कांकेर: जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों में शिक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है. एकल शिक्षक वाले स्कूलों में मासूमों का भविष्य किस कदर अंधकार में है, इसका उदाहरण अंतागढ़ ब्लॉक के कोरनहूर के प्राथमिक शाला में देखने को मिला है. जिले के सरकारी स्कूल में शिक्षक मौजूद ही नहीं थे. शिक्षक के अभाव में बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है.
चपरासी के भरोसे स्कूल
लगभग 11 बजे जब ETV भारत की टीम स्कूल पहुंची तो देखा कि यहां कुछ बच्चों के अलावा और कोई भी मौजूद नहीं था. कुछ देर बाद आंगनबाड़ी कार्यकर्ता स्कूल पहुंचीं, उन्होंने बताया कि स्कूल में मात्र एक शिक्षक पदस्थ है जो कि स्कूल में काम करने वाली चपरासी के साथ बैंक के काम से अंतागढ़ ब्लॉक मुख्यालय गए हुए हैं. एक ही शिक्षक होने के कारण शिक्षक को पढ़ाने के साथ-साथ बाकी विभागीय काम भी देखने पड़ते हैं. स्कूल के एक मात्र शिक्षक को महीने में 3 से 4 दिन मुख्यालय का चक्कर लगाना ही पड़ता है. कभी मध्यान भोजन की राशि तो कभी चपरासी का वेतन.
एक शिक्षक का बीते साल हो गया था तबादला
स्कूल में पहले दो शिक्षक पदस्थ थे. इसमें से एक का पिछले साल ट्रांसफर हो गया था, तब से यहां एक ही शिक्षक पदस्थ है. वो भी छात्रों को रसोइए के भरोसे छोड़ चपरासी के साथ बैंक चला गया था. हद तो तब हो गई जब पता चला कि रसोइया भी बच्चों की देख-रेख करना छोड़ अपने काम से खेत चला गया था. स्कूल में केवल 4 बच्चे की बचे थे बाकी सब इधर-उधर घूम रहे थे.
अगर इस दौरान इन बच्चों के साथ किसी तरह की अप्रिय घटना हो जाए तो आखिर इसका जिम्मेदार कौन होगा. नक्सल प्रभावित इलाका होने साथ ही दुर्गम रास्तों के कारण यहां अधिकरी भी नहीं पहुंचते, जिसके कारण मासूमों का भविष्य भगवान भरोसे ही है.