कांकेर: धान खरीदी छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए त्योहार की तरह है, लेकिन नक्सल प्रभावित और वनांचलों में ये उत्सव मनाना कितना मुश्किल है, ये कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा ब्लॉक के गोमे, पानीडोबीर के किसान जानते हैं. पहले खरीदी के टोकन के लिए चक्कर काटना और फिर अपनी उपज बेचने के लिए सड़क बनाना, मेहनत तो खर्च होती है, जेब भी ढीली करनी पड़ती है. हालांकि कुछ नए खरीदी केंद्र खुलने से इस बार किसानों को थोड़ी सहूलियत जरूर होगी.
ग्रामीण इलाकों में अब तक विकास कार्य देखने को नहीं मिलते हैं. न तो अच्छी सड़क, न नदियों पर पुल, कच्ची पगडंडियों और खस्ताहाल सड़कों से गुजरकर किसान अपनी उपज बेचने धान खरीदी केंद्रों में पहुंचते हैं. दुख और हैरानी की बात तो ये है कि कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा ब्लॉक के गोमे, पानीडोबीर के किसान धान खरीदी के 15 दिन पहले सड़क की मरम्मत करते हैं, फिर अपनी उपज बेचने कोयलीबेड़ा धान खरीदी केंद्र जो 15 किमी दूर है, वहां जाते हैं.
किसान पीलू उसेंडी ने बताया कि फसल बेचने के लिए उन्हें खरीदी केंद्र के बाहर ही 2-3 दिन गुजारना पड़ता है. इसके लिए उन्हें दो-तीन गुणा ज्यादा किराया भी देना पड़ता है. इस बार इस क्षेत्र में 68 गांवों के लिए 2 धान खरीदी केंद्र खोले गए हैं.
किसानों को तय करना पड़ता था 25 किलोमीटर का सफर
ETV भारत ने नवीन धान खरीदी केंद्र ठेमा का जायजा लिया. ठेमा सुदूर वनांचल गांव है, जहां 5 गांव के 389 किसानों ने अपना पंजीयन कराया है. पहले इन्हीं 5 गांव के किसान सरोना धान खरीदी केंद्र में अपना धान बेचने जाते थे. जहां सबसे दूर गांव तिरियारपानी के किसानों को 25 किमी का सफर तय करना पड़ता था. वहीं ठेमा के किसानों को 10 किमी का सफर तय कर सरोना जाना पड़ता था. इस साल नए धान खरीदी केंद्र ठेमा के खुल जाने से किसानों का सफर कम तो कम हो जाएगा, लेकिन यहां भी चार बड़ी नदियों, तीन नालों और खस्ताहाल सड़कों से होकर तिरियारपानी, छिंदखड़क के किसानों को अपना धान बेचने ठेमा आना पड़ेगा.
पढ़ें- SPECIAL: घोर नक्सल प्रभावित इलमिड़ी में धान खरीदी केंद्र खुलते ही खिले किसानों के चेहरे
तिरियारपानी के किसान कैसे धान बेच पाएंगे, इसके जवाब में सरोना धान खरीदी प्रबंधक केशव नाग कहते हैं कि वहां ज्यादा किसान नहीं हैं और उनके धान बेचने आने के लिए विधायक ने नदी पर रपटा बनाने की बात कही है. अब रपटा कब बनेगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
महिला किसान ने बताई अपनी परेशानी
छिंदखड़क की महिला किसान चंद्रिका नेताम का धान अभी भी उसके घर पर पड़ा है. चन्द्रिका की चिंता है कि कैसे वो रास्ते में आने वाली तीन नदियों को पार कर अपना धान बेचने जाएगी. हालांकि इन नदियों से ट्रैक्टर पार हो जाता है, लेकिन कई बार फंस भी जाता है. उन्होंने कहा कि इस बार वो ठेमा खरीदी केंद्र जाएगी, जो 7 किमी की दूरी पर है. इस बार उन्हें पहले के मुकाबले आसानी रहेगी. पहले धान बेचने जाने के लिए ट्रैक्टर का किराया दो हजार देना पड़ता था. एक बार एक ट्रॉली में पूरा धान नहीं आए, तो वह खर्चा दोगुना हो जाता था. उसने बताया कि पहले वो छिंदखड़क से सरोना 12 किमी दूर धान बेचने जाती थे.
चंद्रिका बताती है कि कई बार ट्रैक्टर कच्चे रास्तों में रेत में फंस जाता है. उसकी शंका है कि अब चूंकि टोकन तो एक दिन का ही होता है, इसलिए वक्त निकलने पर अपना धान वो कैसे बेचेगी. वो कहती है कि क्षेत्र के किसान इन समस्याओं से जूझना नहीं चाहते, इसलिए धान बेचने के लिए पंजीयन तक नहीं कराते हैं और बाद में कोचिए इस क्षेत्र में आते हैं और औने-पौने दाम में धान खरीद लेते हैं.
पढ़ें- SPECIAL: सिर पर धान खरीदी, सॉफ्टवेयर अपडेट करने में लगे फड़ प्रभारी, नहीं कटा किसानों का टोकन
अब तक किसानों को नहीं मिले टोकन
ठेमा के किसान सुभाष कुमार यादव बताते हैं कि पहले 10 किमी दूर सरोना धान बेचने के लिए जाते थे, सुबह 3 से 4 बजे जाकर लाइन लगाते थे. धान ले जाने के लिए ट्रांसपोर्ट के लिए भी समस्या होती थी. अब ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि यहीं गांव में धान खरीदी केंद्र खुल गया है. ट्रांसपोर्ट में जो खर्चा आ रहा था, वो भी बचेगा. क्षेत्र के लगभग 10 गांव में किसानों को इसका फायदा मिलेगा. सुभाष ने इस बार 27 क्विंटल धान बेचने के लिए पंजीयन कराया है, लेकिन अब तक टोकन नहीं मिलने से परेशान भी हैं. बता दें कि कांकेर में मैपिंग का कार्य पूरा नहीं हुआ है. सॉफ्टवेयर अपडेट न होने के चलते अब तक किसानों का टोकन नहीं काटा गया है और धान खरीदी मंगलवार से होनी है.
फैक्ट फाइल-
- जिले में धान खरीदी के लिए पिछले वर्ष 113 खरीदी केंद्र थे.
- जिले के विभिन्न हिस्सों से लगातार धान खरीदी केंद्र खोले जाने की मांग की जा रही थी.
- इस बार जिले में 8 नए धान खरीदी केंद्र प्रारंभ किए गए हैं.
- अब जिले में कुल 121 खरीदी केंद्र हो गए हैं.