कोरबा : राज्य की ऊर्जाधानी से भले ही प्रदेश के सैंकड़ों गांव रौशन हो रहे हो.भले ही सतरेंगा टूरिस्ट स्पॉट अपनी पहचान का मोहताज ना हो. लेकिन इन खूबियों के बाद भी सतरेंगा से सटे गांव अपने वजूद को तलाश रहे हैं.सतरेंगा से कुछ किलोमीटर दूर खोखराआमा गांव में विकास की सीढ़ियां नहीं पहुंची. सतरेंगा टूरिस्ट स्पॉट में लोग जब सैर करने आते हैं तो फर्राटेदार बोट पर लाइफ जैकेट पहनकर नौकाविहार करते हैं.लेकिन खोखराआमा गांव के लोगों की लाइफ लकड़ी की नाव पर टिकी है. जो बरसो से बिना किसी सुरक्षा के काम चलाऊ नाव पर डूबान क्षेत्र पार कर रहे हैं.
![Condition of villages in Bango Duban area](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/cg-krb-01-naawsedubanpaarstory-avb-spl-7208587_15042023113316_1504f_1681538596_493.jpg)
कई गांवों की स्थिति बदहाल : जिले के सतरेंगा के गांव खोखराआमा, कुकरीचोली जैसे 25 से 30 गांव बांगो डैम के डूबान क्षेत्र में हैं. इन गांवों तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है. राशन से लेकर जरुरत का सामान ग्रामीण नाव के सहारे लाते हैं. ग्रामीण 40 फीट से अधिक गहरे डुबान को लकड़ी के नाव से पार करते हैं. जान जोखिम में डालकर आवागमन इसी तरह से चालू है. आज भी ग्रामीणों को उम्मीद है कि, एक दिन सरकार उनकी भी सुनेगी और गांव में पुल बन जाएगा.
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सामान के लिए खतरे में जान : अपने जरूरत के सामान के लिए ग्रामीण जलमार्ग का रास्ता चुनते हैं. फिर पहाड़ी रास्तों का तीन किलोमीटर लंबा सफर तय करके अपने घरों तक आते हैं. कई बड़े नेताओं ने गांव का दौरा भी किया. लेकिन मिला तो सिर्फ आश्वासन. पुल को लेकर जो घोषणाएं हुईं वो हवा हो गई. ग्रामीण अब भी ये समझ नहीं पा रहे हैं कि, सरकार उनकी क्यों नहीं सुनती.
![Condition of villages in Bango Duban area](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/cg-krb-01-naawsedubanpaarstory-avb-spl-7208587_15042023113316_1504f_1681538596_642.jpg)
डूबान को पार करना मजबूरी : वनांचल में निवास करने वाले ग्रामीणों के पास इस पानी को नाव से लांघने के अलावा और कोई भी विकल्प नहीं है. यदि वह नाव से डूबान को पार ना करें, तो 25 से 30 किलोमीटर का अतिरिक्त सफर तय करना पड़ेगा. वो रास्ता भी इतना पथरीला है कि, बाइक चलाना भी मुश्किल है. ऐसे में पैदल ही एकमात्र विकल्प है. खोखराआमा तीन ओर से पहाड़ और एक तरफ पानी से घिरा हुआ है. ग्रामीण प्रकृति की गोद में तो हैं, लेकिन वह विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं.
नाव के सहारे कट रहा जीवन : खोखराआमा के बृजराम पहाड़ी कोरवा की उम्र लगभग 30 वर्ष है. जो यहीं पैदा हुए है. बृज की माने तो डूबान पार करने के बाद ही गांववाले सतरेंगा पहुंचते हैं. ऐसे में हमारी मांग है कि शासन यहां एक पुल का निर्माण कर दे. क्योंकि राशन का सामान हम पहले नाव पार करके सतरेंगा से यहां लाते हैं. फिर इसे कंधे पर ढोकर पैदल गांव तक पहुंचते हैं. खोखराआम में पहाड़ी कोरवाओं के 25 से 30 परिवार हैं. इस क्षेत्र में 30 से 35 गांव होंगे.जिनके लिए पुल किसी वरदान से कम नहीं है. वहीं गांव में पानी,बिजली और स्वास्थ्य सुविधाओं की भी कमी है.
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सरकार ने नहीं किया वादा पूरा : इसी तरह गांव के एक बुजुर्ग जगदीश का कहना है कि "पहले हम फुटका पहाड़ में रहते थे. फिर हम जंगलों में जगह देखकर कहीं-कहीं बस गए. अब हमारा गांव डूबान में है. मेरे तो दादा परदादा भी यहीं के निवासी थे. कई पीढ़ी जंगलों में ही बीत चुकी है". इस दौरान जगदीश ने कहा कि "पहले तो हम खुद पहाड़ के ऊपर रहते थे. हमें खदान खुलने के कारण फुटका पहाड़ से नीचे उतारा गया. सुविधाओं का वादा किया गया.लेकिन आज तक सुविधा नहीं मिली.अब तो जहां रह रहे हैं वो भी डूबान क्षेत्र में है. सरकार से हमारी पुल की मांग है.''
![Condition of villages in Bango Duban area](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/cg-krb-01-naawsedubanpaarstory-avb-spl-7208587_15042023113316_1504f_1681538596_533.jpg)
मंत्रियों ने दौरे के बाद दिया था आश्वासन : ग्राम पंचायत सतरेंगा के सरपंच धनसिंह लगातार कई वर्षों से यहां सरपंच है. धन सिंह का कहना है कि "जब छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था. तब डॉ चरणदास महंत अविभाजित मध्यप्रदेश के मंत्री थे. उसी दौरान वह यहां आए थे. उन्होंने मौके का मुआयना किया था. पुल बनाने की मांग को स्वीकृति भी दी थी. इसके कुछ साल बाद मंत्री रहे नंद कुमार पटेल भी एक बार डूबान क्षेत्र के दौरे पर आ चुके हैं. उन्होंने भी पुल का आश्वासन दिया था. जनदर्शन हो या जनसमस्या समाधान शिविर हर जगह आवेदन किया जा चुका है.लेकिन पुल नहीं मिला.