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मानिकपुर खदान से ग्रामीण करते हैं कोयले की चोरी, हादसों में मौत के बाद भी प्रबंधन लापरवाह ! - SECL Public Relations Officer Sanish Chandra

कोरबा में कोयला खादान से कोयला उत्खनन के अलावा दिनदहाड़े कोयले की चोरी (Villagers forced to steal coal) भी हो रही है. चोरी के दौरान कई ग्रामीणों की जान भी जा चुकी (Death while stealing coal) है. पर इस मामले को लेकर प्रशासन सतर्क नहीं दिख (Administration not alert in coal theft case) रहा है.

Villagers forced to steal coal have died in the accident
कोयला चोरी करने को मजबूर ग्रामीणों की हो चुकी है हादसे में मौत
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Published : Dec 15, 2021, 10:10 PM IST

Updated : Dec 15, 2021, 11:00 PM IST

कोरबा: छत्तीसगढ़ के कोरबा शहर के समीप संचालित एसईसीएल की मानिकपुर (Manikpur coal mines of Korba) कोयला खदान कोयला कंपनी के सबसे पुराने खदानों में से एक है. जहां 60 के दशक से कोयले का उत्खनन शुरू हुआ था. मानिकपुर खदान से कोयला कंपनी द्वारा घोषित तौर पर कोयला उत्खनन के अलावा दिनदहाड़े कोयले की चोरी भी हो रही है. यह सिलसिला लंबे समय से जारी है. यहां कोयला चोरी से भी अधिक गंभीर बात यह है कि स्थानीय लोग कोयला निकालने के लिए खदान के मुहाने तक पहुंच जाते हैं. जहां खदान से निकले ओवरबर्डन को डंप किया जाता है. पूर्व में उत्खनन के लिए किए जाने वाले ब्लास्टिंग से ओवरबर्डन के नीचे दबकर मजदूरों की मौत हो (Villagers forced to steal coal) चुकी है. बावजूद इसके प्रबंधन ने इस दिशा में अब तक कोई भी ठोस कदम नहीं (Administration not alert in coal theft case) उठाया है. यही वजह है कि यहां कोयला चोरी का सिलसिला बदस्तूर जारी है. स्थानीय लोग जान हथेली पर लेकर इस अवैध काम को लगातार अंजाम दे रहे हैं.

कोयला चोरी करने के दौरान हो रही मौत

यूं होती है कोयले की चोरी

मानिकपुर खदान के मुहाने से लगे गांव दादर, भिलाईखुर्द. या फिर आसपास का कोई अन्य इलाका. यहां के स्थानीय लोगों के लिए खदान के मुहाने से कोयला चोरी करना एक तरह से उनके आजीविका का भी साधन है. ग्रामीण इसे ईंधन के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं. शाम को खाना पकाने वक्त वह सिगड़ी में कोयला जलाकर ही घर का चूल्हा जलाते हैं. आसपास के छोटे होटलों और जरूरत के अनुसार कोयले की खरीद-बिक्री भी होती है. प्रति बोरी कोयले का दाम 100 से 200 रुपये के बीच होता है. लेकिन इस कोयले के लिए स्थानीय लोगों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है.

ग्रामीणों की हो चुकी है हादसे में मौत

यह भी पढ़ेंः COAL CRISIS : एसईसीएल सुनिश्चित करेगा पावर प्लांटों के पास हो 18 दिनों का कोयला स्टॉक

खादान से कोयले के अलावा पत्थरों का ढ़ेर भी निकलता है

दरअसल कोयला खदान में उत्खनन के दौरान कोयले के अलावा मिट्टी और पत्थरों का ढ़ेर भी निकलता है. इसे ही ओवरबर्डन कहा जाता है. जिसे खदान के किनारे डंप किया जाता है. जिससे कि एक मानव निर्मित पहाड़ का निर्माण हो जाता है. अब ग्रामीण इसके ऊपर चढ़कर कोयला निकालने का काम करते हैं. वह काफी ऊंचाई से कोयला निकालते हैं फिर इसे सिर पर ढोकर नीचे की तरफ सफर करते हैं. कई बार स्थानीय लोग कोयला निकालने के लिए खदान के भीतर तक प्रवेश कर जाते हैं, जबकि यह पूरा इलाका बेहद संवेदनशील होता है.

एक स्थानीय की भी हो चुकी है मौत

खदान वाले इलाके में कोयला उत्खनन के लिए विशेषज्ञों की निगरानी में एसईसीएल द्वारा बारूद लगाकर ब्लास्टिंग की जाती है.इसी दौरान कोयला चोरी की नीयत से वहां मौजूद स्थानीय पर ब्लास्टिंग के दौरान ओवरबर्डन भरभरा कर गिरा था. ग्रामीण इस ओवरबर्डन के नीचे दब गया. उसका शव मानिकपुर पोखरी के पास से काफी जद्दोजहद के बाद (Death while stealing coal)बरामद हुआ. शव ढूंढने में 3 दिन का समय लग गया था. पुलिस से लेकर स्थानीय गोताखोरों को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी.

निगरानी के लिए कोई मौजूद नहीं रहता

SECL प्रबंधन द्वारा अधिग्रहित जमीन के बदले पुनर्वास, मुआवजा देने के साथ ही कोयला चोरी जैसे संवेदनशील कार्यों पर भी लगाम लगाने पर पूरी तरह से प्रबंधन नाकाम रहा है. खदान के मुहाने से कोयला चोरी पर अब तक लगाम नहीं लग सका है, जो कि बीते कई दशकों से चला रहा है. इस दौरान स्थानीय लोगों की मौत भी हो चुकी है. बावजूद इसके कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं. खदान की सुरक्षा का जिम्मा केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल को दिया जाता है. जो कि खानापूर्ति के लिए ही खदान के प्रवेश द्वार पर तैनात रहते हैं. जबकि खदान के चारों ओर बसे गांव से कोयला चोरी अब तो आम हो गई है.

यह भी पढ़ेंः कोयला संकट : कोल लदान में 35 से 40 रैक की बढ़ोतरी

हर साल 49 लाख टन कोयले का उत्पादन

जिले में शहर के समीप मौजूद कोयला खदान एसईसीएल सबसे पुराने कोयला खदानों में से एक है. यहां 1960 के दशक में कोयले का उत्खनन शुरू हुआ था. वर्तमान में भी यहां आने वाले लगभग 25 वर्ष तक उत्खनन योग्य कोयला मौजूद है. यहां से सालाना 49 लाख टन कोयले का उत्पादन किया जाता है. मानिकपुर खदान प्रबंधन इस टारगेट को आसानी से हासिल भी कर लेते हैं. हालांकि इसमें वह आंकड़ा शामिल नहीं है जिसे कि चोरी कर लिया जाता है.

पुलिस भी लगातार पेट्रोलिंग करती है

खदान से कोयला चोरी और इस तरह की परिस्थितियों के लिये एसईसीएल प्रबंधन और सीआईएसएफ का दायित्व होता है. लेकिन स्थानीय पुलिस की भी जिम्मेदारी बनती है. जब कोई हादसा होता है, तब स्थानीय पुलिस के बिना कोई काम नहीं हो पाता. इस लिहाज से पुलिस भी लगातार पेट्रोलिंग करती है.

ग्रामीणों को कई बार चेताया गया

इस संबंध में एसईसीएल के जनसंपर्क अधिकारी सनीश चंद्र (SECL Public Relations Officer Sanish Chandra) का कहना है कि खदान से कोयले की चोरी रोकने के लिए उपाय समय दर समय किए जाते हैं. स्थानीय ग्रामीणों को भी चेताया जाता है यदि ऐसी परिस्थितियां निर्मित हो रही है तो उचित उपाय किए जाएंगे. ग्रामीणों को संवेदनशील स्थान तक जाने से रोका जाएगा. इस विषय में मानिकपुर चौकी प्रभारी सब इंस्पेक्टर मयंक मिश्रा (Manikpur outpost in charge Sub Inspector Mayank Mishra) का कहना है कि खदान से कोयला चोरी करते वक्त इसकी निगरानी की जाती है. कोयला चोरी करते हुए पाए जाने पर स्थानीय लोगों पर कार्रवाई भी की गई है.

कोरबा: छत्तीसगढ़ के कोरबा शहर के समीप संचालित एसईसीएल की मानिकपुर (Manikpur coal mines of Korba) कोयला खदान कोयला कंपनी के सबसे पुराने खदानों में से एक है. जहां 60 के दशक से कोयले का उत्खनन शुरू हुआ था. मानिकपुर खदान से कोयला कंपनी द्वारा घोषित तौर पर कोयला उत्खनन के अलावा दिनदहाड़े कोयले की चोरी भी हो रही है. यह सिलसिला लंबे समय से जारी है. यहां कोयला चोरी से भी अधिक गंभीर बात यह है कि स्थानीय लोग कोयला निकालने के लिए खदान के मुहाने तक पहुंच जाते हैं. जहां खदान से निकले ओवरबर्डन को डंप किया जाता है. पूर्व में उत्खनन के लिए किए जाने वाले ब्लास्टिंग से ओवरबर्डन के नीचे दबकर मजदूरों की मौत हो (Villagers forced to steal coal) चुकी है. बावजूद इसके प्रबंधन ने इस दिशा में अब तक कोई भी ठोस कदम नहीं (Administration not alert in coal theft case) उठाया है. यही वजह है कि यहां कोयला चोरी का सिलसिला बदस्तूर जारी है. स्थानीय लोग जान हथेली पर लेकर इस अवैध काम को लगातार अंजाम दे रहे हैं.

कोयला चोरी करने के दौरान हो रही मौत

यूं होती है कोयले की चोरी

मानिकपुर खदान के मुहाने से लगे गांव दादर, भिलाईखुर्द. या फिर आसपास का कोई अन्य इलाका. यहां के स्थानीय लोगों के लिए खदान के मुहाने से कोयला चोरी करना एक तरह से उनके आजीविका का भी साधन है. ग्रामीण इसे ईंधन के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं. शाम को खाना पकाने वक्त वह सिगड़ी में कोयला जलाकर ही घर का चूल्हा जलाते हैं. आसपास के छोटे होटलों और जरूरत के अनुसार कोयले की खरीद-बिक्री भी होती है. प्रति बोरी कोयले का दाम 100 से 200 रुपये के बीच होता है. लेकिन इस कोयले के लिए स्थानीय लोगों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है.

ग्रामीणों की हो चुकी है हादसे में मौत

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खादान से कोयले के अलावा पत्थरों का ढ़ेर भी निकलता है

दरअसल कोयला खदान में उत्खनन के दौरान कोयले के अलावा मिट्टी और पत्थरों का ढ़ेर भी निकलता है. इसे ही ओवरबर्डन कहा जाता है. जिसे खदान के किनारे डंप किया जाता है. जिससे कि एक मानव निर्मित पहाड़ का निर्माण हो जाता है. अब ग्रामीण इसके ऊपर चढ़कर कोयला निकालने का काम करते हैं. वह काफी ऊंचाई से कोयला निकालते हैं फिर इसे सिर पर ढोकर नीचे की तरफ सफर करते हैं. कई बार स्थानीय लोग कोयला निकालने के लिए खदान के भीतर तक प्रवेश कर जाते हैं, जबकि यह पूरा इलाका बेहद संवेदनशील होता है.

एक स्थानीय की भी हो चुकी है मौत

खदान वाले इलाके में कोयला उत्खनन के लिए विशेषज्ञों की निगरानी में एसईसीएल द्वारा बारूद लगाकर ब्लास्टिंग की जाती है.इसी दौरान कोयला चोरी की नीयत से वहां मौजूद स्थानीय पर ब्लास्टिंग के दौरान ओवरबर्डन भरभरा कर गिरा था. ग्रामीण इस ओवरबर्डन के नीचे दब गया. उसका शव मानिकपुर पोखरी के पास से काफी जद्दोजहद के बाद (Death while stealing coal)बरामद हुआ. शव ढूंढने में 3 दिन का समय लग गया था. पुलिस से लेकर स्थानीय गोताखोरों को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी.

निगरानी के लिए कोई मौजूद नहीं रहता

SECL प्रबंधन द्वारा अधिग्रहित जमीन के बदले पुनर्वास, मुआवजा देने के साथ ही कोयला चोरी जैसे संवेदनशील कार्यों पर भी लगाम लगाने पर पूरी तरह से प्रबंधन नाकाम रहा है. खदान के मुहाने से कोयला चोरी पर अब तक लगाम नहीं लग सका है, जो कि बीते कई दशकों से चला रहा है. इस दौरान स्थानीय लोगों की मौत भी हो चुकी है. बावजूद इसके कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं. खदान की सुरक्षा का जिम्मा केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल को दिया जाता है. जो कि खानापूर्ति के लिए ही खदान के प्रवेश द्वार पर तैनात रहते हैं. जबकि खदान के चारों ओर बसे गांव से कोयला चोरी अब तो आम हो गई है.

यह भी पढ़ेंः कोयला संकट : कोल लदान में 35 से 40 रैक की बढ़ोतरी

हर साल 49 लाख टन कोयले का उत्पादन

जिले में शहर के समीप मौजूद कोयला खदान एसईसीएल सबसे पुराने कोयला खदानों में से एक है. यहां 1960 के दशक में कोयले का उत्खनन शुरू हुआ था. वर्तमान में भी यहां आने वाले लगभग 25 वर्ष तक उत्खनन योग्य कोयला मौजूद है. यहां से सालाना 49 लाख टन कोयले का उत्पादन किया जाता है. मानिकपुर खदान प्रबंधन इस टारगेट को आसानी से हासिल भी कर लेते हैं. हालांकि इसमें वह आंकड़ा शामिल नहीं है जिसे कि चोरी कर लिया जाता है.

पुलिस भी लगातार पेट्रोलिंग करती है

खदान से कोयला चोरी और इस तरह की परिस्थितियों के लिये एसईसीएल प्रबंधन और सीआईएसएफ का दायित्व होता है. लेकिन स्थानीय पुलिस की भी जिम्मेदारी बनती है. जब कोई हादसा होता है, तब स्थानीय पुलिस के बिना कोई काम नहीं हो पाता. इस लिहाज से पुलिस भी लगातार पेट्रोलिंग करती है.

ग्रामीणों को कई बार चेताया गया

इस संबंध में एसईसीएल के जनसंपर्क अधिकारी सनीश चंद्र (SECL Public Relations Officer Sanish Chandra) का कहना है कि खदान से कोयले की चोरी रोकने के लिए उपाय समय दर समय किए जाते हैं. स्थानीय ग्रामीणों को भी चेताया जाता है यदि ऐसी परिस्थितियां निर्मित हो रही है तो उचित उपाय किए जाएंगे. ग्रामीणों को संवेदनशील स्थान तक जाने से रोका जाएगा. इस विषय में मानिकपुर चौकी प्रभारी सब इंस्पेक्टर मयंक मिश्रा (Manikpur outpost in charge Sub Inspector Mayank Mishra) का कहना है कि खदान से कोयला चोरी करते वक्त इसकी निगरानी की जाती है. कोयला चोरी करते हुए पाए जाने पर स्थानीय लोगों पर कार्रवाई भी की गई है.

Last Updated : Dec 15, 2021, 11:00 PM IST
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