेती नहीं कर सकते और अधिग्रहण होने के वजह से इसे बेच भी नहीं सकते.

ग्रामीणों ने यह भी बताया कि अब इनका गांव नगर निगम का एक वार्ड बन चुका है. यहां मूलभूत सुविधाएं तो मिली लेकिन शहर में तरह विकास नहीं हुआ.

ग्रामीणों का कहना है कि बस्तर के लोहंडीगुड़ा की तर्ज पर इनकी भी जमीन वापस की जाए. अगर कोई और उद्योग यहां लगाना चाहते हैं, तो नई भू-अर्जन नीति के अनुसार फिर से जमीन अधिग्रहण कर उसका लाभ हमे दें.

Intro:जिले के रिसदी गांव के किसानों ने 25 साल पहले पावर प्लांट बनाने की उम्मीद पर अपनी जमीन दक्षिण कोरिया की देवू कंपनी को दे दी। वादे के अनुसार मुआवजा राशि और पावर प्लांट में नौकरी मिलनी थी। किसानों की जमीन अधिग्रहित कर ली गई और मुआवजे की राशि भी दे दी गई। लेकिन इन 25 सालों में ना पावर प्लांट खड़ा हुआ ना नौकरी मिली। अब 25 साल बाद ग्रामीणों के पास ना मुआवजे की राशि बची है और ना उनकी जमीन उनके हक में है। आलम यह है कि करोड़ों के मालिक यह किसान दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर हैं।


Body:ये किसान मायूस हैं, परेशान हैं और बेबस हैं। इनके सामने इनकी जमीन है लेकिन उस पर बस इनका नहीं है। 25 साल पहले दक्षिण कोरिया से देवू कंपनी इनके गांव आती है। यहां 1000 मेगावाट पावर प्लांट लगाने का वादा करती है और उसमें नौकरी देने का आश्वासन भी देती है। इसके लिए रिसदी के 156 किसानों की 250 एकड़ जमीन अधिग्रहित की जाती है। इसके साथ 250 एकड़ की शासकीय ज़मीन भी कम्पनी को दी जाती है। पॉवर प्लांट बनने की बात तो दूर, यहाँ पर कम्पनी का साइनबोर्ड तक नहीं लगा। इन 25 सालों में यह खेती की जमीन भी अब बेजान और सूखी हो गई है।
यहां के किसान बताते हैं कि 25 साल पहले मिली मुआवजे की राशि भी अब नहीं बची है। इस जमीन पर खेती न होने से 25 सालों में ज़मीन भी बेजान हो गई है। इस जमीन पर खेती नहीं कर सकते और अधिग्रहण होने के वजह से इसे बेच भी नहीं सकते।
ग्रामीणों ने यह भी बताया कि अब इनका गांव नगर निगम का एक वार्ड बन चुका है। यहाँ मूलभूत सुविधाएं तो मिली लेकिन शहर की तरह विकास नहीं हुआ। ग्रामीणों का कहना है कि बस्तर के लोहंडीगुड़ा की तर्ज पर इनकी भी ज़मीन वापस की जाए। अगर यदि कोई और उद्योग यहाँ लगाना चाहते हैं तो नई भू अर्जन नीति के अनुसार फिर से ज़मीन अधिग्रहण कर उसका लाभ हमे दें।
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