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Kanker Assembly: कांकेर में लगातार दूसरी पारी खेलना आसान नहीं, 71 साल में एक ही बार दोबारा कांकेर के विधायक बने विश्राम सिंह

Kanker Assembly नक्सल प्रभावित कांकेर विधानसभा में राजनीति इतनी आसान नहीं है. यहां के वोटर्स और पार्टियां किसी भी एक विधायक को 5 साल से ज्यादा झेल नहीं सकती. इस वजह से इस क्षेत्र को हर बार नया विधायक मिलता है.

Kanker Assembly
कांकेर विधानसभा चुनाव 2023
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Oct 13, 2023, 5:23 PM IST

Updated : Oct 14, 2023, 9:18 AM IST

कांकेर: छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. ETV भारत कांकेर विधानसभा में प्रत्याशियों के इतिहासिक पृष्ठभूमि को लेकर एक रोचक जानकारी बता रहे है. कांकेर विधानसभा में बीजेपी ने आशाराम नेताम पर भरोसा जताते हुए प्रत्याशी बनाया है. जबकि कांग्रेस अभी तक जिले की तीनों विधानसभा सहित प्रदेश की 90 में से एक भी सीट के लिए प्रत्याशी के नाम की सूची जारी नहीं कर सकी है. कांकेर विधानसभा को लेकर एक रोचक जानकरी है. इस विधानसभा से कांग्रेस से विश्राम सिंह ठाकुर को छोड़कर कोई भी प्रत्याशी लगातार दूसरी बार विधायक नहीं बन पाया है.

Kanker Assembly
कांकेर विधानसभा चुनाव 2023

बस्तर संभाग की सबसे चर्चित विधानसभा सीट है कांकेर: देश की आजादी के बाद 1952 में जब इस विधानसभा सीट का गठन हुआ. उस समय कांकेर द्वी सदस्यीय विधानसभा क्षेत्र थी, जिसमें एक सीट सामान्य वर्ग और एक सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हुआ करती थी. 1952 के प्रथम विधानसभा चुनाव में सामान्य वर्ग से भानुप्रतापदेव और आदिवासी वर्ग से रतन सिंह ठाकुर निर्वाचित हुए थे. 1953 में रतन सिंह ठाकुर की मृत्यु होने पर इस सीट के लिए उपचुनाव हुआ. जिसमें कांग्रेस पार्टी के रामप्रसाद पोटाई ने बृजलाल बारसाय को हरा दिया. वर्ष 1957 में होने वाले दूसरे चुनाव में कांग्रेस पार्टी से सामान्य वर्ग से प्रतिभा कुमार देवी निवाचित हुई थीं जबकि दूसरे सीट (अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित) पर विश्राम सिंह ठाकुर निर्वाचित हुए थे. वर्ष 1962 में कांकेर विधानसभा से अलग होकर भानप्रतापपुर नई विधानसभा सीट अस्तित्व में आई जिसे आदिवासी वर्ग के लिये सुरक्षित रखा गया. जबकि कांकेर विधानसभा सीट सामान्य थी.

कांकेर से भानुप्रतापदेव (निर्दलीय) ने वृन्दावन बिहारी लाल श्रीवास्तव को हराया था जबकि भानुतापपुर सीट से रामप्रसाद पोटाई निर्वाचित हुए थे.1967 से 1972 फिर 1972 से 1977 तक विश्रामसिंह ठाकुर (अरविंद नेताम और शिव नेताम के पिताजी ) ही ऐसे विधायक थे जिन्हे लगातार दो बार जनता ने चुना था.- उगेश सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार, कांकेर

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शिशुपाल शोरी का कट सकता है टिकट: उगेश सिन्हा बताते हैं कि अघन सिंह ठाकुर व श्यामा ध्रुवा जरूर दो दो बार इस विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं लेकिन लगातार विधायक रहने का गौरव इन्हें भी नहीं मिला है. इसके पीछे दो वजह है. पहला राजनीतिक पार्टियां उन्हें दोबारा टिकट नहीं देती या फिर उन्हें चुनाव में हार मिलती है. इस बार कांग्रेस के विधायक शिशुपाल शोरी का भी टिकट कटने की संभवाना बनी हुई है. मौजूदा विधायक शिशुपाल शोरी के टिकट में भी रोड़ा बना हुआ है.

1977 से 2018 तक की कांकेर की राजनीति: 1977 में हरिशंकर ठाकुर, 1980 में आत्माराम ध्रुवा (निर्दलीय), 1985 में श्यामा ध्रुवा, 1990 में अघन सिंह ठाकुर, 1993 में शिव नेताम विधायक बने. जबकि 1998 में श्यामा ध्रुवा दूसरी बार विधायक बनी. साल 2000 में छत्तीसगढ़ का गठन हुआ. जिसके बाद श्यामा ध्रुव भाजपा छोड़ 12 विधायकों के साथ कांग्रेस में आ गई. साल 2003 में हुए चुनाव में अघन सिंह ठाकुर ने उन्हे हराया. जिसके बाद 2008 के चुनाव में सुमित्रा मारकोले ने अरविंद नेताम की बेटी प्रीति नेताम को पटखनी दी. फिर 2013 में सुमित्रा मारकोले की जगह संजय कोड़ोपी को मैदान में उतारा गया तब कांग्रेस से शंकर ध्रुव प्रत्याशी रहे जिन्होंने जीत दर्ज की. 2018 के चुनाव में शंकर ध्रुवा की जगह वर्तमान विधायक शिशुपाल शोरी को मैदान में उतारा गया जिन्होंने भाजपा के हीरा मरकाम को हराया.

कांकेर: छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. ETV भारत कांकेर विधानसभा में प्रत्याशियों के इतिहासिक पृष्ठभूमि को लेकर एक रोचक जानकारी बता रहे है. कांकेर विधानसभा में बीजेपी ने आशाराम नेताम पर भरोसा जताते हुए प्रत्याशी बनाया है. जबकि कांग्रेस अभी तक जिले की तीनों विधानसभा सहित प्रदेश की 90 में से एक भी सीट के लिए प्रत्याशी के नाम की सूची जारी नहीं कर सकी है. कांकेर विधानसभा को लेकर एक रोचक जानकरी है. इस विधानसभा से कांग्रेस से विश्राम सिंह ठाकुर को छोड़कर कोई भी प्रत्याशी लगातार दूसरी बार विधायक नहीं बन पाया है.

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कांकेर विधानसभा चुनाव 2023

बस्तर संभाग की सबसे चर्चित विधानसभा सीट है कांकेर: देश की आजादी के बाद 1952 में जब इस विधानसभा सीट का गठन हुआ. उस समय कांकेर द्वी सदस्यीय विधानसभा क्षेत्र थी, जिसमें एक सीट सामान्य वर्ग और एक सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हुआ करती थी. 1952 के प्रथम विधानसभा चुनाव में सामान्य वर्ग से भानुप्रतापदेव और आदिवासी वर्ग से रतन सिंह ठाकुर निर्वाचित हुए थे. 1953 में रतन सिंह ठाकुर की मृत्यु होने पर इस सीट के लिए उपचुनाव हुआ. जिसमें कांग्रेस पार्टी के रामप्रसाद पोटाई ने बृजलाल बारसाय को हरा दिया. वर्ष 1957 में होने वाले दूसरे चुनाव में कांग्रेस पार्टी से सामान्य वर्ग से प्रतिभा कुमार देवी निवाचित हुई थीं जबकि दूसरे सीट (अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित) पर विश्राम सिंह ठाकुर निर्वाचित हुए थे. वर्ष 1962 में कांकेर विधानसभा से अलग होकर भानप्रतापपुर नई विधानसभा सीट अस्तित्व में आई जिसे आदिवासी वर्ग के लिये सुरक्षित रखा गया. जबकि कांकेर विधानसभा सीट सामान्य थी.

कांकेर से भानुप्रतापदेव (निर्दलीय) ने वृन्दावन बिहारी लाल श्रीवास्तव को हराया था जबकि भानुतापपुर सीट से रामप्रसाद पोटाई निर्वाचित हुए थे.1967 से 1972 फिर 1972 से 1977 तक विश्रामसिंह ठाकुर (अरविंद नेताम और शिव नेताम के पिताजी ) ही ऐसे विधायक थे जिन्हे लगातार दो बार जनता ने चुना था.- उगेश सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार, कांकेर

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शिशुपाल शोरी का कट सकता है टिकट: उगेश सिन्हा बताते हैं कि अघन सिंह ठाकुर व श्यामा ध्रुवा जरूर दो दो बार इस विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं लेकिन लगातार विधायक रहने का गौरव इन्हें भी नहीं मिला है. इसके पीछे दो वजह है. पहला राजनीतिक पार्टियां उन्हें दोबारा टिकट नहीं देती या फिर उन्हें चुनाव में हार मिलती है. इस बार कांग्रेस के विधायक शिशुपाल शोरी का भी टिकट कटने की संभवाना बनी हुई है. मौजूदा विधायक शिशुपाल शोरी के टिकट में भी रोड़ा बना हुआ है.

1977 से 2018 तक की कांकेर की राजनीति: 1977 में हरिशंकर ठाकुर, 1980 में आत्माराम ध्रुवा (निर्दलीय), 1985 में श्यामा ध्रुवा, 1990 में अघन सिंह ठाकुर, 1993 में शिव नेताम विधायक बने. जबकि 1998 में श्यामा ध्रुवा दूसरी बार विधायक बनी. साल 2000 में छत्तीसगढ़ का गठन हुआ. जिसके बाद श्यामा ध्रुव भाजपा छोड़ 12 विधायकों के साथ कांग्रेस में आ गई. साल 2003 में हुए चुनाव में अघन सिंह ठाकुर ने उन्हे हराया. जिसके बाद 2008 के चुनाव में सुमित्रा मारकोले ने अरविंद नेताम की बेटी प्रीति नेताम को पटखनी दी. फिर 2013 में सुमित्रा मारकोले की जगह संजय कोड़ोपी को मैदान में उतारा गया तब कांग्रेस से शंकर ध्रुव प्रत्याशी रहे जिन्होंने जीत दर्ज की. 2018 के चुनाव में शंकर ध्रुवा की जगह वर्तमान विधायक शिशुपाल शोरी को मैदान में उतारा गया जिन्होंने भाजपा के हीरा मरकाम को हराया.

Last Updated : Oct 14, 2023, 9:18 AM IST
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