कोंडागांव: गीले कचरे से कंपोस्ट खाद बनाना स्वच्छता सिपाहियों के लिए सोना बनाने से कम नहीं है. स्वच्छता की मिसाल पेश करते हुए ये स्व सहायता समूह की महिलाएं गीले कचरे से कंपोस्ट खाद बना रही हैं. चंद रुपयों के खातिर प्रतिदिन तेज बद्बू के बीच काम करती ये महिलाएं सही मायने में स्वच्छता की असली सिपाही हैं.
जिला मुख्यालय कोंडागांव में 1 नवंबर 2017 से तीन मणि कांचन केंद्र या SLRM की स्थापना हुई है, जहां स्व सहायता समूह की 65 महिलाओं को स्वरोजगार मिला है.
स्वच्छता सिपाही ने बताई पूरी प्रक्रिया
मणि कांचन केंद्र में कार्यरत विमला कुलदीप ने बताया कि, 'हम महिलाएं प्रतिदिन शहर के वार्डों में जाकर घर-घर से कचरा संग्रहित कर रिक्शे से मणि कांचन केंद्र या क्लीन सेंटर में लाती हैं.'
- केंद्र की सभी महिलाएं कचरे को छांटकर कचरे से प्लास्टिक, लोहा, लकड़ी, कागज, गत्ता आदी सूखे कचरे को अलग करती हैं.
- सूखे कचरे को बेचकर टीम प्रतिमाह बोनस की तरह 70 से 80 हजार रुपए कमाती है.
- गीले कचरे, पेड़ पौधों की पत्तियां और फलों के छिलके से कंपोस्ट खाद बनाया जाता है.
- प्रतिदिन लगभग 4.5 क्विंटल कचरा निकलता है, जिसमें लगभग तीन क्विंटल गीले कचरे का कंपोस्ट खाद बनाने में उपयोग किया जाता है.
- इसके बाद कंपोस्ट खाद को 10 रुपए प्रति किलो की दर से जरुरतमंदों और किसानों को बेचा जाता है.
स्वच्छता सिपाहियों का रखा जाता है ख्याल
विमला कुलदीप ने बताया कि, सेंटर में अगर कभी स्व सहायता कार्यकर्ताओं की तबीयत खराब हो जाती है, तो उनका बेहतर ख्याल रखा जाता है. डॉक्टर से जांच कर नियमित इलाज कराया जाता है.
महिलाओं को जूते, दास्ताने और मास्क दिए गए हैं ताकि वो प्रदूषण के प्रभाव से बची रहें. शहर को स्वस्थ रखने वाली महिलाएं खुद स्वस्थ रहे, यह जिम्मेदारी प्रशासन ने ली है.
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5 से 7 क्विंटल गीले कचरे से बनता है खाद
CMO सूरज सिदार का कहना है कि, 'धीरे-धीरे जिले के लोग भी स्वच्छता सिपाही से जुड़ रहे हैं. 22 वार्डों को स्वच्छता सिपाही कवर करते हैं. देखा जाए तो 6 से 7 वार्डों को एक SLRM सेंटर कवर करता है. 5 से 7 क्विंटल गीले कचरे से खाद बनता है, जिसे बेचा जाता है.'