कोंडागांव: छत्तीसगढ़ के आलोर गांव में देवी का एक अनोखा मन्दिर है. इस मन्दिर में देवी मां की लिंग रूप में पूजा होती है. यानी कि यहां शिवलिंग के रूप में देवी की पूजा होती है. इसके पीछे मान्यता यह है कि इस लिंग में शिव और शक्ति दोनों समाहित हैं.यहां शिव और शक्ति की पूजा एक साथ लिंग स्वरूप में होती है. इसीलिए इस देवी को लिंगेश्वरी माता या लिंगई माता कहा जाता है. बुधवार को देवी मां का कपाट भक्तों के लिए खोल दिया गया है.
लेटकर भक्त करते हैं गुफा में प्रवेश: आलोर गांव से लगभग 2 किमी दूर उत्तर पश्चिम में एक पहाड़ी है. इस पहाड़ी को लिंगई गट्टा कहा जाता है. इस छोटी पहाड़ी के ऊपर बड़ा सा चट्टान है. उस पर एक विशाल पत्थर है. इस पत्थर की संरचना कटोरे के जैसी है. इस मंदिर के दक्षिण दिशा में एक सुरंग है, जो इस गुफा का प्रवेश द्वार कहलाता है. इस सुरंग का द्वार इतना छोटा है कि बैठकर या लेटकर ही यहां प्रवेश किया जा सकता है.
हर साल आते हैं हजारों श्रद्धालु: इस अनोखे गुफा के अंदर 25 से 30 आदमी बैठ सकते हैं. गुफा के अंदर चट्टानों के बीचों-बीच शिवलिंग है, जिसकी ऊंचाई लगभग दो फुट है. कहा जाता है कि इसकी ऊंचाई पहले बहुत कम थी, जो समयानुसार बढ़ रही है. परम्परानुसार इस प्राकृतिक मंदिर में प्रतिदिन पूजा नहीं होती है. इस मन्दिर का कपाट केवल साल में एक दिन ही खुलता है. इसी दिन यहां विशाल मेला भी लगता है.संतान प्राप्ति की लोग यहां मन्नत मांगते हैं. यहां हर वर्ष हजारों की तादाद में श्रद्धालु जुटते हैं. हर साल भादो माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के बाद आने वाले बुधवार को इस प्राकृतिक देवालय को खोल दिया जाता है.इस पूरे दिन श्रद्धालु लिंगई माता के दर्शन करते हैं. पूरे दिन माता की पूजा-अर्चना की जाती है.
लिंगई माता मंदिर के द्वार खोलने के बाद इस साल वहां रेत में शेर के पंजों के निशान पाए गए, जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वर्ष धन-धान्य की प्राप्ति होगी, खुशहाली होगी, शांति होगी, और वर्षा अच्छी होगी. केवल निःसंतान दंपत्ति ही नहीं यहां भारत के अलग-अलग प्रांतों से अनेक श्रद्धालु लिंगई माता के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं.जब तक सभी श्रद्धालु दर्शन नहीं कर लेते तब तक लिंगई माता के दरबार का पट खुला रहता है. पहले यह पट जल्दी बंद कर दिया जाता था पर अब श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने की वजह से देर तक पट खुला रखा जाता है. -मंदिर समिति के सदस्य
लिंगेश्वरी माता से जुड़ी है कई मान्यताएं: लिंगई देवी से जुड़ी दो खास और प्रचलित मान्यताएं हैं. पहली मान्यता संतान प्राप्ति को लेकर है. कहा जाता है कि यहां निःसंतान अगर अर्जी लगाते हैं, तो संतान की प्राप्ति जरूर होती है. संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति को खीरा चढ़ाना होता है. प्रसाद के रूप में चढ़े खीरे को पुजारी पूजा के बाद दंपति को वापस लौटा देता है. दम्पति को इस ककड़ी को अपने नाखून से चीरा लगाकर दो टुकड़ों में तोड़कर इस प्रसाद को ग्रहण करना होता है. वहीं, दूसरी मान्यता भविष्य के अनुमान को लेकर है. एक दिन की पूजा के बाद जब मंदिर बंद कर दिया जाता है तो मंदिर के बाहर सतह पर रेत बिछा दी जाती है. इसके अगले साल इस रेत पर जो पदचिन्ह मिलते हैं, उससे पुजारी अगले साल के भविष्य का अनुमान लगाते हैं. उदाहरण स्वरूप यदि कमल का निशान हो तो धन-संपदा में बढ़ोत्तरी होती है. हाथी के पांव के निशान हो तो उन्नति, घोड़ों के खुर के निशान हों तो युद्ध, बाघ के पैर के निशान हो तो आतंक और मुर्गियों के पैर के निशान होने पर अकाल होने का संकेत माना जाता है.