कांकेर: कांकेर के पखांजूर क्षेत्र के ग्रामीण 150 मील की दूरी तय कर कांकेर कलेक्टर के पास अपनी फरियाद लेकर पहुंचे. ग्रामीणों ने बताया कि 80 साल से उनके क्षेत्र में सड़क नहीं बनी है. अब भी ग्रामीण लकड़ी के बने पानी के स्त्रोत से अपनी प्यास बुझा रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि उनके ग्राम को राजस्व ग्राम घोषित किया जाए. वन ग्राम होने के कारण उनके गांव को सुविधा नहीं मिल पा रही है.
ग्रामीणों ने बताई आपबीती
150 किमी की दूरी तय कर कलेक्टर को अपनी समस्या से अवगत कराने पहुंचे ग्राम गुन्दूल मार्राम पारा के ग्रामीणों ने बताया कि, ग्राम पंचायत आलपरस के आश्रित ग्राम गुन्दुल का मार्राम पारा बीते 80 सालों से बसा हुआ है. मार्राम पारा का गांव गुन्दूल से 5 किमी की दूरी होने के कारण मार्राम पारा के ग्रामीण किसी भी शासकीय योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं. ग्रामीण काफी परेशान हैं. इसलिए मार्राम पारा को राजस्व ग्राम करने की मांग कर रहे हैं. ताकि ग्रामवासियों को शासकीय योजना का लाभ मिल सके. ग्रामीणों ने कांकेर कलेक्टर को ज्ञापन दिया है. उन्होंने मार्राम पारा को ग्राम गुन्दूल के राजस्व से अलग कर नए राजस्व में परिवर्तित करने की गुहार लगाई है. कलेक्टर ने सबंधित अधिकारी को जांच कर समस्या का समाधान करने का आश्वासन दिया है.
रास्ता न होने से ग्रामीण परेशान
ग्रामीण रामेश कुमार आंचला ने ईटीवी भारत को बताया कि, उनके गांव में पहुंचने के लिए कोई भी सड़क की सुविधा नहीं है. पगडंडी रास्ते से ग्रामीण आवागमन करते हैं. ग्रामीणों का स्वास्थ्य खराब होने पर रास्ते के अभाव के कारण पीड़ित अस्पताल तक नहीं पहुंच पाते हैं. गांव में ही अपने स्तर पर इलाज करते हैं. कई बार इस वजह से ग्रामीणों को अपनी जान गंवानी पड़ी है.
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ग्रामीण लकड़ी के झरने से बुझा रहे प्यास
मार्राम पारा के ग्रामीण झरने का पानी पीने को मजबूर हैं. इसका कारण गांव में एक भी हैंडपम्प का न होना है. बोरिंग के अभाव के कारण ग्रामीणों ने एक लकड़ी को काटकर तुमा बनाया है, जहां बारह महीने पानी बहता है. वहीं से गांव वाले अपनी प्यास बुझा रहे हैं.
बारिश के समय पर स्कूल नहीं पहुंच पाते बच्चे
बारिश के समय में माध्यमिक और हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल की पढ़ाई करने के लिए गांव से बाहर पानी डोबिर जाना पड़ता है. जहां तक पहुंचने के लिए कोई भी सड़क की व्यवस्था नहीं है. कच्चे रास्तों से होते हुए बच्चे पढ़ाई करने जाते हैं. बारिश के समय में दो से तीन माह तक बच्चे घर पर ही पढ़ाई करते हैं, क्योंकि बारिश के कारण कच्चे रास्ते बंद रहते हैं.