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विश्व पर्यावरण दिवस: 1400 साल पुराना है यह साल का वृक्ष, 'भगवान' की तरह पूजते हैं लोग !

छत्तीसगढ़ के सतरेंगा गांव में 1400 वर्ष पुराना साल का महावृक्ष है, जिसे ग्रामीण बूढ़ादेव के रूप में पूजते हैं. सतरेंगा गांव के लोगों का कहना है कि गांववालों के लिए पेड़ प्रकृति की अनुपम भेंट है. ग्रामीणों का मानना है कि यह पेड़ उनके लिए साक्षात देवता है, जो गांववालों को कभी भूखे नहीं रहने देता. गांव में आजतक कभी सूखा नहीं पड़ा, जो जीता जागता उदाहरण है. पढ़िए पूरी खबर...

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1400 साल पुराना पेड़
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Published : Jun 5, 2020, 11:14 PM IST

Updated : Jun 6, 2020, 1:25 AM IST

कोरबा: आज विश्व पर्यावरण दिवस है. पर्यावरण की वजह से ही आज इंसान और अन्य जीव-जंतुओं का जीवन संभव है, लेकिन पृथ्वी का बढ़ता तापमान, फैक्ट्रियों से निकलता धुआं और पेड़ों की अधाधुंध कटाई, इंसानों के साथ जीव जंतुओं के लिए भी खतरा बनता जा रहा है. इसी बीच हम आपको छत्तीसगढ़ के एक ऐसे वृक्ष के बारे में बता रहे हैं, जो 1400 साल से खड़ा है. यह पेड़ सतरेंगा गांव के लोगों के लिए प्रकृति की अनुपम भेंट है, जिसे ग्रामीण भगवान के रूप में पूजते हैं.

1400 साल पुराना पेड़

साल का यह महावृक्ष 1400 साल पुराना है. यह पेड़ गांववालों के लिए किसी साक्षात देवता स्वरूप है, जिसे गांव के लोग बूढ़ादेव मानते हैं. गांव के सभी मांगलिक कार्य यहीं से शुरू होते हैं. पादप विज्ञानियों ने वैज्ञानिक परीक्षण के बाद ही इसे 1400 वर्ष पुराना होने का तमगा दिया.

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सतरेंगा गांव में 1400 साल पुराना वृक्ष

वन विभाग ने अब से लगभग 10-15 वर्ष पहले यहां बोर्ड लगाकर इसे संरक्षित करने के लिए एक कदम तो उठाया, लेकिन अब भी कोई ठोस प्रयास नहीं दिखता. 2006 में इसकी खोज कोरबा के सतरेंगा गांव में हुई थी, जिसे साल महावृक्ष को प्रकृति की अनूठी मिसाल कहा जाता है. इस महावृक्ष का विशेषज्ञों ने बारीकी से अध्ययन किया और इसकी उम्र 1400 साल पाई गई. देहरादून स्थित वानिकी प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए परीक्षण में भी इसकी उम्र की पुष्टि हुई थी. इस महावृक्ष की ऊंचाई 28 मीटर से भी अधिक है. जमीनी सतह पर इसकी गोलाई 28 इंच है.

विश्व पर्यावरण दिवस आज : पर्यावरण, मानव हस्तक्षेप और महामारी

धान की बुवाई यहीं से होती है शुरू

सतरेंगा गांव में धान की बुवाई की शुरूआत साल महावृक्ष से ही होती है. यहां हवन पूजन करने के बाद ही किसान खेती की शुरुआत करते हैं. किसानों की मान्यता है कि साल महावृक्ष की पूजा अर्चना कर शुरू की गई, तब से गांव में फसल की अच्छी पैदावार होती है. इससे अच्छा मुनाफा भी होता है. अब इसे सुखद आश्चर्य ही कहें कि सतरेंगा गांव और इसके आसपास के क्षेत्रों में कभी भी पानी की कमी नहीं होती.

SPECIAL: लॉकडाउन ने दिया मौका तो सुन ली मन की आवाज, लिख दिया 'अंर्तनाद'

यहां सदा हरियाली रहती है

यहां के किसान कहते हैं कि क्षेत्र के गांव में अगर सूखा पड़ भी जाए, तब भी हमारे गांव की फसल पर इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ता. भारत में सबसे पुराने वृक्षों के तौर पर आंध्र प्रदेश, कोलकाता और कर्नाटक के बरगद के वृक्षों को माना गया है. ऐसा माना जाता है कि इनकी उम्र 2500 से 3000 वर्ष के बीच है. बरगद के वृक्षों की उम्र का अंदाजा उसके फैलाव से लगाया जाता है. इसलिए इनकी उम्र की गणना करना अन्य वृक्षों की तुलना में थोड़ा आसान है, लेकिन सतरेंगा में स्थित 1400 वर्ष पुराने साल के महावृक्ष का उल्लेख कहीं नहीं मिलता. इसकी पहचान केवल कोरबा जिले तक ही सीमित है. छत्तीसगढ़ में भी काफी कम लोगों को इसके विषय में जानकारी है.

धरातल पर पर्यावरण संरक्षण की जरूरत

बहरहाल, कोरबा में जिस तरह लोग पेड़ों को पूजते हैं, उनको सहजते हैं, जिसका जीता जागता उदाहरण है, सतरेंगा गांव. जहां आज भी 1400 वर्षों से पेड़ खड़ा है. आज हमको अपने सेवा भाव, दृढसंकल्प और दृढ इच्छाशक्ति के बलबूते देश में पर्यावरण संरक्षण को भाषणों, फिल्मों, किताबों और लेखों से बाहर आकर पर्यावरण को समझने की जरूरत है, तभी भविष्य में प्रदूषण कम होगा. धरातल पर पर्यावरण संरक्षण के कुछ ठोस प्रभाव नजर आ सकेंगे, जिससे धरती में जीवन बचा रहे.

कोरबा: आज विश्व पर्यावरण दिवस है. पर्यावरण की वजह से ही आज इंसान और अन्य जीव-जंतुओं का जीवन संभव है, लेकिन पृथ्वी का बढ़ता तापमान, फैक्ट्रियों से निकलता धुआं और पेड़ों की अधाधुंध कटाई, इंसानों के साथ जीव जंतुओं के लिए भी खतरा बनता जा रहा है. इसी बीच हम आपको छत्तीसगढ़ के एक ऐसे वृक्ष के बारे में बता रहे हैं, जो 1400 साल से खड़ा है. यह पेड़ सतरेंगा गांव के लोगों के लिए प्रकृति की अनुपम भेंट है, जिसे ग्रामीण भगवान के रूप में पूजते हैं.

1400 साल पुराना पेड़

साल का यह महावृक्ष 1400 साल पुराना है. यह पेड़ गांववालों के लिए किसी साक्षात देवता स्वरूप है, जिसे गांव के लोग बूढ़ादेव मानते हैं. गांव के सभी मांगलिक कार्य यहीं से शुरू होते हैं. पादप विज्ञानियों ने वैज्ञानिक परीक्षण के बाद ही इसे 1400 वर्ष पुराना होने का तमगा दिया.

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सतरेंगा गांव में 1400 साल पुराना वृक्ष

वन विभाग ने अब से लगभग 10-15 वर्ष पहले यहां बोर्ड लगाकर इसे संरक्षित करने के लिए एक कदम तो उठाया, लेकिन अब भी कोई ठोस प्रयास नहीं दिखता. 2006 में इसकी खोज कोरबा के सतरेंगा गांव में हुई थी, जिसे साल महावृक्ष को प्रकृति की अनूठी मिसाल कहा जाता है. इस महावृक्ष का विशेषज्ञों ने बारीकी से अध्ययन किया और इसकी उम्र 1400 साल पाई गई. देहरादून स्थित वानिकी प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए परीक्षण में भी इसकी उम्र की पुष्टि हुई थी. इस महावृक्ष की ऊंचाई 28 मीटर से भी अधिक है. जमीनी सतह पर इसकी गोलाई 28 इंच है.

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धान की बुवाई यहीं से होती है शुरू

सतरेंगा गांव में धान की बुवाई की शुरूआत साल महावृक्ष से ही होती है. यहां हवन पूजन करने के बाद ही किसान खेती की शुरुआत करते हैं. किसानों की मान्यता है कि साल महावृक्ष की पूजा अर्चना कर शुरू की गई, तब से गांव में फसल की अच्छी पैदावार होती है. इससे अच्छा मुनाफा भी होता है. अब इसे सुखद आश्चर्य ही कहें कि सतरेंगा गांव और इसके आसपास के क्षेत्रों में कभी भी पानी की कमी नहीं होती.

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यहां सदा हरियाली रहती है

यहां के किसान कहते हैं कि क्षेत्र के गांव में अगर सूखा पड़ भी जाए, तब भी हमारे गांव की फसल पर इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ता. भारत में सबसे पुराने वृक्षों के तौर पर आंध्र प्रदेश, कोलकाता और कर्नाटक के बरगद के वृक्षों को माना गया है. ऐसा माना जाता है कि इनकी उम्र 2500 से 3000 वर्ष के बीच है. बरगद के वृक्षों की उम्र का अंदाजा उसके फैलाव से लगाया जाता है. इसलिए इनकी उम्र की गणना करना अन्य वृक्षों की तुलना में थोड़ा आसान है, लेकिन सतरेंगा में स्थित 1400 वर्ष पुराने साल के महावृक्ष का उल्लेख कहीं नहीं मिलता. इसकी पहचान केवल कोरबा जिले तक ही सीमित है. छत्तीसगढ़ में भी काफी कम लोगों को इसके विषय में जानकारी है.

धरातल पर पर्यावरण संरक्षण की जरूरत

बहरहाल, कोरबा में जिस तरह लोग पेड़ों को पूजते हैं, उनको सहजते हैं, जिसका जीता जागता उदाहरण है, सतरेंगा गांव. जहां आज भी 1400 वर्षों से पेड़ खड़ा है. आज हमको अपने सेवा भाव, दृढसंकल्प और दृढ इच्छाशक्ति के बलबूते देश में पर्यावरण संरक्षण को भाषणों, फिल्मों, किताबों और लेखों से बाहर आकर पर्यावरण को समझने की जरूरत है, तभी भविष्य में प्रदूषण कम होगा. धरातल पर पर्यावरण संरक्षण के कुछ ठोस प्रभाव नजर आ सकेंगे, जिससे धरती में जीवन बचा रहे.

Last Updated : Jun 6, 2020, 1:25 AM IST
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