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महासमुंद में ईद-उल-अजहा के मौके पर मांगी गई नक्सलवाद से मुक्ति - महासमुंद न्यूज

मुस्लिम समाज के लोगों ने धूम-धाम से ईद उल अजहा मनाया. ईद उल अजहा के मौके पर देश भर के मस्जिदों में विशेष नमाज अदा की गई. छत्तीसगढ़ में मुस्लिम समाज के लोगों ने नक्सलवाद के खात्मे की दुआ मांगी.

कुर्बानी का त्योहार है ईद-उल-अदहा
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Published : Aug 13, 2019, 12:00 AM IST

महासमुंद: ईद-उल-अजहा के मुबारक मौके पर देश भर के मस्जिदों में विशेष निमाज अदा की गई. महासमुंद में भारी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग ईदगाह में नमाज पढ़कर विश्व शांति की दुआ मांगी. इसके बाद सभी ने एक दूसरे के गले लगाकर बधाई दी.

हर्षोल्लास से मनाया गया ईद-उल-अजहा

मान्यता है कि हजरत इब्राहिम के कोई औलाद नहीं था, काफी इबादत करने के बाद उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ. उन्होंने अपने बेटे का नाम इस्लाम रखा और एक रात हजरत इब्राहिम के सपने में अल्लाह ने अपनी सबसे प्रिय चीज कुर्बान करने को कहा.

हजरत इब्राहिम की कुर्बानी
हजरत ने आंखों में कपड़ा बांध कर अपने 11 साल के एकलौते बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए और जब आंखों से कपड़ा हटाया तो उनका प्रिय बेटा सही सलामत था. उसके बेटे की जगह एक भेड़ की कुर्बानी हो गई और उसी दिन से मुस्लिम समुदाय के लोग हर साल अपनी इच्छा से बकरी की कुर्बानी देने लगे.

कुर्बानी का त्योहार है ईद-उल-अदहा
कांकेर में मुस्लिम भाईयों ने ईद-उल-अजहा के मौके पर सुबह 7 बजे जामा मस्जिद से जुलूस निकाला गया और चौक चौराहों से होते हुए ईदगाह पहुंचे. जहां लोगों ने देश में भाईचारा, अमन और शांति के साथ नक्सलवाद खत्म होने की दुआ मांगी.

महासमुंद: ईद-उल-अजहा के मुबारक मौके पर देश भर के मस्जिदों में विशेष निमाज अदा की गई. महासमुंद में भारी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग ईदगाह में नमाज पढ़कर विश्व शांति की दुआ मांगी. इसके बाद सभी ने एक दूसरे के गले लगाकर बधाई दी.

हर्षोल्लास से मनाया गया ईद-उल-अजहा

मान्यता है कि हजरत इब्राहिम के कोई औलाद नहीं था, काफी इबादत करने के बाद उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ. उन्होंने अपने बेटे का नाम इस्लाम रखा और एक रात हजरत इब्राहिम के सपने में अल्लाह ने अपनी सबसे प्रिय चीज कुर्बान करने को कहा.

हजरत इब्राहिम की कुर्बानी
हजरत ने आंखों में कपड़ा बांध कर अपने 11 साल के एकलौते बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए और जब आंखों से कपड़ा हटाया तो उनका प्रिय बेटा सही सलामत था. उसके बेटे की जगह एक भेड़ की कुर्बानी हो गई और उसी दिन से मुस्लिम समुदाय के लोग हर साल अपनी इच्छा से बकरी की कुर्बानी देने लगे.

कुर्बानी का त्योहार है ईद-उल-अदहा
कांकेर में मुस्लिम भाईयों ने ईद-उल-अजहा के मौके पर सुबह 7 बजे जामा मस्जिद से जुलूस निकाला गया और चौक चौराहों से होते हुए ईदगाह पहुंचे. जहां लोगों ने देश में भाईचारा, अमन और शांति के साथ नक्सलवाद खत्म होने की दुआ मांगी.

Intro:एंकर- ईद उल- अजहा महासमुंद जिले में हर्षोउल्लास के साथ मनाया जा रहा हैं। मुस्लिम समुदाय के लोगो ने भारी संख्या में ईदगाह भाठा में जाकर नमाज अता की और विश्व शांति की दुआ मांगी । तत्पश्चात सभी समुदाय के लोगो ने एक-दूसरे के गले मिलकर बधाई दी । प्रशासन ने शांति बनाये रखने के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर रखे है । गौरतलब है कि बकरीद मनाने के पीछे ये मान्यता है कि हजरत इब्राहीम को कोई औलाद नही थी जिसके लिए इन्होने काफी इबादतें की । Body:उसके बाद इन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ ,जिसका नाम इस्लाम रखा गया। इस्लाम की उम्र 11 साल रही होगी । एक दिन हजरत इब्राहीम को अल्लाह ने सपने में अपनी सबसे प्रिय चीज कुर्बान करने को कहा । हजरत इब्राहीम को सबसे प्यारा अपना पुत्र था । हजरत इब्राहीम ने आंखों पर रूमाल बांध कर अपने औलाद की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गये और कुर्बानी दी ,पर जब रूमाल हटाया तो देखा कि उनका औलाद सही सलामत है और भेड की कुर्बानी हुई है ,तब से ईद उल- अजहा मनाया जाता है । जिस दिन मुस्लमान भाई अपने हैसियत के अनुसार बकरे की कुर्बानी देते है ।

hakimuddin Nasir ETV Bharat Mahasamund Chhattisghar Mo. 9826555052Conclusion:
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