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कोंडागांव में धूमधाम से मनाई गई वसंत पंचमी

कोंडागांव में वसंत पंचमी बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. साथ ही बोरगांव के विभिन्न शिक्षण संस्थान और कई घरों में मां सरस्वती की पूजा अर्चना बड़े धूमधाम से की गई.

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Published : Jan 30, 2020, 10:41 AM IST

Updated : Jan 30, 2020, 11:32 AM IST

Vasant Panchami celebrated with great pomp
कोंडागांव में धूमधाम से मनाया गया वसंत पंचमी

कोंडागांव: ऋतुराज वसंत के आगमन के शुरुआती त्यौहार वसंत पंचमी पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इस खास दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है. वसंत पंचमी हर साल हिंदू पंचांग के मुताबिक माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है. वसंत पंचमी के अवसर पर बोरगांव के विभिन्न शिक्षण संस्थान और कई घरों पर मां सरस्वती की पूजा अर्चना बड़े धूमधाम से हुई. सुबह से ही छोटे-बड़े सभी उमंग के माहौल में रंग बिरंगे आकर्षक कपड़े पहनकर और तैयार होकर अपने स्कूलों में पहुंचे.

बोरगांव में धूमधाम से मनाया गया बसंत पंचमी
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर धूमधाम से पूजा अर्चना की गई. गांव के वरिष्ठ पुजारी अनिल कुमार बनर्जी ने पूरी विधि विधान पूर्वक वैदिक मंत्रोच्चारण कर मां शारदा की पूजा अर्चना की. इस मौके पर स्थानीय नागरिकों, ग्रामीणों के साथ विद्यालय के शिक्षकों और छात्र-छात्राओं ने श्रद्धापूर्वक मां शारदा को पुष्पांजलि दी.

बंग समुदाय में ऐसी मान्यता है कि सरस्वती पूजन के दिन छोटे बच्चों को नीम और हल्दी लगाकर नहलाया जाता है, जिसके बाद पूजा स्थल पर ब्राह्मण द्वारा मां शारदा के समक्ष पठन लेखन का श्री गणेश किया जाता है जिसे "हाथे खरी" कहते हैं. इसी परंपरा अनुसार माता- पिता अपने छोटे-छोटे बच्चों को ब्राह्मण से पट्टी-पूजन करवाते हैं.

सरस्वती शिशु मंदिर में आयोजन हुआ सरस्वती पूजा
गांव के सरस्वती शिशु मंदिर में भी धूमधाम से पूजा का आयोजन किया गया. बोरगांव ग्राम पंचायत में विद्यालयों के साथ ही बहुत सारे घरों में भी पूजा हुई

पौराणिक मान्यता के मुताबिक वसंत पंचमी
पौराणिक वसंत पंचमी की कथा के मुताबिक सृष्टि के शुरुआती काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की, लेकिन वह अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे, तब उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई, जिनके एक हाथ में वीणा और दूसरा हाथ वर मुद्रा में था, वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी. जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती का नाम दिया.

पुराणों के मुताबिक भगवान कृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी. इस कारण हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है.

आयुर्वेद और प्रकृति से जुड़े हैं लोग
वसंत पंचमी के दिन खासकर बंग समुदाय के लोग खुद अपने बच्चों को नीम पत्ती और कच्ची हल्दी पीसकर उस में सरसों का तेल लगाकर पूरे शरीर में मलते हैं, जिसके बाद नहाते हैं. आयुर्वेदिक मान्यता के अनुसार वसंत ऋतु से पहले ऐसा करने पर शरीर से जीवाणु खत्म हो जाते हैं और वर्ष भर चर्म रोग से भी दूर रहते हैं.

पढ़े: वसंत पंचमी: मां सरस्वती की आराधना का दिन, जानें विधि, मंत्र और देवी के 12 नाम

आयुर्वेद चिकित्सक डॉ योगेश विश्वकर्मा बताते हैं कि नीम की पत्ती, हल्दी और सरसों का तेल अपने आप में औषधीय गुणों से परिपूर्ण है. जब एक ॠतु जाती है और दूसरी आने वाली होती है तो इसे आयुर्वेद में ॠतु संधि कहते हैं और इस दौरान स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है. हमारी भारतीय संस्कृति में कोई भी परंपरा बिना वैज्ञानिक आधार के नहीं होती, यही वजह है कि इसी परंपरा के बहाने ही सही लोग पुरातन काल से प्रकृति और आयुर्वेद से जुड़े रहते हैं.

कोंडागांव: ऋतुराज वसंत के आगमन के शुरुआती त्यौहार वसंत पंचमी पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इस खास दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है. वसंत पंचमी हर साल हिंदू पंचांग के मुताबिक माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है. वसंत पंचमी के अवसर पर बोरगांव के विभिन्न शिक्षण संस्थान और कई घरों पर मां सरस्वती की पूजा अर्चना बड़े धूमधाम से हुई. सुबह से ही छोटे-बड़े सभी उमंग के माहौल में रंग बिरंगे आकर्षक कपड़े पहनकर और तैयार होकर अपने स्कूलों में पहुंचे.

बोरगांव में धूमधाम से मनाया गया बसंत पंचमी
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर धूमधाम से पूजा अर्चना की गई. गांव के वरिष्ठ पुजारी अनिल कुमार बनर्जी ने पूरी विधि विधान पूर्वक वैदिक मंत्रोच्चारण कर मां शारदा की पूजा अर्चना की. इस मौके पर स्थानीय नागरिकों, ग्रामीणों के साथ विद्यालय के शिक्षकों और छात्र-छात्राओं ने श्रद्धापूर्वक मां शारदा को पुष्पांजलि दी.

बंग समुदाय में ऐसी मान्यता है कि सरस्वती पूजन के दिन छोटे बच्चों को नीम और हल्दी लगाकर नहलाया जाता है, जिसके बाद पूजा स्थल पर ब्राह्मण द्वारा मां शारदा के समक्ष पठन लेखन का श्री गणेश किया जाता है जिसे "हाथे खरी" कहते हैं. इसी परंपरा अनुसार माता- पिता अपने छोटे-छोटे बच्चों को ब्राह्मण से पट्टी-पूजन करवाते हैं.

सरस्वती शिशु मंदिर में आयोजन हुआ सरस्वती पूजा
गांव के सरस्वती शिशु मंदिर में भी धूमधाम से पूजा का आयोजन किया गया. बोरगांव ग्राम पंचायत में विद्यालयों के साथ ही बहुत सारे घरों में भी पूजा हुई

पौराणिक मान्यता के मुताबिक वसंत पंचमी
पौराणिक वसंत पंचमी की कथा के मुताबिक सृष्टि के शुरुआती काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की, लेकिन वह अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे, तब उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई, जिनके एक हाथ में वीणा और दूसरा हाथ वर मुद्रा में था, वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी. जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती का नाम दिया.

पुराणों के मुताबिक भगवान कृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी. इस कारण हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है.

आयुर्वेद और प्रकृति से जुड़े हैं लोग
वसंत पंचमी के दिन खासकर बंग समुदाय के लोग खुद अपने बच्चों को नीम पत्ती और कच्ची हल्दी पीसकर उस में सरसों का तेल लगाकर पूरे शरीर में मलते हैं, जिसके बाद नहाते हैं. आयुर्वेदिक मान्यता के अनुसार वसंत ऋतु से पहले ऐसा करने पर शरीर से जीवाणु खत्म हो जाते हैं और वर्ष भर चर्म रोग से भी दूर रहते हैं.

पढ़े: वसंत पंचमी: मां सरस्वती की आराधना का दिन, जानें विधि, मंत्र और देवी के 12 नाम

आयुर्वेद चिकित्सक डॉ योगेश विश्वकर्मा बताते हैं कि नीम की पत्ती, हल्दी और सरसों का तेल अपने आप में औषधीय गुणों से परिपूर्ण है. जब एक ॠतु जाती है और दूसरी आने वाली होती है तो इसे आयुर्वेद में ॠतु संधि कहते हैं और इस दौरान स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है. हमारी भारतीय संस्कृति में कोई भी परंपरा बिना वैज्ञानिक आधार के नहीं होती, यही वजह है कि इसी परंपरा के बहाने ही सही लोग पुरातन काल से प्रकृति और आयुर्वेद से जुड़े रहते हैं.

Intro:ऋतुराज बसंत के आगमन के शुरुआती त्यौहार बसंत पंचमी पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस ख़ास दिन विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है। Body:बसंत पंचमी प्रत्येक वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। बसंत पंचमी के इस शुभ अवसर पर ग्राम बोरगांव के विभिन्न शिक्षण संस्थान एवं कई घरों पर विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा अर्चना बड़े धूमधाम से हुई।

सुबह से ही छोटे बड़े सभी उमंग के माहौल में रंग बिरंगे आकर्षक परिधान से सुसज्जित होकर अपने स्कूलों में पहुंचे।


शाउमावि बोरगांव में धूमधाम से मनाया गया बसंत पंचमी-

शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर धूमधाम से पूजा अर्चना की गई । गांव के वरिष्ठ पुजारी अनिल कुमार बनर्जी द्वारा पूरी विधि विधान पूर्वक वैदिक मंत्रोंच्चारण कर मां शारदा की पूजा अर्चना की गई। इस मौके पर स्थानीय वरिष्ठ नागरिकों, ग्रामीणों, एवं विद्यालय के शिक्षकों और छात्र छात्राओं द्वारा श्रद्धापूर्वक माँ शारदा को पुष्पांजलि दी गई।

बंग समुदाय मे ऐसी मान्यता है कि सरस्वती पूजन के दिन छोटे बच्चों को नीम एवं हल्दी लगाकर नहलाया जाता है। तत्पश्चात पूजा स्थल पर ब्राह्मण द्वारा माँ शारदा के समक्ष पठन लेखन का श्री गणेश किया जाता है जिसे "हाथे खरी" कहते हैं। इसी परंपरा अनुसार माता- पिता द्वारा अपने छोटे-छोटे बच्चों को ब्राह्मण से पट्टी-पूजन करवाया गया।
Conclusion:सशिमं बोरगांव में भी आयोजन हुआ सरस्वती पूजा।

इसी प्रकार गाँव के सरस्वती शिशु मंदिर मे भी धूमधाम से पूजा का आयोजन किया गया। ग्राम पंचायत बोरगांव में विद्यालयों के साथ ही बहुत सारे घरों मे भी पूजा का आयोजन हुआ । कहीं पर खिचड़ी भोग तो कहीं भंडारा का आयोजन किया गया। दिन भर बच्चे दौड़ धुप कर प्रसाद ग्रहण करते रहे । पूरा माहौल हर्षोउल्लास से भरा था।

पौराणिक मान्यता अनुसार

पौराणिक वसंत पंचमी की कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की, परंतु वह अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे, तब उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई। जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था, वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती का नाम दिया।

पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पचंमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी। इस कारण हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है।

परंपरा के बहाने लोग आयुर्वेद और प्रकृति से जुड़े हैं

वसंत पंचमी के दिन खासकर वंग समुदाय के लोग स्वयं तथा अपने बच्चों को नीम पत्ती एवं कच्ची हल्दी पीसकर उस में सरसों का तेल लगाकर पूरे शरीर में मलते हैं तत्पश्चात नहाते हैं। आयुर्वेदिक मान्यता के अनुसार बसंत ऋतु से पहले ऐसा करने पर शरीर से जीवाणु खत्म हो जाते हैं और वर्ष भर चर्म रोग से भी दूर रहते हैं।
आयुर्वेद चिकित्सक डॉ योगेश विश्वकर्मा बताते हैं कि नीम की पत्ती, हरिद्रा और सरसों का तेल अपने आप में औषधीय गुणों से परिपूर्ण हैं। जब एक ॠतु जाती है और दुसरी आने वाली होती है तो इसे आयुर्वेद में ॠतु संधि कहते हैं और इस दौरान स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। हमारी भारतीय संस्कृति में कोई भी परंपरा बिना वैज्ञानिक आधार के नही होती, यही वजह है कि इसी परंपरा के बहाने ही सही लोग पुरातन काल से प्रकृति और आयुर्वेद से जुड़े रहते हैं।
Last Updated : Jan 30, 2020, 11:32 AM IST
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