जशपुर: शहर सहित पूरे अंचल में हलषष्ठी व्रत को पारम्परिक रीति और श्रद्वा के साथ मनाया गया. व्रती महिलाओं ने अपनी संतान की लंबी आयु की कामना के साथ व्रत धारण किया. साथ ही चूना पानी का पोता मारकर संतान को लंबी आयु के साथ सुखी और संपन्न होने का आशीर्वाद दिया. झारखंड और ओडिशा की सीमा पर स्थित जशपुर अंचल में छत्तीसगढ़ के इस प्रसिद्व त्योहार का प्रचलन अपेक्षाकृत कम देखा जाता है, बावजूद इसके इस व्रत को मानने वाली महिलाओं ने इसकी तैयारी कई दिनों पहले से शुरू कर दी थी, लेकिन कोरोना काल के कारण कम उत्साह देखने को मिला.
हलषष्ठी व्रत भादो महीने के छठवें दिन मनाया जाता है. सावन महीना बीतने के बाद यह छत्तीसगढ़ अंचल का पहला सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन होता है. व्रत को अंचल में हरछठ, कमरछठ, खमर छठ जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है. पूजा के लिए व्रती महिलाओं के लिए घर के बड़े बेटे ने जमीन की खुदाई कर कुंड का निर्माण किया था. कुंड निर्माण से पहले इसके निर्माण में उपयोग होने वाले कुदाली या साबल की पूजा की गई.
पूजन सामग्री से कुंड को सजाया गया
इसके अलावा कुंड में झरबेरी की डाल और कांसी या कुश के पुल से सजाकर हलषष्ठी माता को स्थापित किया गया था. हलषष्ठी माता की पूजा के लिए व्रती महिलाएं मिट्टी के बने हुए छोटे बर्तन में बिना हल चलाए उगाए हुए 7 प्रकार के अनाज (गेहूं, चना) और भैंस के दूध, दही और घी जैसी पूजन सामग्री से इस कुंड को सजाया गया था.
प्रसाद ग्रहण करने के साथ पूजा प्रक्रिया पूरी की
बता दें कि निर्धारित समय में पुरोहित की अगुवाई में षष्ठी मईया की विशेष पूजन सामग्री से विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर महिलाओं ने कथा सुनी. इसके बाद संतानों को चूना पानी का पोता लगाकर उन्हें दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया. इस सारी धार्मिक प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद व्रती महिलाओं ने पसहर चावल, दूध, दही के साथ भुने हुए अनाज से तैयार प्रसाद ग्रहण करने के साथ ही इस व्रत की पूजा प्रक्रिया पूरी की.