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'देवदूत' से कम नहीं हैं ये स्वास्थ्य कर्मचारी, कई मील का सफर कर निभाते हैं ड्यूटी - ईमानदार स्वास्थ्य कर्मचारी कवर्धा

बोडला ब्लॉक के चिल्फी, खिचराही, बरहापानी, तेलियानी, लेदरा और दलदली जैसे कई गांव हैं जहां चार पहिया तो दूर दो पहिया से जाना भी मुश्किल है. अपने फर्ज को लेकर स्वास्थ्य कर्मचारी कितने ईमानदार हैं इसका अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि वो घोडों की मदद से गांवों में दवाइयां पहुंचाने के साथ ही, समय-समय पर लोगों का हैल्थ चेकअप भी करते हैं.

'देवदूत' से कम नहीं हैं ये स्वास्थ्य कर्मचारी
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Published : Aug 24, 2019, 12:03 AM IST

तस्वीरों में दिख रहे ये लोग न तो कोई पर्वतारोही हैं और न ही खानाबदोश. आपको जानकर हैरत होगी कि ये सभी लोग स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी हैं जो कठीन से कठीन परीस्थितीयों में भी अपनी ड्यूटी पूरी इमानदारी से निभा रहे हैं. कवर्धा जिले में इन दिनों डायरिया और मौसमी बीमारी परेशानी का सबब बने हुए हैं.

'देवदूत' से कम नहीं हैं ये स्वास्थ्य कर्मचारी

जहां बीमारी लोगों को अपना शिकार बना रही है तो वहीं स्वास्थ्य अमला पुरी ताकत से इससे लड़ाई लड़ रहा है. ग्रामीण इलाकों से लगातार लोगों के बीमार होने की खबरे आ रहीं थी. कई जगह तो बीमार तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं थी, ऐसे में स्वास्थ्य विभाग की टीम को जंगली रास्ते पर करीब पांच किलोमीटर तक सफर करना पड़ता है.

जिले में बहुत से गांव ऐसे हैं जहां अभी तक पहुंच मार्ग नहीं बना है. ऐसे स्थानों में भी स्वास्थ्यकर्मी पांच से दस किलोमीटर तक बीहड़ और घने जंगलों के बीच से गुजकर स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने का काम करते हैं. बोडला ब्लॉक के चिल्फी, खिचराही, बरहापानी, तेलियानी, लेदरा और दलदली जैसे कई गांव हैं जहां चार पहिया तो दूर दो पहिया से जाना भी मुश्किल है.

पढ़ें:श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: हेलमेट पहनकर ट्रैफिक नियमों के लिए जागरूक कर रहे हैं 'नटखट बाल गोपाल'

अपने फर्ज को लेकर स्वास्थ्य कर्मचारी कितने ईमानदार हैं इसका अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि वो घोडों की मदद से गांवों में दवाइयां पहुंचाने के साथ ही, समय-समय पर लोगों का हैल्थ चेकअप भी करते हैं. मरीज के गंभीर बीमार होने की सूरत में कर्मचारी उसे चारपाई पर लिटा कर स्वास्थ्य केंद्र तक लाते हैं , ताकि मरीज को बेहतर इलाज मिल सके. जिस समय में स्वाथ्य व्यवस्था एक उद्योग के तौर पर विकसित हो चुकी है ऐसे दौर में स्वास्थ्य कर्मचारियों की ये पहल किसी मिसाल से कम नहीं.

तस्वीरों में दिख रहे ये लोग न तो कोई पर्वतारोही हैं और न ही खानाबदोश. आपको जानकर हैरत होगी कि ये सभी लोग स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी हैं जो कठीन से कठीन परीस्थितीयों में भी अपनी ड्यूटी पूरी इमानदारी से निभा रहे हैं. कवर्धा जिले में इन दिनों डायरिया और मौसमी बीमारी परेशानी का सबब बने हुए हैं.

'देवदूत' से कम नहीं हैं ये स्वास्थ्य कर्मचारी

जहां बीमारी लोगों को अपना शिकार बना रही है तो वहीं स्वास्थ्य अमला पुरी ताकत से इससे लड़ाई लड़ रहा है. ग्रामीण इलाकों से लगातार लोगों के बीमार होने की खबरे आ रहीं थी. कई जगह तो बीमार तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं थी, ऐसे में स्वास्थ्य विभाग की टीम को जंगली रास्ते पर करीब पांच किलोमीटर तक सफर करना पड़ता है.

जिले में बहुत से गांव ऐसे हैं जहां अभी तक पहुंच मार्ग नहीं बना है. ऐसे स्थानों में भी स्वास्थ्यकर्मी पांच से दस किलोमीटर तक बीहड़ और घने जंगलों के बीच से गुजकर स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने का काम करते हैं. बोडला ब्लॉक के चिल्फी, खिचराही, बरहापानी, तेलियानी, लेदरा और दलदली जैसे कई गांव हैं जहां चार पहिया तो दूर दो पहिया से जाना भी मुश्किल है.

पढ़ें:श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: हेलमेट पहनकर ट्रैफिक नियमों के लिए जागरूक कर रहे हैं 'नटखट बाल गोपाल'

अपने फर्ज को लेकर स्वास्थ्य कर्मचारी कितने ईमानदार हैं इसका अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि वो घोडों की मदद से गांवों में दवाइयां पहुंचाने के साथ ही, समय-समय पर लोगों का हैल्थ चेकअप भी करते हैं. मरीज के गंभीर बीमार होने की सूरत में कर्मचारी उसे चारपाई पर लिटा कर स्वास्थ्य केंद्र तक लाते हैं , ताकि मरीज को बेहतर इलाज मिल सके. जिस समय में स्वाथ्य व्यवस्था एक उद्योग के तौर पर विकसित हो चुकी है ऐसे दौर में स्वास्थ्य कर्मचारियों की ये पहल किसी मिसाल से कम नहीं.

Intro:कवर्धा-जिले डायरिया बिमारी का प्रकोप अधिक बढ चुका है । आख कर यहां बिमारी की खबर वनांचल क्षेत्रों से आ रही है। इन सभी से निपटने जिला प्रशासन अपनी पुरी ताकत झोक दी है। वही स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी अपने काम को अनजान पुरे इमानदारी से कर रहे है। जंगल पहाड़ों मे कई कि.मी पैदल चलकर लोगों का इलाज कर रहे है।Body:एंकर- जिले मे इन दिनों डायरिया बिमारी ने पुरी तरहा पैर पसार चुका है। साथ ही इनसे निपटने स्वास्थ्य विभाग अलर्ट जारी कर दिया हुआ है वही जिला प्रशासन भी इस बिमारी को गंभीरता से लेते हुऐ लोगों के गाँव व घरों तक स्वास्थ्य सुविधा पहुचाने काम कर रही है। शहरी क्षेत्रों से लेकर वनांचल के बिहड जंगलों मे बसे आदिवासी बैगा परिवारों तक भी पहुंच स्वास्थ्य कैम्प लगाकार लोगों का इलाज करने मे जुट गई है। जिले मे बहुत से ऐसे भी वनांचल ग्राम है जहा अब तक सड़क नही बन पाया है। वैसे स्थानों मे भी स्वास्थ्यकर्मीयों पाँच से दस किलोमीटर पहाड़ों से होकर ग्राम तक पहुंच रहे है ऐसा ही कुछ मामले सामने आऐ है बोडला ब्लॉक अंतर्गत आने वाले ग्राम चिल्फी उप स्वास्थ्य केंद्र अंतर्गत ग्राम खिचराही, बरहापानी, व तेलियानी, लेदरा, दलदली जैसे अनेकों गाँव है जहा तक बाईक ऐम्बुलेंस भी नही पहुंच पाती वहा लोगों तक इलाज करने स्वास्थ्यकर्मी कही घोडों के मदद से दवाइयों पहुंचा रहे है तो कही खटीया मे लिटा कर मरीजों को स्वास्थ्य केंद्र तक लाया जा रहा है ,ताकि लोगों की समय मे सही इलाज मिल सके। आपको बता दे शहरी क्षेत्रों मे लोगों को इलाज कि सुविधा तो आसानी से मिल जाती है लेकिन वनांचल मे रहने वाले आदिवासी परिवारों को आसपास ना तो इलाज मिलता है और नही ही इनके पास स्वास्थ्य केंद्र तक पहुनें का कोई साधन होता है इसी कारण वनांचल मे आदिवासी परिवार के लोग इलाज के अभाव मे उनकी मौत हो जाती है। हाल मे ही पंडरिया विकासखंड के ग्राम डेंगुरजाम गाँव मे एक आदिवासी बच्चे की मौत हो। गई बतागया की बच्चा एक साप्ताह से उल्टी दस्स से बिमार था और स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचने को कोई साधन नही होने के कारण घर मे ही उसकी मौत हो गई थी।


Conclusion:जिला प्रशासन का कहना है कि बारिश के मौसम मे इस तरह कि बिमारी अक्सर होती है विभाग को थोडी परेशानी का समना करना पडता है। और स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ क्षेत्र के एसडीएमों को भी बताया जा चुका है शहरी क्षेत्रों से लेकर बिहड वनांचलों तक स्वास्थ्यकर्मीयों को भेजा जा रहा है कुछ ऐसे ग्राम भी है जहा सड़क नही है वहा भी पैदल चलकर स्वास्थ्य विभाग कि टीम वहा तक पहुंच रही है है जहां बाईक एम्बुलेंस भी नही पहुंच पा रहा है वहा खटीया के माध्यम से स्वास्थ्य केंद्र तक लाया जा रह है और लोगों का इलाज किया जा रहा है ।

बाईट01 अवनीश शरण ,कलेक्टर कवर्धा।
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