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डीजल का विकल्प होगा LNG, पर्यावरण सुधार के साथ डीजल चोरी पर लगेगी रोक

कोयला खदानों में उत्खनन और परिवहन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले भारी-भरकम डंपरों में ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होने वाले डीजल का विकल्प ढूंढ लिया है. अब LNG के इस्तेमाल से कोरबा में डीजल चोरी पर भी रोक लगेगी. इसके साथ ही पर्यावरण के स्तर पर भी सुधार होगा.

diesel used in coal mines
डीजल का विकल्प होगा LNG
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Published : Nov 16, 2021, 10:37 AM IST

Updated : Nov 16, 2021, 10:35 PM IST

कोरबा: कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited) ने कोयला खदानों में उत्खनन और परिवहन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले भारी-भरकम डंपरों में ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होने वाले डीजल का विकल्प ढूंढ लिया है. खास तौर पर कोल इंडिया की सबसे बड़ी कंपनी एसईसीएल में बड़ी मात्रा में डीजल की खपत होती है.

डीजल का विकल्प होगा LNG

डीजल चोरी पर लगाम कसने की तैयारी

डीजल के स्थान पर अब कोल इंडिया एलएनजी (Liquefied Natural Gas) किट का इस्तेमाल करेगी. कोल इंडिया ने एक तीर से दो निशाना लगाने का प्रयास किया है. एक तरफ डीजल के कम उपयोग से कार्बन फुटप्रिंट कम कर पर्यावरण असंतुलन जैसी परिस्थितियों से निपटने की बात कही जा रही है, तो दूसरी ओर कोयला खदानों में निरंकुश हो चुके डीजल चोरी पर भी लगाम कसने की तैयारी है.

पायलट परियोजना लॉन्च

कोरबा दौरे से लौटने के कुछ दिन बाद ही मंत्री प्रहलाद जोशी (Minister Prahlad Joshi) ने डीजल के विकल्प के तौर पर एलएनजी किट की पायलट परियोजना लॉन्च (LNG kit pilot project launched) की है. जिससे यह संभावना जताई जा रही है कि कोरबा दौरे के दौरान कहीं ना कहीं कोयल मंत्री को डीजल चोरी और इसके निरंकुश होने की बात का इनपुट मिला था. कोल इंडिया ने डीजल के उपयोग को 40% तक कम करने की संभावना जताई है. जिससे ईंधन के तौर पर सालाना 500 करोड़ रुपए की बचत का अनुमान लगाया है.

कोल इंडिया का गेल इंडिया लिमिटेड और बीईएमएल से समझौता

पहले चरण में 100 टन के डंपर में एलएनजी किट कोयला मंत्रालय ने हाल ही में अपनी खदानों में कोयला परिवहन में लगे बड़े ट्रकों और डंपर में एलएनजी किट लगाने की प्रक्रिया की शुरुआत करती है. दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी कोल इंडिया में सालाना 3500 करोड रुपए से अधिक की लागत के साथ प्रतिवर्ष 4 लाख किलोलीटर डीजल का उपयोग होता है. इसे कम करने के लिए कोल इंडिया ने गेल इंडिया लिमिटेड (GAIL India Limited) और बीईएमएल के साथ एक समझौता ज्ञापन से अपनी सहायक महानदी कोलफील्ड्स में संचालित हजार 100 टन के नंबरों में एल एन जी किट लगाने की पायलट परियोजना शुरू की है.

100 टन की क्षमता के डंपरों में एलएनजी किट

जल्द ही एसईसीएल के साथ कोल इंडिया की अन्य कंपनियों के डंपरों में एलएनजी किट लगाया जाएगा. पहले चरण में केवल 100 टन की क्षमता के डंपरों में एलएनजी किट लगेगी. हालांकि कोल इंडिया के मेगा प्रोजेक्ट दीपका, कुसमुंडा और गेवरा खदान में संचालित डंपरों की क्षमता 200 टन से भी अधिक है. सीआईएल के पास 2,500 से अधिक डंपर सीआईएल के ओपन कास्ट कोयला खदानों में 2,500 से अधिक डंपर मौजूद हैं.

लगेगा डीजल चोरी करने वाले गिरोह पर अंकुश

खासतौर पर एसईसीएल में कोल इंडिया के सर्वाधिक डंपर कोयला उत्खनन और परिवहन का काम करते हैं। डंपरों में सीआईएल द्वारा उपयोग किए जाने वाले कुल डीजल के लगभग 75% डीजल की खपत होती है। इनमें एलएनजी के उपयोग से 40% तक ईंधन की लागत को कम करने की पायलट परियोजना लॉन्च की गई है. जिससे की ईंधन की लागत में 15% की कमी आने की संभावना है. 500 करोड़ रुपए के बचत का भी अनुमान है. डीजल चोरी पर अंकुश खास तौर पर कोरबा जिले में मौजूद दीपका, गेवरा और कुसमुंडा के कोयला खदानों में बड़े पैमाने पर डंपर में डीजल का उपयोग होता है. कई वर्षों से यहां संगठित तौर पर डीजल चोर गिरोह काम करते हैं. पुलिस बीच-बीच में इन पर कार्रवाई करती है, लेकिन वह सिर्फ खानापूर्ति ही साबित होती रही है. संगठित गिरोह के सक्रिय रहने से खदानों में कई बार ऐसी घटनाएं हुई हैं. जब सुरक्षाकर्मियों और डीजल चोर गिरोह के मध्य टकराव से गोली चलने की घटना भी हो चुकी है.

अफसरों की मिलीभगत से होती है डीजल चोरी: मजदूर यूनियन

मजदूर यूनियन के नेताओं की मानें तो एसईसीएल के कर्मचारी नाइट शिफ्ट में यहां दहशत में काम करते हैं. डीजल चोर गिरोह अब निरंकुश हो चुके हैं. इसमें सुरक्षा एजेंसियों के साथ ही अफसरों की भी मिलीभगत है. सीआईएसएफ (Central Industrial Security Force) के बाद त्रिपुरा राइफल्स की तैनाती के बाद भी इस पर लगाम नहीं लग पा रहा है. कहीं ना कहीं जिम्मेदार भी इन परिस्थितियों के लिए दोषी हैं. डंपरों में एलएनजी किट का इस्तेमाल शुरु होते ही डीजल चोरी पर भी लगाम लगेगा. जिससे एसईसीएल की खदानों में काम करने वाले जो कर्मचारी नाइट शिफ्ट में जान जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं. वह राहत महसूस करेंगे.

आखिर क्या है एलएनजी?

सीएनजी की तरह एलएनजी को भी वाहनों में इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन एक्सपर्ट्स के मुताबिक सीएनजी के मुकाबले एलएनजी ज्यादा ज्वलनशील होती है. इसके कारण इससे ज्यादा एनर्जी मिलती है. एलएनजी को लिक्विफाइड नेचुरल गैस कहते हैं. फिलहाल एलएनजी को आमतौर पर हवाई जहाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है. प्राकृतिक गैस को 160 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा करके तरल रूप में ट्रांसपोर्ट किया जाता है. जिसके कारण ही इसे लिक्विफाइड नेचुरल गैस कहते हैं. नेचुरल गैस से तरल रूप में आते-आते इससे अशुद्धियां निकल जाती हैं. इस कारण इसे प्राकृतिक गैस कहा जाता है. दावा यह भी है कि इससे प्रदूषण की मात्रा कम होती है और वाहनों को माइलेज भी अधिक मिलता है.

कार्बन फूटप्रिंट होगा कम

कार्बन फूटप्रिंट किसी एक व्यक्ति या संस्था द्वारा किए गए कार्बन उत्सर्जन को ही कहा जाता है. उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड या ग्रीन हाउस गैसों के रूप में रहता है. डीजल और कोयले के उपयोग से भी प्रति व्यक्ति कार्बन फूटप्रिंट में लगातार वृद्धि हो रही है. कोई व्यक्ति कितना अधिक सफर करता है या डीजल की कितनी खपत हो रही है. इससे कार्बन फुटप्रिंट की मात्रा का निर्धारण होता है. प्रति व्यक्ति कार्बन फुटप्रिंट में वृद्धि का एक बड़ा कारण पेट्रोलियम पदार्थों का अधिक से अधिक इस्तेमाल भी है.

हालांकि वैज्ञानिकों की मानें तो मानव की सभी आदतें जिसमें खान-पान से लेकर पहने जाने वाले कपड़े तक कार्बन फुटप्रिंट के कारक होते हैं. हाल ही में जी-20 देशों के लोगों के जीवन शैली का विश्लेषण किया गया था. जिसके अनुसार अधिक आय वाले देश के लोगों को अपने कार्बन फुटप्रिंट में 2050 तक 91 से 95 फीसदी की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है. जबकि भारत जैसे कम आय वाले देश को भी 76 फ़ीसदी कार्बन फुटप्रिंट कम करना होगा. भारत में प्रति व्यक्ति कार्बन फुटप्रिंट उत्सर्जन की दर 1.9 मेट्रिक टन है. जबकि अमेरिका जैसे विकसित देशों में यह 15 मेट्रिक टन से भी ज्यादा है.

कोरबा: कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited) ने कोयला खदानों में उत्खनन और परिवहन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले भारी-भरकम डंपरों में ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होने वाले डीजल का विकल्प ढूंढ लिया है. खास तौर पर कोल इंडिया की सबसे बड़ी कंपनी एसईसीएल में बड़ी मात्रा में डीजल की खपत होती है.

डीजल का विकल्प होगा LNG

डीजल चोरी पर लगाम कसने की तैयारी

डीजल के स्थान पर अब कोल इंडिया एलएनजी (Liquefied Natural Gas) किट का इस्तेमाल करेगी. कोल इंडिया ने एक तीर से दो निशाना लगाने का प्रयास किया है. एक तरफ डीजल के कम उपयोग से कार्बन फुटप्रिंट कम कर पर्यावरण असंतुलन जैसी परिस्थितियों से निपटने की बात कही जा रही है, तो दूसरी ओर कोयला खदानों में निरंकुश हो चुके डीजल चोरी पर भी लगाम कसने की तैयारी है.

पायलट परियोजना लॉन्च

कोरबा दौरे से लौटने के कुछ दिन बाद ही मंत्री प्रहलाद जोशी (Minister Prahlad Joshi) ने डीजल के विकल्प के तौर पर एलएनजी किट की पायलट परियोजना लॉन्च (LNG kit pilot project launched) की है. जिससे यह संभावना जताई जा रही है कि कोरबा दौरे के दौरान कहीं ना कहीं कोयल मंत्री को डीजल चोरी और इसके निरंकुश होने की बात का इनपुट मिला था. कोल इंडिया ने डीजल के उपयोग को 40% तक कम करने की संभावना जताई है. जिससे ईंधन के तौर पर सालाना 500 करोड़ रुपए की बचत का अनुमान लगाया है.

कोल इंडिया का गेल इंडिया लिमिटेड और बीईएमएल से समझौता

पहले चरण में 100 टन के डंपर में एलएनजी किट कोयला मंत्रालय ने हाल ही में अपनी खदानों में कोयला परिवहन में लगे बड़े ट्रकों और डंपर में एलएनजी किट लगाने की प्रक्रिया की शुरुआत करती है. दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी कोल इंडिया में सालाना 3500 करोड रुपए से अधिक की लागत के साथ प्रतिवर्ष 4 लाख किलोलीटर डीजल का उपयोग होता है. इसे कम करने के लिए कोल इंडिया ने गेल इंडिया लिमिटेड (GAIL India Limited) और बीईएमएल के साथ एक समझौता ज्ञापन से अपनी सहायक महानदी कोलफील्ड्स में संचालित हजार 100 टन के नंबरों में एल एन जी किट लगाने की पायलट परियोजना शुरू की है.

100 टन की क्षमता के डंपरों में एलएनजी किट

जल्द ही एसईसीएल के साथ कोल इंडिया की अन्य कंपनियों के डंपरों में एलएनजी किट लगाया जाएगा. पहले चरण में केवल 100 टन की क्षमता के डंपरों में एलएनजी किट लगेगी. हालांकि कोल इंडिया के मेगा प्रोजेक्ट दीपका, कुसमुंडा और गेवरा खदान में संचालित डंपरों की क्षमता 200 टन से भी अधिक है. सीआईएल के पास 2,500 से अधिक डंपर सीआईएल के ओपन कास्ट कोयला खदानों में 2,500 से अधिक डंपर मौजूद हैं.

लगेगा डीजल चोरी करने वाले गिरोह पर अंकुश

खासतौर पर एसईसीएल में कोल इंडिया के सर्वाधिक डंपर कोयला उत्खनन और परिवहन का काम करते हैं। डंपरों में सीआईएल द्वारा उपयोग किए जाने वाले कुल डीजल के लगभग 75% डीजल की खपत होती है। इनमें एलएनजी के उपयोग से 40% तक ईंधन की लागत को कम करने की पायलट परियोजना लॉन्च की गई है. जिससे की ईंधन की लागत में 15% की कमी आने की संभावना है. 500 करोड़ रुपए के बचत का भी अनुमान है. डीजल चोरी पर अंकुश खास तौर पर कोरबा जिले में मौजूद दीपका, गेवरा और कुसमुंडा के कोयला खदानों में बड़े पैमाने पर डंपर में डीजल का उपयोग होता है. कई वर्षों से यहां संगठित तौर पर डीजल चोर गिरोह काम करते हैं. पुलिस बीच-बीच में इन पर कार्रवाई करती है, लेकिन वह सिर्फ खानापूर्ति ही साबित होती रही है. संगठित गिरोह के सक्रिय रहने से खदानों में कई बार ऐसी घटनाएं हुई हैं. जब सुरक्षाकर्मियों और डीजल चोर गिरोह के मध्य टकराव से गोली चलने की घटना भी हो चुकी है.

अफसरों की मिलीभगत से होती है डीजल चोरी: मजदूर यूनियन

मजदूर यूनियन के नेताओं की मानें तो एसईसीएल के कर्मचारी नाइट शिफ्ट में यहां दहशत में काम करते हैं. डीजल चोर गिरोह अब निरंकुश हो चुके हैं. इसमें सुरक्षा एजेंसियों के साथ ही अफसरों की भी मिलीभगत है. सीआईएसएफ (Central Industrial Security Force) के बाद त्रिपुरा राइफल्स की तैनाती के बाद भी इस पर लगाम नहीं लग पा रहा है. कहीं ना कहीं जिम्मेदार भी इन परिस्थितियों के लिए दोषी हैं. डंपरों में एलएनजी किट का इस्तेमाल शुरु होते ही डीजल चोरी पर भी लगाम लगेगा. जिससे एसईसीएल की खदानों में काम करने वाले जो कर्मचारी नाइट शिफ्ट में जान जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं. वह राहत महसूस करेंगे.

आखिर क्या है एलएनजी?

सीएनजी की तरह एलएनजी को भी वाहनों में इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन एक्सपर्ट्स के मुताबिक सीएनजी के मुकाबले एलएनजी ज्यादा ज्वलनशील होती है. इसके कारण इससे ज्यादा एनर्जी मिलती है. एलएनजी को लिक्विफाइड नेचुरल गैस कहते हैं. फिलहाल एलएनजी को आमतौर पर हवाई जहाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है. प्राकृतिक गैस को 160 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा करके तरल रूप में ट्रांसपोर्ट किया जाता है. जिसके कारण ही इसे लिक्विफाइड नेचुरल गैस कहते हैं. नेचुरल गैस से तरल रूप में आते-आते इससे अशुद्धियां निकल जाती हैं. इस कारण इसे प्राकृतिक गैस कहा जाता है. दावा यह भी है कि इससे प्रदूषण की मात्रा कम होती है और वाहनों को माइलेज भी अधिक मिलता है.

कार्बन फूटप्रिंट होगा कम

कार्बन फूटप्रिंट किसी एक व्यक्ति या संस्था द्वारा किए गए कार्बन उत्सर्जन को ही कहा जाता है. उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड या ग्रीन हाउस गैसों के रूप में रहता है. डीजल और कोयले के उपयोग से भी प्रति व्यक्ति कार्बन फूटप्रिंट में लगातार वृद्धि हो रही है. कोई व्यक्ति कितना अधिक सफर करता है या डीजल की कितनी खपत हो रही है. इससे कार्बन फुटप्रिंट की मात्रा का निर्धारण होता है. प्रति व्यक्ति कार्बन फुटप्रिंट में वृद्धि का एक बड़ा कारण पेट्रोलियम पदार्थों का अधिक से अधिक इस्तेमाल भी है.

हालांकि वैज्ञानिकों की मानें तो मानव की सभी आदतें जिसमें खान-पान से लेकर पहने जाने वाले कपड़े तक कार्बन फुटप्रिंट के कारक होते हैं. हाल ही में जी-20 देशों के लोगों के जीवन शैली का विश्लेषण किया गया था. जिसके अनुसार अधिक आय वाले देश के लोगों को अपने कार्बन फुटप्रिंट में 2050 तक 91 से 95 फीसदी की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है. जबकि भारत जैसे कम आय वाले देश को भी 76 फ़ीसदी कार्बन फुटप्रिंट कम करना होगा. भारत में प्रति व्यक्ति कार्बन फुटप्रिंट उत्सर्जन की दर 1.9 मेट्रिक टन है. जबकि अमेरिका जैसे विकसित देशों में यह 15 मेट्रिक टन से भी ज्यादा है.

Last Updated : Nov 16, 2021, 10:35 PM IST
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