कोरबा: कोरोना वायरस ने वैश्विक महामारी फैलाने के साथ ही जीवन की रफ्तार को भी थाम लिया है. त्योहारों की रौनक फीकी पड़ गई है. खासतौर पर लघु व्यवसाय कोरोना वायरस की मार ज्यादा झेल रहे हैं. आमतौर पर छोटे व्यवसायियों को शारदीय नवरात्रि का पूरे साल इंतजार रहता था. नवरात्रि में कमाए गए मुनाफे से उनके सालभर की रोजी रोटी का इंतजाम हो जाता था. लेकिन इस साल कोरोना के चलते जिले के ज्यादातर दुर्गा पंडाल सूने पड़े हैं. छोटे व्यवसायियों को दुकान तक लगाने की अनुमति नहीं है. जहां दुर्गा प्रतिमाओं को स्थापित किया गया है, वहां भी दूर से ही दर्शन कर भक्त घर लौट रहे हैं. चढ़ावा चढ़ाने की भी अनुमति नहीं है.
टूटी 42 साल पुरानी परंपरा
जिले के एनटीपीसी की दुर्गा समिति पिछले 42 सालों से नवरात्रि में दुर्गा प्रतिमा स्थापित करते आ रही है. रावण वध के लिए खास इंतजाम किए जाते थे. नवरात्रि में यहां धूमधाम से गरबा और कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था. लेकिन इस वर्ष समिति के सदस्यों ने दुर्गा प्रतिमा की स्थापना तो की है, लेकिन वह भी कोरोना प्रोटोकॉल के लिए निर्धारित सख्त मापदंडों के साथ, समिति ने रावण वध का कार्यक्रम इस बार कैंसिल कर दिया है. वहीं दर्शन के लिए हर आने-जाने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए प्रवेश द्वार पर सैनिटाइजर और कंप्यूटरीकृत सूची बनाकर लोगों की जानकारी रखी जा रही है. बहरहाल संक्रमण के बीच त्योहारों की रौनक पूरी तरह से गायब है.
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टेंट व्यवसायियों ने बदल दिया कारोबार
पहले लॉकडाउन फिर उसके बाद शादियों का फीकापन और एक के बाद एक त्योहारों की गिरती रंगत के चलते टेंट व्यवसायी अपना खर्च निकाल नहीं पा रहे हैं. काम नहीं मिलने के चलते व्यवसाई कर्ज के बोझ तले दबते आ रहे हैं. वहीं दुकान का किराया, कर्मचारियों वेतन तक निकाल पाने की स्थिति में नहीं हैं. जिससे कई टेंट व्यवसायियों ने अपना व्यवसाय ही बदल दिया है.
शहर के इन स्थानों पर रहती थी दुर्गोत्सव की खास रौनक
शहर में हर साल नवरात्रि के 2 माह पहले से दुर्गा पूजन समिति के पदाधिकारी इसकी तैयारी शुरू कर देते थे. खासतौर पर सीएसईबी आटा चक्की, एसईसीएल सुभाष चौक, जेपी कॉलोनी, ओल्ड पूजा पंडाल, अमरैया पारा, शारदा विहार, रेलवे कॉलोनी, स्टेशन परिसर, सीतामढ़ी, टीपी नगर, इंदिरा विहार कॉलोनी, पंडित रविशंकर शुक्ला नगर, एमपी नगर, राजेंद्र प्रसाद नगर फेस 1 और 2, शिवाजी नगर सीएसईबी कॉलोनी समेत उपनगरीय क्षेत्रों में जेलगांव, बांकीमोंगरा, कटघोरा, बालको समेत कई स्थानों पर दुर्गा प्रतिमा स्थापित होती थी. शहर में लगभग 200 स्थानों पर प्रत्येक वर्ष मूर्ति स्थापना होती थी.
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खासतौर पर रहता था दुर्गा पूजा का इंतजार
टेंट व्यवसाय से जुड़े करीब 900 कारीगर और मूर्तिकला से जुड़े 200 कलाकारों के साथ ही लाइटिंग के 400, फूल माला वाले 300, पूजा कराने वाले 250 पुरोहित, ढांकी करने वाले 150, पूजा पंडाल और मंदिरों के बाहर नारियल और पूजन सामग्री बेचने वाले छोटे व्यवसायी इन सभी को नवरात्रि का खास तौर पर इंतजार रहता था. कुल मिलाकर इनकी संख्या लगभग ढाई से तीन हजार के करीब है. जो वर्तमान में पूरी तरह से बेरोजगार हो चुके हैं.
कहां कितना होता है खर्च
- 200 स्थानों पर मूर्तियां विराजित होती थी, जिनका बजट 34 लाख 82 हजार रुपए
- शहर के 25 बड़े दुर्गा पंडालों में 62 लाख 50 हजार रुपए की लागत से होती थी सजावट
- फूल माला और फूलों की सजावट पर 3 करोड़ का खर्च
- साउंड सिस्टम पर दो करोड़ का खर्च
- बिजली बिल पर 50 लाख का खर्च
- प्रसाद, भोग और भंडारा पर 50 लाख का खर्च
- पूजन सामग्री पर करीब 20 लाख का बजट