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निःसंतान को संतान सुख का वरदान देते हैं संबलपुर के गणपति, देश की 5 जीवित गणेश मूर्तियों में होती है गिनती

कांकेर के गढ़बांसला में गणेश जी की जीवित मूर्ति है. यह मूर्ति मंदिर के जमीनी तल में स्थापित है और हर साल बढ़ती है. यह मूर्ति भारत की 5 जीवित गणेश मूर्तियों की गिनती में आती है. यहां दूर-दूराज से लोग संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगने आते हैं.

Ganpati of Sambalpur
संबलपुर के गणपति
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Published : Sep 11, 2021, 1:59 PM IST

Updated : Sep 11, 2021, 2:34 PM IST

कांकेर : आपने गणेशजी आज तक एक से बढ़कर एक किस्से-कहानी सुने होंगे. इससे जुड़े कई तरह के मंदिर भी देखे होंगे, लेकिन आज हम आप को ऐसे गणेश जी की कहानी बताएंगे जो आज तक आप ने न तो कहीं सुनी होगी और न ही कहीं देखी होगी. हम बात कर रहे हैं भानुप्रतापपुर (Bhanupratappur) से लगे ग्राम संबलपुर की. जहां सैकड़ों सालों से छोटी सी सूंड़ के साथ भगवान गणेश विराजमान हैं. वैसे तो जितनी गजानन महाराज की महिमा अपरंपार है, उतनी ही संबलपुर की भगवान गणेश की कहानी भी दिलचस्प है.

कहा जाता है कि भगवान गणेश की प्रतिमा (Lord Ganesha Statue) सैकड़ों साल पहले देवनगरी गढ़बांसला की तालाब में तैरते हुए मिली थी. उस समय तालाब की मेंड़ में ही प्रतिमा स्थापित कर उनकी पूजा की जाती थी. तब कंडरा राजा का राज हुआ करता था. तत्कालीन गढ़बांसला में ठाकुर राम चांडक संबलपुर निवासी जमींदार हुआ करते थे. ठाकुर राम चांडक जब अपनी खेती-बाड़ी देखने संबलपुर से गढ़बांसला गए तो वह अद्भुत गणेश जी मूर्ति देखकर चकित हो गए. कहा जाता है कि ठाकुर राम चांडक ने उस गणेश मूर्ति को अपने निवास स्थान ग्राम संबलपुर ले जाने के लिए बैलगाड़ी की थी, वह बैलगाड़ी वहीं थोड़ी दूर जा कर टूट गई थी.

संबलपुर के गणेश जी


और गणपति ने भक्तों की ली थी खूब परीक्षा...

गढ़बांसला से संबलपुर तक के इस सात किलोमीटर के रास्ते पर गजानन महाराज ने भक्तों की खूब परीक्षा ली और इसके बाद एक दो नहीं बल्कि 11 बैलगाड़ी के पहिये रास्ते में ही टूट गए. जहां आज गणेश जी की मूर्ति स्थापित है, वहां 12वीं बैलगाड़ी का पहिया टूटा था. इसके बाद और कोई भी बैलगाड़ी का पहिया नहीं लगाया जा सका. कहा जाता है कि जिस जहां आज मंदिर है, उस जगह से गणेश जी मूर्ति को कोई भी हिला नहीं सका था. जिसके बाद आज तक गणेश जी की मूर्ति वहीं स्थापित है.


गणेश भगवान की मूर्ति इतनी शक्तिशाली है कि आज तक कोई भी इस मूर्ति को हिला नहीं सका है. मंदिर के जीर्णोद्धार की लाख कोशिशों के बाद भी कोई मूर्ति को नहीं हिला सका तो शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को बुलाया गया था. जिसके बाद स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने मंदिर समिति को बताया कि यह गणेश जी मूर्ति जीवित रूप में है. इससे किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जाए, तब से यह मूर्ति मंदिर के जमीनी तल में स्थापित है. यह मूर्ति हर साल बढ़ती है. यह मूर्ति भारत की 5 जीवित गणेश मूर्तियों की गिनती में आती है. यहां दूर-दूराज से लोग संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगने आते हैं. इस क्षेत्र में जब भी कोई कार्य किया जाता है तो सबसे पहले गणेश जी की अराधना की जाती है.

क्या खास है गढ़बांसला और संबलपुर में

गढ़बांसला को इस क्षेत्र की सबसे पुरानी तहसील कहा जाता है. यह कंडरा राजा की राजधानी थी. यहां राजवाड़ा होने कारण यह 84 परगना के देवी-देवता का निवास स्थान है. साथ ही शीतला माता और दंतेश्वरी माता का मंदिर भी यहां है. यहां एक ऐतिहसिक तालाब भी है. संबलपुर को अद्भुत गणेश मंदिर की वजह से धर्मनगरी भी कहा जाता है. संबलपुर जिले का सबसे ज्यादा बिजनेस करने वाला गांव है.

कांकेर : आपने गणेशजी आज तक एक से बढ़कर एक किस्से-कहानी सुने होंगे. इससे जुड़े कई तरह के मंदिर भी देखे होंगे, लेकिन आज हम आप को ऐसे गणेश जी की कहानी बताएंगे जो आज तक आप ने न तो कहीं सुनी होगी और न ही कहीं देखी होगी. हम बात कर रहे हैं भानुप्रतापपुर (Bhanupratappur) से लगे ग्राम संबलपुर की. जहां सैकड़ों सालों से छोटी सी सूंड़ के साथ भगवान गणेश विराजमान हैं. वैसे तो जितनी गजानन महाराज की महिमा अपरंपार है, उतनी ही संबलपुर की भगवान गणेश की कहानी भी दिलचस्प है.

कहा जाता है कि भगवान गणेश की प्रतिमा (Lord Ganesha Statue) सैकड़ों साल पहले देवनगरी गढ़बांसला की तालाब में तैरते हुए मिली थी. उस समय तालाब की मेंड़ में ही प्रतिमा स्थापित कर उनकी पूजा की जाती थी. तब कंडरा राजा का राज हुआ करता था. तत्कालीन गढ़बांसला में ठाकुर राम चांडक संबलपुर निवासी जमींदार हुआ करते थे. ठाकुर राम चांडक जब अपनी खेती-बाड़ी देखने संबलपुर से गढ़बांसला गए तो वह अद्भुत गणेश जी मूर्ति देखकर चकित हो गए. कहा जाता है कि ठाकुर राम चांडक ने उस गणेश मूर्ति को अपने निवास स्थान ग्राम संबलपुर ले जाने के लिए बैलगाड़ी की थी, वह बैलगाड़ी वहीं थोड़ी दूर जा कर टूट गई थी.

संबलपुर के गणेश जी


और गणपति ने भक्तों की ली थी खूब परीक्षा...

गढ़बांसला से संबलपुर तक के इस सात किलोमीटर के रास्ते पर गजानन महाराज ने भक्तों की खूब परीक्षा ली और इसके बाद एक दो नहीं बल्कि 11 बैलगाड़ी के पहिये रास्ते में ही टूट गए. जहां आज गणेश जी की मूर्ति स्थापित है, वहां 12वीं बैलगाड़ी का पहिया टूटा था. इसके बाद और कोई भी बैलगाड़ी का पहिया नहीं लगाया जा सका. कहा जाता है कि जिस जहां आज मंदिर है, उस जगह से गणेश जी मूर्ति को कोई भी हिला नहीं सका था. जिसके बाद आज तक गणेश जी की मूर्ति वहीं स्थापित है.


गणेश भगवान की मूर्ति इतनी शक्तिशाली है कि आज तक कोई भी इस मूर्ति को हिला नहीं सका है. मंदिर के जीर्णोद्धार की लाख कोशिशों के बाद भी कोई मूर्ति को नहीं हिला सका तो शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को बुलाया गया था. जिसके बाद स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने मंदिर समिति को बताया कि यह गणेश जी मूर्ति जीवित रूप में है. इससे किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जाए, तब से यह मूर्ति मंदिर के जमीनी तल में स्थापित है. यह मूर्ति हर साल बढ़ती है. यह मूर्ति भारत की 5 जीवित गणेश मूर्तियों की गिनती में आती है. यहां दूर-दूराज से लोग संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगने आते हैं. इस क्षेत्र में जब भी कोई कार्य किया जाता है तो सबसे पहले गणेश जी की अराधना की जाती है.

क्या खास है गढ़बांसला और संबलपुर में

गढ़बांसला को इस क्षेत्र की सबसे पुरानी तहसील कहा जाता है. यह कंडरा राजा की राजधानी थी. यहां राजवाड़ा होने कारण यह 84 परगना के देवी-देवता का निवास स्थान है. साथ ही शीतला माता और दंतेश्वरी माता का मंदिर भी यहां है. यहां एक ऐतिहसिक तालाब भी है. संबलपुर को अद्भुत गणेश मंदिर की वजह से धर्मनगरी भी कहा जाता है. संबलपुर जिले का सबसे ज्यादा बिजनेस करने वाला गांव है.

Last Updated : Sep 11, 2021, 2:34 PM IST
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