कांकेर: जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी बर बसे अन्तागढ़ ब्लॉक के मानकोट गांव का एक स्कूल आज भी आदिकाल का याद दिलाता है. यहां की प्राथमिक शाला आज भी झोपड़ी में संचालित हो रही है और तो और इसमें न तो खिड़की है और न ही दरवाजों का कोई अता पता है.
सरकार शिक्षा को लेकर कई तरह के दावे करती है, लेकिन यहां हकीकत कुछ और ही है. साल 2005 में इस स्कूल भवन को स्वीकृति मिली थी, लेकिन इसे पूरा होने में 4 साल का वक्त लग गया. 2009 में स्कूल भवन बनकर तैयार हुआ, लेकिन लेकिन निर्माण के वक्त भ्रष्टाचार की दीमक ने ही इसकी दीवारों पर डेरा जमा लिया था और धीरे-धीरे वो इन्हें खोखली करती जा रही थी, इसका अंजाम यह हुआ कि भवन महज दस साल में ही जर्जर हो गया.
खंडहर में तब्दील स्कूल
स्कूल भवन के खंडहर में तब्दील हो जाने पर मजबूरी में गांव के सरपंच ने इसके पास ही एक झोपड़ी का निर्माण कराया और घास-फूस से बनी इस इमारत में नौनिहाल करीब चार साल से ज्ञान की घुट्टी पी रहे हैं. एक ओर तो देश में डिजिटल क्रांति की बयार बहाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर सूबे का एक विद्यालय ऐसा है, जहां देश का भविष्य शिक्षा के संघर्ष कर रहा है.
जान जोखिम में डालकर पढ़ते है बच्चे
इस संबंध में स्कूल के शिक्षक सुगदु पोटाई ने बताया कि पिछले 3-4 सालों से यही स्थिति है. झोपड़ी में स्कूल संचालित कर रहे हैं, इसको लेकर कई बार जिला प्रशासन को पंचायत के माध्यम से अवगत करवाया गया, लेकिन अब तक फरियाद नहीं सुनी गई. भवन इस कदर जर्जर है कि उसमें बच्चों को बैठना जान जोखिम में डालने जैसा है, जिसके चलते झोपड़ी में ही बैठकर पढ़ाई करवाई जा रही है.
बारिश हुई तो बढ़ जाती है मुसीबतें
शिक्षक ने बताया कि बारिश की वजह से यहां दिक्कतें ज्यादा बढ़ जाती है. बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र में शिफ्ट करना पड़ता है, लेकिन वहां भी सिर्फ एक ही कमरा है, जिससे सभी बच्चों को बैठा पाना संभव नहीं हो पाता. स्कूल में कुल 35 बच्चे हैं और आंगनबाड़ी में भी बच्चे हैं. सबको एक कमरे में जैसे-तैसे बिठाते है अन्यथा छुट्टी करनी पड़ती है.
अंदरूनी इलाका होने की वजह से अधिकारी भी यहां आने से कतराते हैं और शायद यही वजह है कि माचकोट में रहने वाले नौनिहाल शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं को भी तरस रहे हैं.