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SPECIAL: 'छत्तीसगढ़ के खजुराहो' में परेशान हो रहे पर्यटक

कवर्धा के भोरमदेव मंदिर में श्रद्धालु देश-विदेश से पहुंचते हैं. कोरोना गाइडलाइन के साथ मंदिर परिसर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है, लेकिन प्रशासन की लापरवाही के चलते मंदिर परिसर और नंदी गार्डन में गंदगी फैली पसरी हुई है.लोगों को कोरोना के नियमों का पालन करने की अपील की जा रही है.

Bhoramdev temple
भोरमदेव मंदिर
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Published : Dec 29, 2020, 5:46 PM IST

Updated : Dec 29, 2020, 10:20 PM IST

कवर्धा: भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से मशहूर है. लॉकडाउन के बाद जिला प्रशासन की गाइडलाइन के बाद मंदिर को श्रध्दालुओं के लिए खोला गया है, लेकिन मंदिर परिसर में नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. ज्यादातर लोग न तो मास्क का उपयोग कर रहे हैं और न ही शोसल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं. हालांकि, प्रशासन की ओर से लगातार अपील की जा रही है कि सभी कोरोना के नियमों का पालन करें, जिसका असर भी देखने को मिल रहा है.

कवर्धा का भोरमदेव मंदिर

देश-विदेश से पहुंचते हैं श्रध्दालु

भोरमदेव मंदिर में श्रद्धालु देश-विदेश से पहुंचते हैं. यहां आने वाले श्रध्दालुओं को देखते हुए लोगों के मनोरंजन के लिए करोड़ों रुपये की लागत से नंदी गार्डन का निर्माण कराया गया है. इसके अलावा सामने तलाब किनारे गार्डन और मुर्तियां लगाई गई है. वहीं इंद्रधनुष झुला भी लगाया गया है. यहां आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करने करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं.

छत्तीसगढ़ का खजुराहो खजुराहो और कोणार्क

इस मंदिर की बनावट खजुराहो और कोणार्क मंदिर के समान है. जिसके कारण लोग इस मंदिर को 'छत्तीसगढ का खजुराहो' भी कहते हैं. यह मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर है. इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था. ऐसा कहा जाता है कि गोड़ राजाओं के देवता भोरमदेव थे और वे भगवान शिव के उपासक थे. भोरमदेव, शिवजी का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा.

मंदिर परिसर और नंदी गार्डन में गंदगी का अंबार

ईटीवी भारत की टीम जब मंदिर परिसर पहुंची तो वहां प्रशासन की अनदेखी भी देखने को मिली. भोरमदेव मंदिर परिसर और नंदी गार्डन में चारों ओर गंदगी का अंबार लगा हुआ है. चारों तरफ जूठे डिस्पोजल प्लेट, पानी पाउच, डिस्पोजल गिलास, गोबर और कचरा पसरा हुआ है. गार्डन के अंदर मवेशी का डेरा लगा हुआ है. इसके अलावा मंदिर परिसर और आसपास पिछले एक सप्ताह से पेयजल की व्यवस्था नहीं है. जिसके कारण यहां आने वाले श्रद्धालुओं को पीने के पानी के लिए भटकना पड़ रहा है. मंदिर के आसपास दुकानों में पानी बॉटल महंगी कीमत में बिक रहे हैं.

पढ़ें-भोरमदेव मंदिर: 11 साल की टूटी परंपरा, इस साल नहीं आयोजित होगी पदयात्रा, न होगा भंडारा

कलेक्टर ने दिया व्यवस्था सुधारने का आश्वासन

लॉकडाउन के बाद प्रशासन के आदेश पर भोरमदेव मंदिर को खोला गया है. लंबे समय बाद मंदिर खोले जाने के बाद श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां पहुंच रहे हैं, लेकिन जिला प्रशासन की लापरवाही के चलते मंदिर परिसर और नंदी गार्डन में गंदगी फैली हुई है. मंदिर परिसर के जिम्मेदारों का कहना है कि पाईपलाइन कटने से पेयजल की किल्लत है. प्रशासन को अवगत कराया गया है, लेकिन अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे हैं. कलेक्टर ने जल्द ही साफ-सफाई की व्यवस्था दुरुस्त कराने और पेयजल व्यवस्था को तत्काल सुधारने का आश्वासन दिया है.

कवर्धा: भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से मशहूर है. लॉकडाउन के बाद जिला प्रशासन की गाइडलाइन के बाद मंदिर को श्रध्दालुओं के लिए खोला गया है, लेकिन मंदिर परिसर में नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. ज्यादातर लोग न तो मास्क का उपयोग कर रहे हैं और न ही शोसल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं. हालांकि, प्रशासन की ओर से लगातार अपील की जा रही है कि सभी कोरोना के नियमों का पालन करें, जिसका असर भी देखने को मिल रहा है.

कवर्धा का भोरमदेव मंदिर

देश-विदेश से पहुंचते हैं श्रध्दालु

भोरमदेव मंदिर में श्रद्धालु देश-विदेश से पहुंचते हैं. यहां आने वाले श्रध्दालुओं को देखते हुए लोगों के मनोरंजन के लिए करोड़ों रुपये की लागत से नंदी गार्डन का निर्माण कराया गया है. इसके अलावा सामने तलाब किनारे गार्डन और मुर्तियां लगाई गई है. वहीं इंद्रधनुष झुला भी लगाया गया है. यहां आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करने करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं.

छत्तीसगढ़ का खजुराहो खजुराहो और कोणार्क

इस मंदिर की बनावट खजुराहो और कोणार्क मंदिर के समान है. जिसके कारण लोग इस मंदिर को 'छत्तीसगढ का खजुराहो' भी कहते हैं. यह मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर है. इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था. ऐसा कहा जाता है कि गोड़ राजाओं के देवता भोरमदेव थे और वे भगवान शिव के उपासक थे. भोरमदेव, शिवजी का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा.

मंदिर परिसर और नंदी गार्डन में गंदगी का अंबार

ईटीवी भारत की टीम जब मंदिर परिसर पहुंची तो वहां प्रशासन की अनदेखी भी देखने को मिली. भोरमदेव मंदिर परिसर और नंदी गार्डन में चारों ओर गंदगी का अंबार लगा हुआ है. चारों तरफ जूठे डिस्पोजल प्लेट, पानी पाउच, डिस्पोजल गिलास, गोबर और कचरा पसरा हुआ है. गार्डन के अंदर मवेशी का डेरा लगा हुआ है. इसके अलावा मंदिर परिसर और आसपास पिछले एक सप्ताह से पेयजल की व्यवस्था नहीं है. जिसके कारण यहां आने वाले श्रद्धालुओं को पीने के पानी के लिए भटकना पड़ रहा है. मंदिर के आसपास दुकानों में पानी बॉटल महंगी कीमत में बिक रहे हैं.

पढ़ें-भोरमदेव मंदिर: 11 साल की टूटी परंपरा, इस साल नहीं आयोजित होगी पदयात्रा, न होगा भंडारा

कलेक्टर ने दिया व्यवस्था सुधारने का आश्वासन

लॉकडाउन के बाद प्रशासन के आदेश पर भोरमदेव मंदिर को खोला गया है. लंबे समय बाद मंदिर खोले जाने के बाद श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां पहुंच रहे हैं, लेकिन जिला प्रशासन की लापरवाही के चलते मंदिर परिसर और नंदी गार्डन में गंदगी फैली हुई है. मंदिर परिसर के जिम्मेदारों का कहना है कि पाईपलाइन कटने से पेयजल की किल्लत है. प्रशासन को अवगत कराया गया है, लेकिन अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे हैं. कलेक्टर ने जल्द ही साफ-सफाई की व्यवस्था दुरुस्त कराने और पेयजल व्यवस्था को तत्काल सुधारने का आश्वासन दिया है.

Last Updated : Dec 29, 2020, 10:20 PM IST
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