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जशपुर: अपने हाल पर रो रहा वो गांव, जिसकी गोद में दिग्गज पले-बढ़े - बहू गोमती साय

जशपुर जिले के 25 परिवार वाले गांव ने 4 ऐसे दिग्गज जनप्रतिनिधियों को जन्म दिया है जिन्होंने छत्तीसगढ़ की राजनीति में अहम भूमिका निभाकर राजनीति के क्षेत्र में तो पास हो गए हैं लेकिन उसी गांव के ग्रामीणों ने उनके रिपोर्ट कार्ड में उन्हें फेल कर दिया है.

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Published : Mar 26, 2019, 6:11 PM IST

जशपुर : नाम बनाने वालों ने अपनी शुरुआत गांवों में पगडंडियों पर चलकर, कभी किसी की उंगलियों को पकड़कर, अपने संघर्ष से या फिर किस्मत से हासिल किया होगा. लाखों के बीच पहचान बनाने वाले अपनी शुरुआत मुट्ठी भर लोगों के बीच कर सकते हैं. जशपुर जिले के 25 परिवार वाले गांव ने 4 ऐसे दिग्गज जनप्रतिनिधियों को जन्म दिया है जिन्होंने छत्तीसगढ़ की राजनीति में अहम भूमिका निभाकर राजनीति के क्षेत्र में तो पास हो गए हैं लेकिन उसी गांव के ग्रामीणों ने उनके रिपोर्ट कार्ड में उन्हें फेल कर दिया है.

जिले के मात्र 25 परिवार वाले इस छोटे से गांव की गलियों ने एक आईपीएस समेत तीन बड़े प्रशासनिक अधिकारियों को जन्म दिया है. कैरियर का गवाह रहा इस छोटे से गांव में इन दिग्गजों ने अपना बचपन गुजारा, प्राथमिक शिक्षा ली और निकल पड़े देश और प्रदेश में अपना योगदान देने, लेकिन इन सब के बीच वे सभी गांव को ही अपना योगदान देने से चूक गए. हाल ही में भाजपा ने इस गांव की बहु को लोकसभा के चुनावी मैदान में उतारा है लेकिन इस बात पर गर्व करने के बजाय ग्रामीणों के मन में कसक है. उनका कहना है कि इन दिग्गज नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों का यह गांव आज भी विकास की मार झेल रहा है.

वीडियो

1136 की आबादी वाले इस गांव में 25 परिवार निवासरत
जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर बसे फरसाबहार जनपद का ग्राम पंचायत गारीघाट है, जिसमें 11 वार्ड के 1136 की आबादी वाले 25 परिवार निवास करते हैं. यहां ज्यादातर लोग कंवर समाज के हैं. मुंडाडीह ग्राम का राजनीतिक सफर 1971 में शुरू हुआ. किसान परिवार के दिनेश्वर साय ने राजनीति में कदम रखा. इसकी शुरुआत उन्होंने तपकरा विधानसभा से चुनाव लड़ कर किया. वे मध्य प्रदेश विधानसभा तक पहुंच गए. 1985 तक मुंडाडीह ग्राम से ही तपकरा विधानसभा का संचालन करते रहे.

नंदकुमार साय से जुड़ा है ये गांव
उसी वक्त एक और नेता अपनी पढ़ाई के साथ-साथ राजनीति में कदम रख रहे थे जिनका नाम नंद कुमार साय है. इन्होंने विधानसभा चुनाव जीतकर दो बार तपकरा विधानसभा से विधायक रहे और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष भी हैं.

भरत साय का राजनीतिक सफर
इसके बाद इस गांव से राजनीतिक सफर की शुरुआत करते हुए तीसरे भाजपा के दिग्गज नेता रहे भरत साय जो कि 2003 से लगातार 2013 तक विधायक रहे. इसके बाद उन्हें छत्तीसगढ़ लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष बना दिया गया. वहीं 2018 में कुनकुरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

रायगढ़ लोकसभा सीट से गोमती साय को मिला टिकट
मुंडाडीह जैसे छोटे से गांव ने अपने बेटे के साथ-साथ यहां की बहू को भी राजनीति में आगे बढ़ने का मौका दिया. 2005 में गांव की बहू गोमती साय ने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर राजनीति में पहला कदम रखा और जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर पहुंच गई. भाजपा ने गांव की बहू को रायगढ़ लोकसभा सीट से प्रत्याशी घोषित कर राजनीति में एक बार फिर हलचल पैदा कर दी है.

न सड़क है न बिजली और न पुल
गांव की सरपंच गंगोत्री ने बताया कि, 'दिनेश्वर साय, भरत साय जैसे बड़े दिग्गजों के बाद भी इस गांव में विकास नहीं हुआ. जो थोड़े बहुत काम हुए भी है वह सरपंच की ओर से कराए गए हैं. गांव में विकास का जिक्र करते हुए कहा कि, 'गांव में न सड़क है न बिजली और न पुल'. वहीं गोमती साय के काम का जिक्र करते हुए कहा कि, 'जिला पंचायत की अध्यक्ष रही गोमती साय ने भी किसी तरह का काम नहीं किया'. उन्होंने कहा कि, 'गोमती सांसद का चुनाव तो लड़ रही है उन्हे उम्मीद है कि गांव का विकास हो'.

डीआईजी ने भी गांव को किया अनदेखा
स्थानीय निवासी विनोद शर्मा ने बताया कि, 'इस गांव से आरपी साय वर्तमान में डीआईजी के पद पर सेवाएं दे रहे हैं. वे सरगुजा संभाग में पदस्थ है. वहीं रायपुर में रामनाथ साय आयकर अधिकारी के पद पर कार्यरत है, लेकिन उन्होंने ने भी गांव की ओर ध्यान नहीं दिया'.

सिर्फ दिनेश्वर साय ने ली सुध
नंदन साय चौहान ने कहा कि, 'दिनेश्वर साय के अलावा आज तक कोई भी जनप्रतिनिधि उनकी सुध नहीं लेता. स्थानीय निवासी होने के बावजूद सिर्फ चुनाव के समय ही उनसे मिलते हैं लेकिन गांव के विकास में किसी तरह का काम नहीं कराया. गांव में आज भी पानी की समस्या बनी हुई है'.

राजनेताओं का यह गांव तरस रहा पानी के लिए
वहीं गांव के 80 वर्षीय बुजुर्ग बताते हैं कि, 'विगत राजनेताओं का यह गांव पानी के लिए तरस रहा है. गांव की एक बस्ती को छोड़कर कहीं भी नल और जल दोनों नहीं है और ना ही तलाब और हैंडपंप. गर्मी के दस्तक देते ही कुएं सूख जाते हैं और पानी के लिए हाहाकार मच जाता है. साथ ही क्षेत्र हाथियों के प्रकोप से भी जूझ रहा है.

बहू से है गांव को उम्मीद
इन तामाम समस्या को सुनने के बाद यह कहा जा सकता है कि, मुंडाडीह ग्राम के लोग अपनी बहू गोमती साय को रायगढ़ लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर उत्साहित नहीं है लेकिन उन्हें उम्मीद जरूर है.

जशपुर : नाम बनाने वालों ने अपनी शुरुआत गांवों में पगडंडियों पर चलकर, कभी किसी की उंगलियों को पकड़कर, अपने संघर्ष से या फिर किस्मत से हासिल किया होगा. लाखों के बीच पहचान बनाने वाले अपनी शुरुआत मुट्ठी भर लोगों के बीच कर सकते हैं. जशपुर जिले के 25 परिवार वाले गांव ने 4 ऐसे दिग्गज जनप्रतिनिधियों को जन्म दिया है जिन्होंने छत्तीसगढ़ की राजनीति में अहम भूमिका निभाकर राजनीति के क्षेत्र में तो पास हो गए हैं लेकिन उसी गांव के ग्रामीणों ने उनके रिपोर्ट कार्ड में उन्हें फेल कर दिया है.

जिले के मात्र 25 परिवार वाले इस छोटे से गांव की गलियों ने एक आईपीएस समेत तीन बड़े प्रशासनिक अधिकारियों को जन्म दिया है. कैरियर का गवाह रहा इस छोटे से गांव में इन दिग्गजों ने अपना बचपन गुजारा, प्राथमिक शिक्षा ली और निकल पड़े देश और प्रदेश में अपना योगदान देने, लेकिन इन सब के बीच वे सभी गांव को ही अपना योगदान देने से चूक गए. हाल ही में भाजपा ने इस गांव की बहु को लोकसभा के चुनावी मैदान में उतारा है लेकिन इस बात पर गर्व करने के बजाय ग्रामीणों के मन में कसक है. उनका कहना है कि इन दिग्गज नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों का यह गांव आज भी विकास की मार झेल रहा है.

वीडियो

1136 की आबादी वाले इस गांव में 25 परिवार निवासरत
जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर बसे फरसाबहार जनपद का ग्राम पंचायत गारीघाट है, जिसमें 11 वार्ड के 1136 की आबादी वाले 25 परिवार निवास करते हैं. यहां ज्यादातर लोग कंवर समाज के हैं. मुंडाडीह ग्राम का राजनीतिक सफर 1971 में शुरू हुआ. किसान परिवार के दिनेश्वर साय ने राजनीति में कदम रखा. इसकी शुरुआत उन्होंने तपकरा विधानसभा से चुनाव लड़ कर किया. वे मध्य प्रदेश विधानसभा तक पहुंच गए. 1985 तक मुंडाडीह ग्राम से ही तपकरा विधानसभा का संचालन करते रहे.

नंदकुमार साय से जुड़ा है ये गांव
उसी वक्त एक और नेता अपनी पढ़ाई के साथ-साथ राजनीति में कदम रख रहे थे जिनका नाम नंद कुमार साय है. इन्होंने विधानसभा चुनाव जीतकर दो बार तपकरा विधानसभा से विधायक रहे और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष भी हैं.

भरत साय का राजनीतिक सफर
इसके बाद इस गांव से राजनीतिक सफर की शुरुआत करते हुए तीसरे भाजपा के दिग्गज नेता रहे भरत साय जो कि 2003 से लगातार 2013 तक विधायक रहे. इसके बाद उन्हें छत्तीसगढ़ लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष बना दिया गया. वहीं 2018 में कुनकुरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

रायगढ़ लोकसभा सीट से गोमती साय को मिला टिकट
मुंडाडीह जैसे छोटे से गांव ने अपने बेटे के साथ-साथ यहां की बहू को भी राजनीति में आगे बढ़ने का मौका दिया. 2005 में गांव की बहू गोमती साय ने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर राजनीति में पहला कदम रखा और जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर पहुंच गई. भाजपा ने गांव की बहू को रायगढ़ लोकसभा सीट से प्रत्याशी घोषित कर राजनीति में एक बार फिर हलचल पैदा कर दी है.

न सड़क है न बिजली और न पुल
गांव की सरपंच गंगोत्री ने बताया कि, 'दिनेश्वर साय, भरत साय जैसे बड़े दिग्गजों के बाद भी इस गांव में विकास नहीं हुआ. जो थोड़े बहुत काम हुए भी है वह सरपंच की ओर से कराए गए हैं. गांव में विकास का जिक्र करते हुए कहा कि, 'गांव में न सड़क है न बिजली और न पुल'. वहीं गोमती साय के काम का जिक्र करते हुए कहा कि, 'जिला पंचायत की अध्यक्ष रही गोमती साय ने भी किसी तरह का काम नहीं किया'. उन्होंने कहा कि, 'गोमती सांसद का चुनाव तो लड़ रही है उन्हे उम्मीद है कि गांव का विकास हो'.

डीआईजी ने भी गांव को किया अनदेखा
स्थानीय निवासी विनोद शर्मा ने बताया कि, 'इस गांव से आरपी साय वर्तमान में डीआईजी के पद पर सेवाएं दे रहे हैं. वे सरगुजा संभाग में पदस्थ है. वहीं रायपुर में रामनाथ साय आयकर अधिकारी के पद पर कार्यरत है, लेकिन उन्होंने ने भी गांव की ओर ध्यान नहीं दिया'.

सिर्फ दिनेश्वर साय ने ली सुध
नंदन साय चौहान ने कहा कि, 'दिनेश्वर साय के अलावा आज तक कोई भी जनप्रतिनिधि उनकी सुध नहीं लेता. स्थानीय निवासी होने के बावजूद सिर्फ चुनाव के समय ही उनसे मिलते हैं लेकिन गांव के विकास में किसी तरह का काम नहीं कराया. गांव में आज भी पानी की समस्या बनी हुई है'.

राजनेताओं का यह गांव तरस रहा पानी के लिए
वहीं गांव के 80 वर्षीय बुजुर्ग बताते हैं कि, 'विगत राजनेताओं का यह गांव पानी के लिए तरस रहा है. गांव की एक बस्ती को छोड़कर कहीं भी नल और जल दोनों नहीं है और ना ही तलाब और हैंडपंप. गर्मी के दस्तक देते ही कुएं सूख जाते हैं और पानी के लिए हाहाकार मच जाता है. साथ ही क्षेत्र हाथियों के प्रकोप से भी जूझ रहा है.

बहू से है गांव को उम्मीद
इन तामाम समस्या को सुनने के बाद यह कहा जा सकता है कि, मुंडाडीह ग्राम के लोग अपनी बहू गोमती साय को रायगढ़ लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर उत्साहित नहीं है लेकिन उन्हें उम्मीद जरूर है.

Intro:जशपुर यह है जशपुर जिले का एक ऐसा गांव जहा मात्र 25 परिवार रहते है 25 परिवार के इस छोटे से गाँव ने राजनीति और प्रशासनिक सेवाओं के क्षेत्र में इतिहास रच रखा है और अब इस गांव की बहु को मिला है सांसद का टिकट आइए जानते है इस छोटे से गाँव के लोग क्या कहते है।

बमुश्किल 25 परिवार के इस छोटे से गाँव की गलियों ने प्रदेश के 4 दिग्गज जनप्रतिनिधियों की राजनीति, ओर एक आईपीएस सहित तीन बड़े प्रशासनिक अधिकारियों के कैरियर का गवाह है, इस छोटे से गाँव मे इन दिग्गजो ने अपना बचपन गुजारा प्राथमिक शिक्षा ली और निकल पड़े देश और प्रदेश विकास में अपना योगदान करने , लेकिन इसके बावजूद इस गाँव के लोगो के मन मे कसक है कि इन दिग्गज नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों का यह गांव आज भी विकास का वह मुक़ाम हासिल नही कर सका,
लेकिन एक बार फिर इस गांव की एक बहु को संसद की दहलीज पर तक पहुंचने के लिए लोकसभा चुनाव के संग्राम में उतारा गया है तो बस गांव के लोगो का ध्यान बरबस ही लगा हुआ ।

जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी बसे फरसाबहार जनपद का ग्राम पंचायत गारीघाट जिसमे 11 वार्ड ओर 1136 की आबादी वाले इस पंचायत के आश्रित ग्राम मुंडाडीह। इस छोटे से गांव में सिर्फ 25 परिवार रहते है इस गांव में अधिकांश कंवर समाज के लोग रहते है। मुंडाडीह ग्राम का राजनीतिक सफर 1971 सुरु हुई किसान परिवार के दिनेश्वर साय ने राजनीतिक सफर की सुरुआत की जनसंघ की ओर से तपकरा विधानसभा से चुनाव लड़ा और मध्य प्रदेश विधानसभा पहुंच गए , ओर 1985 तक मुंडाडीह ग्राम से ही तपकरा विधान सभा का संचालन करते रहे।
उसी वक्त एक और नेता अपनी पढ़ाई के साथ साथ राजनीति मैं कदम रख रहा था यह राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय , जिनका बचपन इसी गांव में गुजरा, यहीं से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने राजनीति की ओर दो बार तपकरा विधानसभा से विधायक रहे,
इसके बाद इस गांव से राजनीतिक सफर की शुरुआत करते हुए तीसरे भाजपा के दिग्गज नेता रहे भरत साय जो कि 2003 से लगातार 2013 तक विधायक रहे जिसके बाद उन्हें छत्तीसगढ़ लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष बना दिया गया इसके बाद 2019 में कुनकुरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना

मुंडाडीह जैसे छोटे से गांव ने अपने बेटे के साथ यहां की बहू को भी राजनीति में आगे बढ़ने का मौका दिया 2005 गांव की बहू गोमती साय ने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर राजनीति में पहला कदम रखा और जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर पहुंच गए, गाँव की बहू को भाजपा ने रायगढ़ लोकसभा सीट से प्रत्याशी घोषित कर चर्चा का केंद्र बिंदु बना हुआ है,

गाँव की सरपंच ने गंगोत्री ने बताया कि दिनेश्वर साय, भरत साय जैसे बड़े दिग्गजों यहाँ से हुवा के बाद भी विकास नही हुआ कई बड़े राजनेताओं यहाँ से हुवे पर विकास कुछ भी नही हुआ, जो भी छोटे काम हुवे है सब सरपंच की ओर से ही हुवे है इसके साथ ही पानी की कमी है साथ ही कई वार्ड में सड़क नही है पुल नही है , जिससे ग्रामीण को तकलीफ का सामना करना पड़ता है वर्तमान में जिला पंचायत की अध्यक्ष रही गोमती साय ने भी काम नही किया गांव के होने के बाद भी विकास नही हुआ। उन्होंने कहा कि सांसद का चुनाव तो लड़ रही है उम्मीद है हमे की कुछ विकास हो।

राजनीतिक जन्म देने वाले इस गांव में प्रशासनिक सेवाओं के क्षेत्र में भी इतिहास रचा है स्थानीय निवासी विनोद शर्मा ने बताया कि इस गांव से आर पी साय वर्तमान में डीआईजी के पद पर सेवाएं दे रहे हैं उनकी वर्तमान तैनाती सरगुजा संभाग में है वही रामनाथ साय आयकर अधिकारी के पद पर रायपुर में कार्यरत है ।

दिग्गज नेताओं और कुछ प्रशासनिक पदों पर अपने गांव से निकले हुए लोगों के गवाह है मुंडाडीह ग्राम के लोग अपनी बहू गोमती साय को रायगढ़ लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर उत्साह ही नजर नहीं आए
इस गांव के रहने वाले नंदन साय चौहान ने कहा कि दिनेश्वर साय य के अलावा कोई आज तक कोई जनप्रतिनिधि उनकी सुध नहीं लेता स्थानीय निवासी होने के बावजूद सिर्फ चुनाव के समय ही उनसे मिलते हैं उसके बाद आज तक कोई काम नही किया इसके अलावा गांव में पानी की समस्या बनी हुई है कोई भी सुध लेने नहीं आता

वहीं गांव के 80 वर्षीय बुजुर्ग बताते हैं कि विगत राजनेताओं का यह गांव पानी के लिए तरस रहा है गांव की एक बस्ती को छोड़कर कहीं भी नल जल नहीं है और ना ही तलाब और ना हैंडपंप गर्मी के दस्तक देने के साथ ही कुएं सूख जाते हैं और पानी के लिए हाहाकार मच जाता है साथ ही क्षेत्र में हाथियों के प्रकोप से भी जूझ रहे हैं।

बाइट 1 गंगोत्री सरपंच (ग़ुलाबी साड़ी)
बाइट 2 उपेंद्र नाथ साय ग्रामीण (काली टीशर्ट )
बाइट 3 विनोद शर्मा स्थानीय निवासी (सफेद दाढ़ी )
बाइट 4 नंदन साय (सफेद गंजी में)
बाइट 5 बुजुर्ग ग्रामीण

तरुण प्रकाश शर्मा
जशपुर

विजवल एक साथ ही बाइट अलग अलग



Body:vikas ki raha


Conclusion:
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