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कांकेर: अंदरूनी इलाकों में शिक्षा का हाल बेहाल, रसोइयों के भरोसे मासूमों का भविष्य

कांकेर जिले के सरकारी स्कूल में शिक्षक मौजूद ही नहीं. शिक्षक के अभाव में बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है.

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Published : Jul 28, 2019, 3:22 PM IST

Updated : Jul 28, 2019, 4:14 PM IST

स्कूल में मौजूद बच्चे

कांकेर: जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों में शिक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है. एकल शिक्षक वाले स्कूलों में मासूमों का भविष्य किस कदर अंधकार में है, इसका उदाहरण अंतागढ़ ब्लॉक के कोरनहूर के प्राथमिक शाला में देखने को मिला है. जिले के सरकारी स्कूल में शिक्षक मौजूद ही नहीं थे. शिक्षक के अभाव में बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है.

शिक्षा का हाल बेहाल

चपरासी के भरोसे स्कूल
लगभग 11 बजे जब ETV भारत की टीम स्कूल पहुंची तो देखा कि यहां कुछ बच्चों के अलावा और कोई भी मौजूद नहीं था. कुछ देर बाद आंगनबाड़ी कार्यकर्ता स्कूल पहुंचीं, उन्होंने बताया कि स्कूल में मात्र एक शिक्षक पदस्थ है जो कि स्कूल में काम करने वाली चपरासी के साथ बैंक के काम से अंतागढ़ ब्लॉक मुख्यालय गए हुए हैं. एक ही शिक्षक होने के कारण शिक्षक को पढ़ाने के साथ-साथ बाकी विभागीय काम भी देखने पड़ते हैं. स्कूल के एक मात्र शिक्षक को महीने में 3 से 4 दिन मुख्यालय का चक्कर लगाना ही पड़ता है. कभी मध्यान भोजन की राशि तो कभी चपरासी का वेतन.

एक शिक्षक का बीते साल हो गया था तबादला
स्कूल में पहले दो शिक्षक पदस्थ थे. इसमें से एक का पिछले साल ट्रांसफर हो गया था, तब से यहां एक ही शिक्षक पदस्थ है. वो भी छात्रों को रसोइए के भरोसे छोड़ चपरासी के साथ बैंक चला गया था. हद तो तब हो गई जब पता चला कि रसोइया भी बच्चों की देख-रेख करना छोड़ अपने काम से खेत चला गया था. स्कूल में केवल 4 बच्चे की बचे थे बाकी सब इधर-उधर घूम रहे थे.

अगर इस दौरान इन बच्चों के साथ किसी तरह की अप्रिय घटना हो जाए तो आखिर इसका जिम्मेदार कौन होगा. नक्सल प्रभावित इलाका होने साथ ही दुर्गम रास्तों के कारण यहां अधिकरी भी नहीं पहुंचते, जिसके कारण मासूमों का भविष्य भगवान भरोसे ही है.

कांकेर: जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों में शिक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है. एकल शिक्षक वाले स्कूलों में मासूमों का भविष्य किस कदर अंधकार में है, इसका उदाहरण अंतागढ़ ब्लॉक के कोरनहूर के प्राथमिक शाला में देखने को मिला है. जिले के सरकारी स्कूल में शिक्षक मौजूद ही नहीं थे. शिक्षक के अभाव में बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है.

शिक्षा का हाल बेहाल

चपरासी के भरोसे स्कूल
लगभग 11 बजे जब ETV भारत की टीम स्कूल पहुंची तो देखा कि यहां कुछ बच्चों के अलावा और कोई भी मौजूद नहीं था. कुछ देर बाद आंगनबाड़ी कार्यकर्ता स्कूल पहुंचीं, उन्होंने बताया कि स्कूल में मात्र एक शिक्षक पदस्थ है जो कि स्कूल में काम करने वाली चपरासी के साथ बैंक के काम से अंतागढ़ ब्लॉक मुख्यालय गए हुए हैं. एक ही शिक्षक होने के कारण शिक्षक को पढ़ाने के साथ-साथ बाकी विभागीय काम भी देखने पड़ते हैं. स्कूल के एक मात्र शिक्षक को महीने में 3 से 4 दिन मुख्यालय का चक्कर लगाना ही पड़ता है. कभी मध्यान भोजन की राशि तो कभी चपरासी का वेतन.

एक शिक्षक का बीते साल हो गया था तबादला
स्कूल में पहले दो शिक्षक पदस्थ थे. इसमें से एक का पिछले साल ट्रांसफर हो गया था, तब से यहां एक ही शिक्षक पदस्थ है. वो भी छात्रों को रसोइए के भरोसे छोड़ चपरासी के साथ बैंक चला गया था. हद तो तब हो गई जब पता चला कि रसोइया भी बच्चों की देख-रेख करना छोड़ अपने काम से खेत चला गया था. स्कूल में केवल 4 बच्चे की बचे थे बाकी सब इधर-उधर घूम रहे थे.

अगर इस दौरान इन बच्चों के साथ किसी तरह की अप्रिय घटना हो जाए तो आखिर इसका जिम्मेदार कौन होगा. नक्सल प्रभावित इलाका होने साथ ही दुर्गम रास्तों के कारण यहां अधिकरी भी नहीं पहुंचते, जिसके कारण मासूमों का भविष्य भगवान भरोसे ही है.

Intro:कांकेर - जिले के नक्सल प्रभावित अंदरूनी इलाको में शिक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है , एकल शिक्षक वाले स्कूलों में मासूमो का भविष्य किस कदर अंधकार में है इसका उदाहरण अन्तागढ़ ब्लॉक के कोरनहूर के प्राथमिक शाला में देखने को मिला जहा स्कूल के समय मे शिक्षक गायब थे और 18 की दर्ज संख्या वाले इस प्राथमिक शाला में कुछ बच्चे स्कूल में बैठे पढाई कर रहे थे , जबकि शेष बच्चे शिक्षक की गैरमौजूदगी में अपनी मर्ज़ी से यहां वहां घूम रहे थे।


Body:कोरनहूर गांव में स्कूल के समय मे लगभग 11 बजे जब ईटीवी भारत की टीम पहुची तो यहां कुछ बच्चो के अलावा कोई भी मौजूद नही था , जिसके बाद गांव वालों से जानकारी जुटाई गई तब आंगनबाड़ी कार्यकर्ता स्कूल में पहुची और उन्होंने जानकारी दी कि यहां मात्र एक शिक्षक पदस्थ है जो कि स्कूल में काम करने वाली चपरासी के साथ उसके बैंक काम से अन्तागढ़ ब्लॉक मुख्यालय गए हुए है । ऐसे में सवाल यह उठता है कि एकल स्कूल वाले विद्यालयों के मासूम छात्रों का भविष्य आखिर कैसे सवरेगा , क्योकि जहा एक ही शिक्षक है उसे शिक्षण कार्य के अलावा बाकी विभागीय कार्य भी स्वयं ही देखने पड़ते है। ऐसे में उन्हें महीने में 3 से 4 दिन तो मुख्यालय के चक्कर लगाने ही पड़ेंगे । कभी मध्यान भोजन की राशि , कभी चपरासी का वेतन ऐसे कार्यो के बहाने आखिर मासूमो के भविष्य से खिलवाड़ आखिर कब तक चलेगा।

एक शिक्षक का बीते वर्ष हो गया तबादला
कोरन हूर गांव में दो शिक्षक पदस्थ थे जिसमें से एक का पिछले वर्ष तबादला हो गया जिसके बाद यहां एक ही शिक्षक पदस्थ है जो भी चपरासी का बैंक कार्य करवाने स्कूल समय मे छात्रों को रसोइया के भरोसे छोड़ कर चले गए और हद तो तब हो गई जब पता चला कि रसोइया भी बच्चो की देख रेख करना छोड़ अपने खेत काम मे चला गया था और मात्र 4 बच्चे स्कूल में बैठे थे शेष इधर उधर घूम रहे थे , अगर इस दौरान इन बच्चो के साथ किसी प्रकार की अप्रिय घटना हो जाये तो आखिर इसका जिम्मेदार कौन होगा ।


Conclusion:अंतिम छोर में स्थित है गांव नही पहुचते अधिकारी
कोरन हूर गांव अन्तागढ़ ब्लॉक के अंतिम छोर पर स्थित है नक्सल प्रभावित इलाका होने साथ ही दुर्गम रास्तो के कारण यहां अधिकरियो की गाड़ियां फर्राटे नही भरती है जिसके चलते मासूमो का भविष्य भगवान भरोसे ही है ।
Last Updated : Jul 28, 2019, 4:14 PM IST
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