कोरबा: कोरोना काल से अब तक विपरीत परिस्थितियों में चाइल्डलाइन को 1150 आउटरीच बच्चे मिले हैं. यह सभी ऐसे बच्चे हैं, जिनके अधिकारों का हनन हो रहा था. जिनके विषय में किसी न किसी माध्यम से डायल 1098 को सूचना मिली और फिर मदद पहुंचाई गई. किसी को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश कर मदद पहुंचाई, तो कुछ बच्चों को बाल गृह में भी रखा गया है. जिले में बाल श्रम अब भी बड़ी समस्या बनी हुई (Child labor in Korba) है.
अधिकारियों की मानें तो टीम को सूचना मिलती है. तब मामला कुछ और होता है लेकिन मौके पर पहुंचते ही मामला पूरी तरह से पलट जाता है. जिससे बाल श्रम के विरुद्ध कार्रवाई करना भी मुश्किल प्रतीत होता है.
प्रतिदिन औसतन 3 केस : चाइल्डलाइन को जिले में प्रतिदिन औसतन 3 केस मिले हैं. हर दिन ऐसी 3 शिकायतें मिलती हैं, जिनकी शिकायतें चाइल्डलाइन को मिलती है. बीते साल मिली 1150 शिकायतों में से 722 को किसी न किसी रूप में मदद पहुंचाई गई है. यह सभी ऐसे बच्चे हैं, जो कहीं ना कहीं काम में लगे हुए थे. ऐसे बच्चे भी हैं, जो कबाड़ी और कचरा बीनकर अपना जीवन यापन करते हैं.
बाल श्रम बड़ी समस्या : चाइल्ड लाइन के डायरेक्टर डिक्सन मैच और कोऑर्डिनेटर आशीष दान कहते हैं कि चाइल्डलाइन के जरिये, बच्चों को मदद पहुंचाई जाती है. लेकिन बाल श्रम अभी एक बड़ी समस्या है. चाइल्डलाइन को कॉल आने पर वो मौके पर पहुंचते हैं, तब शिकायत रहती है कि लंबे समय से बच्चों से काम लिया जा रहा है. हमें शराब की दुकान, चखना दुकान और मछली की दुकानों से फोन आते हैं. कहा जाता है कि छोटे बच्चों से काम करवाया जा रहा है. लेकिन जब मौके पर पहुंचते हैं तब मामला उलट जाता है. पता चलता है कि बच्चे केवल उसी दिन काम पर आए थे या कुछ दिनों के लिए काम करने के लिए बुलाया गया था. कभी सुनने में आता है कि बच्चों से काम नहीं लिया जा रहा है. कोई साक्ष्य नहीं मिलते, जिसके अभाव में कार्रवाई नहीं हो पाती.
कोरोना काल के दौरान चाइल्डलाइन को जिले में 2 ऐसे बच्चे मिले हैं, जो पूरी तरह से अनाथ हो गए थे. इनके माता और पिता की मृत्यु हो चुकी है. ऐसे बच्चों को बाल गृह में रखा गया है. उनके स्कूल में पढ़ने का भी इंतजाम किया गया है. महीने में दो 2 हजार रुपये उनके खाते में हस्तांतरित किए जा रहे हैं, जबकि 50 हजार की राशि इनके खातों में एकमुश्त जमा कराई गई है. केंद्र की योजना के तहत यह सहायता बच्चों को मिली है.