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Kawardha Devi maa Khappad: कवर्धा में अष्टमी पर निकाली जाएगी देवी मंदिरों से खप्पर, 150 सालों से चली आ रही परम्परा

Kawardha Devi maa Khappad: कवर्धा में अष्टमी के मौके पर आधी रात को माता रानी के तीनों मंदिरों से खप्पर निकाली जाएगी. ये परम्परा 150 साल पुरानी है, जिले के लोग इस परंपरा को आज भी निभा रहे हैं. खप्पर निकाले जाने के दौरान भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है.

Kawardha Devi maa Khappad
कवर्धा में खप्पर यात्रा
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Oct 22, 2023, 4:16 PM IST

कवर्धा: शारदीय नवरात्र का पर्व चल रहा है. कवर्धा में देवी मां का ऐसा मंदिर है, जहां मां साक्षात विराजमान हैं. इन मंदिरों से जुड़ी कई परम्पराएं भी हैं. ऐसे में छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में सालों से अष्टमी की मध्यरात्रि को खप्पर निकालने की परम्परा निभाई जाती है. शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि के मध्य रात्रि को मंदिरों से देवी मां खप्पर के रूप में बाहर निकलती हैं. हजारों श्रद्धालु इस दौरान माता का आशीर्वाद लेन पहुंचते हैं.

सालों से निभाई जा रही ये परम्परा: कवर्धा में सालों से खप्पर निकालने की परंपरा जारी है. नवरात्रि में अष्टमी की आधी रात को नगर के चंडी, परमेश्वरी और दंतेश्वरी देवी के मंदिरों से खप्पर निकाली जाती है. इस खप्पर के दर्शन करने लोग दूर-दूर से आते हैं. इस दौरान पुलिस और प्रशासन की टीम जगह-जगह बैरिकेडिंग लगाकर सुरक्षा के लिए तैनात रहती है. ताकि कोई भगदड़ ना हो और श्रद्धालु शांति से खप्पर के दर्शन कर सकें.

150 वर्षों से चली आ रही परम्परा: कवर्धा में खप्पर निकालने की परंपरा पिछले 150 सालों से चली आ रही है. नवरात्रि के अष्टमी की रात 12 बजे एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में जलता हुआ आग का खप्पर (जिसे देवी का रूप माना जाता है) लेकर पुजारी निकलते हैं. नगर भ्रमण के बाद मंदिर में जाकर देवी मां शांत हो जाती है. खप्पर के निकलने वाले रास्ते पर अंधेरे में खड़े होकर लोग देवी का दर्शन करते हैं.

यह परंपरा 150 साल पुरानी है. पहले नगर में हैजा, महामारी, अकाल, भुखमरी जैसे कई मुश्किलें आती रहती थी. इन्हीं अड़चनों को दूर करने के लिए अष्टमी की रात को माता मंदिर से निकलकर पूरे नगर को बांध देती थी. इसके बाद प्रकोप से छुटकारा मिल जाता था. -मंदिर के पुजारी

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जिला प्रशासन ने की पूरी तैयारी: इस बारे में कलेक्टर जनमेजम महोबे ने बताया कि, "मंदिर समितियों से बैठक कर खप्पर की रूप रेखा और अन्य चीजों के संबंध में जानकारी ली गई है. पुलिस विभाग जगह-जगह बैरिकेडिंग लगाकर भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश करेगी. ताकि लोग शांति से माता के दर्शन कर सकें."

बता दें कि आधी रात को माता के खप्पर का दर्शन करने को हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. इस दौरान पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं.

कवर्धा: शारदीय नवरात्र का पर्व चल रहा है. कवर्धा में देवी मां का ऐसा मंदिर है, जहां मां साक्षात विराजमान हैं. इन मंदिरों से जुड़ी कई परम्पराएं भी हैं. ऐसे में छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में सालों से अष्टमी की मध्यरात्रि को खप्पर निकालने की परम्परा निभाई जाती है. शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि के मध्य रात्रि को मंदिरों से देवी मां खप्पर के रूप में बाहर निकलती हैं. हजारों श्रद्धालु इस दौरान माता का आशीर्वाद लेन पहुंचते हैं.

सालों से निभाई जा रही ये परम्परा: कवर्धा में सालों से खप्पर निकालने की परंपरा जारी है. नवरात्रि में अष्टमी की आधी रात को नगर के चंडी, परमेश्वरी और दंतेश्वरी देवी के मंदिरों से खप्पर निकाली जाती है. इस खप्पर के दर्शन करने लोग दूर-दूर से आते हैं. इस दौरान पुलिस और प्रशासन की टीम जगह-जगह बैरिकेडिंग लगाकर सुरक्षा के लिए तैनात रहती है. ताकि कोई भगदड़ ना हो और श्रद्धालु शांति से खप्पर के दर्शन कर सकें.

150 वर्षों से चली आ रही परम्परा: कवर्धा में खप्पर निकालने की परंपरा पिछले 150 सालों से चली आ रही है. नवरात्रि के अष्टमी की रात 12 बजे एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में जलता हुआ आग का खप्पर (जिसे देवी का रूप माना जाता है) लेकर पुजारी निकलते हैं. नगर भ्रमण के बाद मंदिर में जाकर देवी मां शांत हो जाती है. खप्पर के निकलने वाले रास्ते पर अंधेरे में खड़े होकर लोग देवी का दर्शन करते हैं.

यह परंपरा 150 साल पुरानी है. पहले नगर में हैजा, महामारी, अकाल, भुखमरी जैसे कई मुश्किलें आती रहती थी. इन्हीं अड़चनों को दूर करने के लिए अष्टमी की रात को माता मंदिर से निकलकर पूरे नगर को बांध देती थी. इसके बाद प्रकोप से छुटकारा मिल जाता था. -मंदिर के पुजारी

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बता दें कि आधी रात को माता के खप्पर का दर्शन करने को हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. इस दौरान पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं.

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