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कांकेर : गोंडी भाषा पढ़कर आगे बढ़ रहे आदिवासी बच्चे - क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा

बच्चों को क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से सरोना गांव में बच्चों को गोंडी भाषा में शिक्षा दी जाती है.

Adivasi children are studying in Gondi language in kanker
आदिवासी बच्चे
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Published : Nov 30, 2019, 12:18 PM IST

Updated : Nov 30, 2019, 3:34 PM IST

कांकेर : जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर स्थित गांव में एक ऐसा स्कूल है, जहां बच्चों को गोंडी भाषा में शिक्षा दी जाती है. जंगो रायतारा सोसाइटी ने क्षेत्रीय भाषा को बचाने के लिए ये बीड़ा उठाया है.

आगे बढ़ रहे आदिवासी बच्चे

सरोना गांव में सोसाइटी के लोगों ने 2015 में इस संस्था का गठन किया था, इस स्कूल में मुख्य शिक्षा अंग्रेजी माध्यम में दी जाती है, साथ ही पहली से चौथी तक के बच्चों को गोंडी भाषा में भी शिक्षा दी जाती है. वर्तमान में यहां 80 बच्चे पढ़ रहे हैं.

आदिवासी समाज देता है फीस

गोंडी भाषा में शिक्षा की शुरुआत होने के बाद से ही इसे निशुल्क कर दिया गया. स्कूल का संचालन आदिवासी समाज के लोग करते हैं, जिसके लिए चंदा इकट्ठा किया जाता है.

आदिवासियों की प्रमुख भाषा गोंडी

बस्तर के अंदरूनी इलाकों के ग्रामीण आज भी मात्र गोंडी भाषा को समझते और बोलते हैं, समाज के लोग मानते हैं कि उनके क्षेत्र के बच्चे भाषा की वजह से आगे नहीं बढ़ पाते हैं, बच्चों की परवरिश गोंडी भाषा में होती है, ऐसे में स्कूल में हिंदी भाषा समझ पाना उनके लिए मुश्किल हो जाता है. बता दें कि जुलाई 2018 में प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम ने कहा था कि 'गोंडी भाषा को प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने विचार चल रहा है, लेकिन फिलहाल इस पर कोई अमल नहीं किया गया है'.

गोंडी में होती है प्रार्थना

इस स्कूल में बच्चे गोंडी में ही प्रार्थना करते है, साथ ही गोंडी भाषा के गीत भी बच्चे गाते हैं, स्कूल के शिक्षक सगनुराम मंडावी कहते हैं, कि 'वो खुद को भाग्यशाली समझते हैं कि, उन्हें इन बच्चों को गोंडी भाषा सिखाने का मौका मिला है'.

कांकेर : जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर स्थित गांव में एक ऐसा स्कूल है, जहां बच्चों को गोंडी भाषा में शिक्षा दी जाती है. जंगो रायतारा सोसाइटी ने क्षेत्रीय भाषा को बचाने के लिए ये बीड़ा उठाया है.

आगे बढ़ रहे आदिवासी बच्चे

सरोना गांव में सोसाइटी के लोगों ने 2015 में इस संस्था का गठन किया था, इस स्कूल में मुख्य शिक्षा अंग्रेजी माध्यम में दी जाती है, साथ ही पहली से चौथी तक के बच्चों को गोंडी भाषा में भी शिक्षा दी जाती है. वर्तमान में यहां 80 बच्चे पढ़ रहे हैं.

आदिवासी समाज देता है फीस

गोंडी भाषा में शिक्षा की शुरुआत होने के बाद से ही इसे निशुल्क कर दिया गया. स्कूल का संचालन आदिवासी समाज के लोग करते हैं, जिसके लिए चंदा इकट्ठा किया जाता है.

आदिवासियों की प्रमुख भाषा गोंडी

बस्तर के अंदरूनी इलाकों के ग्रामीण आज भी मात्र गोंडी भाषा को समझते और बोलते हैं, समाज के लोग मानते हैं कि उनके क्षेत्र के बच्चे भाषा की वजह से आगे नहीं बढ़ पाते हैं, बच्चों की परवरिश गोंडी भाषा में होती है, ऐसे में स्कूल में हिंदी भाषा समझ पाना उनके लिए मुश्किल हो जाता है. बता दें कि जुलाई 2018 में प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम ने कहा था कि 'गोंडी भाषा को प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने विचार चल रहा है, लेकिन फिलहाल इस पर कोई अमल नहीं किया गया है'.

गोंडी में होती है प्रार्थना

इस स्कूल में बच्चे गोंडी में ही प्रार्थना करते है, साथ ही गोंडी भाषा के गीत भी बच्चे गाते हैं, स्कूल के शिक्षक सगनुराम मंडावी कहते हैं, कि 'वो खुद को भाग्यशाली समझते हैं कि, उन्हें इन बच्चों को गोंडी भाषा सिखाने का मौका मिला है'.

Intro:कांकेर - जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर सरोना गांव में एक ऐसे स्कूल का संचालन किया जा रहा है जहां बच्चे बस्तर अंचल में आदिवासी समाज द्वारा बोले जाने वाली गोंडी भाषा मे प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर रहे है । विलुप्त होती क्षेत्रीय भाषा को बचाने और आज की आदिवासी पीढ़ी को अपनी भाषा का ज्ञान देने का बीड़ा उठाया हैBody:जंगो रायतारा सोसायटी ने जिनके द्वारा यहां के बच्चो को गोंडी भाषा में प्राथमिक शिक्षा दी जा रही है । सोसायटी के लोगो मे 2015 में शिक्षा के क्षेत्र में काम करने इसका गठन किया था, जिनकी मेहनत अब रंग ला रही है । इस स्कूल में मुख्यतः इंग्लिश मीडियम में शिक्षा दी जाती है साथ ही गोंडी भाषा मे भी शिक्षा दी जा रही है ।
सोसायटी के द्वारा सरोना में पहली कक्षा से चौथी कक्षा तक के बच्चो को गोंडी भाषा मे शिक्षा दे रहे है जहां वर्तमान में 80 बच्चे अध्यनरत है ।
सरोना में यह स्कूल 2016 में शुरू किया गया था जो कि बच्चो को निशुल्क शिक्षा दे रहे है । स्कूल का खर्चा आदिवासी समाज के लोग वहन कर रहे है ।
स्कूल के शिक्षक सगनुराम मंडावी ने बताया कि स्कूल का पूरा संचालन समाज के लोगो के द्वारा किया जा रहा है चंदा इकट्ठा कर समाज स्कूल का संचालन किया जा रहा है । गोंडी भाषा को आगे लाने समाज के द्वारा प्रयास किया जा रहा है लेकिन फिलहाल शासन प्रशासन से उन्हें कोई मदद अब तक नही मिली है ।

बस्तर के आदिवासियों की प्रमुख भाषा गोंडी
बस्तर के अंदरूनी इलाको के ग्रामीण आज भी मात्र गोंडी भाषा को हो समझते और बोलते है, इसके बावजूद भी इस भाषा को वो सम्मान नही मिला जो मिलना चाहिए था , आदिवासी समाज के लोग मानते है कि उनके क्षेत्र के बच्चे आगे इसलिए नही बढ़ पाते क्योकि उन्हें उनके क्षेत्रीय भाषा मे शिक्षा नही दी जाती , जो बच्चे बचपन से गोंडी ही बोलते और सुनते आए है वो हिंदी में कैसे शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे । बता दे कि जुलाई 2018 में प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम ने कहा था कि गोंडी भाषा को प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने विचार चल रहा है लेकिन फिलहाल इस पर कोई अमल नही हुआ है ।Conclusion:गोंडी के गीत और प्रार्थना करते है बच्चे
इस स्कूल में बच्चे गोंडी में ही प्रार्थना करते है, साथ ही गोंडी भाषा के गीत भी बच्चे गाते है, स्कूल के शिक्षक सगनुराम मंडावी कहते है वो खुद को भाग्यशाली समझते है कि उन्हें इन बच्चो को गोंडी भाषा सिखाने का मौका मिला है ।

कोंडागांव में भी संचालित है स्कूल
जंयो रायतार सोसाइटी के द्वारा कांकेर के अलावा कोंडागांव जिले के मसोरा गांव में भी गोंडी भाषा का ज्ञान बच्चो को दिया जा रहा है जहां लगभग 41 बच्चे अध्यनरत है । इसके बाद इस सोसायटी की पखांजुर में स्कूल खोलने की तैयारी है ।



Last Updated : Nov 30, 2019, 3:34 PM IST
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