कांकेर: एक ओर पूरे देश के स्कूलों में शिक्षक दिवस धूमधाम से मनाया जा रहा है. दूसरी ओर कांकेर में एक ऐसा गांव है, जहां के बच्चे शिक्षक को एक साल से नहीं देखे हैं. बच्चे खुद ही अपनी पढ़ाई (Poor education system in Amabeda of Kanker) करते हैं. स्कूल में दो शिक्षक हैं, पर दोनों शिक्षक स्कूल नहीं पहुंचते हैं. पुरा स्कूल बांस से बना है और बच्चे इन्हीं बांस के दीवालों को ब्लैक बोर्ड समझकर उसी में पढ़ाई करते हैं.
बांस से बना स्कूल, बांस की दीवार ही ब्लैकबोर्ड: कांकेर जिले के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र आमाबेड़ा के ग्राम दर्रो खाल्लारी का मामला है. यहां प्राथमिक शाला और आंगनबाड़ी एक बांस से बने भवन में 2018 से चल रहे हैं. यहां पढ़ने वाले बच्चे आज भी बांस से बने स्कूल के दीवाल में ही रोजाना पढ़ाई करते हैं. बांस से बने दीवारों में भी बड़े बड़े छेद हो गए हैं. बारिश होने से उसी छेद से पानी सीधे स्कूल के अंदर घुस आता है. स्कूल में ना तो बैठने की व्यवस्था है और ना ही पढ़ने की व्यवस्था है. पूरा स्कूल भगवान भरोसे चल रहा है.
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शिक्षक स्कूल से हैं नदारद: स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का कहना है कि "उनके स्कूल में दो शिक्षक हैं. एक कृष्ण कुमार गोटा, जो आमाबेड़ा का निवासी है. जो लगभग एक साल से स्कूल नहीं पहुंचे है. दूसरे शिक्षक राधेश्याम ठाकुर हैं. जो बालोद जिला के रहने वाले है. जो महीने में एक दो बार ही स्कूल (teacher missing for a year) पहुंचते हैं.
बच्चों का भविष्य हो रहा बर्बाद: इस स्कूल में दोनों शिक्षकों के नहीं पहुंचने पर बच्चे खुद पढ़ाई करते हैं. बांस के बने चटाईनुमा दीवाल में चाक से लिखकर बच्चे पढ़ाई करते हैं. स्कूल में ब्लेक बोर्ड नहीं है. इसलिए कभी कभार स्कूल पहुंचने वाले शिक्षक भी उसी बांस के दीवार में चॉक से लिखकर बच्चों को पढ़ाते हैं. बच्चों का कहना है कि "शिक्षक जो लिखते हैं, वह भी स्पष्ट नहीं दिखता. जिस कारण हम सही से पढ़ाई नहीं कर पाते हैं." गांव वालों का कहना है कि "अगर शिक्षक ही स्कूल नहीं आएंगे, तो हमारे बच्चे कैसे पढ़ाई करेंगे. हमारे बच्चों का भविष्य बर्बाद हो जाएगा. जिसे लेकर वहां के पालक काफी चिंतित हैं."