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SPECIAL: जवानों ने जान पर खेलकर बनाई थी ये सड़क, प्रशासन ने गांववालों से 'छीन' ली

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Published : Jul 8, 2019, 5:53 PM IST

जीवलामरी गांव में 17 परिवार रहते हैं. यहां प्राथमिक शाला तो है लेकिन उसके आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को पहाड़ी से नीचे मर्दापोटी गांव आना पड़ता है.

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कांकेर: जीवलामरी गांव में जब पुलिस के जवानों ने पहाड़ी काटकर सड़क बनाई थी, तब यहां के ग्रामीणों के चेहरे खिल उठे थे कि अब उन्हें आने-जाने की परेशानी से छुटकारा मिल जाएगा. लेकिन गांववालों को क्या पता था कि उनकी ये खुशी सिर्फ चंद महीनों के लिए है.

जवानों ने जान पर खेलकर बनाई थी ये सड़क, प्रशासन ने गांववालों से 'छीन' ली

जैसे ही बारिश शुरू हुई ये कच्ची सड़क कीचड़ में तब्दील हो गई. इस सड़क पर गाड़ी चलाना दूर की बात पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है. जिसके चलते ग्रामीण अब फिर जंगल के रास्ते आवाजाही कर रहे हैं.

जीवलामरी गांव मर्दापोटी गांव का आश्रित ग्राम है और यहां रहने वाले 17 परिवार के लोगों को राशन लेने भी पहाड़ी से नीचे मर्दापोटी गांव आना पड़ता है. ऐसे में ये ग्रामीण 4 किलोमीटर पैदल पहाड़ी जंगलों के रास्ते राशन लेने आने मजबूर हैं. 4 बच्चे स्कूल जाने के लिए 4 किलोमीटर जंगल के रास्ते से गुजरते हैं.

जीवलामरी गांव में 17 परिवार रहते हैं. यहां प्राथमिक शाला तो है लेकिन उसके आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को पहाड़ी से नीचे मर्दापोटी गांव आना पड़ता है. इस गांव से 4 मासूम बच्चे रोजाना पढ़ाई करने मर्दापोटी गांव आते हैं. बच्चों ने ETV भारत से बताया कि उन्हें रोजाना स्कूल से जल्दी छुट्टी लेकर गांव लौटना पड़ता है क्योंकि यहां सड़के खराब हो चुकी है, ऐसे में उन्हें जंगल के रास्ते आना जाना करना पड़ता है. जंगली जानवरों का डर रहता है ऐसे में वो दोपहर में ही स्कूल से छुट्टी लेकर गांव लौट जाते हैं.

हैरान करने वाली बात है कि एक तरफ शिक्षा व्यव्स्था के लिए तमाम दावे किये जाते हैं लेकिन यहां कुछ मासूम जो पढ़ना चाहते है उन्हें एक सड़क के कारण अपनी पढाई रोज अधूरी छोड़ कर लौटना पड़ता है. कोई बीमार हो जाए तो खाट पर डालकर लाना पड़ता है.

ग्रामीणों ने बताया कि गांव तक बड़ी गाड़ी तो दूर की बात बाइक भी नहीं जा सकती, जिसके चलते यदि कोई ज्यादा बीमार पड़ जाए तो उसे खाट में डालकर नीचे मर्दापोटी गांव तक लाना पड़ता है.

ऐसे में यहां जब जवानों ने कच्ची सड़क बनाने दिन रात एक कर दिया था तब यहां के लोगो में उम्मीदें जगी थीं कि अब उन्हें भी सभी सुविधाएं मिल सकेंगी लेकिन प्रशासन के ढीले रवैए ने एक बार फिर लोगों के चेहरे पर उदासी फैला दी और उन्हें परेशानियों से रूबरू होने को मजबूर कर दिया.

कांकेर: जीवलामरी गांव में जब पुलिस के जवानों ने पहाड़ी काटकर सड़क बनाई थी, तब यहां के ग्रामीणों के चेहरे खिल उठे थे कि अब उन्हें आने-जाने की परेशानी से छुटकारा मिल जाएगा. लेकिन गांववालों को क्या पता था कि उनकी ये खुशी सिर्फ चंद महीनों के लिए है.

जवानों ने जान पर खेलकर बनाई थी ये सड़क, प्रशासन ने गांववालों से 'छीन' ली

जैसे ही बारिश शुरू हुई ये कच्ची सड़क कीचड़ में तब्दील हो गई. इस सड़क पर गाड़ी चलाना दूर की बात पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है. जिसके चलते ग्रामीण अब फिर जंगल के रास्ते आवाजाही कर रहे हैं.

जीवलामरी गांव मर्दापोटी गांव का आश्रित ग्राम है और यहां रहने वाले 17 परिवार के लोगों को राशन लेने भी पहाड़ी से नीचे मर्दापोटी गांव आना पड़ता है. ऐसे में ये ग्रामीण 4 किलोमीटर पैदल पहाड़ी जंगलों के रास्ते राशन लेने आने मजबूर हैं. 4 बच्चे स्कूल जाने के लिए 4 किलोमीटर जंगल के रास्ते से गुजरते हैं.

जीवलामरी गांव में 17 परिवार रहते हैं. यहां प्राथमिक शाला तो है लेकिन उसके आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को पहाड़ी से नीचे मर्दापोटी गांव आना पड़ता है. इस गांव से 4 मासूम बच्चे रोजाना पढ़ाई करने मर्दापोटी गांव आते हैं. बच्चों ने ETV भारत से बताया कि उन्हें रोजाना स्कूल से जल्दी छुट्टी लेकर गांव लौटना पड़ता है क्योंकि यहां सड़के खराब हो चुकी है, ऐसे में उन्हें जंगल के रास्ते आना जाना करना पड़ता है. जंगली जानवरों का डर रहता है ऐसे में वो दोपहर में ही स्कूल से छुट्टी लेकर गांव लौट जाते हैं.

हैरान करने वाली बात है कि एक तरफ शिक्षा व्यव्स्था के लिए तमाम दावे किये जाते हैं लेकिन यहां कुछ मासूम जो पढ़ना चाहते है उन्हें एक सड़क के कारण अपनी पढाई रोज अधूरी छोड़ कर लौटना पड़ता है. कोई बीमार हो जाए तो खाट पर डालकर लाना पड़ता है.

ग्रामीणों ने बताया कि गांव तक बड़ी गाड़ी तो दूर की बात बाइक भी नहीं जा सकती, जिसके चलते यदि कोई ज्यादा बीमार पड़ जाए तो उसे खाट में डालकर नीचे मर्दापोटी गांव तक लाना पड़ता है.

ऐसे में यहां जब जवानों ने कच्ची सड़क बनाने दिन रात एक कर दिया था तब यहां के लोगो में उम्मीदें जगी थीं कि अब उन्हें भी सभी सुविधाएं मिल सकेंगी लेकिन प्रशासन के ढीले रवैए ने एक बार फिर लोगों के चेहरे पर उदासी फैला दी और उन्हें परेशानियों से रूबरू होने को मजबूर कर दिया.

Intro:कांकेर - जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर बसे नक्सल प्रभावित जीवलामरी गांव जहा पहुचने आज से एक साल पहले मार्ग ही नही था यहां के ग्रामीण पहाड़ो के रास्ते आवागमन करते थे , जिसके बाद ग्रामीणों की तकलीफ को समझते हुए पुलिस मितान कार्यक्रम के दौरान पुलिस जवानों ने यहां पहाड़ी चट्टानों को काटकर कच्ची सड़क बनाई थी , अब प्रशासन का काम था इस कच्ची सड़क पर सीसी सड़क का निर्माण करवाना ताकि पुलिस जवानों की ये मेहनत सार्थक हो सके और ग्रामीणों को हमेशा के लिए एक सड़क मिल जाये , लेकिन प्रशासन की उदासीनता के चलते यहां सीसी सड़क नही बन सकी , और अब बारिश में यह सड़क दलदल में बदल गई है । जिससे यहां के ग्रामीणों और स्कूली बच्चो के सामने बड़ी दिक्कते खड़ी हो गई है


Body:जीवलामरी गांव में जब पुलिस के जवानों ने पहाड़ी काटकर सड़क बनाई थी तब यहाँ के ग्रामीणों के चेहरे खिल उठे थे कि अब उन्हें आवागमन में दिक्कते नही होंगी ,और वो भी आसनी से किसी भी समय आ जा सकेंगे , लेकिन उनकी ये खुशी चंद महीने की ही थी । जैसे ही बारिश शुरू हुई ये कच्ची सड़क कीचड़ में तब्दील हो गई , इस सड़क पर गाड़ी चलाना दूर की बात पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है , जिसके चलते ग्रामीण अब फिर जंगल के रास्ते आवागमन कर रहे है । जीवलामरी गांव मर्दापोटी गांव का आश्रित ग्राम है और यहां रहने वाले 17 परिवार के लोगो को राशन लेने भी पहाड़ी से नीचे मर्दापोटी गांव आना पड़ता है ऐसे में ये ग्रामीण 4 किलोमीटर पैदल पहाड़ी जंगलों के रास्ते राशन लेने आने मजबूर है। 4 बच्चे स्कूल जाने चलते है 4 किलोमीटर जंगल मे जीवलामरी गांव में 17 परिवार रहते है यहां प्राथमिक शाला तो है लेकिन उसके आगे की पढ़ाई के लिए बच्चो को पहाड़ी से नीचे मर्दापोटी गांव आना पड़ता है , इस गांव से 4 मासूम बच्चे रोजाना पढाई करने मर्दापोटी गांव आते है , बच्चो ने हमे बताया कि उन्हें रोजाना स्कूल से जल्दी छुट्टी लेकर गांव लौटना पड़ता है क्योंकि यहां सड़के खराब हो चुकी है ऐसे में उन्हें जंगल के रास्ते आना जाना करना पड़ता है जहां जंगली जानवरों का डर रहता है ऐसे में वो दोपहर में ही स्कूल से छुट्टी लेकर गांव लौट जाते है। हैरान करने वाली बात है कि एक तरफ़ शिक्षा व्यव्स्था के लिए तमाम दावे किये जाते है लेकिन यहां कुछ मासूम जो पढ़ना चाहते है उन्हें एक सड़क के कारण अपनी पढाई रोज़ अधूरी छोड़ कर लौटना पड़ता है। कोई बीमार हो जाये तो खाट पर डालकर लाना पड़ता है नीचे ग्रामीणों ने बताया कि गांव तक बड़ी गाड़ी तो दूर की बात बाइक भी नही जा सकती जिसके चलते यदि कोई ज्यादा बीमार पड़ जाए तो उसे खाट में डालकर नीचे मर्दापोटी गांव तक लाना पड़ता है । स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए सरकार करोड़ो रूपये खर्च कर रही है लेकिन सबसे प्रमुख चीज़ पहुच मार्ग उसे ही जब तक दुरुस्त नही किया जाएगा तो ये सुविधाएं आखिर अंदरूनी इलाको तक आखिर कैसे पहुच पाएंगी ।


Conclusion:नक्सल प्रभावित है इलाका यह इलाका नक्सल प्रभावित है ऐसे में यहां जब जवानों ने कच्ची सड़क बनाने दिन रात एक कर दिया था तब यहाँ के लोगो मे उम्मीदे जागी थी कि अब उन्हें भी सभी सुविधाएं मिल सकेगी लेकिन प्रशासन के ढीले रवैये के चलते ग्रामीण एक बार फिर आदिकाल में जीने विवश हो गए है ।
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